वक्फ़ बोर्ड में संशोधन के लिए धर्मगुरुओं से वार्ता करते किरेन रिजिजू !
वक्फ बोर्ड में संशोधन है अनिवार्य, संविधान के समानांतर नहीं चल सकती देश में कोई भी संस्था
कारण ये है कि मौजूदा माहौल में भारत में वक्फ को एकदम से भंग कर देना संभव नहीं हो पाएगा, क्योंकि जिस तरह से हर एक अध्यादेश के खिलाफ दंगों वाला माहौल बनाए जाने की परंपरा चालू जो गई है, उसके इस बार और घातक रूप लेने की संभावना है. आगे कुछ ऐसे बिंदुओं पर चर्चा होनी चाहिए, जो इस अधिनियम के हिसाब से बेहद जरूरी हैं.
शिकायत के लिए बने कोई व्यवस्था
पहला, एक ऑनलाइन पोर्टल बनाइए जहां वक्फ संबंधी शिकायत दर्ज कराई जा सके. मान लीजिए, मैं एक सामन्य व्यक्ति हूं और मेरी जमीन पर वक्फ बोर्ड ने अपना दावा ठोक दिया, मैं कहां जाऊँगा? व्यक्ति रोजी-रोजगार देखेगा कि इस तरह के पचड़े में फंसेगा? वक्फ की संवैधानिक मान्यता है, डीएम-एसपी के सामने तो सुनवाई होने से रही, सीधा उच्च न्यायालय जाना होगा. हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट में कितने आम आदमी जाते हैं और उनके वकीलों की क्या फीस है, ये किसी से छिपा नहीं है. अतः एक पोर्टल बनाया जाए जहां लोग सीधे शिकायत दर्ज करा सकें और संबंधित विभाग उसका निपटारा कर सके. ऐसा पोर्टल जहां कोई भी व्यक्ति या संस्था वक्फ के कब्जे के खिलाफ अपनी शिकायत दर्ज करा सके.
दूसरा, अतिक्रमण के कारण डेमोग्राफिक असंतुलन पैदा होता है. इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए. शिमला और फिर मंडी में अवैध मस्जिदों के खिलाफ हुए आंदोलनों ने बता दिया है कि कैसे जब एक खास समुदाय के लोग कहीं आकर बसते हैं तो उनके साथ आता है अवैध अतिक्रमण. ये मजार, दरगाह, मस्जिद या मदरसा के रूप में हो सकता है. झारखंड में जनजातीय समाज की जमीनें इन्हीं लोगों के पास जा रही हैं. हिमाचल प्रदेश में हमने उन महिलाओं को सुना, जिन्होंने बताया कि वो डेमोग्राफी बदलने से असुरक्षित महसूस कर रही हैं. भारत की सीमाओं पर डेमोग्राफी बदले जाने का खामियाजा हमें भुगतना पड़ रहा है. इस कारण BSF का अधिकार-क्षेत्र बढ़ाना पड़ा.
कई जगहों पर वक्फ का दावा
तीसरा, एकाध विशेष मामले हैं जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है. इनमें से एक केस के बारे में तो सब लोग जानते हैं. तमिलनाडु के तिरुचिपल्ली स्थित तिरुचेंथुरई नामक गांव में 1500 वर्ष पुराने चंद्रशेखर स्वामी मंदिर पर वक्फ बोर्ड ने दावा ठोक दिया. वक्फ बोर्ड जिस मजहब से जुड़ा है, उसकी स्थापना ही यही कोई 1400 वर्ष पूर्व हुई है. यानी, ये मंदिर उससे भी 100 वर्ष पुराना है. कई पीढ़ियों से हिन्दू यहां रह रहे हैं, अचानक से इस मामले का खुलासा होने से वो डरे हुए हैं. दूसरा, बिहार के पटना के फतुहा में देख लीजिए. वक्फ बोर्ड ने गांव पर दावा ठोक दिया. JPC के सदस्य और पश्चिम चंपारण से सांसद संजय जायसवाल यहां पहुंचे और उन्होंने मामले को सही पाया.
चौथा, वक्फ बोर्ड में प्रतिनिधित्व में विविधता लानी होगी. देश भर में 32 वक्फ बोर्ड हैं, जिनका प्रबंधन करीब 200 लोगों के हाथों में है. आजकल जब विपक्ष ने जाति और आरक्षण वाली राजनीति शुरू कर दी है, तो यहां भी उसी अनुपात में प्रतिनिधत्व हो. वक्फ बोर्डों में महिलाओं, पसमांदा व दाउदी बोहरा मुस्लिमों, OBC, दलितों और जनजातीय समाज को प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए. कम से कम आधी सीटें तो इनके लिए रिजर्व हों. ये केवल एक मजहब का नहीं बल्कि देश का मसला बन गया है, क्योंकि जिनकी जमीनों पर दावा ठोका जाता है उनमें कई गैर-मुस्लिम, गैर-हिन्दू भी हैं, कई सरकारी जमीनें भी हैं. इसीलिए, पिछड़ों और महिलाओं को बोर्ड में स्थान देना आवश्यक है.
