दिल्ली की नई मुख्यमंत्री के सामने चुनौतियां बहुत बड़ी हैं ?
दिल्ली की नई मुख्यमंत्री के सामने चुनौतियां बहुत बड़ी हैं …
दिल्ली की नई मुख्यमंत्री आतिशी के कंधों पर भारी जिम्मेदारी है। चुनाव में पांच महीने से भी कम समय बचा है। ऐसे में उनके सामने ‘आप’ की सरकार को बचाने की कठिन चुनौती है, जबकि भाजपा आक्रामक प्रचार-अभियान चला रही है।
43 साल की आतिशी दिल्ली की सबसे युवा मुख्यमंत्री हैं और इस पद पर आसीन होने वाली तीसरी महिला हैं। उनके सामने पहली चुनौती पार्टी की छवि को फिर से स्थापित करना है। भ्रष्टाचार विरोधी योद्धा के रूप में ‘आप’ की छवि को तब से झटका लगा है, जब से ईडी और सीबीआई ने आबकारी नीति मामले में मनी लॉन्ड्रिंग के लिए अरविंद केजरीवाल और उनकी कोर टीम की जांच शुरू की है।
पिछले डेढ़ साल में उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से लेकर राज्यसभा सांसद संजय सिंह और अंत में खुद अरविंद केजरीवाल जैसे वरिष्ठ नेताओं के एक-एक करके जेल जाने से पार्टी की ईमानदारी पर सवाल उठने लगे हैं।
आतिशी को एक साफ छवि वाली शख्सियत के रूप में देखा जाता है। उन्हें सुनिश्चित करना होगा कि अगले साल चुनाव से पहले उनकी सरकार पर किसी तरह के घोटाले की बू न आए। चूंकि भाजपा चुनावी-मोड में है और दिल्ली पर पैनी नजर बनाए हुए है, इसलिए उन्हें अपने निर्णयों, फाइल नोटिंग और सार्वजनिक व्यवहार में खासी सतर्कता बरतनी होगी।
उनके लिए दूसरी चुनौती ‘आप’ के ‘दिल्ली मॉडल ऑफ गवर्नेंस’ को फिर से पटरी पर लाना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘गुजरात मॉडल ऑफ गवर्नेंस’ के विकल्प के रूप में इसे विकसित किया गया था। पिछले कई महीनों में ‘आप’ के रिकॉर्ड में गिरावट आई है।
एक तरफ, ‘आप’ को ईडी और सीबीआई के छापों और पूछताछ का सामना करना पड़ा, जिससे सरकार और पार्टी दोनों का मनोबल टूट गया। दूसरी ओर, सीएम कार्यालय को एलजी के साथ अनवरत टकराव की स्थिति में पाया गया, खासकर 2023 के संवैधानिक संशोधन के बाद, जिसने एलजी को दिल्ली-प्रशासन के लिए अत्यधिक शक्तियां प्रदान कर दी थीं। वास्तव में, इस संशोधन ने समय को पीछे मोड़ दिया और दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश जैसी स्थिति में वापस आ गई।
एलजी के साथ बढ़ते टकरावों ने केजरीवाल सरकार को लगभग पंगु बना दिया था। पूर्व सीएम असहाय हो गए थे, क्योंकि उन्हें अधिकारियों के तबादलों और पोस्टिंग को नियंत्रित करने और नई लोकलुभावन नीतियां लागू करने में असमर्थता का सामना करना पड़ रहा था।
‘आप’ की हताशा ने छोटे प्रशासनिक फैसलों को भी प्रभावित किया। नतीजतन, दिल्ली जर्जर होती जा रही थी क्योंकि सड़कें ढह रही थीं, कूड़े के ढेर लगे थे, मानसून के समय नालों की सफाई नहीं की गई थी, जिससे बाढ़ आ गई और सर्दियों के महीनों में प्रदूषण को कम करने के प्रयासों में लेतलाली हो रही थी।
हालांकि आतिशी पहली बार की विधायक हैं, लेकिन उन्होंने केजरीवाल के जेल में रहने के दौरान उनके लिए किला संभालकर बहुत तेजी से सीखने का हुनर दिखाया। अपने बॉस की तरह, वे भी खुद को एलजी के साथ अक्सर टकराव की स्थिति में पाती हैं। शहर में पानी की कमी को लेकर हुए एक संघर्ष में आतिशी को भूख हड़ताल तक पर जाना पड़ा था।
चुनाव सिर पर हैं और भाजपा ‘आप’ की सरकार को हराने के लिए हर मौके की तलाश में है। ऐसे में आने वाले महीनों में एलजी और नई सीएम के बीच संबंधों में सुधार की संभावना नहीं है। ऐसे में यह आतिशी के लिए अग्नि परीक्षा होगी, क्योंकि वे पार्टी की अपने वादों को पूरा करने और शासन के मोर्चे पर काम करने की क्षमता में लोगों के घटते भरोसे को फिर से बहाल करना चाहती हैं।
आतिशी का सबसे मजबूत कार्ड यह है कि वे सत्ता में ‘आप’ की सबसे बड़ी उपलब्धि का चेहरा हैं : शैक्षिक-सुधार। पहले सलाहकार और फिर शिक्षा मंत्री के रूप में, आतिशी ने दिल्ली सरकार के कई स्कूलों में सुधार की सफलतापूर्वक पटकथा लिखी, ताकि उन्हें सुविधाओं और बोर्ड परीक्षा के अंकों के मामले में निजी स्कूलों के बराबर लाया जा सके।
वे शायद आज देश की सबसे शिक्षित मुख्यमंत्री हैं, जिनके पास दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की डिग्री है, जहां वे रोड्स स्कॉलर थीं। यह उनके एक आम राजनेता से कहीं बढ़कर होने का आभास देता है।
दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज प्याज की बढ़ती कीमतों के कारण सत्ता से बाहर हो गई थीं। दूसरी महिला मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को निर्भया कांड ने बेदखल कर दिया। जब आतिशी 2025 में केजरीवाल को तीसरी बार दिल्ली जीतने में मदद करने का प्रयास कर रही होंगी तो उन्हें इस इतिहास से भी जूझना होगा।
दिल्ली में विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और भाजपा आम आदमी पार्टी की सरकार को हराने के लिए हर मौके की तलाश में है। ऐसे में आने वाले महीनों में एलजी और नई मुख्यमंत्री के बीच संबंधों में सुधार की संभावना नहीं है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं।)