इस बार विपक्षी सांसदों में अलग ही तरह का जोश है

इस बार विपक्षी सांसदों में अलग ही तरह का जोश है

‘हाऊज़ द जोश?’- एक फिल्म का यह डायलॉग बहुत मशहूर हुआ था। आप चाहें तो संसद में विपक्ष के किसी भी सदस्य से आज यही सवाल पूछ सकते हैं- ‘हाऊज़ द जोश?’ कारण, इस बार लोकसभा और राज्यसभा दोनों में विपक्षी सांसदों में अलग तरह का जोश है। लोकसभा चुनाव के बाद से संसद के दो सत्र हो चुके हैं। पहला सत्र 7 दिनों का था, दूसरा 15 दिनों का। दोनों सत्रों के पर्यवेक्षक और प्रतिभागी के रूप में, इस स्तम्भकार को विपक्षी दलों के बढ़े जोश के कारणों को साझा करने की अनुमति दीजिए।

1. 2009 के बजट सत्र को याद करें, जब डॉ. मनमोहन सिंह अपने दूसरे कार्यकाल के लिए चुने गए थे। और फिर उसकी तुलना हाल ही में समाप्त हुए बजट सत्र से करें, जब नरेंद्र मोदी ने तीसरा कार्यकाल शुरू किया है। 2009 में सदन 33 दिनों तक चला था, जिसमें 17 विधेयक पेश हुए और 8 पारित किए गए। इस बार का बजट सत्र 22 दिन चला और तय समय से पहले स्थगित हो गया।

सोमवार के बजाय शुक्रवार दोपहर को ही दोनों सदनों की कार्यवाही अचानक समाप्त कर दी गई। ये संयोग ही था कि शनिवार रात को हिंडनबर्ग की कहानी सामने आ गई! सत्र में 14 विधेयक पेश किए गए, पर केवल 3 पारित हुए। केंद्र सरकार गृह और रक्षा मंत्रालय के कामकाज पर चर्चा के लिए सहमत नहीं हुई, जबकि 15 दलों ने मांग की थी कि इन दो संवेदनशील मंत्रालयों पर चर्चा की जाए।

2. एक दशक में पहली बार विपक्ष के पास नेतृत्व था। संसद में विपक्ष के नेताओं के वेतन और भत्ते अधिनियम, 1977 में विपक्ष के नेता को दोनों सदनों के ऐसे सदस्य के रूप में वर्णित किया गया है, जो विपक्ष में सबसे अधिक संख्यात्मक शक्ति रखने वाली पार्टी से संबंधित हो। हालांकि अधिनियम इसे निर्धारित नहीं करता, लेकिन परम्परा यह है (जिसे 1956 में लोकसभा अध्यक्ष जीवी मावलंकर ने निर्धारित किया था) कि किसी पार्टी को इस पद के लिए सदस्य नामित करने के लिए कम से कम 55 सीटें हासिल करनी चाहिए।

17वीं लोकसभा में कांग्रेस के पास 52 सांसद थे, लेकिन इस बार लगभग 100 सांसदों के साथ पार्टी ने आधिकारिक तौर पर इस पद पर दावा किया। संवैधानिक और मनोवैज्ञानिक रूप से भी, इसने लोकसभा में इंडिया गठबंधन का हौसला बढ़ाया। राहुल गांधी भी अपने पदार्पण पर किए गए प्रदर्शन से खुश होंगे।

3. अखिलेश यादव भी पहली पंक्ति में थे। पूर्व मुख्यमंत्री और अब कन्नौज से सांसद अखिलेश 37 सांसदों की अपनी टीम का नेतृत्व कर रहे थे। यह 17वीं लोकसभा में सपा को मिली सीटों से 32 ज्यादा हैं। इसके अलावा, टीएमसी के 36 वर्षीय राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी ने भी माहौल को गरमाए रखा। टीएमसी ने भी अपनी संख्या 22 से बढ़ाकर 29 कर ली है, जिसमें 11 महिला सांसद शामिल हैं।

विपक्ष के नेता के तौर पर राहुल गांधी का पहला भाषण निश्चित रूप से भाजपा को नागवार गुजरा। अखिलेश यादव पूरे जोश में थे और उन्होंने पेपर लीक पर सरकार की आलोचना की। बजट पर बोलते हुए, अभिषेक बनर्जी का 45 मिनट का भाषण और लोकसभा अध्यक्ष के साथ बातचीत तो वायरल हो गई।

लेकिन उनके द्वारा आठ साल पहले हुई नोटबंदी के बारे में बात करने पर आपत्ति क्यों ली गई, जबकि भाजपा सांसदों को नेहरू और इमरजेंसी के बारे में बोलने की अनुमति थी! बहरहाल, राहुल, अखिलेश और बनर्जी के पास 164 सांसद थे और वे लोकसभा में मजबूती से मौजूद थे। तमिलनाडु, केरल के सांसदों और महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के सदस्यों ने भी राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर अपने विचार रखे। बंगाल से तमिलनाडु तक और यूपी से महाराष्ट्र तक, विपक्ष को मार्गदर्शन प्राप्त था।

4. भले ही प्रमुख मंत्रालयों को संभालने वाले मंत्रियों के विभागों में कोई बदलाव न किया गया हो, लेकिन संसद चलाने के लिए तुलनात्मक रूप से नई टीम का विकल्प चुना गया। जेपी नड्डा को राज्यसभा में सदन का नेता नियुक्त किया गया। उन्होंने पीयूष गोयल की जगह ली। संसदीय मामलों के मंत्री के रूप में प्रहलाद जोशी की जगह किरन रिजिजू नियुक्त हुए।

तमिलनाडु से पहली बार सांसद बने एल. मुरुगन संसदीय मामलों के नए राज्य मंत्री बने। दूसरी तरफ पांच बार लोकसभा सांसद रह चुकीं सोनिया गांधी पहली बार राज्य सभा में शामिल हो रही थीं। उन्होंने राज्यसभा में अपना पहला भाषण देने या संसद में हस्तक्षेप करने का विकल्प नहीं चुना। लेकिन उनके कार्यों, व्यवहार और हाव-भाव ने कांग्रेस सांसदों में जोश ही भरा था!

  • राहुल गांधी, अखिलेश यादव, अभिषेक बनर्जी के पास कुल 164 सांसद हैं और वे लोकसभा में मजबूती से मौजूद थे। तमिलनाडु, केरल के सांसदों और महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के सदस्यों ने भी राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे उठाए।

(ये लेखक के अपने विचार हैं। इस लेख के सहायक-शोधकर्ता आयुष्मान डे हैं।)

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