हमने भी देखा है जमाना जनसंघ का !

हमने भी देखा है जमाना जनसंघ का

भारतीय जनता पार्टी की तारीफ़ करना पड़ेगी कि इस पार्टी में किसी को आजीवन सदस्य्ता नहीं दी जाती । भाजपा में हर छह साल बाद सदस्यता का नवीनीकरण करना पड़ता है । देश के प्रधानमंत्री बने माननीय श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी भी इसका अपवाद नहीं है । उन्होंने भी पार्टी के सदस्यता अभियान का श्रीगणेश करते हुए अपनी सदस्यता का नवीनीकरण कराया। प्रधानमंत्री जी ने इसी बहाने स्मृतियों को दशकों पीछे ले जाकर जनसंघ के जमाने में खड़ा कर दिया। हाँ पार्टी में प्रधानमंत्री पद पर रहने के लिए कोई विधान नहीं है।

प्रधानमंत्री ने जनसंघ के जमाने का एक किस्सा सुनाया. उन्होंने कहा कि मैं जब राजनीति में नहीं था, उस जनसंघ के जमाने में, हम बड़े उत्साह से जनसंघ के निशान दीपक को पेंट करते थे, तब कई राजनीतिक दलों के नेता हमारा मजाक उड़ाते थे। वो कहा करते थे कि दीवारों पर दीपक पेंट करने से सत्ता के गलियारों तक नहीं पहुंचा जा सकता है। यकीनन ये वो जमाना था जब भाजपा का नाम जनसंघ हुआ करता था। उस समय जनसंघ में मोदी जी जैसे नेता नहीं थे । उस समय श्यामा प्रसाद मुखर्जी,बलराज मधोक और पंडित दीनदयाल उपाध्याय हुआ करते थे। जनसंघ का चुनाव चिन्ह दीपक था। दीपक यानि चिराग । अलादीन के इस चिराग के जरिये जनसंघ ने 1952 में लोकसभा की तीन सीटें जीतीं थी।

जनसंघ मुझसे उम्र में 8 साल बड़ा था ,अर्थात उसका जन्म 1951 में हुआ था । जनसंघ की युवावस्था में ही 24 साल की उम्र में गाथा समाप्त हो गयी। उसका पुनर्जन्म 1980 में भाजपा के रूप में हुआ । भाजपा ने अपना राजनीतिक सफर लोकसभा की 2 सीटें जीतकर 1985 में शुरू किया था । जनसंघ का जमाना कहें या इंदिरा युग ,तब चुनाव में न नेताओं के पास ट्रांसपोंडर था,न मंहगी कारें ,न हेलीकाप्टर और न फ्लैक्स के बड़े=बड़े बैनर। हर पार्टी सस्ते कागज पर छपे हैण्ड बिल्स और टीन पर छपे पार्टी के चुनाव सिंह वाले बिल्ले बांटकर चुनाव प्रचार करती थी।बाद में प्लास्टिक के बिल्ले भी चलन में आये। बच्चे चुनाव प्रचार के लिए आने वाली जीपों के पीछे हुजूम बनाकर दौड़ते और हैंडबिल्स तथा बिल्ले इकठ्ठे करते थे । बच्चों को मतलब नहीं था की बिल्ला किस पार्टी का है। बस एक ही होड़ थी कि किसकी कमीज पर कितने ज्यादा बिल्ले टंगे हुए हैं। हमने भी खूब बिल्ले लुटे और जमा किये।
तब कांग्रेस का नारा होता था -‘ इस दीपक में तेल नहीं ,सरकार बदलना खेल नहीं ‘ और जनसंघ का लोकप्रिय नारा होता था-;’ इंदिरा हटाओ,देश बचाओ । जनसंघ 3 से लेकर 35 सीटों तक पहुंचा ,किन्तु उसके जीवन में इंदिरा नहीं हटीं। वे तब हटीं जब जनसंघ जनता पार्टी में विलीन हो गया ,यानि 1977 मे। जनसंघ जनता पार्टी में ज्यादा दिन नहीं रह पाया। फलस्वरूप ढाई साल में ही जनता पार्टी की सरकार गिर गयी और 6अप्रैल 1980 को जनसंघ भाजपा के रूप में पुनर्जन्म लेकर सामने आया। भाजपा को सत्ता का स्वाद चखने के लिए जनसंघ जैसा इन्तजार नहीं करना पड़ा। जनसंघ तो सत्ता का स्वाद चखे बिना ही कालकलवित हो गया था । भाजपा अपने जन्म के 16 वे साल में 1996 में श्री अटलबिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में सत्ता में आ गयी लेकिन भाजपा को पूरे पांच साल काम करने का मौक़ा केवल एक बार मिला । 2014 में पहली बार भाजपा का और उसके पूर्वज जनसंघ का सपना पूरी तरह साकार हुआ,जब श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई और 2024 में बहुमत से दूर रहकर भी सत्ता में है।

