यूपी पुलिस में IPS डॉ राजकुमार विश्वकर्मा !

टाटा-407 डिजाइन करने वाले यूपी के DGP बने
एनकाउंटर करने बाराती बनकर गए; पाकिस्तान बॉर्डर पर 8 घुसपैठियों को मारा

यूपी पुलिस में IPS डॉ राजकुमार विश्वकर्मा एक बड़ा नाम हैं। यूपी पुलिस की हिस्ट्री में सबसे चर्चित एनकाउंटर तेजपाल गुर्जर का रहा, जिसके लिए मेरठ SSP डॉ राजकुमार 35 जवानों को बस में बारातियों की तरह लेकर पहुंचे थे। BSF में डीआईजी रहते हुए उन्होंने पाकिस्तान बॉर्डर पर 8 घुसपैठियों को ढेर किया।

डॉ. राजकुमार गोरखपुर, वाराणसी, आगरा और मुरादाबाद समेत 13 जिलों में कप्तान रहे। लखनऊ और मेरठ रेंज के DIG रहे। BSF के डीआईजी रहने के अलावा वह CRPF के आईजी भी रहे। यूपी में IG कानून व्यवस्था के बाद भर्ती बोर्ड के चेयरमैन और यूपी के DGP भी रह चुके हैं।

इस समय उत्तर प्रदेश शासन में मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर हैं। टाटा-407 को डिजाइन करने वाले राजकुमार कैसे जॉब के साथ IPS और फिर सूबे के पुलिस मुखिया बने। …… की खास सीरीज खाकी वर्दी में आज यूपी के पूर्व DGP राजकुमार विश्वकर्मा की कहानी 6 चैप्टर में पढ़िए…

यूपी के जौनपुर में जिला मुख्यालय से 15 किमी दूर एक कस्बा पड़ता है मड़ियाहूं। यहीं के रहने वाले बाबूराम विश्वकर्मा के घर 10 मई, 1963 को बेटे ने जन्म लिया। मां चंद्रावती ने नाम रखा राजकुमार। पिता बाबूराम विश्वकर्मा पेशे से कांट्रैक्टर थे।

राजकुमार बताते हैं- मेरी शुरुआती पढ़ाई कस्बे के ही सरकारी स्कूल में हुई। घर से करीब 700 मीटर की दूरी पर BNB इंटर कॉलेज है, वहीं कक्षा 1 से 12 तक की पढ़ाई हिंदी मीडियम से की। बचपन में स्कूल पैदल ही जाया करता था।

साल 1978 में प्रथम श्रेणी से यूपी बोर्ड से हाईस्कूल पास किया। 1980 में प्रथम श्रेणी में इंटर पास किया। राजकुमार कहते हैं कि बचपन में इंजीनियर बनने का सपना था। 12 वीं पास करने के बाद ही IIT में नंबर आ गया। 1984 में IIT रुड़की से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक किया। IIT दिल्ली से कम्प्यूटर साइंस में मास्टर करने के बाद आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में पीएचडी भी की।

राजकुमार कहते हैं कि IIT से बीटेक करने के बाद मेरा सिलेक्शन टाटा मोटर्स में हो गया। जहां ढाई साल तक इस कंपनी में पुणे में मैनेजर रहा। यहां मैंने टाटा मोटर्स के लिए हैवी ड्यूटी वाहन टाटा-407 का डिजाइन तैयार किया। आज भी इस गाड़ी को पूरे देश में वजन ढोने के लिए काम में लाया जाता है।

कहानी में आगे बढ़ने से पहले एक नजर टाटा-407 : यह कॉमर्शियल व्हीकल है, जो 1986 में लॉन्च किया गया। पहले 70 बीएसपी ट्रक में डीजल इंजन था। अब यह CNG और डीजल दोनों में अवलेबल है। इसका मेंटेनेंस सस्ता है। माइलेज के लिहाज से भी ट्रक को काफी पसंद किया जाता है।

यह टाटा 407 है, जिसे मिनी ट्रक भी कहा जाता है।
यह टाटा 407 है, जिसे मिनी ट्रक भी कहा जाता है।

अब IPS की आगे की कहानी…

IPS राजकुमार बताते हैं- मैं अक्सर सोचता था कि अब तो IIT से पढ़ाई भी कर ली, नौकरी भी मिल गई। लेकिन, अफसर बनने का अलग मजा है। बस इसी सोच को मैंने हकीकत में बदलने की ठान ली।

