मदरसे को बर्बाद होने से बचाइए खान साहब !

मदरसे को बर्बाद होने से बचाइए खान साहब

पिछली 28 अगस्त को पुलिस ने प्रयागराज के अतरसुइया स्थित जामिया हबीबिया मस्जिद के आजम मदरसा में छप रहे नकली नोट का भंडाफोड़ करते हुए चार अभियुक्तों को गिरफ्तार किया है। इनके कब्जे से एक लाख की नकली नोट और छपाई में इस्तेमाल होने वाले उपकरण बरामद किए गए थे। मदरसे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को आतंकी बताने वाली किताब मिली है। किताब के लेखक महाराष्ट्र के पूर्व आईजी एसएम मुसरिफ हैं। वह मुंबई बम धमाके पर भी किताब लिख चुके हैं। पाकिस्तान के अखबार डॉन में भी उनका लेख प्रकाशित होता है। मदरसे में इस किताब के मिलने से सुरक्षा एजेंसियां चौकन्नी हो गई हैं।
अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा चलाये जा रहे असंख्य मदरसे लम्बे समय से सरकारों के निशाने पर है । सरकार के पास इस बात की इत्तला है कि देश भर के अधिकांश मदरसों में बच्चों को शिक्षा की आड़ में देश विरोधी गतिविधियों का प्रशिक्षण दिया जाता है। मुझे यद् है कि बचपन में हमारे सहपाठी इशाक के वालिदैन हमारे स्कूल को मदरसा ही कहते थे । वे अपने घर में उर्दू की कोचिंग चलाते थे , उसे भी मुहल्ले के लोग मदरसा ही कहते थे ।उर्दू का अलिफ़ वे मैंने यहीं सीखा था ,लेकिन आज भूल चूका हूँ

कहने को मदरसा अरबी भाषा का शब्द है लेकिन मुझे इसमें अंग्रेजी की प्रतिध्वनि सुनाई देती थी।केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय के अनुसार 2019 तक भारत में कुल 24,010 मदरसे पंजीकृत थे। मदरसे भारत में आज या कल में नहीं खुले,ये मुगलों के समय भी थे और अंग्रेजों के समय भी और आज भी हैं, लेकिन आज मदरसों की छवि एकदम बदल गयी है । ये मदसरे मजहबी शिक्षा के साथ ही आधुनिक शिक्षा भी देते हैं ,लेकिन हमारी डबल इंजिन की सरकारों ने इन मदरसों को आतंकवाद की प्रशिक्षण शाला मान लिया है। मदरसों पर छापों के दौरान अनेक मौकों पर ऐसे प्रमाण भी मिलते रहे हैं जिससे लगता है कि सरकार सही कहती है। सरकार को गलत साबित करने का जिम्मा मुस्लिम समाज का है। मौलवियों का है। यदि वे ऐसा करने में नाकाम रहते हैं तो वो दिन दूर नहीं जब अधिकाँश मदरसों पर ताले लटका दिए जायेंगे।
प्रयागराज के मदरसे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को आतंकी बताने वाली किताब मिली है। किताब के लेखक महाराष्ट्र के पूर्व आईजी एसएम मुसरिफ हैं। वह मुंबई बम धमाके पर भी किताब लिख चुके हैं। पाकिस्तान के अखबार डॉन में भी उनका लेख प्रकाशित होता है।ये कोई हैरानी की बात नहीं है ,क्योंकि अभी तक भारत में ये किताब प्रतिबंधित किताबों की फेहरिश्त में शामिल नहीं है।आपत्तिजनक बात है मदरसे में नकली नोटों का छपना । ये सचमुच अप्पत्तिजनक बात है । ये देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर करने वाला कृत्य है। इसे लेकर पुलिस की कार्रवाई पर फिलहाल कोई सवाल कहे नहीं किये जा सकते।