बात जनसंघ के जमाने की और आज के जमाने की है । आज के जमाने की भाजपा कल के जनसंघ के मुकाबले बहुत बदल गयी है । जनसंघ की राजनीति में वो सब कुछ था जो आज की भाजपा में है छोड़ नृशंसता के,अदावत के। जनसंघ के नेताओं ने नेहरू-इंदिरा का जमकर विरोध किया लेकिन कभी किसी से अदावत नहीं पाली। आज भाजपा के पास अदावत के अलावा कुछ बचा ही नहीं है । सत्ता है लेकिन सद्भाव नहीं है । समरसता नहीं है । देश की 20 करोड़ से ज्यादा आबादी को भाजपा भारतीय मानने के लिए तैयार नहीं है।भाजपा का कार्यकर्ता जनसंघ के कार्यकर्ता की तरह जमीन पर नहीं चलता । भाजपा जब से केंद्र और राज्यों की सत्ता में आयी है पार्टी कार्यकर्ताओं का कायाकल्प हो गया है। वे कांग्रेस कार्यकर्ताओं की तरह पंचतारा संस्कृति में जीने के आदी हो गए हैं और इसकी वजह से पार्टी कांग्रेस की ही तरह भ्र्ष्टाचार के दलदल में आकंठ फंस चुकी है।

अच्छी बात ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पार्टी के सदस्यता अभियान को आंकड़ों का खेल नहीं बल्कि यह वैचारिक और भावनात्मक आंदोलन मानते हैं है। वे मानते हैं कि यह सदस्यता अभियान सिर्फ एक रस्म नहीं है, यह हमारे परिवार का विस्तार है, यह संख्याओं का खेल नहीं है। उन्होंने कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम कितने नंबर हासिल करते हैं। यह सदस्यता अभियान देश को मजबूत बनाने और सामर्थ्य बढ़ाने का अभियान है।आपको बता दें कि भाजपा के सदस्यता अभियान का लक्ष्य दस करोड़ सदस्य बनाने का है। पार्टी का विश्वास है कि यह अभियान पिछले सभी रिकार्ड तोड़ेगा।
वैसे 140 करोड़ की आबादी वाले इस देश में ये लक्ष्य कोई बड़ा लक्ष्य नहीं है। हमारी शुभकामनायें हैं कि भाजपा कम से कम 85 करोड़ सदस्य तो बना ही ले,क्योंकि इतने लोग तो पिछले तीन-चार साल से सरकारी रोटी खा ही रहे हैं। भाजपा ने भले ही 25 करोड़ लोगों को गरीबी कि रेखा से बाहर निकलनेका दावा किया है लेकिन इन 85 करोड़ लोगों को जहाँ रखा था ,वहां से आगे नहीं जाने दिया। उनके पास न रोजगार है ,न घर है , न दवा है ,अगर कुछ है तो पांच किलो मुफ्त का अनाज ह

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