1987 में नौकरी करने के साथ ही UPSC की तैयारी शुरू कर दी। दिन में कंपनी में ड्यूटी करता और रात में पढ़ाई।

दूसरे प्रयास में यूपीएससी क्रैक किया, फिर 1988 बैच के IPS बने। जब वह घर पहुंचे, तो पड़ोस के लोगों ने माला पहनाईं। वह कहते हैं कि साढ़े 3 दशक से ज्यादा का समय बीत चुका है, लेकिन आज भी वह पल यादों में बसता है।

डॉ राजकुमार बताते हैं कि IPS बनने के बाद मेरी पहली पोस्टिंग प्रयागराज में हुई। उस समय पुलिस के पास आज जैसे संसाधन नहीं थे। सबसे पहले लूट और हत्याओं की घटनाओं के खुलासे पर काम शुरू किया। 1992 में SP देहात मेरठ बनाया गया। उस समय बृजलाल SSP मेरठ हुआ करते थे।

आज से 32 साल पहले मेरठ का देहात क्षेत्र काफी बड़ा था। बागपत जिला नहीं बना था, उस समय पूरा बागपत क्षेत्र मेरठ जिले के देहात में लगता था। मेरठ में कई बड़े गैंग और माफिया काम कर रहे थे। दिन दहाड़े हत्याएं होती थीं। मेरठ में पुलिस लाइन के आवासीय क्वार्टर में यूपी पुलिस के हेड कॉन्स्टेबल महेंद्र सिंह त्यागी की निर्मम हत्या कर दी गई थी। यह हत्या दिल्ली और वेस्ट यूपी के सबसे बड़े माफिया तेजपाल सिंह गुर्जर ने अपने गुर्गों के साथ मिलकर कराई।

उस समय तेजपाल मेरठ के साथी बब्बू त्यागी के साथ मिलकर गैंग खड़ा कर चुका था। जो यूपी के अलावा हरियाणा व दिल्ली में भी रंगदारी, अपहरण व जमीनों पर कब्जा कर लोगों से पैसा वसूलते थे। बब्बू ने उस समय अपने रसूख से गनर भी पा लिया। जिसने हेड कॉन्स्टेबल महेंद्र सिंह त्यागी को अपना गनर रखा था। लेकिन इस बीच दोनों में वर्चस्व की जंग छिड़ गई। बब्बू त्यागी और तेजपाल गैंग के बीच खून-खराबा शुरू हो गया।

इस खूनी अदावत में कई व्यापारी व गुर्गे भी मारे गए। कुख्यात बब्बू अपने केस की तारीख में पटियाला कोर्ट गया था, जहां तेजपाल ने गुर्गों के साथ मिलकर बब्बू को ढेर कर दिया। कमर में गोली लगने से बब्बू के गनर हेड कॉन्स्टेबल महेंद्र त्यागी गंभीर रूप से घायल हो गए। इस बीच तेजपाल ने कई गवाहों को ठिकाने लगा दिया, जिसके बाद वह गवाह हेड कॉन्स्टेबल महेंद्र त्यागी की हत्या की प्लानिंग करने लगा। 24 मई 1992 को पूरी प्लानिंग के तहत महेंद्र त्यागी की पत्नी और अन्य लोग एक रिश्ते के संबंध में बाहर चले गए। जिसके बाद मेरठ पुलिस लाइन में हेड कांस्टेबल महेंद्र त्यागी की हत्या कर दी गई।

राजकुमार विश्वकर्मा बताते हैं कि मेरठ पुलिस लाइन में हेड कॉन्स्टेबल महेंद्र त्यागी की हत्या से पूरा जिला हिल गया। एसएसपी मेरठ समेत सभी वरिष्ठ अधिकारी मौके पर पहुंच गए। साफ हो चुका था कि हत्या तेजपाल गुर्जर ने कराई है। चारों तरफ रेकी की जाने लगी। पुलिस ने दिल्ली, मेरठ व बुलंदशहर में सादे कपड़ों में रेकी की।

