सवालों में महिला सुरक्षा ?
सवालों में महिला सुरक्षा, कोलकाता की घटना से पूरा देश आक्रोशित
कोलकाता घटना के उपरांत देश भर के डाक्टरों में गुस्से का उबाल आया और वे हड़ताल पर चले गए। इसके चलते स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गईं। मामले की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने घटना का स्वतः संज्ञान लिया और बंगाल सरकार को फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट के इस सवाल का ममता सरकार के पास कोई जवाब नहीं कि इस घटना की एफआइआर 14 घंटे बाद क्यों दर्ज की गई?
…. कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कालेज में एक प्रशिक्षु महिला डाक्टर की दुष्कर्म के बाद जिस वीभत्स तरीके से हत्या कर दी गई, उसने देश को झकझोर कर रख दिया। अपने देश में ऐसी घटनाएं रह-रहकर घटती ही रहती हैं और उनसे पूरा देश आक्रोशित होता है। इसके पहले जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश आदि की ऐसी घटनाएं सारे देश का ध्यान आकर्षित कर चुकी हैं। कोलकाता की घटना के बाद इन दिनों ठाणे और असम की घटनाएं चर्चा में हैं। देश में प्रतिदिन दुष्कर्म की न जाने कितनी घटनाएं होती हैं। इनमें कुछ में रिपोर्ट दर्ज होती हैं और कुछ में महिलाएं शर्म के कारण शिकायत करने से बचती हैं। दूषित मानसिकता वाले लोग दुष्कर्म के बाद महिलाओं की हत्या इसीलिए करते हैं, ताकि उनके खिलाफ कोई शिकायत न की जा सके। जब भी देश में कोलकाता जैसी घटनाएं होती हैं, राजनीति में भूचाल सा आ जाता है। कोलकाता की घटना ने पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया। इस घटना से यही लगता है कि देश आज वहीं है, जहां दिल्ली के निर्भया कांड के समय था। दुष्कर्म और हत्या की घटनाएं देश की शर्मिंदगी तब और बढ़ा देती हैं, जब ऐसी घटनाओं पर सस्ती राजनीति होने लगती है।
राजनीतिक दल संवेदनहीन नहीं, लेकिन कई बार खुद पर आंच न आने देने या जातीय समीकरण साधने अथवा वोट बैंक की चिंता में वे कभी-कभी दुष्कर्म की घटनाओं पर पर्दा डालने या उसकी गंभीरता को कम करके दिखाने में लग जाते हैं। कोलकाता की घटना पर ऐसा ही हुआ। यहां के आरजी कल मेडिकल कालेज की डाक्टर अपनी लंबी ड्यूटी के बाद जब विश्राम करने गई तो वहीं दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या कर दी गई। डाक्टर के घर वालों को यह खबर दी गई कि उसने आत्महत्या कर ली है। इतना ही नहीं, उसकी हत्या के कई घंटे बाद रिपोर्ट दर्ज की गई और सीबीआइ की मानें तो पुलिस ने क्राइम सीन से छेड़छाड़ की। समझना कठिन है कि मेडिकल कालेज में दुष्कर्म के बाद हत्या के गंभीर मामले में पुलिस ने एफआइआर दर्ज करने में देर क्यों की? यह घटना पुलिस के गैर जिम्मेदाराना रवैये को ही प्रकट करती है। दुर्भाग्य से पुलिस का ऐसा रवैया अन्य मामलों में भी दिखता है। कई बार दुष्कर्म पीड़िता और उसके परिवार वालों को पहले पुलिस के व्यवहार के चलते शर्मसार होना पड़ता है और फिर अदालती कार्यवाही के दौरान वकीलों की जिरह से।
