वैश्विक मंचों पर भारत की छवि डिफेंस के मामले में सशक्त होती जा रही है। सरकार मेक इन इंडिया पर जोर दे रही है। आज देश में ही हथियार से लेकर लड़ाकू विमान तक बनाए जा रहे हैं। बीते एक दशक में भारत का निर्यात 25 गुना यानी करीब 2400 फीसद बढ़ चुका है। यही नहीं लोवी इंस्टीट्यूट पावर इंडेक्स की रिपोर्ट इस बात की तस्दीक करती है कि डिफेंस सेक्टर में भारत दुनिया के सिरमौर देशों की कतार में गर्व और इज्जत के साथ खड़ा है। रिपोर्ट के अनुसार सैन्य क्षमता के पांच पैमानों और प्रतिरोध क्षमता के पांच पैमानों में भारत चौथे स्थान पर है।

देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का कहना है कि अगर हम एक विकसित राष्ट्र बनाना चाहते हैं, तो हमें आधुनिक हथियारों और उपकरणों के साथ मजबूत सशस्त्र बलों की आवश्यकता होगी। इसलिए, हमारे पास उपलब्ध वित्तीय संसाधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग करना आवश्यक है। हमने हथियार निर्यातक शीर्ष-25 देशों की सूची में जगह बना ली है। रक्षा मंत्री ने कहा कि सात-आठ साल पहले, रक्षा निर्यात 1,000 करोड़ रुपये तक भी नहीं पहुंच पाता था, जबकि आज यह 16,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। सरकार का कहना है कि 2028-29 तक वार्षिक रक्षा उत्पादन तीन लाख करोड़ रुपये और रक्षा निर्यात 50,000 करोड़ रुपये तक पहुंचने की आशा है।

दुनिया की सबसे बड़ी सेनाओं में गिनी जाने वाली इंडियन आर्मी की जरूरतों को पूरा करने के लिए न सिर्फ देशी बल्कि विदेशी कंपनियों में भी होड़ लगी हुई है। एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अगले 10 सालों में डिफेंस इक्विपमेंट, टेक्नोलॉजी और सर्विसेज का बाजार लगभग 138 अरब डॉलर का होगा। नोमुरा द्वारा पेश की गई ‘इंडिया डिफेंस’ रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय सेना यह पैसा वित्त वर्ष 2032 तक खर्च करती रहेगी। इसके चलते कंपनियों के लिए बड़े अवसर खुलेंगे। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का डिफेंस सेक्टर में पूंजीगत व्यय वित्त वर्ष 2025 तक 29 फीसदी और वित्त वर्ष 2030 तक 37 फीसदी बढ़ जाएगा। भारत की सरकार ने पिछले कुछ सालों में देश के रक्षा बजट में उल्लेखनीय वृद्धि की है साथ ही सेना की जरूरतों को पूरा करने पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। देश में नीतियों में सुधार लाया गया है। इसके अलावा स्वदेशी रक्षा उपकरणों की मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके लिए इंसेंटिव भी दिए जा रहे हैं साथ ही नई टेक्नोलॉजी पर भी ध्यान दिया जा रहा है।

रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय रक्षा क्षेत्र के विभिन्न सेक्टर्स आकर्षक अवसर प्रदान करते हैं। अकेले रक्षा एयरोस्पेस क्षेत्र की हिस्सेदारी 50 बिलियन अमरीकी डॉलर की है। इसमें विमान, हेलीकॉप्टर, मानव रहित हवाई वाहन (यूएवी), एवियोनिक्स और संबंधित प्रणालियों में निवेश शामिल हैं। 38 बिलियन अमरीकी डालर की क्षमता के साथ रक्षा पोत निर्माण एक अन्य महत्वपूर्ण अवसर वाला क्षेत्र है, जिसमें नौसेना के जहाजों, पनडुब्बियों, गश्ती नौकाओं और समुद्री सुरक्षा को मजबूत करने के लिए सपोर्ट शिप का निर्माण शामिल है।