पूरी प्लानिंग के तहत एक दिन पहले तेजपाल को लेकर जानकारी मिल चुकी थी कि वह मेरठ जिले से 70 किमी दूर बुलंदशहर में गुलावठी के पास अपने मामा के यहां उस्तरा गांव में छिपकर रह रहा है। रात में गुप्ता बस सर्विस की बस किराए पर ली गई। कहा गया कि सुबह बारात चलना है। यह बारात बुलंदशहर जिले में जाएगी। शकील वेडस हमीदा के पोस्टर तैयार कर बस के शीशों पर चस्पा कर दिए। 23 जून, 1992 की तारीख थी, सुबह से ही गर्मी अपने तेवर दिखाने लगी थी। तभी एसएसपी मेरठ बृजलाल और मैंने पूरी प्लानिंग कर तेजतर्रार 35 पुलिसकर्मियों की टीम बनाई। सादे कपड़ों में हम लोग मेरठ पुलिस लाइन से चंद कदमों की दूरी पर बस में बैठ गए।

राजकुमार विश्वकर्मा बताते हैं कि सभी पुलिसकर्मियों के पास कार्बाइन और दूसरे बड़े हथियार थे। एसएसपी और मेरे पास भी कार्बाइन थी। जब इतने हथियार देखे तो बस के ड्राइवर को संदेह हो गया। लेकिन वह इतना सहम गया कि पूछने कि हिम्मत नहीं जुटा सका। उस समय की प्लानिंग के मुताबिक किसी भी दरोगा या सिपाही जो बस में बाराती बनाकर बैठाए थे। उन्हें भी नहीं बताया गया था कि हमें कहां चलना है।

जब बस बुलंदशहर के गुलावठी थाना क्षेत्र को पार कर उस्तरा गांव के पास पहुंची तब एसएसपी बस में खड़े हुए और कहा कि देखो- यह फोटो एक लाख के इनामी तेजपाल की है। इसी ने हमारे हेड कॉन्स्टेबल महेंद्र त्यागी की पुलिस लाइन में हत्या की है। आज उसी हत्या का बदला लेना है। आगे यह बताया कि कुख्यात तेजपाल के उल्टे हाथ की तीन उंगली नहीं हैं।

भरी धूप में दिन के 1:30 बजे का समय रहा होगा, 35 जवानों से भरी बस बारातियों की शक्ल में गांव में दाखिल हुई। जैसे ही बस तेजपाल के मामा के घर के सामने पहुंची तो बिजली की लाइन का तार लाउडस्पीकर में फंस गया। तभी एसएसपी और मैंने देखा कि एक लाख का इनामी कुख्यात तेजपाल गुर्जर 8-10 लोगों के साथ चारपाई पर बैठकर ताश खेल रहा है।

सेकेंड भर में उसे यह अंदाजा हाे गया कि आज मुस्लिमों में गांव में कोई शादी नहीं तो फिर बारात कैसी। 200 मीटर दायरे को पुलिस टीम ने घेर लिया। हम सभी बस से उतरकर पानी पीने लगे। तेजपाल समझ गया और सेकेंड भर में वह दीवार फांदकर खेतों के रास्ते भागा। सूखी पड़ी काली नदी में कूद गया।

एक लाख के इनामी तेजपाल को सरेंडर करने के लिए हमने लाउडस्पीकर से आवाज लगाई। जिसके बाद वह खुद भी फायरिंग करने लगा। एक मिनट में 720 गोलियां दागने वाली कार्बाइन ने तेजपाल के पूरे शरीर को छलनी कर दिया। यह एनकाउंटर यूपी पुलिस के इतिहास में सबसे चर्चित रहा। राजकुमार कहते हैं कि एक साल में मेरठ में 8 बड़े कुख्यातों को एनकाउंटर में ढेर किया।

राजकुमार विश्वकर्मा यूपी के बस्ती, फर्रुखाबाद, फैजाबाद, गोरखपुर, वाराणसी, अलीगढ़, एटा, प्रयागराज, मैनपुरी, मुरादाबाद आगरा, गाजियाबाद समेत 13 जिलों में SP व SSP भी रहे हैं। वह यूपी एसटीएफ के एक साल तक SSP भी रहे। वह पीएसी में डीआईजी के अलावा मेरठ व लखनऊ रेंज के DIG भी रह चुके हैं।

वह साल 1999 से 2000 तक यूनाइटेड नेशन में सीनियर लेवल पर अधिकारी रह चुके हैं। उनका विदेशी पुलिस के साथ भी काम करने का लंबा अनुभव है। जापान पुलिस ट्रेनिंग, इजराइल पुलिस, न्यूयॉर्क पुलिस के साथ भी काम कर चुके हैं।