कोलकाता की घटना के उपरांत देश भर के डाक्टरों में गुस्से का उबाल आया और वे हड़ताल पर चले गए। इसके चलते स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गईं। मामले की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने घटना का स्वतः संज्ञान लिया और बंगाल सरकार को फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट के इस सवाल का ममता सरकार के पास कोई जवाब नहीं कि इस घटना की एफआइआर 14 घंटे बाद क्यों दर्ज की गई? सुप्रीम कोर्ट ने आगाह किया कि इस मामले का राजनीतीकरण न किया जाए, लेकिन राजनीति तो पहले ही शुरू हो गई थी। इसका एक कारण तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का रवैया ही रहा। यह पहली बार नहीं, जब वह अपने राज्य की किसी गंभीर घटना पर आरोपित लोगों को बचाने की कोशिश करती हुई दिखाई दी हों। आरजी कर मेडिकल कालेज के प्रिंसिपल ने जब अपने पद से इस्तीफा दिया तो उस पर कोई निर्णय लेने के स्थान पर उन्हें उसी दिन एक अन्य मेडिकल कालेज का प्रिंसिपल बना दिया गया। इससे डाक्टरों के साथ आम लोगों का भी गुस्सा फूट पड़ा।
विचित्र बात यह हुई कि जब ममता बनर्जी को यह लगा कि मामला हाथ से निकल रहा है तो वह खुद भी सड़क पर उतर आईं। इससे उनकी फजीहत ही हुई। फजीहत से बचने के लिए उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखा कि देश में प्रतिदिन 90 दुष्कर्म होते हैं और दुष्कर्म के खिलाफ कठोर कानून बनाया जाना चाहिए। आखिर यह पत्र लिखने के स्थान पर उन्होंने मेडिकल कालेज की घटना पर अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह क्यों नहीं किया?
कोलकाता की घटना के बाद डाक्टरों ने अपने लिए सुरक्षा की जो मांग की, उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। सरकारी हों या निजी अस्पताल, डाक्टरों को आए दिन तीमारदारों के रोष का सामना करना पड़ता है। अस्पतालों में महिला डाक्टरों एवं नर्सों की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा होना बेहद गंभीर मामला है। डाक्टरों की सुरक्षा के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों को पर्याप्त ध्यान देना चाहिए। आरजी कर मेडिकल कालेज में तो तब एक अराजक भीड़ ने हमला किया, जब डाक्टर वहां विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। इसी हमले के कारण सुप्रीम कोर्ट ने यहां केंद्रीय बल तैनात करने के आदेश दिए। यह आदेश ममता सरकार की विफलता का ही परिचायक है।
यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि प्रत्येक राज्य सरकार पुलिस को स्पष्ट निर्देश दे कि वह दुष्कर्म की घटनाओं को गंभीरता से ले और रिपोर्ट दर्ज करने एवं दोषियों को पकड़ने में ढिलाई न बरते। कई बार पुलिस को राजनीतिक दबाव का सामना करना पड़ता है। लगता है कोलकाता में ऐसा ही हुआ। यह चिंताजनक है कि दुष्कर्म विरोधी कानूनों को कठोर किए जाने के बावजूद दुष्कर्म के मामले थम नहीं रहे हैं। इसी कारण विदेशी मीडिया के एक हिस्से ने भारत को रेप कैपिटल करार देने की भी कोशिश की, लेकिन यह भारत के प्रति उसका दुराग्रह ही है, क्योंकि अनेक देशों में भारत के मुकाबले कहीं अधिक दुष्कर्म होते हैं। दुष्कर्म एक सामाजिक बीमारी है। विकृत सोच वाले जो पुरुष महिलाओं को हीन मानते हैं, वही अक्सर दुष्कर्म को अंजाम देते हैं।
कई मामलों में यह भी सामने आया है कि रिश्तेदार, परिचित, दोस्त आदि दुष्कर्म करते हैं। यह मानने के पर्याप्त कारण हैं कि विकृत मानसिकता वाले पुरुषों में कानून और सजा का डर मन से निकल चुका होता है। देश में महिलाओं को कमतर आंकने की प्रवृत्ति अभी भी कायम है। यही प्रवृत्ति महिलाओं की सुरक्षा में आड़े आती है। दुष्कर्म के बढ़ते मामलों को देखते हुए सरकारों के साथ समाज की भी जिम्मेदारी है कि वह बिगड़ी हुई मनोवृत्ति वाले लोगों के प्रति सतर्क रहे और जो तत्व महिलाओं के लिए सुरक्षा के लिए खतरा बनते दिखाई दें, उनके बारे में पुलिस को सूचना दे। ऐसे तत्वों की पहचान होनी ही चाहिए। समाज को महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए भी सक्रिय होना होगा।