हर 16 मिनट में एक रेप! भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध हर साल बढ़ रहे हैं …

 हर 16 मिनट में एक रेप! कितने मामलों में बलात्कारियों को मिलती है सजा? पूरी रिपोर्ट
कोलकाता में एक मेडिकल छात्रा का बेरहमी से रेप के बाद हत्या कर दी गई. इस घटना के बाद पूरे देश में लोग गुस्से में हैं. इससे पहले ऐसा आक्रोश 2012 में देखने को मिला था जब दिल्ली में निर्भया कांड हुआ था.

भारत में रेप और बलात्कार कोई नई बात नहीं है, ये एक गंभीर सामाजिक समस्या है जो लगभग हर वक्त कहीं न कहीं सुर्खियों में बनी रहती है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2022 में भारत में हर दिन 86 रेप के मामले सामने आए, यानी हर 16 मिनट में एक बलात्कार का केस दर्ज हुआ. वहीं हर तीन दिन में दो महिलाओं की रेप के बाद हत्या कर दी गई.

इस स्पेशल स्टोरी में आप देश में रेप के मामलों की पूरी स्थिति के बारे में जानेंगे. रेप की कानूनी परिभाषा क्या है, किस वर्ग की महिलाओं का ज्यादा शोषण होता है, राज्यवार आबादी के हिसाब से कहां ज्यादा रेप केस आते हैं, कितने फीसदी केस में सजा होती है, महिला सुरक्षा को लेकर क्या कानून हैं, कौन लोग होते हैं रेपिस्ट,  रेप पीड़िता के परिवार की सुरक्षा या मुआवजा को लेकर क्या कानून या सुविधाएं हैं, रेप के कानून में कब कब बड़े बड़े सुधार किए गए औ भारत में रेप के केस ज्यादा क्यों हैं.

पहले जानिए रेप की कानूनी परिभाषा क्या है
रेप, जिसे अक्सर यौन उत्पीड़न के रूप में जाना जाता है. ये एक जघन्य अपराध है जो तब होता है जब कोई पुरुष किसी महिला के साथ उसकी बिना सहमति के जबरदस्ती यौन संबंध बनाता है. इसमें शारीरिक बल का इस्तेमाल करना, धमकी देना या किसी भी अन्य तरह का दबाव बनाना भी शामिल हो सकता है. यह तब भी हो सकता है जब कोई व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाता है जो कानूनी तौर पर ‘हां’ कहने या सहमति देने की स्थिति में नहीं है.

अगर कोई पुरुष किसी महिला के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध या उसकी सहमति के बिना यौन गतिविधि में संलग्न होता है, तो वह बलात्कार का दोषी है. ये भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 63 के खंड एक से सात द्वारा परिभाषित किया गया है.

भारत में रेप के मामलों का क्या है आंकड़ा
भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले साल-दर-साल बढ़ते ही जा रहे हैं. एनसीआरबी के अनुसार, 2020 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 371,503 मामले दर्ज किए गए थे. इसके बाद अगले साल 2021 में 428,278 और 2022 में 445,256 मामले सामने आए. यानी कि तीन साल में करीब 20 फीसदी अपराध बढ़ गया. साल 2022 में कुल 31,982 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं रिपोर्ट की गई और कुल 31,516 केस रजिस्टर किए गए. 

राज्यवर आंकड़ा देखा जाए तो 2022 में राजस्थान में सबसे ज्यादा 5408 महिलाओं के साथ रेप जैसा घिनौना अपराध हुआ और यहां कुल 5399 रेप के केस दर्ज किए गए. राजस्थान के बाद उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश ऐसे दो राज्य हैं जहां तीन हजार महिलाओं के साथ ऐसा अपराध हुआ. इसके अलावा महाराष्ट्र (2911), हरियाणा (1787),  असम (1478), ओडिशा (1464), झारखंड (1298), छत्तीसगढ़ (1246), पश्चिम बंगाल (1112) में सबसे ज्यादा महिलाओं के साथ रेप का मामला सामने आया.