वह यूपी में डीआईजी रहने के बाद BSF में डीआईजी रह चुके हैं। उन्होंने पंजाब व पटियाला में पाकिस्तान बॉर्डर पर ड्रग्स तस्करी के नेटवर्क को खंगालने के लिए बड़े स्तर पर काम किया । जहां पाकिस्तान के रास्ते आने वाली ड्रग्स माफियाओं पर कार्रवाई की। यह ड्रग्स अफगानिस्तान से आकर पाकिस्तान के रास्ते सीमा पार पहुंचाई जाती थी। पंजाब की सीमा में पाकिस्तान बॉर्डर पर उनकी देखरेख में कई बड़ी मुठभेड़ भी हुईं।

राजकुमार बताते हैं कि 2005-06 में मैं DIG बीएसएफ था। पाकिस्तान की तरफ से हमारे देश में घुसपैठ होती थी। जहां 40 किलो तक हेरोइन एक एक दिन में पकड़ी जाती थी। उस समय पेड़ों पर बैठकर बॉर्डर पर दूर से निगरानी होती थी।

पाकिस्तान की तरफ से घुसपैठी जब हमारे देश की सीमा में घुसते थे, उससे बहुत पहले से रेकी की जाती थी। पहले उन्हें बॉर्डर पार करने दिया जाता था, जिससे गोली लगने के बाद लाश हम खींचकर ला सकें। जैसे ही हिंदुस्तान की सीमा में आते तो ढेर कर दिए जाते। इन घुसपैठियों को पैसा दुबई व दूसरे देशों से मिलता था। अमृतसर व दूसरे पॉइंट्स पर सबसे अधिक मुठभेड़ हुईं। यहां 8 बड़े घुसपैठियों काे एनकाउंटर में मार गिराया। इनके अलावा कई को गोली मारकर पकड़ा भी गया।

राजकुमार विश्वकर्मा केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स में भी IG रहे। साल 2012 में उन्होंने सीआरपीएफ में रहते हुए इजराइल से भारी संख्या में टॉप क्लास एक्स- 95 असाल्ट राइफल भी खरीदीं। यहां अलग-अलग स्थानों पर उन्होंने यूनिट के साथ मिलकर देश की सुरक्षा के तौर पर बड़ा काम किया। जिन क्षेत्रों में नक्सली हमले होते थे, वहां पूरी प्लानिंग के साथ जवानों के लिए सुरक्षा कवच तैयार किया।

देश के अलग-अलग हिस्सों में कुछ क्षेत्र बड़े बीहड़ व जंगलों के होते थे। जहां राजकुमार विश्वकर्मा सीआरपीएफ अधिकारियों व जवानों के साथ पहुंचे और देश की सुरक्षा के प्रति मजबूत स्तम्भ तैयार किए। यहां तैनात रहते हुए देश विरोधी गतिविधियों का नेटवर्क खंगालकर उसे तोड़ने का काम किया।

जिन क्षेत्रों में सीआरपीएफ पर हमले होते थे, उन क्षेत्रों के लिए अलग-अलग सुरक्षा प्लान बनाए गए। जिससे फोर्स के जवानों के साथ जनहानि न हो। कई बड़े ऑपरेशन में राजकुमार कमांडेंट रैंक के अफसरों के साथ खुद भी लीड करते थे। वह बताते हैं कई बड़े क्षेत्र ऐसे हैं, जहां फोर्स का मूवमेंट बढ़ाया गया। साल 2014 तक सीआरपीएफ में आईजी रहने के बाद वह यूपी अपने कैडर में लौटे, जिसके बाद यूपी में IG लॉ एंड ऑर्डर की बड़ी जिम्मेदारी संभाली।

राजकुमार विश्वकर्मा यूपी पुलिस में तकनीकी के लिए भी जाने जाते हैं। उन्हीं के समय में यूपी पुलिस के सभी थानों को ऑनलाइन CCTNS से जोड़ा गया। IIT रुड़की और IIT दिल्ली से पढ़ने वाले राजकुमार विश्वकर्मा ने टाटा मोटर्स में काम करते हुए टाटा 407 का डिजाइन तैयार किया। इसी टाटा मोटर्स में जॉब करते हुए तैयारी कर दूसरे प्रयास में IPS बन गए। जब यूपी पुलिस को तकनीक की जरूरत थी तो वह विभाग में सबसे आगे खड़े रहे।

