फिर उन्हें कुछ याद आया। बोले, “पर यार यह तो बताओ, क्रांति करूं किस फील्ड में?” मुझे उनकी ईमानदारी से ऐसा पूछने का अंदाज पसंद आया। सो मैंने खुशी-खुशी उन्हें सलाह की गठरी पकड़ा दी, ‘देखो अधिकांश बड़े क्रांतिकारी घर से ही शुरुआत करते हैं। तुम भी ऐसा ही करो।” “वह तो ठीक है, पर घर से क्रांति कैसे हो सकती है?” मैंने उत्साह के कबूतर उड़ाते हुए कहा, ‘देखो तुम्हारा लड़का कुंवारा है। तुम उसके लिए लड़की देख रहे हो, है न? वह चौंककर बोले, ‘हां, पर लड़के की शादी का क्रांति से क्या मतलब?’ ‘है, तुम घोषणा कर दो कि लड़के की शादी में एक पैसा दहेज नहीं लोगे। बस घर से क्रांति की शुरुआत हो जाएगी?’ इतना सुनना था कि वह दीवाली के महंगे बम की तरह फट पड़े, ‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है। लड़के को पढ़ा-लिखाकर इसलिए लायक बनाया था कि उससे चार पैसे कमा सकूं। तुम तो मेरी सारी मेहनत मिट्टी में मिलाना चाहते हो?”

मैंने दिमागे शरीफ को फिर काम पर लगाया। जल्दी ही याद आया कि उनकी छोटी बेटी को एक्टिंग का बहुत शौक है। वह एक्टिंग में ही करियर बनाना चाहती है, पर खानदान की इज्जत के नाम पर उन्होंने उसे एक्टिंग की परमिशन नहीं दी। सो मैंने कहा, ‘मेरी मानो तो बेटी को उसकी मर्जी से एक्टिंग के क्षेत्र में जाने दो। इससे तुम सालिड वाली क्रांति भी कर लोगे और लड़की भी खुश हो जाएगी। अभी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि वह भड़क गए, ‘हद करते हो, तुम दोस्त हो या दुश्मन? मैं लड़की को एक्टिंग के फील्ड में जाने दूंगा तो कितनी बेइज्जती होगी। लड़की वहां नाच-गाना करेगी तो खानदान की नाक नहीं कटेगी?” कुछ देर वह मुंह सुजाए रहे। फिर पिन-पिनाकर बोले, ‘मैं क्रांति करने की बात कह रहा हूं और तुम मेरे बेटे-बेटियों की बात कर रहे हो। कुछ और बताओ।’

मैंने कुछ सोचकर कहा, ‘देखो, तुम सच में क्रांति करना चाहते हो तो “ऊपरी कमाई” करना बंद कर दो। यह देश और समाज पर तुम्हारा उपकार होगा।’ वह फिर बिफर गए। बोले, ‘देख रहा हूं कि तुम मुझे बर्बाद करने पर आमादा हो। ऐसा करुंगा तो दारू-मुर्गे का इंतजाम कहां से होगा, बीवी के गहने और बच्चों की नई-नई ड्रेस कहां से आएंगी।’

उनकी बात सुनकर मन किया कि उनका सिर फोड़ दूं, पर मैंने अपने ही माथे पर हाथ मारकर काम चला लिया। मैंने एक बार फिर सोचने का उपक्रम किया और कहा, ‘ऐसा करो, अब तुम फेसबुक पर एक क्रांतिकारी पोस्ट डाल दो। उसमें क्रांति करने की घोषणा कर दो।’ इतना सुनते ही वह खुश होकर बोले, ‘हां यह सही रहेगा, पर क्या लिखूं?’ ‘लिख दो कि देश को क्रांति की जरूरत है। मैं पहले खुद में क्रांति लाऊंगा, फिर मोहल्ले-देश में और फिर सारी दुनिया को क्रांति से भर दूंगा। क्रांति जिंदाबाद। फिर बैठकर क्रांति पर आए लाइक, कमेंट गिनना, तुम्हारा क्रांति वाला शौक भी पूरा हो जाएगा और जलवा बनेगा सो अलग।’ इतना सुनते ही उनका चेहरा खिल गया। बोले, ‘यह है समझदार वाली बात। बस अभी फेसबुक पर क्रांतिकारी पोस्ट डालता हूं।’ कहकर वह निकल लिए। इस तरह मेरी, उनकी और क्रांति, तीनों की इज्जत बच गई।