ब्रिटेन क्यों हो रहा है धीरे-धीरे कंगाल?
पूरी दुनिया को 200 साल तक लूटने वाला ग्रेट ब्रिटेन क्यों हो रहा है धीरे-धीरे कंगाल?
रिटेन इस वक्त तमाम तरह की आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है और यह धीरे-धीरे कंगाल होने की ओर बढ़ रहा है.
साल 2008 की मंदी के बाद से ब्रिटेन उबर नहीं पा रहा है. आज यह देश धीरे-धीरे कंगाल होता जा रहा है. आखिर ऐसा क्या हुआ कि लूट का यह शिखर धीरे-धीरे गिरावट के गर्त में समाता जा रहा है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए पहले आपको कुछ रिपोर्ट के आंकड़े जानने होंगे.
ब्रिटेन का बढ़ता ही जा रहा है कर्ज
ब्रिटेन पर सरकारी कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है. इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (IMF) की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2022 में ब्रिटेन पर सरकारी कर्ज बढ़कर जीडीपी का 100.75 फीसदी पहुंच गया है. ये कर्ज का आंकड़ा बड़ी-बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से ज्यादा है. दूसरे बड़े देशों की बात करें तो जर्मनी पर जीडीपी का 45.95 फीसदी, भारत पर 55.45 पीसदी, फ्रांस पर 92.15 फीसदी, नॉर्वे पर 13.17 फीसदी है. हालांकि कुछ जापान (214.27%), यूनाइडेट स्टेट (110.15%), इटली (140.57%) जैसे देशों पर ब्रिटेन से भी ज्यादा कर्ज है.
नौकरी छोड़ने वाले लोगों की संख्या घट रही!
इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि दुनिया के अन्य देशों में जहां कार्यबल बढ़ रहा है, वहीं ब्रिटेन में एक बड़ी समस्या सामने आ रही है. लोग लंबी बीमारी के कारण काम छोड़ रहे हैं. लंबी बीमारी की वजह से काम छोड़ने वाले लोगों की संख्या 1990 के दशक के बाद से सबसे ज्यादा हो गई है.
रिसर्च फाउंडेशन, रेसोल्यूशन फाउंडेशन ने बताया कि जुलाई 2019 में बीमारी के कारण काम न करने वाले वयस्कों की संख्या 21 लाख थी, जो बढ़कर अक्टूबर 2023 में 28 लाख हो गई. यह 1994-1998 के बाद से सबसे लंबा समय है जब से इस तरह के रिकॉर्ड रखे जाने शुरू हुए थे. यह रिपोर्ट नेशनल स्टैटिस्टिक्स ऑफिस (ONS) की उस रिपोर्ट के बाद आई जिसमें कहा गया था कि ब्रिटेन में हर पांच में से एक वयस्क काम की तलाश नहीं कर रहा है.
ब्रिटेन में 16 से 64 साल की उम्र के 9.2 मिलियन लोग न तो काम कर रहे हैं और न ही नौकरी की तलाश में हैं. यह संख्या कोरोना महामारी से पहले की तुलना में 7 लाख से अधिक है.
यह स्थिति और भी गंभीर हो जाती है जब हम देखते हैं कि यूके की प्रोडक्टिविटी साल 2008 के बाद से स्थिर पड़ी हुई है. अस्पतालों में नर्सों की कमी है और 45 फीसदी मरीजों को इमरजेंसी में 4 घंटे तक इंतजार करना पड़ रहा है. वहीं यूके में 1 लाख से ज्यादा ट्रक ड्राइवरों की कमी है, जिससे श्रम की भारी कमी हो गई है.
ब्रिटेन में 30 सालों में सबसे ज्यादा गरीबी
यूके के लेबर रिसर्च डिपार्टमेंट की रिपोर्ट के अनुसार, देश में पिछले 30 सालों में गरीबी में सबसे बड़ी बढ़ोतरी हुई है. साल 2022-2023 में गरीबी की दर 17% से बढ़कर 18% हो गई. इसका मतलब है कि 1 करोड़ 20 लाख लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन जी रहे हैं. ये पिछले साल की तुलना में 6 लाख आंकड़ा ज्यादा है.
इसके साथ ही लोगों की एवरेज इनकम में कमी आई है. 2022 और 2023 के बीच घरों की औसत आय रहने के खर्च से पहले 0.5% और रहने के खर्च के बाद 1.5% कम हुई है. ज्यादातर परिवारों की आय में कमी आई है और आय असमानता भी बढ़ी है. गरीबी की दर सभी उम्र के लोगों में बढ़ी है. बुजुर्गों के लिए भी जीवन मुश्किल हो गया है और अधिक से अधिक परिवारों को खाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.
सर्विस सेक्टर पर डिपेंड है UK की अर्थव्यवस्था
दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं को आकार देने में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर सबसे अहम भूमिका निभाता है, क्योंकि सबसे ज्यादा रोजगार यहीं से पैदा होते हैं. दूसरी खास बात है कि सर्विस सेक्टर में ज्यादातर स्किल लोग ही काम करते हैं, जबकि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर स्किल और अनस्किल दोनों तरह के लोगों को रोजगार दे सकता है.
