मध्यप्रदेश के दफ्तर में महिलाएं कितनी सेफ है ?

सीनियर चेंबर में अकेले, बंगले पर फाइल लेकर बुलाते हैं …
38% सरकारी कर्मचारी सेफ महसूस नहीं करतीं; महिला आयोग में 4 साल से अध्यक्ष ही नहीं
मध्यप्रदेश राज्य महिला आयोग में पिछले 4 साल से अध्यक्ष नहीं है। जुलाई 2019 से जुलाई 2024 तक 25 हजार 691 से ज्यादा केस पेंडिंग हैं।

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हमारे वेद-पुराणों में भले ही महिलाओं को देवी का दर्जा देने की बात होती है…हम शक्ति उपासना का पर्व नवरात्र मना रहे हैं लेकिन हकीकत ये है कि महिलाओं के लिए आज भी नौकरी करना आसान नहीं है। मैं सरकारी अधिकारी हूं, फिर भी सीनियर अफसर की प्रताड़ना का शिकार हुई हूं।

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ये आपबीती मध्यप्रदेश सरकार की क्लास वन अधिकारी की है, जो वर्क प्लेस पर प्रताड़ना का शिकार हुई है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद महिला अधिकारी को प्रताड़ित करने वाले वरिष्ठ अफसर को सरकार ने अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी है।

पिछले दिनों वर्क प्लेस पर प्रताड़ना की और भी घटनाएं सामने आई हैं। इसमें भोपाल के रेड क्रॉस अस्पताल की एक कर्मचारी ने अपने हाथ की नस काटकर खुदकुशी की कोशिश की। महिला ने आरोप लगाया कि उसे वरिष्ठ अधिकारी प्रताड़ित कर रहे थे।

जेंडर इश्यू पर काम करने वाली संस्था संगिनी ने साल 2020 में एक रिपोर्ट भी जारी की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, सरकारी दफ्तरों में काम करने वाली महिलाएं खुद को ज्यादा असुरक्षित महसूस करती हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के तहत इंटरनल कमेटी के गठन का प्रावधान है। मध्यप्रदेश के 83 फीसदी दफ्तरों में ये कमेटी बनी ही नहीं है। ….. ने वर्क प्लेस पर प्रताड़ना के ऐसे मामलों की पड़ताल की। तीन उदाहरण से समझने की कोशिश की कि प्रदेश में वर्क प्लेस पर महिलाएं किस तरह से प्रताड़ना का शिकार हो रही है? ऐसे मामलों में किस तरह कार्रवाई के नाम पर केवल खानापूर्ति की जा रही है? 

   

इन तीन मामलों से समझें, कैसे वर्क प्लेस पर प्रताड़ित हो रही महिलाएं

केस 1ः लेडी अफसर को फाइल लेकर बंगले पर बुलाते थे सीनियर

ये कहानी भोपाल में वाणिज्य कर विभाग में पदस्थ एक महिला अधिकारी की है। बात 2018 की है, जब उनके ही विभाग के सीनियर अफसर का तबादला भोपाल हुआ। उन्हें भी महिला अफसर के पास वाला सरकारी बंगला आवंटित हुआ।

महिला अधिकारी ने बताया- वे मुझसे 20 साल बड़े हैं। इस लिहाज से मैं उन्हें पिता मानती थी। वे ऑफिस में मुझे अपने चैंबर में अकेले बुलाने लगे। फिर फाइलें लेकर शाम को बंगले पर भी बुलाने लगे। उनकी हरकतें देख मैंने उन्हें इग्नोर करना शुरू किया, बंगले पर भी जाने से इनकार कर दिया। इसके बाद सीनियर अफसर ने मेरे खिलाफ झूठी शिकायत करवाई और उसकी जांच के बहाने मुझे प्रताड़ित करने लगे।

वे कहती हैं- उन्होंने खुद ही मेरे खिलाफ जांच करके एक रिपोर्ट पुलिस को दे दी लेकिन मेरे परिवार ने मेरा साथ दिया। मैंने अपने विभाग के सर्वोच्च अधिकारी से इसकी शिकायत की। विभाग की आंतरिक समिति ने जांच में उस अधिकारी को दोषी पाया। इसके बाद अधिकारी ने उसी शिकायतकर्ता से मेरे खिलाफ कोर्ट में मुकदमा दायर करवा दिया।

पहले निचली कोर्ट से मामला खारिज हुआ तो हाईकोर्ट चले गए। वहां से खारिज हुआ तो सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगवा दी। सुप्रीम कोर्ट ने भी वो केस खारिज कर दिया। पुलिस की जांच में भी अधिकारी की गलती पाई गई। पुलिस ने अधिकारी के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट पेश की।