आईडेक्स स्कीम से मिल रहा है लाभ

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिहाज से iDEX स्कीम बेहद कारगर साबित हो रही है। रक्षा क्षेत्र के लिए एक इनोवेशन इकोसिस्टम बनाने के लिए इनोवेशन फॉर डिफेंस एक्सीलेंस स्कीम की शुरुआत अप्रैल 2018 में की गई थी। इसका मकसद छोटे, मझोले और बड़े उद्योगों, स्टार्टअप, व्यक्तिगत इनोवेटर्स के साथ अनुसंधान और विकास से जुड़ी संस्थाओं को जोड़ते हुए देश में रक्षा और एयरोस्पेस में नवाचार और प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ावा देना है। iDEX स्कीम के तहत उन्हें रक्षा क्षेत्र में नए- नए आइडिया, अनुसंधान और विकास करने के लिए वित्तीय मदद के साथ-साथ दूसरी सहायता भी दी जाती है। इसके जरिए कोशिश की जा रही है कि रक्षा और एयरोस्पेस में भविष्य की जरूरतों के हिसाब से देश की क्षमता का विकास किया जा सके। iDEX स्कीम के तहत 2022 में ‘iDEX Prime’ फ्रेमवर्क की शुरुआत की गई ताकि रक्षा क्षेत्र की जरूरतों को पूरा करने के लिए स्टार्टअप को 10 करोड़ रुपये तक की आर्थिक सहायता सरकार की ओर से मुहैया कराया जाए।

देश में बन रहे हैं टैंक, लड़ाकू विमान से लेकर पनडुब्बी

पिछले कुछ सालों के प्रयासों का ही नतीजा है कि अब भारत का रक्षा उद्योग अलग-अलग प्रकार के उच्च स्तरीय जरूरतों को पूरा करने में सक्षम है. इनमें टैंक, बख़्तरबंद वाहन, लड़ाकू विमान, हेलीकॉप्टर, युद्धपोत, पनडुब्बी, मिसाइल और अलग-अलग प्रकार के गोला बारूद शामिल हैं. इनके अलावा सामरिक महत्व वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, विशेष मिश्र धातु, विशेष प्रयोजन स्टील्स भी अब बड़ी मात्रा में देशी रक्षा कंपनियां बना रही हैं।

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता में रखने की वजह से ही पिछले कुछ वर्षों से देश में ही अत्याधुनिक रक्षा उत्पाद भारत में बन रहे हैं। इनमें 155 मिमी आर्टिलरी गन सिस्टम ‘धनुष’, लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट ‘तेजस’, सरफेस टू एयर मिसाइल सिस्टम ‘आकाश’ के साथ ही मेन बैटल टैंक ‘अर्जुन’ शामिल हैं। इनके अलावा टी-90 टैंक, टी-72 टैंक, बख़्तरबंद कार्मिक वाहक ‘BMP-II/IIK’, Su-30 MK1, चीता हेलीकॉप्टर, एडवांस लाइट हेलीकॉप्टर, डोर्नियर Do-228 एयरक्राफ्ट, हाई मोबिलिटी ट्रक का उत्पादन भारत में हो रहा है साथ ही स्कॉर्पीन श्रेणी की 6 पनडुब्बियों के तहत आईएनएस वागीर, आईएनएस कलवरी , आईएनएस खंडेरी , आईएनएस करंज, आईएनएस वेला और आईएनएस वागशीर देश में बने हैं।

