कैंपस के अंदर लेडी डॉक्टर के साथ हैवानियत, तो सोचिए फिर बाकी बेटियों का क्या हाल ??
पश्चिम बंगाल में कैंपस के अंदर लेडी डॉक्टर के साथ हैवानियत, तो सोचिए फिर बाकी बेटियों का क्या हाल
साल 2012 में जब निर्भया कांड हुआ उस वक्त पूरा देश एक साथ उठकर खड़ा हो गया था. अब चिकित्सक प्रोफेसर के साथ कोलकता में ऐसी घटना हुई है, जो काफी विभत्स है. देश के किसी कोने में घटना हो, ये सबके लिए शर्म की बात है. आज के समय में क्या स्थिति और परिस्थिति है ये सबको पता है. बच्चियों के साथ ऐसी घटनाएं तो सामने आती रही हैं, लेकिन अब चिकित्सक भी इसके जद में आने लगे हैं. इसको लेकर लोकल प्रशासन सीरियस नहीं है, जिसके कारण दुख होता है.
निर्भया कांड के बाद भी नहीं जागे
आज देश की कोई बेटी सुरक्षित नहीं है. अब तक महिला चिकित्सक जो समाज की सेवा करती आयी हैं, उनको भी इन सब स्थिति से गुजरना पड़ रहा है. पढ़े-लिखे लोगों के साथ ये हाल है तो सोचिए की देश में उन जगहों पर क्या होता होगा, जहां पर शिक्षा नहीं पहुंच पाई है. अब समाज में ये घटनाएं अति हो चुकी है. सरकार और प्रशासन कठोर कार्रवाई करने में कहीं ना कहीं पीछे हैं. अभी उस प्रकार से कार्रवाई नहीं हो पा रही है, जिस तरह से होनी चाहिए. जिस तरह का आक्रोश होना चाहिए वो नहीं है, हालांकि चिकित्सक इस कार्य में लगे हुए हैं.
देश के लिए शर्मनाक बात है कि चिकित्सक बेटियां भी सुरक्षित नहीं है. शव के साथ भी बर्बरता की हद पार कर दी गई है. ये बात भी सामने आ रहा है कि रात में ड्यूटी कर क्यों आई, मतलब कि पीड़ित पर ही ब्लेम गेम खेलने का काम हो रहा है. जिस तरह से निर्भया के साथ सवाल किए गए थे, उसी तरह के सवाल फिर से उठ खड़े हो रहे हैं. समाज में हमारे ऐसे लोग हैं, जिससे कि चिंता और भी बढ़ जाती है.
कुछ भी नहीं बदला
निर्भया कांड के समय जो कानून बना था, अगर उस कानून से कुछ भी प्रभाव पड़ रहा होता तो इस तरह की घटना देखने को नहीं मिलती. चूंकि, ये मामला चिकित्सक से जुड़ा है इसलिए चर्चा में आ गया तो इसकी बात हो रही है, नहीं तो देश में ऐसी घटनाएं रोज घट रही हैं, लेकिन वो सामने नहीं आती या फिर सामने आती भी हैं तो उस पर चर्चा नहीं हो पाती. ऐसी घटनाएं सोशल मीडिया और टेलीविजन के माध्यम से सामने आ जाती है, तो देश में बातें होने लगती है, नहीं तो कई घटनाएं दबकर मात्र रह जाती है. कानून के आने के बाद ऐसा नहीं है कि घटना थम गई हो, बल्कि घटनाएं और भी बढ़ गई.
ऐसी घटनाओं से बचाने के लिए समाज के सभी लोगों को साथ लगना होगा. निर्भया कांड में दोषियों पर कार्रवाई में 10 साल तक का समय लग गया. कोई फास्ट ट्रैक पर काम नहीं हो रहा है, पुराने तरीके से ही मामले चल रहे हैं. कानून आने के बाद भी ऐसे मामले अगर सामने आ रहे हैं तो कानून को किस प्रकार से ठीक माना जाए.
प्रशासन इसको लेकर सीरियस नहीं है, और लोगों को भी इस मामले में सीरियस होने की जरूरत है. लोगों के मानसिकता को बदलना होगा, साथ ही ये भी पहचानने की जरूरत है कि समाज में किस प्रकार के ये लोग है जो इस प्रकार की घटना को अंजाम दे रहे हैं. निर्भया कांड के बाद ने सिर्फ दस प्रतिशत ही इस मामले पर काम किया है, जबकि और काम करने की जरूरत है.
कभी भी हो सकती है नौकरी की शिफ्ट
ये बात कही जा रही है कि महिला चिकित्सक को रात में नहीं जाना चाहिए, लेकिन नौकरी रहेगी तो शिफ्ट कभी भी लग सकती है, इन्हीं प्रकार की घटनाओं के कारण लोग बच्चियों को पढ़ने के लिए बाहर नहीं भेजते हैं. अगर बच्चियां पढ़ने जाती है या फिर जाब पर जाती हैं तो परिजनों को चींता लगा रहता है. इसी कारण बच्चियों की स्कूलों से ड्रापआउट ज्यादा देखने को मिलता है. ये एक चींता का विषय है.
ऐसी घटनाओं पर राजनीति बिल्कुल ही नहीं होनी चाहिए. केंद्र की सरकार अलग है राज्य की सरकार अलग है, इसलिए वहां पर राजनीति के बदले कार्रवाई करने की जरूरत है. आज तक कोई भी पार्टी की सम्मेलन नहीं हुआ है, जिसमें बेटियों के सुरक्षा पर बात हो सके. जबकि ये सरकारें जो दूसरे पार्टियों की होती है वो एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का खेल खेलने लगते हैं. जबकि सरकारें चाहें तो काफी कुछ काम हो सकता है. दूसरे देशों में ऐसी घटनाएं ना के बराबर होती है, कुछ तो वहां पर विशेष व्यवस्था होगी.
ये लोग भ्रमण के नाम पर विदेशों में घूमने जाते हैं, लेकिन कभी ये देखा है कि वहां पर ऐसी घटनाएं कम होती है वहां क्या है जो कि अपने देश में लागू किए जाने की जरूरत है. इस प्रकार के किसी मामले को नहीं देखा जाना चाहिए. अगर इस तौर पर देखें तो हां महिला है और त्वरीत न्याय जरूर मिलना चाहिए, लेकिन ऐसा होता हुआ फिलहाल तो नहीं दिख रहा हैं. क्योंकि संदेशखाली के मामले में ये देखने को मिल चुका है. लेकिन सरकार के लोग ही सवाल उठा रहे हैं कि रात में वहां पर जाने का क्या जरूरत थी. ऐसे में पहला कार्रवाई तो उनके विरुद्ध ही किया जाना चाहिए.
डेथ पेनालिटि लागू होने के बाद भी नहीं रूकी घटनाएं
निर्भया कांड के बाद से डेथ पेनालिटी को लागू किया गया, लेकिन वो सही तरीके से लागू उस समय नहीं किया गया, जिस कारण ये घटना घटी. जज भी काफी कम मात्रा में डेथ पेनालिटी देते हैं, जिस कारण ऐसे मामले बढ़ रहे हैं. अभी तक मात्र 27 प्रतिशत मामले में ही ऐसी कार्रवाई की गई है. बाकी सब मामले ऐसे ही चल रहे हैं. एनजीओ के साथ सरकार को भी साथ देना होगा, ताकि ऐसे घटनाओं पर रोक लगाने के लिए कदम उठाया जा सके.
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