सेना को युद्ध के लिए तैयार रहने वाला राजनाथ का बयान !

सेना को युद्ध के लिए तैयार रहने वाला राजनाथ का बयान, विदेश मंत्री का चीन को समस्या बताना, गहरे हैं मायने

भारत के पड़ोसी देशों के साथ वर्तमान में रिश्ते तनावपूर्ण बने हुए हैं, इसी बीच हाल में ही चीन को लेकर भारत के विदेश मंत्री ने कहा था कि पूरे विश्व के लिए चीन एक खास समस्या है. उसके बाद भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का एक बयान आया कि सेना को युद्ध के लिए तैयार रहने की जरूरत है, हालांकि इस दौरान उन्होंने किसी भी देश का नाम नहीं लिया. उसके बाद विदेश मंत्री एस. जयशंकर के खिलाफ चीन के सरकारी भोंपू ग्लोबल टाइम्स में व्यक्तिगत टिप्पणी की और बाद में उसे हटा लिया.  

भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर के दिए बयान के अलग मायने थे. उनका बयान भारत-चीन के रिश्तों में आयी कड़वाहट को लेकर था. चीन जिस तरह की विस्तारवादी सोच रखता है, ये सिर्फ भारत के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक बड़ी समस्या है. इसी बात को वो अपने बयान के जरिये हाइलाइट करने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन राजनाथ सिंह का बयान रक्षा मंत्री के नाते था. 

बयान के मायने 

राजनाथ के बयान को एस. जयशंकर के बयान से जोड़कर देखना गलत होगा. किसी भी देश के लिए कई तरह की रक्षा चुनौतियां होती हैं. उसके ऊपर सरकार के साथ वहां की सेना को भी ध्यान रखना होता है. भविष्य के खतरे को ध्यान में रखकर अक्सर आत्मसात करते हुए खुद को तैयार रहना ज्यादा जरूरी होता है. 
कई बार दुनिया के हालात इतनी तेजी के साथ बदलते हैं कि समझ से बाहर हो जाता है. उदाहरण के तौर पर, हाल में बांग्लादेश की घटना को देखा जा सकता है. यहां पर महज एक सप्ताह के अंदर ही हालात इतने तेजी से बदल गए कि तख्तापलट तक हो गया. 

दुनिया के कई देशों में अचानक से गतिविधियां होने लगती है, जो बाद में युद्ध जैसे हालात बना देती है. ऐसे ही हालात को ध्यान में रखकर रक्षा मंत्री ने ये बयान दिया कि सेना को हमेशा तैयार रहना होगा, क्योंकि विश्व के हालात और स्थिति को ध्यान में रखकर हमेशा सक्रिय रहने की जरूरत है. कई बार वार्निंग का मौका नहीं रहता है, ऐसे हालात हो जाते हैं कि सीधा युद्ध हो जाता हैं. इसलिए, सेना को हमेशा तैयार रहना चाहिए. उस समय ये नहीं कहा जा सकता कि सेना युद्ध के लिए तैयार नहीं थी. इसलिए इस तरह की तैयारी होनी चाहिए कि किसी भी परिस्थिति के लिए तैयार रहें. रक्षा मंत्री राजनाथ सिहं के बयान के यही मायने थे. 

देश के चारों तरफ हलचल

केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि अगर कोई नक्शा या जमीन पर निशान लगा देता है तो वो जमीन उसका नहीं हो जाता है. विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री और फिर अल्पसंख्यक मंत्री यानी की तीन केंद्रीय मंत्री के बयान आने के बाद ये साफतौर पर स्पष्ट कहा जा सकता है कि सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. भारत -पाकिस्तान के बीच बीते 70 सालों से रिश्ते तनावपूर्ण ही रहे हैं, हाल के दिनों में और भी ज्यादा तनावपूर्ण हो गए है. 

बीते एक महीने से बांग्लादेश के हालात भी देखे जा सकते हैं. हाल में नेपाल-मालदीव दोनों जगहों पर सत्ता परिवर्तन हुआ. श्रीलंका में चुनाव होने वाले हैं. भारत के आस-पड़ोस में उथल-पुथल मचा है. चीन की एशिया में दादागिरी जारी है. किसी ना किसी तरह से दूसरे देशों में चीन का हस्तक्षेप जरूर रहता है. 

किरेन रिजिजू ने चीन को लेकर जो कुछ बयान दिया है वो भी सही है. उन्होंने कहा है कि अगर कोई जमीन या फिर नक्शे पर चिन्ह करके अपना बताकर दावा पेश करता है तो उससे जमीनी हकीकत नहीं बदल जाती है. कई बार ऐसे बयान मीडिया के सवालों पर दिए जाते हैं, लेकिन बाद में उसको दूसरे एंगल से देखा जाता है. इसमें ये भी देखा जाना चाहिए कि क्या उन्होंने ने किसी प्रश्न के उतर दिया था, या फिर ये बयान उन्होंने खुद से दिया है.  अगर सेना के अध्यक्ष से कोई सवाल पूछता है तो यही बताएंगे कि वो दुश्मन देश के दांत खट्टे कर देंगे. ऐसे में सिर्फ जवाब को सुर्खियां बनाई जाए तो ये ठीक नहीं है

ग्लोबल टाइम्स में क्यों लेख? 