जिस उत्तर प्रदेश के मदरसे में नकली नोट छापने का कारखाना मिला है उसी उत्तरप्रदेश में उत्तर प्रदेश में 7500 से अधिक इस्लामिक मदरसे ऐसे हैं, जो सरकार से मान्यता प्राप्त नहीं है। इन मदरसों में दारुल उलूम देवबंद और मजाहिर उलूम जैसे विश्वविख्यात संस्थान भी शामिल हैं, जो सरकार से कोई सहायता नहीं लेते और न ही वे किसी भी मदरसा बोर्ड से संबंधित हैं। इसके अतिरिक्त 16513 मदरसे उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड में पंजीकृत हैं। 2017 में जबसे सूबे में भाजपा की सरकार बनी है तभी से सूबे के मदरसे सरकार के निशाने पर हैं। उत्तरप्रदेश में ही नहीं पूरे देश में जहां-जहां भाजपा की भाजपा के समर्थन से चलने वाली सरकारें हैं वहां मदरसों को कुचलने की एक फुलप्रूफ नीति बनाई गयी है।
सवाल ये है कि मुस्लिमों ने मदरसों को नफरत के एजेंडे से क्यों जोड़ा ? क्या ये भाजपा द्वारा दर्शाई जा रही मुस्लिम विरोधी नफरत का जबाब है ? भाजपा मदरसों को आतंकवादी अड्डा बताती है तो मुस्लिम लेखक आरएसएस को आतंकवादी संगठन मानते हैं। नफरत की काट नफरत से करने की कोशिश को मै न उचित मानता हूँ और न उसका समर्थन करता हूँ। इस समय देश में मुसलमानों की जो पीढ़ी रह रही है वो किसी दूसरे देश से नहीं आयी । इसी सरजमीं पर पैदा हुई है ,इसलिए इस नई पीढ़ी की जबाबदेही है कि वो सियासत में मुसलमानों को खलनायक बताने के अभियान का मुंहतोड़ जबाब खुद को आरएसएस से बड़ा राष्ट्रप्रेमी बनकर बताये । अपने आचरण से ये प्रमाणित करे कि भारत के मुसलमान किसी दूसरे देश के प्रति नहीं बल्कि अपने मादरे वतन के प्रति समर्पित हैं।
भारत में मुसलमानों की स्थिति दलितों और महादलितों जैसी ही है । आजादी के बाद 77 साल में इस समाज को जहाँ होना चाहिए था वहां नहीं ह। यहां भी आरक्षण का लाभ लेने वाले एक बार आरक्षण पाने के बाद दूसरों को आगे नहीं आने दे रहे । मै अपने ही सूबे के अनेक ऐसे मुस्लिम आईपीएस और आईपीएस को जानता हूँ जो मुसलमानों को संरक्षण तो देते हैं लेकिन अपनी बराबरी पर लाने की कोशिश नहीं करते। उनके दिमाग भी पिछले 77 साल में साफ़ नहीं हुए। भारतीय प्रशासनिक सेवा के मुस्लिम अधिकारी कभी अपनी बिरादरी के लिए ऐसे मदरसे नहीं खोलते जहां मुस्लिम युवाओं को देश की प्रमुख प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल करने के लिए तैयार किया जा सके। इन महापुरुषों की प्रगतिशीलता और धर्मनिरपेक्षता भी हमेशा संदेह के घेरे में रहती है।

मजहबी शिक्षा के साथ आधुनिक शिक्षा के लिए जैसे दूसरे मजहबों को शैक्षणिक संस्थान चलाने की आजादी है ,वैसी ही आजादी मदरसों को भी मिले तो क्या हर्ज है ,लेकिन यदि खुद सरकारें साम्प्रदायिक नजरिये से इन मदरसों को निशाना बनाएंगी तो ये मदरसे जैसे आज हैं वैसे ही कल भी बने रहेंगे। जरूरत इस बात की है कि सरकारें अपना नजरिया बदलने और मदरसे चलाने वाले अपना नजरिया। मदरसों की शुचिता की गारंटी दिए बिना बात बनने वाली नहीं है। यदि प्रयागराज में किसी मदरसे में नकली नोट छापने का कारखाना मिला है तो मुस्लिम समाज के जिम्मेदार लोग इसके लिए माफ़ी मांगें और सुनिश्चित करें कि भविष्य में इस तरह की गतिविधियों के लिए मदरसों में कोई जगह नहीं होगी। मुशर्रफ साहब की किताब का मदरसे में मिलना कोई अपराध मुझे नजर नहीं आता।

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