हर 16 मिनट में एक रेप! कितने मामलों में बलात्कारियों को मिलती है सजा? पूरी रिपोर्ट

आबादी के हिसाब से देखा जाए तो उत्तराखंड में सबसे ज्यादा बलात्कार के मामले हुए. रेप के मामले में उत्तराखंड का सबसे ज्यादा 15.4 क्राइम रेट है. इसका मतलब है कि एक लाख की आबादी पर 15.4 महिलाओं का बलात्कार हुआ. उत्तराखंड के बाद चंडीगढ (13.9), राजस्थान (13.8), हरियाणा (12.7), दिल्ली (12.3), लक्षद्वीप (12.1) का रेप मामले में सबसे ज्यादा क्राइम रेट है.

किस उम्र की महिलाएं ज्यादा शिकार होती हैं?
2022 की एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, 18 से 30 साल के बीच की महिलाएं सबसे ज्यादा (21,063) शिकार यौन उत्पीड़न का शिकार हुईं. इनके अलावा 30 से 45 साल के बीच की 8644 महिलाओं ने बलात्कार के मामले की रिपोर्ट दर्ज कराई. उम्र के हिसाब से महिलाओं के यौन उत्पीड़न के ये रहे आंकड़े:

  • 6 साल से कम- 32 महिलाएं
  • 6 से 12 साल के बीच- 88 महिलाएं
  • 12 से 16 साल के बीच- 370 महिलाएं
  • 16 से 18 साल के बीच- 527 महिलाएं
  • 18 से 30 साल के बीच- 21063 महिलाएं
  • 30 से 45 साल के बीच- 8644 महिलाएं
  • 45 से 60 साल के बीच- 1171 महिलाएं
  • 60 से ऊपर- 87 महिलाएं

सबसे दुख की बात यह है कि रेप के कुल 31,516 मामलों में से 96.6% (30,454) केस ऐसे हैं जिनमें आरोपी उन पीड़ित महिलाओं का कोई न कोई जानकार या सगा संबंधी है. इन आरोपियों में पीड़ित महिला के परिवार का सदस्य, मित्र/ऑनलाइन मित्र या लिव इन पार्टनर, पारिवारिक मित्र, पड़ोसी, बॉस या अन्य कोई जानकार व्यक्ति शामिल है. केवल 1062 केस ऐसे हैं जिनमें आरोपी कोई अपरिचित है.

सबसे ज्यादा 14,582 केस में पीड़ित महिलाओं के किसी दोस्त, लिव इन पार्टनर या अलग हो चुके पति के खिलाफ बलात्कार के मामले सामने आए. इनके अलावा 13,548 केस में फैमिली फ्रेंड, बॉस या किसी अन्य जान-पहचान वाले व्यक्ति ने वारदात की. वहीं 2324 केस पीड़िता के परिवार के सदस्यों पर ही बलात्कार का आरोप लगा.

कितने आरोपियों को मिली सजा?
साल 2022 में रेप के कुल मामलों में से 19,954 में पुलिस ने चार्जशीट दायर की. वहीं इस साल दर्ज मामलों में से अदालत ने 507 केस में दोषी ठहराया. अदालत ने कुल 1388 मामले निपटाए और कुल 12,062 केस में आरोपियों को बरी कर दिया गया. रिपोर्ट के अनुसार, 27.4 फीसदी मामलों में अदालत ने आरोपियों को बलात्कार का दोषी ठहराया हैं.

हर 16 मिनट में एक रेप! कितने मामलों में बलात्कारियों को मिलती है सजा? पूरी रिपोर्ट

किस तबके की महिलाओं का हुआ ज्यादा शोषण?
एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चलता है कि साल 2022 में हर दिन करीब 15 अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की महिला के साथ रेप की घटना हुई. कुल 5588 केस दर्ज हुए और 5610 महिलाओं ने घटना रिपोर्ट की. इनमें शेड्यूल कास्ट की महिलाओं की संख्या ज्यादा है और क्राइम रेट भी इनका ही ज्यादा है. 

