आरक्षण के अंदर कोटा से क्या होगा असर !
आरक्षण के अंदर कोटा से क्या होगा असर, कैसे मिलेगा फायदा?
सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST के कोटे में कोटा यानी आरक्षण के अंदर आरक्षण पर मुहर लगा दी है. यह फैसला दलितों में ज्यादा पिछड़ी जातियों के लिए बड़ी जीत है. इससे उन्हें समाज में ज्यादा आगे बढ़ने का मौका मिलेगा
आरक्षण एक ऐसा सिस्टम है जहां देश में कुछ खास जातियों के लोगों के लिए सरकारी नौकरी और स्कूल-कॉलेज में एडमिशन के दौरान कुछ सीटें पहले से ही रिजर्व कर दी जाती हैं. ये सब हमारे देश के संविधान में लिखा है. ये वो लोग होते हैं जिन्हें सरकार मानती है कि इन्हें समाज में कम फायदे मिले हैं और ये पिछड़ गए हैं.
लेकिन अब इस सिस्टम में बड़ा बदलाव आया है. 1 अगस्त 2024 को सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की पीठ ने 6-1 के बहुमत से कहा है कि दलितों में भी कुछ लोग ऐसे हैं जो बहुत ज्यादा पिछड़े हुए हैं. इन लोगों को और ज्यादा मदद देने के लिए इनको अलग से आरक्षण दिया जा सकता है. मतलब राज्य सरकार ‘सब-क्लासिफिकेशन’ कर सकती है.
इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि ओबीसी की तरह एससी, एसटी वर्ग में भी कुछ ‘क्रीमी लेयर’ लोग हैं, उन्हें चिह्नित किया जाए और इन लोगों को आरक्षण का फायदा नहीं मिलना चाहिए. इससे पहले तो सिर्फ ओबीसी में ही क्रीमी लेयर का नियम था. लेकिन अब ये नियम दलितों और आदिवासियों पर भी लागू होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने बीस साल पुराने पांच न्यायाधीशों के ईवी चिनैया (2004) मामले में दी गई व्यवस्था को गलत ठहरा दिया है. उस फैसले में कहा गया था कि सभी दलित एक जैसे हैं और उनमें कोई अंतर नहीं किया जा सकता.
‘अमीर और गरीब बच्चों को एक समान समझना गलत’
जस्टिस गवई ने कहा कि ये बात सब जानते हैं कि गांव में लोग बहुत ज्यादा भेदभाव करते हैं. लेकिन शहरों में जाओ तो ये कम हो जाता है. अगर हम एक तरफ सेंट पॉल्स स्कूल और सेंट स्टीफेंस कॉलेज वाले बच्चे को रख दें और दूसरी तरफ देश के किसी पिछड़े गांव के बच्चे को और फिर दोनों को बराबर समझें तो ये गलत होगा. ये हमारे देश के संविधान के बराबर अधिकार के सिद्धांत के खिलाफ है.
उन्होंने आगे कहा कि जिन दलित और आदिवासी लोगों के माता-पिता आरक्षण लेकर अच्छी जगह पहुंच गए हैं, अब वो पहले से ज्यादा अच्छे हालात में हैं और जिनके माता-पिता गांव में मजदूरी करते हैं, उन दोनों को एक ही कैटेगरी में रखना गलत है. ये हमारे संविधान के नियमों के खिलाफ है.
अनुसूचित जाति और जनजाति में ‘क्रीमी लेयर’ क्या है?
क्रीमी लेयर का मतलब है अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के उन लोगों का एक समूह जो आर्थिक और सामाजिक रूप से आगे बढ़ चुके हैं. जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के भीतर ऐसे वर्ग हैं जो सदियों से दबे हुए हैं. राज्य सरकारों को इन वर्गों की पहचान करनी चाहिए. समानता हासिल करने का यही एकमात्र तरीका है. एक दूसरे जज ने भी यही बात कही कि दलित और आदिवासी परिवारों में सिर्फ पहले वाले बच्चे को ही आरक्षण का फायदा मिलना चाहिए. अगर पहले वाले बच्चे को आरक्षण से अच्छी नौकरी मिल गई तो उसके बाद के बच्चों को आरक्षण नहीं मिलेगा.
