हिंडन-यमुना का पानी बुरी तरह प्रदूषित ?
विश्व नदी दिवस: गौतमबुद्धनगर में दो नदियां, एक से भी पानी नसीब नहीं; हैरान कर देगी रिपोर्ट में सामने आई हकीकत
पर्यावरण कार्यकर्ता अभिष्ट कुसुम गुप्ता का कहना है कि यह नोएडा के लिए दुर्भाग्य ही है कि शहर दो नदियों के बीच में मौजूद है। इसके बाद भी इन नदियों से हम पानी तक अपने उपयोग के लिए नहीं ले सकते हैं। दोनों ही नदियां बुरी तरह प्रदूषित हैं।
गौतमबुद्धनगर से दो नदियां गुजरती हैं हिंडन और यमुना। दोनों ही नदियां इस कदर प्रदूषित हो चुकी हैं कि इनके पानी का उपयोग ट्रीटमेंट के बाद भी नहाने या अन्य उपयोग में नहीं किया जा सकता है। प्रदूषण के कारण ही शायद दो नदियां होने के बावजूद जलापूर्ति के लिए नोएडा प्राधिकरण इनसे पानी नहीं लेता है।
यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक हिंडन नदी के डाउनस्ट्रीम में टोटल कोलीफार्म की मात्रा 28 लाख एमपीएन प्रति 100 मिली रिकॉर्ड हुई है। जबकि, मानकों के मुताबिक मौजूदा तरीकों से ट्रीटमेंट कर नहाने व अन्य कामों में उपयोग के लिए अधिकतम अनुमन्य सीमा 5,000 एमपीएन प्रति 100 मिली होती है। यह सीधे तौर पर 560 गुना अधिक प्रदूषण की मात्रा है। इसके अलावा बायो ऑक्सीजन मांग भी 18 मिग्रा प्रति लीटर पाई गई जोकि 3 मिग्रा प्रति लीटर या कम होनी चाहिए। सीधे तौर पर कहे तो जलीय जीवन के लिए जरूरी ऑक्सीजन भी पानी में मौजूद नहीं है।
पर्यावरण कार्यकर्ता अभिष्ट कुसुम गुप्ता का कहना है कि यह नोएडा के लिए दुर्भाग्य ही है कि शहर दो नदियों के बीच में मौजूद है। इसके बाद भी इन नदियों से हम पानी तक अपने उपयोग के लिए नहीं ले सकते हैं। दोनों ही नदियां बुरी तरह प्रदूषित हैं। इन नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिए कोई काम नहीं होता। हिंडन रिवरफ्रंट डेवलपमेंट के लिए एनजीटी के आदेश के बाद अब जरूरी कवायद शुरू हुई है।
कभी आज के अट्टा मार्केट और सेक्टर-18 तक यमुना नदी का तट था। यहां तक आने के लिए लोग नाव का सहारा लेते थे, लेकिन यमुना-हिंडन दोआब में बसे नोएडा शहर के विकास ने नदियों को पीछे धकेलने का काम किया। शहर के अंधाधुंध विकास की दौड़ में नदियों के डूब क्षेत्र तक कब्जा कर लिया गया। आलम यह है कि हिंडन नदी में कुछ मकान बने हुए हैं।
मास्टर प्लान के तुलनात्मक अध्ययन में यह बातें सामने आई थीं कि अगर सामान्य से अधिक बारिश होगी तो नोएडा के कई इलाके डूब जाएंगे। इसके अलावा दोआब की जमीन बड़ी इमारतों के लिए काफी खतरनाक साबित होती है। इसके किनारों पर बनी इमारतें नीचे से पानी का दबाव झेलती हैं जो भूकंप के दौरान झटका सह नहीं पातीं। दिल्ली के ललिता पार्क में इमारत धंसने का करीब 12 साल पहले का हादसा इस बात का गवाह है। भविष्यवाणी तो यहां तक की गई है कि अगर भविष्य में नदियों ने अपना पुराना रूप धारण किया तो लोगों की जान खतरे में होगी।