आखिर कितनी हैं शक्तिपीठ?
18, 51, 52, 72 या 108, आखिर कितनी हैं शक्तिपीठ?
शक्तिपीठों की संख्या को लेकर विद्वानों में अक्सर मतभेद होता है. हमारे पौराणिक और उत्तर पौराणिक ग्रंथ भी इनकी संख्या को लेकर एकराय नहीं है. ऐसे में कभी 18 तो कभी 51-52 या 72 शक्तिपीठ बताए जाते हैं. यहां हम जानने की कोशिश करेंगे कि ये शक्तिपीठ कहां हैं.
यह तो सबको पता है कि माता सती के अंग जहां जहां गिरे, वहां शक्तिपीठ बन गए. यह सभी शक्तिपीठ आज भी जीवंत माने जाते हैं. यह शक्तिपीठ कितने हैं और कहां कहां हैं, इसको लेकर अक्सर सवाल पूछा जाता है. वहीं इस सवाल के जवाब में अलग अलग ग्रंथों में जवाब भी अलग अलग मिलते हैं. देवी पुराण के मुताबिक माता के 51 अंग धरती पर गिरे थे. इस लिए शक्तिपीठों की संख्या भी 51 है. वहीं देवी पुराण में 108 शक्ति पीठ बताए गए हैं. इसी प्रकार देवी गीता में 72 और तंत्र चूड़ामणि में 52 शक्तिपीठों के नाम दिए गए हैं.
इन ग्रंथों से अलग आदि शंकराचार्य ने तो महज 18 शक्तिपीठ ही बताए हैं. आइए इस प्रसंग में घुसने से पहले यह जान लेते हैं कि ह शक्तिपीठ हैं क्या? शिवपुराण, देवी भागवत, श्रीमद भागवत समेत समस्त पौराणिक और तंत्र चूड़ामणि, देवी गीता, देवी भागवत समेत ज्यादातर उत्तर पौराणिक ग्रंथों में शक्तिपीठों का प्रसंग मिलता है. थोड़े बहुत अंतर के साथ इनकी कहानी कॉमन सी है. इन ग्रंथों के मुताबिक भगवान शिव के मना करने के बावजूद माता सती बिना निमंत्रण के ही अपने पिता प्रजापति दक्ष के यज्ञ में पहुंच गईं थीं.
वीरभद्र ने नष्ट कर दिया दक्ष प्रजपति का यज्ञ
वहां सभा में उन्होंने अपने पति भोलेनाथ का अपमान होते देखा तो बर्दाश्त नहीं कर पायीं और योगाग्नि में खुद को भस्म कर लिया था. देवर्षि नारद से यह खबर भगवान शिव को मिली तो वह सती के मोह में व्याकुल हो गए. उन्होंने तुरंत अपनी जटा खोली और लट को जमीन पर पटक दिया. इससे वीरभद्र नामक वीर पुरुष प्रकट हुआ. जिसने भोलेनाथ के आदेश पर दक्ष का वध करते हुए यज्ञ को विध्वंस कर दिया. वहीं यज्ञ पुराहित का सिर धड़ से उखाड़ लिया था. उस समय भगवान शिव भी अपनी व्याकुला के प्रभाव में माता सती के शरीर को हाथ में लेकर पूरे वेग के साथ सृष्टि में तांडव करने लगे थे.
इससे प्रलय की नौबत आ गई और भगवान नारायण को आगे आना पड़ा था. उस समय नारायण ने सुदर्शन चक्र से माता के शरीर के कई टुकड़े कर दिए थे. इससे भी भगवान शिव का गुस्सा शांत नहीं हुआ तो नारायण भगवान ने वरदान दिया था कि सती के अंग जहां जहां गिरे हैं, वह सभी स्थान शक्तिपीठ के रूप में जाने जाएंग और इन सभी स्थानों पर देवी सती जीवंत भाव में रहेंगी. यही नहीं, इन स्थानों पर जो भी कोई भक्त भाव के साथ पूजा करेगा वह देवी सती की कृपा का पात्र बनेगा. इससे उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी. यह सुनकर भगवान शिव शांत तो हो गए, लेकिन उनका वियोग कम नहीं हुआ और वह अनिश्चित काल के समाधि में चले गए थे.
किस राज्य में कितने शक्तिपीठ
- उत्तर प्रदेश: 5
- मध्य प्रदेश: 3
- हरियाणा: 3
- हिमाचल प्रदेश: 3
- पंजाब: 1
- कश्मीर: 1
- राजस्थान: 2
- गुजरात: 2
- महाराष्ट्र: 1
- त्रिपुरा: 1
- पश्चिम बंगाल: 13
- तमिलनाडु: 2
- ओडिशा: 1
- आंध्र प्रदेश: 2
- कर्नाटक: 1
- असम: 1
विदेशों में ये शक्तिपीठ
- बांग्लादेश: 5
- श्रीलंका: 1
- नेपाल: 4
- तिब्बत: 1
- पाकिस्तान: 1
शंकराचार्य के ये 18 शक्तिपीठ
शक्तिपीठों को लेकर आदिशंकराचार्य ने अलग ही थ्यौरी दी. उन्होंने 51, 52 और 108 शक्तिपीठों को मानने से इंकार करते हुए महज 18 शक्तिपीठ के नाम बताए. उन्होंने अपने ग्रंथ में इन शक्तिपीठों की स्तुति करते हुए अष्टादश शक्ति पीठ स्तोत्रम् की रचना की है. यह मंत्र:
लङ्कायां शङ्करीदेवी कामाक्षी काञ्चिकापुरे। प्रद्युम्ने शृङ्खलादेवी चामुण्डी क्रौञ्चपट्टणे॥
अलम्पुरे जोगुलाम्बा श्रीशैले भ्रमराम्बिका। कोल्हापुरे महालक्ष्मी मुहुर्ये एकवीरिका॥
उज्जयिन्यां महाकाली पीठिकायां पुरुहूतिका। ओढ्यायां गिरिजादेवी माणिक्या दक्षवाटिके॥
हरिक्षेत्रे कामरूपी प्रयागे माधवेश्वरी। ज्वालायां वैष्णवीदेवी गया माङ्गल्यगौरिका॥
वारणाश्यां विशालाक्षी काश्मीरेतु सरस्वती। अष्टादश सुपीठानि योगिनामपि दुर्लभम्॥
सायङ्काले पठेन्नित्यं सर्वशत्रुविनाशनम्। सर्वरोगहरं दिव्यं सर्वसम्पत्करं शुभम्॥
इस मंत्र के मुताबिक धरती पर केवल 18 शक्तिपीठ ही हैं. उन्होंने अपने मंत्र में जिन शक्तिपीठों की बात की है, उनमें वाराणसी के विशालाक्षी देवी के अलावा कोई भी नाम देवी भागवत या देवी गीता में नहीं मिलता.