ग्वालियर : अस्थायी परमिट देना नियम बन गया, इससे पूरे सिस्टम में भ्रष्टाचार की बू आ रही ?

हाई कोर्ट ने कहा-:अस्थायी परमिट देना नियम बन गया, इससे पूरे सिस्टम में भ्रष्टाचार की बू आ रही

बस ऑपरेटरों को अस्थायी परमिट देने में मनमाना रवैया अपनाने पर हाई कोर्ट ने स्टेट ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी (एसटीए) को खरी-खरी सुनाई है। जस्टिस आनंद पाठक ने कहा- मोटरयान अधिनियम के सेक्शन 87 में स्पष्ट किया है कि आरटीओ और एसटीए अधिकतम 4 माह के लिए अस्थायी परमिट दे सकते हैं।

ये मैकेनिज्म इसलिए बनाया ताकि त्योहार व मेले में यात्रियों की भीड़ को देखते हुए उन रूटों पर बसों का परिवहन किया जा सके। अभी लग रहा है अस्थायी परमिट नियम बन गया है। पूरे सिस्टम में भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार की बदबू आ रही है। राज्य सरकार तत्काल मामले को देखे। चंद्रदीप कुमार वैश्य ने एसटीए के 17 जुलाई 2024 को दिए गए निर्णय को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की।

इसमें बताया कि मृगेंद्र मिश्रा को अंबिकापुर (छग) से बैंठन (मप्र) तक बस चलाने के लिए अस्थायी परमिट दिया गया। जिस समय आवेदन दिया, उस समय मृगेंद्र मिश्रा ने बकाया राशि जमा नहीं की थी। इसके बाद भी उसे 175 किमी लंबे रूट पर अस्थायी परमिट दिया गया। हाई कोर्ट ने उनके तर्क को स्वीकार करते हुए एसटीए द्वारा जारी अस्थायी परमिट को निरस्त कर दिया।

कभी त्योहार का महत्व होता है, कभी नहीं: इस मामले की सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों की ओर से जो तथ्य बताए गए, उस पर जस्टिस पाठक ने कहा – कोर्ट कुछ साल से यह देख रही है कि प्रमुख सचिव परिवहन और एसटीए ने एक ऐसा मेकेनिज्म तैयार किया है। जिसमें स्थायी की जगह अस्थायी परमिट दिया जा रहा है। कभी त्योहार महत्वपूर्ण हो जाते हैं और उनके आधार पर अस्थायी परमिट जारी किया जाता है। कभी त्योहार महत्वपूर्ण नहीं होते और अस्थायी परमिट के आवेदन को खारिज कर दिया जाता है।

सचिव एसटीए से भविष्य में सचेत रहने की अपेक्षा: हाई कोर्ट ने एसटीए, सचिव एचके सिंह से भविष्य में सचेत रहने की अपेक्षा की। इसके साथ ही आदेश की कॉपी मप्र के मुख्य सचिव और परिवहन विभाग के प्रमुख सचिव को भेजने के लिए कहा है, ताकि आदेश का पालन किया जा सके। मामले की अगली सुनवाई नवंबर माह में होगी।

यात्रियों की पीड़ा पर कोर्ट चिंतित… स्थायी परमिट देने की सलाह आदेश में कोर्ट ने कहा- मप्र राज्य सड़क परिवहन निगम भंग हो चुका है। अब यात्री या तो अनुबंधित या फिर निजी ट्रांसपोर्टर्स की दया पर हैं। मप्र बड़े भू-भाग वाला राज्य है, जहां दुर्गम क्षेत्र भी हैं। नियमित ट्रांसपोर्ट सेवा के अभाव में बुजुर्ग, महिला व अन्य लोग काफी परेशानियां झेलते हैं। ऐसे में अनिवार्य रूप से नियमित-स्थायी परमिट प्रदान किए जाएं ताकि आमजन एक से दूसरे स्थान पर आ-जा सकें।

मुख्य सचिव-प्रमुख सचिव भ्रष्टाचार को पोषित करने वालों को देखें कोर्ट ने कहा- ये प्रमुख सचिव और मुख्य सचिव की जिम्मेदारी है कि वे सिस्टम में व्याप्त मनमानी और विसंगतियों को देखें, जो भ्रष्टाचार को पोषित कर रही हैं।

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