पहले सनातन फिर वक्फ का अधिकार कैसे
पांचवां, JPC इस पर भी विचार करें कि जिस भूमि पर वेद लिखे गए थे कभी, क्या कोई विदेशी मजहब से प्रेरित संस्था उस पर दावा ठोक सकती है? पवित्र भारत भूमि के जिन जंगलों में हमारे ऋषि-मुनियों ने आश्रम बनाए, जिन दुर्गम पहाड़ों पर तपस्या की और जिन नदियों के किनारे शास्त्रों को रचा – उन पर अरब की विचारधारा का प्रभुत्व कैसे हो सकता है? ये बताने का कारण ये है कि वक्फ बोर्ड कहता है कि वो अल्लाह के नाम पर लिखी गई जमीनों का प्रबंधन करता है. फिर इस्लाम के उद्भव से पूर्व जो सनातन धर्म की थी, वो इनकी कैसे हो गई? कल को लोग चीन और पाकिस्तान के नाम पर जमीनें लिख दें तो ये उनकी हो जाएगी?
छठा, वक्फ बोर्ड के सामानांतर केंद्रीय स्तर पर एक हिन्दू बोर्ड की स्थापना की जाए. कम से कम हिन्दुओं को पता तो हो कि कोई मजहब के नाम पर उनकी जमीनें हड़प लेता है तो उन्हें मदद के लिए कहां जाना है. केंद्रीय स्तर पर सभी बड़े मंदिरों के प्रबंधन एवं संचालन का कार्य यही संस्था देखें. मंदिरों का पैसा हिन्दू हित में ही खर्च किया जाए. गांवों में स्थित छोटे-छोटे मंदिरों के लिए भी समितियां बनाई जाएं. मंदिर मजबूत होंगे तो सभ्यता मजबूत होगी, विदेशी इरादे स्वतः ही कमजोर होंगे. इन मंदिरों में जहां भी मरम्मत की ज़रूरत हो, वहां काम किया जाए.
सातवां, पिछले बिंदु को ही आगे बढ़ाते हुए मेरी ये मांग है कि वक्फ की तर्ज पर राज्य स्तर पर भी हिन्दू कमिटियां बनाई जाएं जिन्हें संवैधानिक दर्जा हो. इस कमिटी में प्रमुख हिन्दू संगठनों के पदाधिकारियों, हिन्दू कार्यकर्ताओं और हिन्दू समाज के प्रबुद्ध लोगों के अलावा पुजारियों को शामिल किया जाए. ये स्थानीय स्तर पर हिन्दुओं को कानूनी मदद व अन्य प्रकार की सहायता उपलब्ध कराएं.
पश्चिम बंगाल के हालात पर हो विशेष नजर
आठवां, पश्चिम बंगाल में जिस तरह की अराजकता है, इसे एक अलग केस मान कर चला जाए. JPC को पश्चिम बंगाल में वक्फ से जुड़े विवादों के निपटारे के लिए एक अलग समिति बनाने की सलाह देनी चाहिए और उसे विशेष अधिकार देने चाहिए. पश्चिम बंगाल की एक तिहाई जनसंख्या मुस्लिमों की होने की बात बताई जाती है, जिनमें बहुतेरे बांग्लादेशी घुसपैठिए भी हैं. वहां चुनावी हिंसा आम बात है. चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठते हैं. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पुलिस किसी को भी नोटिस भेज देती है. हमने चोपरा में शरिया अदालत देखा जहां महिलाओं को बांध कर पीटा जा रहा था.
इस करतूत को अंजाम देने वाले ताजेमुल का बचाव करते हुए सत्ताधारी दल के विधायक हमीदुल रहमान ने पश्चिम बंगाल को ‘मुस्लिम राष्ट्र’ बताया. हमने संदेशखली में शाहजहां शेख और उसके गुर्गों द्वारा ED अधिकारियों की पिटाई से लेकर जनजातीय महिलाओं के यौन शोषण की खबरें पढ़ीं. वहां की सत्ता मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति पर चलती है, इसीलिए वहां वक्फ से जुड़े विवादों के निपटारे के लिए केंद्र सरकार एक अलग निष्पक्ष समिति बनाए.
तीर्थ स्थलों पर कैसे वक्फ़ का अधिकार
नौवां, यूं तो पूरे भारत को ही हमारे पुराणों में पुण्य भूमि कहा गया है, लेकिन कुछ विशेष स्थल ऐसे हैं जहां विदेशी मजहब की संरचनाओं की अनुमति नहीं होनी चाहिए. भविष्य में हिंसा रोकने के लिए ये आवश्यक है. हरिद्वार, उज्जैन और अयोध्या जैसे तीर्थ स्थलों को ले लीजिए. एक विशेष परिधि के भीतर कोई भी गैर-सनातनी (हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिख के अलावा) संरचना न हो. ये मांग थोड़ी कट्टर लग सकती है, लेकिन हमारे पास उदाहरण हैं. गुजरात का पालीताना विश्व का एकमात्र शाकाहारी शहर है, जैन समाज का विशाल तीर्थस्थल है ये. झारखंड में पारसनाथ पहाड़ी को पर्यटन स्थल बनाने के विरोध में देश भर में जैन समाज सड़क पर उतरा और उसने इस फैसले को रुकवाया. हिन्दू तीर्थ स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ये ज़रूरी है.
दसवां और अंतिम, JPC को केवल वर्तमान और भूत नहीं, बल्कि भविष्य भी देखना चाहिए. संसदीय समिति इस पर विचार करे कि अगर कल को राष्ट्रपति भवन या संसद भवन पर वक्फ दावा कर दे तब क्या होगा? विदेशी मीडिया चलाने लगेगा कि अल्पसंख्यकों की जमीन पर भारत सरकार ने कब्ज़ा कर लिया. सिस्टम तो उनका ही है न आज भी. काशी के ज्ञानवापी और मथुरा के शाही ईदगाह को लेकर भी उनके विचार बदलेंगे या नहीं, ये पूछा जाए. अगर नहीं, फिर वक्फ को भंग करने की मांग करने वाले भी गलत नहीं हैं.