मगर यूके पार्लियामेंट की रिपोर्ट के अनुसार, अर्थव्यवस्था में सबसे ज्यादा हिस्सा सर्विस सेक्टर का है. इसमें रिटेल, बैंकिंग, बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन, एंटरटेनमेंट और कल्चर एक्टिविटी से जुड़े काम शामिल हैं. साल 2024 की शुरुआत में ब्रिटेन की कुल कमाई का 81% हिस्सा और कुल नौकरियों का 82% हिस्सा सर्विस सेक्टर से आया.
अप्रैल से मई के बीच यहां सर्विस सेक्टर की बढ़ोतरी 0.3% रही. फरवरी 2023 से इस साल मई तक सर्विस सेक्टर 1.1% बढ़ा है. मई 2023 से मई 2024 तक इस सेक्टर की कमाई में 1.3% की बढ़ोतरी हुई. यानी ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में सर्विस सेक्टर का ही ज्यादा योगदान है.
नगरपालिका के पास पैसे की कमी
ब्रिटेन के कई शहरों की नगरपालिकाएं अब पैसे की कमी से जूझ रही हैं. जैसे कि बर्मिंघम, नॉटिंघम और वोकिंग शहर की नगरपालिकाएं. 2018 से 2023 के बीच करीब नगरपालिकाओं ने सेक्शन 114 का नोटिस जारी कर बताया कि उनकी कमाई खर्चों से कम हो गई है. यानी खर्चे के लिए जितना फंड उन्हें चाहिए उतना नहीं है. उनकी कमाई का जरिया लोगों से मिलने वाला टैक्स होता है और सरकार भी कुछ मदद करती है.
साल 2010 से 2017 के बीच नगरपालिकाओं के पास खर्च करने के लिए जो पैसे थे वो पहले के मुकाबले लगभग 29% कम हो गए थे. अगर आज की बात करें तो उनके पास अभी भी 2010 के मुकाबले 10% कम पैसे हैं.
ब्रिटेन छोड़ अपने देश चले गए लोग
साल 2016 में ब्रिटेन के लोगों ने वोट देकर यूरोपीय संघ छोड़ने का फैसला किया था. 52% लोगों ने यूरोपीय संघ छोड़ने के पक्ष में वोट किया और 48% लोग नहीं छोड़ने के पक्ष में थे. इसके बाद एक फरवरी 2020 को यूरोपीय संघ (EU) से ब्रिटेन कानून रूप से अलग हो गया था. इसके बाद ब्रिटेन में रहने वाले यूरोप के देशों के लोगों की संख्या काफी कम हो गई. एक साल के भीतर ही करीब 2 लाख से ज्यादा लोग वापस अपने देश चले गए. इस वजह से भी काम करने वाले लोगों की कमी हो गई.
ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ छोड़ दिया था और कोरोना महामारी की वजह से वहां की अर्थव्यवस्था भी बहुत खराब हो गई थी. कोरोना महामारी ने ब्रिटेन को बहुत बुरी तरह प्रभावित किया. ये भी एक वजह से हो सकती है कि बहुत से प्रवासी अपने देशों में अच्छे अवसर देखकर वहां चले गए. फिर ये लोग वापस नहीं आए. यूरोपीय संघ से अलग होने के बाद अब यूरोप के देशों के लोगों को ब्रिटेन में रहने और काम करने के लिए वीजा की जरूरत पड़ती है. ब्रेक्सिट के बाद से ब्रिटेन में ट्रक ड्राइवरों की कमी हो गई है, जिससे व्यापार पर बुरा प्रभाव पड़ा.
क्यों धीमी पड़ी है ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था?
कंजर्वेटिव पार्टी के सत्ता में रहने के दौरान ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था बहुत धीरे बढ़ी है. साल 2007 से 2023 के बीच देश की आमदनी में सिर्फ 4.3% की बढ़ोतरी हुई है. लेकिन इससे पहले के 16 सालों में ये बढ़ोतरी 46% थी. ये 1826 के बाद से सबसे कम बढ़ोतरी है.
ब्रिटेन में लोग एक घंटे काम करने पर पहले की तुलना में बहुत कम पैसा कमा रहे हैं. पिछले दस सालों में हर साल औसतन सिर्फ 0.6% की ही बढ़ोतरी हुई है. लेकिन इससे पहले के दस सालों में ये बढ़ोतरी 2.2% थी. ये G7 देशों में इटली के बाद सबसे कम है.
OECD की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2007 से 2022 के बीच ब्रिटेन में हर घंटे काम करने पर होने वाली कमाई में करीब 6% की बढ़ोतरी हुई है. वहीं अमेरिका में 17%, जापान में 12% और जर्मनी में 11% की बढ़ोतरी हुई.
इन रिपोर्ट के आधार पर कहा जा सकता है कि ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था कई चुनौतियों का सामना कर रही है. ब्रेक्जिट, कोविड महामारी और राजनीतिक अस्थिरता जैसे कारणों से ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे कमजोर होती जा रही है.