2022 में शेड्यूल कास्ट (SC) की 4252 महिलाओं ने 4241 केस दर्ज कराए, जिनका क्राइम रेट 2.1 है. वहीं शेड्यूल ट्राइब (ST) की 1358 महिलाओं ने घटना की रिपोर्ट की, कुल 1347 केस रजिस्टर हुए. इनका क्राइम रेट 1.3 रहा.

भारत में महिला सुरक्षा को लेकर क्या कानून?
भारतीय संविधान में महिला सुरक्षा के लिए कई कानून हैं. इन कानूनों का मकसद महिलाओं को हिंसा, उत्पीड़न और भेदभाव से बचाना है. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय भारत सरकार का एक अहम मंत्रालय है जो महिलाओं और बच्चों के अधिकारों और कल्याण के लिए काम करता है. 

  • घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005: यह कानून महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए बनाया गया है.
  • दहेज निषेध अधिनियम 1961: यह कानून दहेज लेने या देने को अपराध बनाता है.
  • महिलाओं का अशिष्ट चित्रण (निषेध) अधिनियम 1986: यह कानून महिलाओं का अश्लील तरीके से दिखाने पर प्रतिबंध लगाता है.
  • कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न अधिनियम 2013: यह कानून कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए बनाया गया है.
  • बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006: यह कानून बाल विवाह को प्रतिबंधित करता है.
  • बच्चों को यौन अपराधों से संरक्षण (POCSO) अधिनियम 2012: यह कानून बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से निपटने के लिए बनाया गया है.
  • बाल अधिकार संरक्षण आयोग (CPCR) अधिनियम 2005: यह कानून बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक आयोग स्थापित करता है.

इसके अलावा, भारत सरकार ने महिलाओं को सुरक्षित रखने और उन्हें हिंसा से बचाने के लिए एक विशेष फंड बनाया है, जिसे निर्भया फंड कहा जाता है. इस फंड से महिलाओं के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं.

रेप पीड़िता के परिवार की सुरक्षा या मुआवजा को लेकर क्या?
अब एक नया कानून बनाया गया है, जिसका नाम धारा 357ए है. इस कानून में बताया गया है कि अगर किसी महिला को कोई अपराध होता है, तो उसे सरकार से मुआवजा मिलेगा. सुप्रीम कोर्ट ने निपुण सक्सेना बनाम भारत सरकार के मामले में मुआवजा योजना बनाने के लिए यह नियम निर्धारित किया है. इसे लागू करने के लिए राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण ने नियम बनाए हैं.

इस योजना के लिए 11 मई 2018 को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी और सुप्रीम कोर्ट ने इसे स्वीकार कर लिया. इसके बाद सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस योजना को लागू करने का आदेश दिया गया. इस योजना के तहत अगर किसी महिला के साथ कोई अपराध होता है, तो उसे सरकार से कम से कम 4 लाख रुपये और ज्यादा से ज्यादा 7 लाख रुपये तक मिलेंगे. अगर अदालत को लगता है कि यह पैसा कम है, तो अदालत इस रकम को बढ़ा भी सकती है.

वहीं कलकत्ता हाई कोर्ट ने एक मामले में कहा है कि धारा 357ए के तहत जो पैसा दिया जाता है, वह किसी व्यक्ति के अधिकारों को बचाने के लिए दिया जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने भी एक मामले में कहा है कि अगर किसी अपराध के लिए किसी को सजा नहीं मिलती है, तब भी उसे पैसा दिया जा सकता है.

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रेप के कानून में कब-कब बड़े सुधार किए गए
कोलकाता में हाल ही में एक मेडिकल कॉलेज की छात्रा का बेरहमी से बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई. इस घटना के बाद पूरे देश में लोग गुस्से में हैं और विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. इससे पहले ऐसा आक्रोश 2012 में देखने को मिला था जब दिल्ली में निर्भया कांड हुआ था. तब भी लोगों ने बहुत विरोध किया था. इस घटना और विरोध प्रदर्शनों के बाद मौजूदा कानूनों में बदलाव के लिए एक समिति गठित की गई थी. इस समिति का नेतृत्व रिटायर्ड जस्टिस जेएस वर्मा ने किया. 23 जनवरी 2013 को रिपोर्ट पेश कर दी गई. इस रिपोर्ट के आधार पर आपराधिक (संशोधन) अधिनियम 2013 लागू हुआ.