इनके अलावा एंटी-सबमरीन वारफेयर कार्वेट, अर्जुन आर्मर्ड रिपेयर एंड रिकवरी व्हीकल, ब्रिज लेइंग टैंक, 155 मिमी गोला बारूद के लिए द्वि-मॉड्यूलर चार्ज सिस्टम, मीडियम बुलेट प्रूफ व्हीकल, वेपन लोकेटिंग रडार, इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम, सॉफ्टवेयर डिफाइंड रेडियो , पायलटलेस टारगेट एयरक्राफ्ट के लिए लक्ष्य पैराशूट, बैटल टैंक के लिए ऑप्टो इलेक्ट्रॉनिक साइट्स, वॉटर जेट फास्ट अटैक क्राफ्ट, इनशोर पेट्रोल वेसल, ऑफशोर पेट्रोल वेसल, फास्ट इंटरसेप्टर बोट और लैंडिंग क्राफ्ट यूटिलिटी का पिछले कुछ सालों के दौरान देश में उत्पादन किया गया है। भारत इनमें से कई चीजों का अब निर्यात भी कर रहा है।

1962 से अब तक हुए काफी मजबूत

सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल मोहन भंडारी कहते हैं कि आजादी के समय भारत कई तरह की चुनौतियों से जूझ रहा था। 1962 की लड़ाई में हमारी सेनाओं के पास अच्छे कपड़े और हथियार तक नहीं थे। लेकिन आज स्थितियां बहुत अलग हैं। आज भारतीय सेना को चुनौती देने के पहले कोई भी देश कई बार सोचेगा। आज भारत की नौसेना, वायुसेना और थल सेना आधुनिक हथियारों से लैस हैं। मिसाइल टेक्नॉलॉजी में आज हम दुनिया के शीर्ष देशों में गिने जाते हैं। हमारा डिफेंस सिस्टम काफी मजबूत है। आज भारत के सामने दो बड़े शरारती दुश्मन देश दिखते हैं।

सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट कर्नल जे.एस. सोढ़ी कहते हैं कि 75 सालों में हमारी सैन्य शक्ति में काफी इजाफा हुआ है। भारतीय सेना रेजीमेंटेशन में काफी मजबूत हुई है। वहां का इकोसिस्टम और माहौल ऐसा सक्षम बनाया गया है कि सैनिक जान देने से भी पीछे नहीं हट रहे हैं। यही नहीं हमारी ट्रेनिंग दुनिया की बेस्ट ट्रेनिंग में से एक है। हमारी ट्रेनिंग लिखित भी है, इसमें डिस्कशन भी है। हमारी सेना का अनुशासन सर्वोत्तम है।

छह दशकों में लगातार बढ़ा सैन्य खर्च

भारत ने बीते छह दशकों में सैन्य खर्च में काफी बढ़ोतरी की है। सैन्य खर्च के मामले में भारत सार्क देशों के मुकाबले काफी आगे है। इस बात की पुष्टि विश्व बैंक की रिपोर्ट करती है। रिपोर्ट के अनुसार 1960 के बाद से भारत ने लगातार अपने सैन्य खर्च में वृद्धि की है। यही नहीं, गौरव की बात यह है कि विश्व के इतिहास में पहली बार भारत और चीन दुनिया में सबसे ज्यादा सैन्य खर्च वाले चोटी के तीन देशों की सूची में शामिल हो गए हैं। सैन्य खर्च की यह रिपोर्ट स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) ने बनाई है। ऐसा पहली बार हुआ है जब रिपोर्ट में सबसे ज्यादा सैन्य खर्च वाले तीन देशों में दो देश एशिया के हैं।

विश्व बैंक की सैन्य खर्च की परिभाषा कहती है कि आर्म्ड फोर्स पर सभी तरह के खर्च, पीस कीपिंग फोर्स का बजट, रक्षा मंत्रालय और रक्षा के काम से जुड़ी एजेंसी का बजट, मिलिट्री स्पेस एक्टिविटी, पेंशन, वेतन खर्च आदि को सैन्य खर्च में शामिल किया जाता है। इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रेजिक स्टडीज (आईआईएसएस) की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत अपनी सैन्य क्षमता का आधुनिकीकरण कर रहा है। इस रिपोर्ट के अनुसार पड़ोसी देश पाकिस्तान का नाम टॉप 15 सैन्य खर्च वाले देशों में शामिल नहीं है। पाकिस्तान का सैन्य खर्च 9.93 अरब डॉलर (2016) के करीब है जबकि भारत का सैन्य खर्च 52.5 अरब डॉलर (2016) है।