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने इंद्र साहनी केस में सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के लिए 27% आरक्षण को सही माना था, लेकिन साथ ही कहा था कि ओबीसी में से भी अमीर लोगों (क्रीमी लेयर) को आरक्षण से बाहर रखा जाए. सरकार ने इसके लिए एक कमेटी बनाई थी जिसने तय किया कि कितनी कमाई वाले लोगों को क्रीमी लेयर माना जाएगा. साल 1993 में सरकार ने फैसला किया कि जिनकी सालाना आय 1 लाख रुपये से ज्यादा होगी, उन्हें OBC आरक्षण नहीं मिलेगा. फिर साल 2008 में इस लिमिट को बढ़ाकर 4.5 लाख रुपये कर दिया गया. यानी जिनकी सालाना आय 4.5 लाख रुपये से ज्यादा है, उन्हें OBC आरक्षण नहीं मिलता है.
SC, ST और OBC के लिए आरक्षण का क्या नियम है?
सरकारी नौकरियों में दलितों (SC), आदिवासियों (ST) और पिछड़े वर्गों (OBC) के लोगों के लिए आरक्षण का अलग-अलग नियम है. देशभर में ओपन एग्जाम के जरिए मिलने वाली सरकारी नौकरियों में दलितों को 15%, आदिवासियों को 7.5% और पिछड़े वर्गों को 27% सीटें आरक्षित हैं. वहीं ओपन एग्जाम के अलावा दूसरे तरीकों से मिलने वाली सरकारी नौकरियों में दलितों को 16.66%, आदिवासियों को 7.5% और पिछड़े वर्गों को 25.84% सीटें आरक्षित हैं.
ग्रुप C और D की नौकरियां आमतौर पर किसी एक राज्य या इलाके के लोगों के लिए होती हैं. उनमें दलितों और आदिवासियों के लिए आरक्षण उस राज्य या इलाके में उनकी जनसंख्या के हिसाब से तय किया जाता है. पिछड़े वर्गों के लिए भी कुछ ऐसा ही होता है, लेकिन ध्यान रखा जाता है कि कुल मिलाकर दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण 50% से ज्यादा न हो और सिर्फ पिछड़े वर्गों के लिए 27% से ज्यादा न हो.
पदोन्नति में आरक्षण का क्या नियम है?
सीधी पदोन्नति में SC को 15% और ST को 7.5% आरक्षण मिलता है. ये सभी तरह की नौकरियों (A, B, C, D ग्रुप) में लागू होता है. A ग्रुप की सबसे निचली पोस्ट तक ही 15% और 7.5% का आरक्षण मिलता है. A ग्रुप की 18300 रुपये या उससे कम वाली पोस्ट पर पदोन्नति में कोई आरक्षण नहीं है, लेकिन अगर कोई SC या ST का अधिकारी पदोन्नति के लिए लायक पाया जाता है तो उसे बिना किसी आरक्षण के पदोन्नति मिल सकती है.
सरकारी कंपनियों में काम करने वाले ओबीसी लोगों के लिए ‘क्रीमी लेयर’ कैसे तय होती है?
सरकारी नौकरी करने वाले लोगों के बच्चों के लिए जो नियम ‘क्रीमी लेयर’ तय करने का है, वही लगभग-लगभग सरकारी कंपनियों, बैंकों, बीमा कंपनियों, यूनिवर्सिटीज वगैरह में काम करने वाले लोगों के बच्चों पर भी लागू होता है. यहां तक कि निजी कंपनियों में भी इसी तरह की बड़ी-बड़ी पोस्ट पर काम करने वाले लोगों के बच्चे भी इसमें आते हैं.