पहला संशोधन भारतीय दंड संहिता 1860 में हुआ. महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे बलात्कार के मामलों में एफआईआर दर्ज न करने वाले पुलिस अधिकारियों को सजा देने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 166 ए के तहत एक नया प्रावधान पेश किया गया. अस्पताल में बलात्कार पीड़ितों को मुफ्त इलाज देने से इनकार करने पर सजा देने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 166 बी के तहत एक नया प्रावधान पेश किया गया.

धारा 376 (2) का दायरा बढ़ाकर केंद्र या राज्य सरकार के तैनात सशस्त्र बलों के कर्मचारियों द्वारा किए गए बलात्कार को शामिल किया गया. 16 साल से कम उम्र की महिला का बलात्कार भी एक गंभीर अपराध माना जाएगा और इसके लिए दी जाने वाली सजा बढ़ा दी गई. साथ ही धारा 376 के तहत तीन अलग-अलग उपधाराएं पेश की गई- धारा 376 डी, धारा 376 ए, धारा 376 ई. ऐसे ही कानून में कई संशोधन हुए.

अब नए कानून के मुताबिक, अगर बलात्कार की वजह पीड़िता की मौत हो जाती है या बेहोश हो जाती है, तो दोषी को 20 साल तक की जेल या आजीवन कारावास या मौत की सजा मिल सकती है. बीएनएसएस (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023) की धारा 193 के अनुसार, जांच बिना अनावश्यक देरी के पूरी की जानी चाहिए और अगर जांच महिलाओं व बच्चों के खिलाफ अपराध से संबंधित है तो इसे दो महीने के भीतर पूरा कर लिया जाना चाहिए.

भारत में रेप के केस ज्यादा क्यों?
समाज में महिलाओं को लेकर एक पुरानी सोच अभी भी मौजूद है जिसमें उन्हें पुरुषों से कमतर माना जाता है. महिलाओं के प्रति यौन उत्पीड़न को अक्सर हल्के में लिया जाता है. जब समाज में यह धारणा बनती है कि ‘लड़के तो लड़के हैं’ या ‘यह आम है’, तो इससे बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों को बढ़ावा मिलता है.

हर 16 मिनट में एक रेप! कितने मामलों में बलात्कारियों को मिलती है सजा? पूरी रिपोर्ट

कई बार परिवार और समुदाय बलात्कारी को बचाते हैं जिससे महिलाएं अपनी आवाज उठाने में डरती हैं. ऐसे मामलों में पुलिस और प्रशासन का भी सहयोग नहीं मिलता है.

भारत में बलात्कार के मामलों में सजा की दर बहुत कम है. 2022 में बलात्कार के मामलों में केवल 27.4% मामलों में सजा सुनाई गई थी. इससे अपराधियों में यह विश्वास बढ़ता है कि उन्हें सजा नहीं मिलेगी. इस कारण उनकी हिम्मत और बढ़ जाती है. वहीं अक्सर देखा गया है कि पुलिस भी बलात्कार के मामलों में एफआईआर दर्ज करने में टालमटोल करती है या देरी करती है. कई बार पुलिस बलात्कार की घटनाओं को गंभीरता से नहीं लेती, जिससे पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाता.

वहीं बॉलीवुड-हॉलीवुड की कुछ फिल्मों में महिलाओं को आपत्तिजनक स्थिति में दिखाया जाना भी एक बड़ा कारण है. इससे समाज में गलत संदेश जाता है. इससे बलात्कारी को बढ़ावा मिलता है कि वे बिना डर के ऐसे अपराध कर सकते हैं. शराब और नशीली दवाओं का सेवन करने से भी ऐसे अपराधों को बढावा मिलता है. हालांकि बलात्कारियों के खिलाफ सख्त कानून तो बना दिए गए हैं लेकिन उनका सही ढंग से पालन नहीं हो पाता है.

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