निवेश को लगातार सशक्त करना होगा

पारले पॉलिसी इनीशिएटिव के साउथ एशिया के सीनियर एडवायजर नीरज सिंह मन्हास कहते हैं कि मेरा मानना है कि भारत आने वाले वर्षों में रणनीतिक रूप से 100 अरब अमेरिकी डॉलर के रक्षा बजट की बाधा को दूर करने का लक्ष्य रखेगा। इस मील के पत्थर को हासिल करने से भारत संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा सैन्य खर्च करने वाला देश बन जाएगा। व्यय का यह स्तर न केवल उभरती सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए बल्कि एक प्रमुख वैश्विक शक्ति के रूप में भारत की भूमिका पर जोर देने के लिए भी आवश्यक है। बढ़ा हुआ बजट व्यापक आधुनिकीकरण को सक्षम करेगा, तकनीकी प्रगति को बढ़ावा देगा और सशस्त्र बलों की परिचालन तत्परता को बढ़ाएगा, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि भारत तेजी से जटिल भू-राजनीतिक वातावरण में अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए अच्छी तरह से तैयार रहे।

नीरज सिंह मन्हास कहते हैं कि वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए हालिया रक्षा बजट अपने सशस्त्र बलों को आधुनिक बनाने और उनकी रणनीतिक क्षमताओं को बढ़ाने के लिए एक मजबूत प्रतिबद्धता को दर्शाता है। 5.94 लाख करोड़ रुपये (लगभग 75 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का आवंटन पिछले वर्ष की तुलना में महत्वपूर्ण वृद्धि दर्शाता है, जो रक्षा तैयारियों को बढ़ावा देने पर सरकार के फोकस पर जोर देता है। मुख्य विशेषताओं में उन्नत हथियारों की खरीद, मौजूदा प्लेटफार्मों का आधुनिकीकरण और साइबर और अंतरिक्ष रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने में पर्याप्त निवेश शामिल हैं। विशेष रूप से, घरेलू रक्षा निर्माताओं के लिए बजट बढ़ाने के साथ ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल के माध्यम से स्वदेशी रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने पर काफी जोर दिया गया है।

रिसर्च और स्टेम में निवेश बढ़ाने की आवश्यकता

लेफ्टिनेंट कर्नल जे.एस.सोढ़ी कहते हैं कि जहां तक डिफेंस सेक्टर की बात है तो दो चीजें इसे बेहतर बनाने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, पहला रिसर्च और दूसरा स्टेम (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ्स)। एक समय ऐसा था जब सबसे अधिक स्टेम अमेरिका के पास थे। मौजूदा समय में यह चीन के पास है। अगर हम डिफेंस सेक्टर में महाशक्ति बनना चाहते हैं तो रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर अधिक खर्च करना होगा। बीते साल नीति आयोग की रिपोर्ट आई थी कि चीन और अमेरिका दो प्रतिशत से अधिक शोध और विकास में खर्च करता है। सोढ़ी कहते हैं कि मौजूदा समय में हम हथियार बना रहे हैं लेकिन टेक्नोलॉजी बाहर की है। अगर आप खुद टेक्नोलॉजी बनाना चाहते हैं तो स्टेम में छात्रों की संख्या बढ़ानी होगी। इससे हमारे डिफेंस इंपोर्ट में कमी आएगी। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) की रिपोर्ट के अनुसार उतनी तेजी से इंपोर्ट में कमी नहीं आई है।