लेकिन जिन कंपनियों में ये तय नहीं किया जा सका है कि कौन सी पोस्ट सरकारी नौकरी की किस पोस्ट के बराबर है, वहां पैसा और संपत्ति देखकर तय किया जाता है कि कोई व्यक्ति क्रीमी लेयर में आता है या नहीं. इस हिसाब से जिनका सालाना कमाई 4.5 लाख रुपये से ज्यादा हो या जिनके पास तीन साल तक लगातार संपत्ति कर से छूट मिलने वाली रकम से ज्यादा की संपत्ति हो, उन्हें क्रीमी लेयर माना जाता है.
दलितों में ज्यादा पिछड़ी जातियों को आरक्षण से कितना भला होगा?
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से दलित समाज के सबसे पिछड़े हुए वर्ग यानी अतिदलितों को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में अधिक जगह मिलेगी. उनको शिक्षा और रोजगार के अधिक अवसर मिलने से उनका सामाजिक और आर्थिक स्तर सुधर सकता है. इस फैसले से दलित समाज के भीतर की असमानता कम होगी और समाज में समानता बढ़ेगी.
दलित समाज के भीतर ही कुछ जातियां बहुत ज्यादा पिछड़ी हुई हैं. इन अतिदलितों को सामान्य दलितों के मुकाबले और ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. अतिदलितों के अधिकारों का बार-बार हनन होता है और उन्हें समाज में बहुत कम सम्मान मिलता है.
हालांकि यह फैसला दलित समाज के भीतर विवाद पैदा कर सकता है, क्योंकि कुछ लोग सोच सकते हैं कि यह अन्य दलितों के हिस्से को कम किया जा रहा है. इस फैसले को अमल में लाने में कुछ मुश्किलें आ सकती हैं, जैसे कि अतिदलितों की पहचान करना और उनके लिए अलग कोटा तय करना.
सुप्रीम कोर्ट कै फैसले पर विवाद क्यों?
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से कुछ राजनेता खुख नहीं हैं. उन्होंने इसका कड़ा विरोध जताया है. नगीना लोकसभा सीट से सांसद चंद्रशेखर आजाद ने कहा कि हमने अंग्रेजों के सामने डिवाइड एंड रूल की पॉलिसी सुनी थी. वही फिर से हो रहा है. शेड्यूल कास्ट और शेड्यूल ट्राइब में जो एकता हो रही है उसे तोड़ने का काम किया जा रहा है.
इतना ही नहीं चंद्रशेखर ने आगे सवाल पूछते हुए ये भी कहा कि क्या एससी-एसटी की मॉनिटिरिंग की है, जो आपने रिजर्वेशन में प्रमोशन का ऑर्डर दिया था. क्या एससी और एसटी का बैकलॉग भरा गया. क्या आपको पता है कि क्या आंकड़े हैं जो एससी-एसटी को आरक्षण मिल रहा है. क्या आपके पास आर्थिक स्थिति के आंकड़े हैं. बंद कमरे में बैठकर कुछ भी फैसला ले लिया जाएगा. क्या ये आर्टिकल 341 का उल्लंघन नहीं है. आपने आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के आधार पर ईडब्ल्यूएस के फैसले को सही ठहराया.
कांग्रेस नेता उदित राज ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट 30% एससी/एसटी के आरक्षण का फैसला कैसे कर सकता है? क्रीमी लेयर की शर्त नामंज़ूर है. विधायिका से मिला अधिकार वही बदल सकती है. वहीं दलित चिंतक दिलीप मंडल ने भी आलोचना करते हुए सुप्रीम कोर्ट के कोलिजियम सिस्टम पर सवाल उठाया. उनका कहना है कि क्रीमी लेयर लगाना है तो पहले हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में लगाया जाना चाहिए ताकि जज के बेटे को जज बनाने की सिफारिश पापा या पापा के दोस्त न करें.
सुप्रीम कोर्ट का अतिदलितों को आरक्षण पर फैसला भारत के सामाजिक न्याय के लिए एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है. हालांकि, इस फैसले के सफल कार्यान्वयन के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.