क्या है कर्नाटक का ‘मुडा घोटाला’ जिसने बढ़ाई मुख्यमंत्री सिद्दारमैया की मुश्किलें !

MUDA Scam: क्या है कर्नाटक का ‘मुडा घोटाला’ जिसने बढ़ाई मुख्यमंत्री सिद्दारमैया की मुश्किलें, अब आगे क्या?
MUDA Scam: मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी की 3 एकड़ और 16 गुंटा भूमि मुडा द्वारा अधिग्रहित की गई। इसके बदले में मैसूर के एक इलाके में 14 साइटें आवंटित की गईं। विपक्ष का आरोप है कि सीएम की पत्नी को मुआवजा देने के लिए महंगे इलाके में जगह आवंटित की गई थी। इसी आवंटन में घोटाले के आरोप लग रहे हैं। 
कर्नाटक का मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (मुडा) भूमि घोटाला एक बार फिर चर्चा में है। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की उस याचिका को रद्द कर दिया है, जिसमें उन्होंने राज्यपाल के आदेश को चुनौती दी थी। कर्नाटक के राज्यपाल ने 17 अगस्त को मुडा भूमि घोटाले में मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दी थी। 

उच्च न्यायालय के फैसले के बाद मुख्यमंत्री की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। उधर मुख्यमंत्री लगातार सारे आरोपों को झूठा बता रहे हैं। तमाम घटनाक्रम के बीच आइये जानते हैं कि आखिर मुडा भूमि घोटाला क्या है? इस मामले में किस पर और क्या आरोप लगे हैं? मामले की शुरुआत कैसे हुई? राज्यपाल की तरफ से इस मामले में क्या कार्रवाई की गई? अदालत में क्या हो रहा है? विपक्ष क्या आरोप लगा रहा है? कर्नाटक के सीएम आरोपों पर क्या कह रहे हैं? उच्च न्यायालय से लगे झटके के बाद सिद्धारमैया के पास क्या विकल्प हैं

सबसे पहले जानिए, आखिर मुडा क्या है?
मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण या मुडा कर्नाटक की एक राज्य स्तरीय विकास एजेंसी है, जिसका गठन मई 1988 में किया गया था। मुडा का काम शहरी विकास को बढ़ावा देना, गुणवत्तापूर्ण शहरी बुनियादी ढांचे को उपलब्ध कराना, किफायती आवास उपलब्ध कराना, आवास आदि का निर्माण करना है। 
What is MUDA scam and alleged role of Karnataka CM siddaramaiah wife
कर्नाटक सीएम सिद्धारमैया, मुडा मामला – 
कथित मुडा भूमि घोटाला क्या है?
मुडा शहरी विकास के दौरान अपनी जमीन खोने वाले लोगों के लिए एक योजना लेकर आई थी। 50:50 नाम की इस योजना में जमीन खोने वाले लोग विकसित भूमि के 50% के हकदार होते थे। यह योजना 2009 में पहली बार लागू की गई थी। जिसे 2020 में उस वक्त की भाजपा सरकार ने बंद कर दिया। 

सरकार द्वारा योजना को बंद करने के बाद भी मुडा ने 50:50 योजना के तहत जमीनों का अधिग्रहण और आवंटन जारी रखा। सारा विवाद इसी से जुड़ा है। आरोप है कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को इसी के तहत लाभ पहुंचाया गया। 

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मुडा भूमि मामला…
मुख्यमंत्री की पत्नी का 50:50 योजना से क्या संबंध?
आरोप है कि मुख्यमंत्री की पत्नी की 3 एकड़ और 16 गुंटा भूमि  मुडा द्वारा अधिग्रहित की गई। इसके बदले में एक महंगे इलाके में 14 साइटें आवंटित की गईं। मैसूर के बाहरी इलाके केसारे में यह जमीन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को उनके भाई मल्लिकार्जुन स्वामी ने 2010 में उपहार स्वरूप दी थी। आरोप है कि मुडा ने इस जमीन का अधिग्रहण किए बिना ही देवनूर तृतीय चरण की योजना विकसित कर दी। 

मुआवजे के लिए मुख्यमंत्री की पार्वती ने आवेदन किया जिसके आधार पर, मुडा ने विजयनगर III और IV फेज में 14 साइटें आवंटित कीं। यह आवंटन राज्य सरकार की 50:50 अनुपात योजना के तहत कुल 38,284 वर्ग फीट का था। जिन 14 साइटों का आवंटन मुख्यमंत्री की पत्नी के नाम पर हुआ उसी में घोटाले के आरोप लग रहे हैं। विपक्ष का कहना है कि पार्वती को मुडा द्वारा इन साइटों के आवंटन में अनियमितता बरती गई है।

