दिलवालों की दिल्ली बदहाल …. वर्ल्ड क्लास सिटी की संज्ञा बेमानी ?

दिलवालों की दिल्ली बदहाल: प्रदूषण के बाद अब जाम ड्रेनेज के कारण जीना दूभर; वर्ल्ड क्लास सिटी की संज्ञा बेमानी
दिल्लीवासी प्रदूषण के चलते खुली हवा में सांस लेने के लिए तरस ही रहे थे। अब जर्जर सड़कों व बदहाल ड्रेनेज सिस्टम ने जीना दुश्वार कर दिया है।

Delhi Waterlogging severe problem choked drainage system makes life pitiable
दिल्ली की सड़कों पर जलभराव  ….

राजधानी दिल्ली अब रहने लायक नहीं रह गई है। दिल्लीवासी प्रदूषण के चलते साफ हवा में सांस लेने के लिए बरसों से तरस ही रहे हैं। अब सड़कों की बदहाली और दशकों पुरानी सीवेज प्रणाली की जर्जर अवस्था के होते जलभराव की समस्या से उनका जीना दूभर हो गया है। वे उस क्षण को कोस रहे हैं, जब उन्होंने यहां बसने का निर्णय लिया था। जनसुविधाओं के मामले में प्रशासनिक स्तर पर भी दिल्ली की जनता केंद्र की भाजपा सरकार और दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार के बीच जारी अस्तित्व की लड़ाई में पिस रही है।

सुप्रीम कोर्ट की रोड सेफ्टी कमेटी के मुताबिक, जुलाई से नवंबर 2023 के बीच आईआईटी दिल्ली के साथ मिलकर सड़क सुरक्षा के उद्देश्य से हुए ऑडिट में फुटपाथ की स्थिति, संरचना, डिजाइन और सीवेज सिस्टम को लेकर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। इसमें इस बात पर गंभीर चिंता व्यक्त की है कि दिल्ली में तकरीबन 46फीसदी से ज्यादा जोनों में सुरक्षित व सुगम यातायात के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए। यह बदहाली का आलम तब है, जब दिल्ली को विश्वस्तरीय शहर बनाने का दावा लगातार किया जाता है, लेकिन मौजूदा हालात इसके उलट गवाही देते हैं। दिल्ली की सड़कें तो सड़कें, जंक्शन और फुटपाथ भी कतई सुरक्षित नहीं हैं। सड़क सुरक्षा को लेकर उठाए सवालों के उद्देश्य से 69 फीसदी सड़क संकेतक इंडियन रोड कांग्रेस के मानकों पर कतई खरे नहीं उतरते। फुटपाथ को लें, वह भी मानकों के अनुरूप नहीं हैं। इंडियन रोड कांग्रेस के मुताबिक, फुटपाथ की चौड़ाई 2.5 मीटर होनी चाहिए, जिसके अनुसार उस पर दो व्हील चेयर एक साथ गुजर सकें। 16 फीसदी फुटपाथ की चौड़ाई इंडियन रोड कांग्रेस के मानकों के मुताबिक है, जबकि 84 फीसदी फुटपाथ ऐसे हैं, जिनकी चौड़ाई तय मानकों के मुताबिक है ही नहीं।
पुरानी दिल्ली की बात छोड़िए, रिंग रोड भी इस बदहाली की शिकार हैं। रिंग रोड पर जहां सबसे ज्यादा वाहन गुजरते हैं, उस पर मजनू का टीला, चंदगीराम के अखाड़े के आसपास की सड़कें जर्जर अवस्था में हैं, वे टूटी पड़ी हैं। वहां जेब्रा क्रॉसिंग की मार्किंग भी नहीं है। यही हाल पूर्वी दिल्ली की वजीराबाद रोड का है। यहां सबसे ज्यादा व्यस्त रहने वाला लोनी-गोकुलपुरी रोड वाला जंक्शन यानी गोल चक्कर है, जहां से गाजियाबाद को सड़क जाती है। सड़क के टूटे होने और जेब्रा क्रासिंग न होने के चलते हादसे की आशंका रहती है। सबसे ज्यादा खतरनाक हालात आजादपुर चौक, भलस्वा चौक, मुकरबा चौक, बुराड़ी चौक, पंजाबी बाग चौक, गाजीपुर फ्लाईओवर, मुर्गा मंडी, मुकुंदपुर चौक, मधुबन चौक और रजोकरी फ्लाईओवर की है, जहां सड़क हादसे आम हैं।

अब जरा दिल्ली की जल निकासी पर भी नजर डालें। दशकों पुराना ड्रेनेज सिस्टम इतना बदहाल हो चुका है कि अब वह राजधानी की सवा दो करोड़ से ज्यादा आबादी के जल-मल का भार सहने की क्षमता खो चुका है। फिर भी दिल्ली उसी 48 साल पुराने ड्रेनेज सिस्टम पर आश्रित है, जब दिल्ली की आबादी 60 लाख के आसपास ही हुआ करती थी। इस वजह से जरा-सी बारिश में जलभराव हो जाता है। यदि बारिश तगड़ी हो गई, तो डूब की स्थिति पैदा हो जाती है। यह हालत अब पुरानी दिल्ली की ही नहीं होती, बल्कि लुटियन जोन नई दिल्ली भी इसका शिकार हुए बिना नहीं रहती और वहां के हालात भी किसी टापू जैसे हो जाते हैं। 

इन सबके लिए जिम्मेदार पानी की निकासी की समुचित व्यवस्था का न होना और नालों की समय-समय पर सफाई न होना है। नतीजतन सड़कों पर तेज बारिश के चलते जलभराव होने से कहीं सड़क धंसने से गड्ढे हो जाते हैं। कहीं सीवर के मैनहोल में स्कूटर समा जाते हैं, तो कभी राहगीर। कभी-कभी तो लुटियन जोन में घंटों आवाजाही तक बंद हो जाती है और लोग घरों में कैद होकर रह जाते हैं।

वह बात दीगर है कि पीडब्ल्यूडी यह दावा करते नहीं थकती कि जलभराव के चलते जल निकासी हेतु सैकड़ों पंप लगाए जाते हैं, लेकिन बारिश के विषम हालात, पुराने नालों की सफाई न होने और उनमें गंदगी भरे रहने से पंपों द्वारा जल निकासी में अधिक समय लगने से जल्दी जलभराव से निजात मिल पाना बेहद मुश्किल हो जाता है और जाम में घंटों वाहन फंसे रहते हैं। कहीं-कहीं तो हादसों की आशंका के मद्देनजर रास्ते और अंडरपास तक बंद करने पड़ते हैं। ज्यादातर ऐसी स्थिति से लोगों को आजाद नगर मार्केट ब्रिज, मूलचंद अंडरपास, जखीरा अंडरपास, मिंटो ब्रिज, आईटीओ, गणेश नगर, मदर डेयरी, प्रगति मैदान आदि जगहों पर दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, जिससे कभी-कभी कार्यस्थल पर भी समय से पहुंचना उनके लिए बेहद मुश्किल हो जाता है। बदहाली की यह स्थिति तो कमोबेश दिल्ली वालों की नियति बन चुकी है। ऐसे में दिल्ली को वर्ल्ड क्लास सिटी की संज्ञा देना बेमानी है।

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