महिलाओं के लिए क्या है ‘स्वतंत्रता’ का अर्थ,…. कब मिलेगी डर से आजादी ???
मुद्दा: महिलाओं के लिए क्या है ‘स्वतंत्रता’ का अर्थ, आखिर उनको कब मिलेगी डर से आजादी
हमारे पास गर्व करने के लिए बहुत कुछ है, लेकिन हमें उन मुद्दों पर आत्मनिरीक्षण करना चाहिए, जो पीछे ले जा रहे हैं। जब लाखों भारतीय महिलाएं भय से मुक्ति का आनंद नहीं ले पाती हैं, जब वे अपने रोजमर्रा के जीवन में असुरक्षित महसूस करती हैं, तो उनके लिए ‘स्वतंत्रता’ शब्द का क्या अर्थ है? सुरक्षा हर इन्सान का मौलिक अधिकार है-चाहे वह पुरुष हो या महिला। किसी भी महिला को सुरक्षा और आकांक्षाओं में से किसी एक को चुनने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।
कोलकाता, जहां मेरा जन्म हुआ और जहां मैं पली-बढ़ी, इन दिनों आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल की एक 31 वर्षीय पोस्ट-ग्रेजुएट मेडिकल छात्रा के साथ बीते नौ अगस्त को हुए भयानक दुष्कर्म और हत्या की वजह से सुर्खियों में है। इस घटना ने कोलकाता शहर और पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। देश भर में डॉक्टरों, मेडिकल छात्रों और नागरिक समाज द्वारा व्यापक विरोध प्रदर्शन हुआ है। चिकित्सा बिरादरी, विशेष रूप से महिला डॉक्टरों का कहना है कि उनकी लड़ाई सुरक्षा के खतरों, अपर्याप्त बुनियादी ढांचे, अपर्याप्त सुरक्षा और महिलाओं की अस्मत से खिलवाड़ करने वाले वरिष्ठों के खिलाफ है।
दुष्कर्म का शिकार हुई मेडिकल छात्रा (जूनियर डॉक्टर) ने लगातार 36 घंटे की पाली में काम किया था और वह थोड़ा आराम करना चाहती थी। लेकिन वहां इसके लिए कोई सुरक्षित जगह नहीं थी। इसलिए वह खाली पड़े सेमिनार हॉल में जाकर सो गई। उसके बाद जो हुआ, वह एक भयावह कहानी है, जिसके बारे में हाल में अखबारों के पहले पन्ने पर छपा है। इस घटना के बारे में बहुत से तथ्य ऐसे हैं, जिनके बारे में हम नहीं जानते। लेकिन हम जो जानते हैं, वह जवाबदेही की भारी कमी की ओर इशारा करता है। आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के प्रिंसिपल के कामकाज को लेकर सवाल उठ रहे हैं, जिन्होंने विरोध प्रदर्शनों के बीच इस्तीफा दे दिया है, लेकिन वह अब भी जवाबदेह हैं। स्थानीय पुलिस और राज्य सरकार से भी जायज सवाल पूछे जा रहे हैं।
दुष्कर्म और हत्या के विवरण ऐसे कई मुद्दों को उजागर करते हैं, जिन पर तत्काल प्रतिक्रिया की आवश्यकता है, न कि त्वरित समाधान की। इनमें से कई मुद्दे चिकित्सा समुदाय से जुड़े हैं। ड्यूटी पर तैनात महिला डॉक्टरों के आराम के लिए सुरक्षित जगह की कमी, जो इस घटना का मूल कारण है, केवल कोलकाता या पश्चिम बंगाल तक सीमित नहीं है। केंद्र संचालित डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में 2001 में काम कर चुकी एक महिला डॉक्टर ने बताया, ‘दिल्ली के आरएमएल अस्पताल में कोई ड्यूटी रूम नहीं था। हम सीसीयू (कार्डियक केयर यूनिट) में दो कुर्सियों पर सोते थे।’ ऐसे कई अन्य प्रश्न हैं, जो आम भारतीय महिलाओं के दैनिक जीवन में सुरक्षा को प्रभावित करते हैं, चाहे वे कुछ भी कर रही हों या कहीं भी हों। कोलकाता और उसके उपनगरों में हजारों लोगों ने ‘रिक्लेम द नाइट’ मार्च में हिस्सा लिया और ‘स्वतंत्रता और बिना किसी डर के जीने की आजादी’ की मांग की। यह एक बुनियादी जरूरत है। हजारों लोगों ने सरकारी अस्पताल में जूनियर डॉक्टर के बलात्कार और हत्या की निंदा की और महिलाओं की बेहतर सुरक्षा के लिए प्रदर्शन किया। आखिर महिलाओं को सुरक्षा मांगने की जरूरत क्यों पड़ती है? भारतीय संविधान, खासकर अनुच्छेद 14 और 21 महिलाओं को भी मौलिक और समान अधिकारों की गारंटी देता है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है।
शर्मनाक बात यह है कि देश में ज्यादातर जगहों पर महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। जब सड़कों, सार्वजनिक स्थलों और कार्यस्थलों पर महिला सुरक्षा की बात आती है, तो कोई भी राजनीतिक दल इस मामले पर कुछ नहीं बोलता। बहुत-सी महिलाएं तो अपने घर की चाहरदिवारी में भी सुरक्षित नहीं हैं। लाखों भारतीय महिलाओं को अब भी चुप रहने के लिए कहा जाता है और पीड़िता को ही दोषी ठहराया जाता है, जिससे यौन शोषण की शिकार बची हुई महिलाओं के लिए कानूनी और सामाजिक सहायता प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है।
कोलकाता में हुई दुष्कर्म की घटना 2012 में दिल्ली में 23 वर्षीय छात्रा के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म और हत्या से मिलती-जुलती है, जिसके बाद पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हुए थे और भारत में महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल उठे थे। बलात्कारियों और हत्यारों को मौत की सजा देने के प्रावधान से भी महिलाओं को कोई राहत नहीं मिली है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने अकेले 2022 में 31,516 दुष्कर्म के मामले दर्ज किए। राजस्थान में सबसे ज्यादा 5,399 मामले दर्ज किए गए, उसके बाद उत्तर प्रदेश (3,690) और मध्य प्रदेश (3,029) का स्थान रहा। ये सिर्फ दर्ज मामले हैं, वास्तविक आंकड़े तो कहीं ज्यादा होंगे। अब एक बार फिर दोषियों को मौत की सजा देने की बात हो रही है। लेकिन इससे महिलाएं सुरक्षित नहीं होंगी। जरूरत है, पारदर्शिता और जवाबदेही की। भारत में महिलाओं को हमेशा सतर्क रहने की आदत हो गई है। इसका महिलाओं और लड़कियों के स्वास्थ्य और उनकी आकांक्षाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। राजनीतिक दलों को संकीर्णता से ऊपर उठकर इसे राष्ट्रीय मुद्दा मानना चाहिए। यानी राजनीतिक दलों को कुछ बलात्कारियों को बचाने और अन्य के खिलाफ मुखर होने की प्रवृत्ति नहीं अपनानी चाहिए। जनता उनके पाखंड को देख रही है।
भारत अगले तीन वर्षों में 50 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना चाहता है। एक कामकाजी महिला और एक मां होने के नाते मेरी राजनेताओं और प्रशासकों से अनुरोध है कि वे सबसे पहले महिलाओं को सुरक्षा दें। जब महिलाएं सुरक्षित महसूस करेंगी, तभी देश तरक्की करेगा।