दरअसल, ग्लोबल टाइम्स ने एस. जयशंकर के बारे में पूर्व पीएम नेहरू और इंदिरा गांधी से तुलना करते हुए एक रिपोर्ट प्रकाशित किया था, बाद में उसको हटा दिया गया. भारत और चीन के रिश्ते बिल्कुल ही ठीक नहीं है, ये सच बात है. भारत और चीन दोनों ही देश युद्ध नहीं चाहते, लेकिन दोनों के अपने मुद्दे हैं. दोनों देश अपने मुद्दों के लेकर अडिग है.  इसी के कारण रिश्तों में कड़वाहट है. पिछले कुछ सालों में रिश्तों में कड़वाहट आई है. भारत के विदेश मंत्री कई बार ऐसी बातें बोल जाते हैं, जो संभवत: चीन के लिए भारत की ओर से नहीं बोली जाती है. भारत की ओर से चीन को लेकर पहले जो एक संकोच था, अब वो खत्म सा हो गया है. अब भारत खुले तौर पर ये बात करता है कि चीन उसकी समस्या है. 

शायद चीन की ओर से ये सोचा गया होगा कि जयशंकर चीन को लेकर खूब बोलते हैं, इसलिए कोई आर्टिकल उनके लिए छपवाया जाए, उनको चुप कराने की कोशिश की जाए. हालांकि, ग्लोबल टाइम्स अंग्रेजी में छपता है, विश्व के ज्यादातर लोग इसको पढ़ते हैं. जब ये आर्टिकल आयी, तो कई लोगों ने पढ़ा. उसके बाद कुछ लोग स्क्रीनशॉट ले लिए, लेकिन जब उस पर बात उठने लगी तो फिर वो डिलीट कर दिया गया. इससे 2 संदेश चीन ने भारत को भी दिया है.

 चीन ने एक तो जयशंकर को कम बोलने की सलाह दी है, उसके साथ ही, डिलिट कर ये साफ कर दिया की चीन रिश्तों को खराब नहीं करना चाहता. इस तरह से दोनों देश रिश्तों को लेकर कहीं न कहीं चिंतित भी हैं.  

कूटनीति से निकलेगा हल 

2020 में गलवन घाटी में झड़प हुई थी, उसके बाद कई दौर का बैठक हुआ. खुद पीएम मोदी और चीन राष्ट्रपति की मुलाकात हुई. उसके बाद दोनों देश की ओर से बयानबाजी जारी है. इसलिए ये कहा जा सकता है कि दोनों देशों के हालात कुछ ठीक नहीं है, और आने वाला समय भी कुछ खास ठीक नहीं होगा. दोनों देशों की ओर से जहर उगला जा रहा है, हालांकि इससे दोनों देशों को संदेश भी दिया जा रहा है कि वो अपने मामलों में किसी तरह से पीछे नहीं हटेंगे. दोनों देश आंख में आंख डालकर काम कर रहे हैं.  भारत और चीन के हालात अभी जिस प्रकार से तनाव पूर्ण दिख रहे हैं, ये पहली बार नहीं हुआ है, बल्कि इससे पहले कई बार हो चुका है जो कई सालों तक चला है. अब हाल में लद्दाख में जमीन के मामलों पर कुछ दिक्कतें आ रही है. 

बावजूद इन सब के भारत और चीन ने वार्ता का दौर नहीं बंद किया.देखा जाए तो भारत और चीन के बीच रिश्ते इस कदर भी खराब नहीं होने चाहिए की वो युद्ध की ओर चला जाए. अगर युद्ध होता है तो निश्चित रूप से दोनों देशों को नुकसान  होगा. वर्तमान में भारत विकास की बात कर रहा है, इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के साथ लोगों को समृद्ध करने की बात कर रहा है. ऐसे में भारत युद्ध की ओर जाता है तो फिर नुकसान ज्यादा होगा. विकसित राष्ट्र की परिकल्पना धराशायी हो जाएगी. इससे सारे फंड रक्षा की ओर चले जाएंगे. इससे बचने के लिए राजनीति और कूटनीति की ओर जाना होगा. इसके जरिये ही इस मुद्दे को हल किया जा सकता है.

भारत हाल में कूटनीतिक पर ही काम कर रहा है. जब दो देशों के बीच में जमीन की विवाद होती है, तो वो जल्दी नहीं सुलझती है. मामले को सुलझाने के लिए पीएम मोदी ने भी पहल किया, लेकिन उसका कोई ठोस हल नहीं हो पाया. इसलिए भारत अपनी रक्षा तंत्र और कूटनीतिक पावर बढ़ाना होगा ताकि चीन उलझने से परहेज करें.

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