जीईएफ 404 इंजन की तकनीक अभी हमें अमेरिका दे रहा है। यह टेक्नोलॉजी हमारी अपनी होनी चाहिए। 2047 में अभी 23 साल बाकी है तो हमें तेजी से काम करना होगा।

टू फ्रंट वार से निपटने के लिए मजबूती जरूरी

सोढ़ी कहते हैं कि जनरल मनोज मुकंद नारवाणे ने एक लेख लिखा था जिसमें उन्होंने कहा था कि टूफ्रंट वार से भारत को काफी मुश्किल होगी। ऐसी स्थिति में जरूरी हो जाता है कि हम वास्तविक स्थिति पर आकलन करें। चीन के साथ जितना व्यापार कर रहे हैं उसका एक हिस्सा चीन अपनी सेना को ताकतवर बनाने में कर रहा है। हमारी नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटेजी पब्लिक डोमेन में होनी चाहिए। हर नागरिक को पता होना चाहिए कि हमारे लक्ष्य क्या हैं ताकि सब मिलकर काम कर सकें।

सोढ़ी बताते हैं कि दुनिया की अधिकतर सेनाएं जो मिलिट्री डॉक्टरिन से डिफेंस बनाती है वह है एयर लैंड बैटल डॉक्टरिन 1982। इसके तहत देश की थलसेना आक्रमण करती है और रक्षा करती है। वायु सेना और नौ सेना उसे मदद करती है। लेकिन 2001 में अमेरिका ने नई स्ट्रैटेजी निकाली।

रक्षा खरीद में पर ध्यान देना आवश्यक

बीएसएस मैटीरियल लिमिटेड के को-फाउंडर विक्की चौधरी कहते हैं कि रक्षा खरीद में अस्पष्टता, व्यक्तिपरकता है। रक्षा खरीद, एमएसएमई और स्टार्ट-अप इको सिस्टम पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही हैं। इस पर ध्यान देना काफी जरूरी है। अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो डिफेंस सेक्टर में मेक इन इंडिया की महत्वाकांक्षाओं पर दीर्घकालिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

साइबर वार में लगातार बेहतर होने की आवश्यकता

मन्हास का कहना है कि इसके अतिरिक्त, 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने की राह में डिफेंस सेक्टर में संभावनाओं के साथ कई चुनौतियां भी शामिल है। भारत ने तकनीक के क्षेत्र में कई काम किए हैं। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, साइबर वारफेयर और स्पेस डिफेंस महत्वपूर्ण क्षेत्र है जहां भारत का लगातार बेहतर करना है। इन सेक्टरों में लगातार नया कर भारत वैश्विक मंच पर अपनी पहचान मजबूत कर सकता है। लेफ्टिनेंट कर्नल जे.एस.सोढ़ी के अनुसार जहां तक चीन की बात है तो दुनिया में किसी भी छह डोमेन में लड़ाई करने में सक्षम है। दुनिया में चीन ही एकमात्र देश है जो हवा, समंदर, जमीन, साइबर, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम और स्पेस में लड़ने में सक्षम है। मौजूदा तारीख में अमेरिका एआई में नंबर एक है और हम 15वें नंबर पर है। आने वाले युद्ध में एआई बड़ा अहम है। मौजूदा समय में चीन हमसे युद्ध के मामले में तीन दशक आगे है।

नीरज सिंह मन्हास सलाह देते हैं कि भारत अपने रक्षा ढांचे में अधिक डिजिटल प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करता है, इसलिए इसे साइबर सुरक्षा खतरों का मुकाबला करने के लिए तैयार रहना चाहिए जो राष्ट्रीय सुरक्षा को कमजोर कर सकते हैं। इन चुनौतियों के लिए एक व्यापक और दूरदर्शी दृष्टिकोण की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि रक्षा क्षेत्र राष्ट्रीय सुरक्षा का समर्थन करता है और सतत राष्ट्रीय विकास के व्यापक लक्ष्य में योगदान देता है।