विपक्ष अनियमितता के क्या आरोप लगा रहा है?
आरोप है कि विजयनगर में जो साइटें आवंटित की गई हैं उनका बाजार मूल्य केसारे में मूल भूमि से काफी अधिक है। विपक्ष ने अब मुआवजे की निष्पक्षता और वैधता पर भी सवाल उठाए हैं। हालांकि, यह भी दिलचस्प है कि 2021 में भाजपा शासन के दौरान ही विजयनगर में सीएम की पत्नी पार्वती को नई साइट आवंटित की गई थी।
आरोपों पर सीएम का क्या कहना है?
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने आवंटन का बचाव करते हुए कहा कि यह 2021 में भाजपा सरकार के तहत किया गया था। उन्होंने कहा कि विजयनगर में साइटें इसलिए दी गईं क्योंकि केसारे में देवनूर फेज 3  इलाके में साइटें उपलब्ध ही नहीं थीं। सिद्धारमैया के कानूनी सलाहकार एएस पोन्नन्ना ने दावा किया कि विजयनगर में मुआवजे वाली जगह का मूल्य केसारे में मूल जमीन से बहुत कम है।

उन्होंने कहा कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम के अनुसार, पार्वती सरकार से 57 करोड़ रुपये अधिक पाने की हकदार हैं, क्योंकि उन्हें मुआवजे के रूप में मिली भूमि की कीमत महज 15-16 करोड़ रुपये है, जो कि केसारे में उनकी मूल जमीन से बहुत कम है। पोन्नन्ना ने आगे बताया कि मुआवजा स्थल का क्षेत्रफल 38,284 वर्ग फीट है जबकि मूल भूमि 1,48,104 वर्ग फीट की थी। उन्होंने दावा किया कि पार्वती ने देरी से बचने के लिए विजयनगर साइट को चुना, भले ही इसका बाजार मूल्य कम था। 

आरोपों के जवाब में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि उनकी जमीन अधिग्रहित कर पार्क बना दिया गया और उन्हें मुआवजे के तौर पर एक प्लॉट दिया गया। आवंटन 2021 में भाजपा के कार्यकाल के दौरान किया गया था। सिद्धारमैया ने कहा, ‘अगर उन्हें लगता है कि यह कानून के खिलाफ है, तो उन्हें बताना चाहिए कि यह कैसे सही है। अगर जमीन की कीमत 62 करोड़ रुपये है, तो उन्हें प्लॉट वापस ले लेना चाहिए और हमें उसी के अनुसार मुआवजा देना चाहिए।’

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कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत और सीएम सिद्धारमैया – फोटो : पीटीआई/एएनआई
इस मामले में क्या कानूनी कार्रवाई हुई है?
17 अगस्त को राज्यपाल ने सीएम के खिलाफ मुडा मामले में मुकदमा चलाने की मंजूरी दी। राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने अपने आदेश में मंत्रिमंडल की मुकदमा न चलाने वाली सलाह को अस्वीकार कर दिया। राज्यपाल ने आदेश में कहा कि मुख्यमंत्री पर जो आरोप लगाए गए हैं, उसकी जांच करने के लिए समिति बनाने के लिए सक्षम नहीं है। राज्यपाल ने अपने आदेश में आगे उल्लेख किया कि उन्होंने याचिकाओं में आरोपों के समर्थन में सामग्री के साथ याचिका का अध्ययन किया है और बाद में सिद्धारमैया के जवाब और कानूनी राय के साथ राज्य मंत्रिमंडल की सलाह का अध्ययन किया है। राज्यपाल ने कहा कि तथ्यों के एक ही सेट के संबंध में दो-दो तरह के उत्तर मिले हैं और इस परिस्थिति में यह बहुत आवश्यक है कि एक निष्पक्ष जांच की जानी चाहिए।

राज्यपाल ने कहा कि वो इस बात से संतुष्ट हैं कि मुख्यमंत्री के खिलाफ टीजे अब्राहम, प्रदीप कुमार एसपी और स्नेहमयी कृष्णा की याचिकाओं में उल्लिखित अपराधों को करने के आरोपों पर मंजूरी दी जा सकती है। राज्यपाल ने मुख्यमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 17A और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 218 के तहत याचिकाओं में उल्लिखित कथित अपराधों में शामिल होने के आरोप के कारण अभियोजन की मंजूरी दी।

हालांकि, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने राज्यपाल द्वारा दी गई मंजूरी को कर्नाटक उच्च न्यायालय में चुनौती दी। न्यायालय ने 12 सितंबर को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया द्वारा दायर याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया। मैराथन सुनवाई के बाद, न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने मामले को फैसले के लिए सुरक्षित रखा था। मंगलवार (24 सितंबर) कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को कर्नाटक उच्च न्यायालय से झटका लगा है। न्यायालय ने सिद्धारमैया की याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने राज्यपाल द्वारा दी गई मंजूरी को रद्द करने की मांग की थी। यानी अब मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है। हालांकि, सिद्धारमैया इस फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रुख कर सकते हैं। मुख्यमंत्री ने फैसले के बाद कहा कि वह इस बारे में विशेषज्ञों से परामर्श करेंगे कि क्या कानून के तहत ऐसी जांच की अनुमति है या नहीं।

राज्य सरकार ने इस मामले में क्या कदम उठाया? 
जुलाई के मध्य में राज्य सरकार ने मुडा द्वारा जमीन के आवंटन में कथित अनियमितताओं की जांच के लिए एक सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया था। यह न्यायिक आयोग कर्नाटक उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश पीएन देसाई की अध्यक्षता में बनाया गया था। आयोग को अपनी जांच पूरी करने और सरकार को रिपोर्ट सौंपने के लिए छह महीने का समय दिया गया है। 

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