राजकुमार विश्वकर्मा ने पुलिस विभाग में अपनी इंजीनियरिंग बैकग्राउंड का खूब प्रभाव दिखाया। यूपी पुलिस में ADG टेक्निकल रहते हुए पुलिस विभाग को कम्प्यूटराइजेशन में अहम योगदान दिया। पुलिस के सभी कामकाज को कागज से कंप्यूटर पर ले आए। जहां प्रदेश के सभी थानों में ऑनलाइन FIR दर्ज होने लगीं, वहीं चार्जशीट भी ऑनलाइन हो गई। केस डायरी भी कंप्यूटर पर तैयार होने लगीं। लास्ट एंड फाउंड सर्विस कई मोबाइल एप लांच किए। इससे पहले बीएसएफ व सीआरपीएफ में रहते हुए भी वहां भी ऑनलाइन प्रणाली को काफी आगे पहुंचाया। यूपी में अपर पुलिस महानिदेशक टेक्निकल के अलावा एडीजी पीएसी भी रह चुके हैं।

राजकुमार विश्वकर्मा डीजी फायर सर्विस भी रह चुके हैं। डीजी EOW के अलावा वह 2018 से लेकर 2023 तक भर्ती बोर्ड के चेयरमैन भी रहे। मौजूदा समय में यूपी पुलिस में सवा तीन लाख जवान हैं, इनमें से आधे से अधिक की भर्ती उन्हीं के समय में हुई। इनमें यूपी पुलिस के कॉन्स्टेबल, दरोगा, ऑपरेटर, फायर विभाग में कर्मचारी, जेल वार्डन और अन्य कर्मचारी के पद शामिल हैं।

राजकुमार विश्वकर्मा 5 साल यूपी पुलिस में भर्ती बोर्ड भी चेयरमैन रहे, जहां पुलिस की सभी भर्तियों को खुद पूरी निगरानी में कराया। पुलिस परीक्षाओं को भी सकुशल कराया। साल 2023 में डीएस चौहान के बाद शासन ने डीजीपी बनाया। वह कहते हैं कि बचपन में कभी सोचा नहीं था कि IPS बनूंगा। परिवार ने कभी भी इसके लिए दबाव नहीं डाला। हां, इंजीनियर बना और बेहतर जॉब मिली तो खुद का निर्णय लेकर तैयारी करने लगा। सफलता मिली और सक्सेस हुआ। IPS बनने के बाद देश भर के अलावा विदेशों में भी सेवाएं दीं। कभी यह भी नहीं सोचा कि किस मुकाम तक जाना है। जीवन में जो भी वक्त मिला, उसने एक नई पहचान दी।

वेस्ट यूपी के 3 जिले सबसे चुनौतीपूर्ण रहे राजकुमार विश्वकर्मा बताते हैं कि वेस्ट यूपी में तीन जिले इतने लंबे कार्यकाल में सबसे चुनौती पूर्ण रहे। शुरुआत के दिनों में मेरठ बहुत बड़ा जिला होता था, उसकी सीमा हरियाणा राज्य से लगती थी। मेरठ जिले से ही बागपत बनाया गया। मेरठ में एसपी सिटी व एसपी देहात भी रहा।

वेस्ट यूपी के ही अलीगढ़ और मुरादाबाद में भी SSP रहा, उस समय दंगे बहुत होते थे। सांप्रदायिकता की छोटी-छोटी घटनाएं बड़ा रुप ले लेतीं। इन तीन जिलों में तैनाती के समय कानून व्यवस्था चुनौतीपूर्ण रही। आगरा में कप्तान रहते हुए कई बड़े माफियाओं का नेटवर्क तोड़ा। जब मोबाइल का चलन नहीं था, तब भी अपराध कम नहीं होता था। लेकिन जैसे समय बदलता गया पुलिस विभाग में तकनीक भी बदलती गई।

1988 में फैमिली की मर्जी से शादी की राजकुमार विश्वकर्मा अपनी शादी के बारे में बताते हैं कि 1988 में परिवार की मर्जी से ही डॉ. वर्षा शर्मा से शादी की। डॉ. वर्षा, कानपुर में लॉ की प्रोफेसर रहीं, बाद में VRS ले लिया। बेटा ईशान राज अमेरिका में पढ़ाई कर रहा है। बेटी अंकिता राज प्रोफेसर हैं। वहीं दामाद मनीष कुमार नोएडा के डीएम हैं।

अचीवमेंट्स

  • पुलिस पदक से सम्मानित किया जा चुका है।
  • डीजी के कमेंडेशन डिस्क सिल्वर मेडल से भी सम्मानित हो चुके हैं।
  • डीजीपी का गोल्ड मेडल भी मिल चुका है।
  • राष्ट्रपति मेडल का भी सम्मान मिला है।

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