केस 2: प्रताड़ना से तंग आकर हाथ की नस काटी

ये मामला भोपाल के रेडक्रॉस अस्पताल का है। जहां हाल ही में एक महिला कर्मचारी ने हाथ की नस काटकर खुदकुशी की कोशिश की। दैनिक भास्कर से बात करते हुए महिला कर्मचारी ने कहा- मैंने 2009 में रेड क्रॉस अस्पताल जॉइन किया था। मैंने एमए साइकोलॉजी और पीजीडीसीए की पढ़ाई की है लेकिन मुझे मेरी योग्यता के अनुसार ड्यूटी नहीं मिली।

वे कहती हैं- पिछले एक साल से तीन सीनियर अफसर ने मुझे मानसिक रूप से प्रताड़ित किया। इसकी लिखित शिकायत सचिव और अस्पताल प्रबंधन को की, मगर मेरी ड्यूटी चेंज नहीं हुई। हाजिरी रजिस्टर में 26 तारीख से 30 तारीख तक मेरी हाजिरी पर लाइन लगाकर उसे काट दिया। इससे परेशान होकर मैंने ऑफिस में बैठकर अपनी हाथ की नस काट ली।

रेडक्रॉस समिति के सचिव बोले- हमने जांच कमेटी बना दी

…..की टीम ने रेडक्रॉस अस्पताल में काम करने वाली बाकी महिलाओं से बात की तो एक और महिला ने बताया कि उसने डेढ़ साल पहले अस्पताल के सुपरवाइजर के खिलाफ प्रताड़ना का केस लगाया था। इस केस को दफ्तर के ही लोगों ने दबा दिया और इसकी सही तरीके से जांच भी नहीं हुई। उन्होंने कहा-अस्पताल के कर्मचारियों और कमेटी के मेंबर ने मुझ पर केस वापस लेने का दबाव बनाया।

इन दो मामलों को लेकर जब भास्कर ने रेडक्रॉस सोसायटी के सचिव रामेंद्र सिंह से बात की तो उन्होंने कहा- घटना संज्ञान में आई है। इसकी जांच के लिए कमेटी का गठन किया है। कमेटी की रिपोर्ट के बाद इस पर कार्रवाई की जाएगी।

केस 3: महिला के खिलाफ गवाह को ही बना दिया कमेटी का सदस्य

ये मामला 6वीं बटालियन की ऑडिट शाखा में काम करने वाली एक महिला कॉन्स्टेबल का है। कॉन्स्टेबल ने कहा- हेड क्लर्क पिछले कई सालों से प्रताड़ित कर रहा है। शुरुआत से ही वह मुझ पर बुरी नजर रखता है। कभी मेरे पहनावे पर टिप्पणी करता है तो कभी बाहर घूमने का ऑफर देता है।

इसके बारे में मैंने पति से भी जिक्र किया तो उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों पर ध्यान मत दिया करो। अपने काम पर फोकस करो। हेड क्लर्क ने यात्रा भत्ता निकालने के लिए 37 बार मेरी आईडी और पासवर्ड का गलत इस्तेमाल किया। मैंने जब विरोध किया तो इसी साल जनवरी में मेरा हाथ पकड़कर मरोड़ दिया।

इसकी शिकायत मैंने कमांडेंट से की। उन्होंने दोनों को समझाकर बोला- इस बात को यहीं पर खत्म करो। हेड क्लर्क ने मेरे खिलाफ लिखित शिकायत की तो मैंने भी इंटरनल कमेटी को यौन प्रताड़ना की शिकायत की।

सरकारी दफ्तरों में 38% महिलाएं सुरक्षित महसूस नहीं करतीं

जेंडर इश्यू पर काम करने वाली संस्था संगिनी की 2020 की सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, मध्यप्रदेश के सरकारी दफ्तरों की 38 फीसदी महिलाएं कार्यस्थल पर खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करतीं जबकि निजी क्षेत्र में 25 फीसदी महिलाएं असुरक्षित होने की बात कहती हैं। संस्था ने भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और सतना के 500 निजी और सरकारी संस्थानों के 2500 लोगों से बातचीत की थी। इसमें 1000 महिलाएं हैं।

सर्वे को लीड करने वाली आशा पाठक कहती हैं- जिन महिलाओं ने खुद को वर्क प्लेस में असुरक्षित होना बताया, उन्होंने ये भी बताया कि पुरूष सहकर्मियों के किन व्यवहार से वे ऐसा महसूस करती हैं। पाठक कहती हैं कि ये सर्वे रिपोर्ट 3 साल पुरानी है लेकिन हमारी मौजूदा स्टडी बताती है कि हालात और बिगड़ते जा रहे हैं। हमारे सर्वे के दौरान ये भी सामने आया था कि इस दौरान 12 महिलाओं ने अपने सहकर्मियों के प्रताड़ना की शिकायत इंटरनल कमेटी से की थी।

पाठक कहती हैं- ये भी सही है कि ज्यादातर महिलाओं को वर्क प्लेस में इंटरनल कमेटी की कोई जानकारी नहीं होती। जिन्हें जानकारी होती है, वे नौकरी छूट जाने के डर से ऐसी शिकायतों से बचती हैं। सिर्फ जागरूक महिलाएं ही शिकायत करने का साहस कर पाती हैं।

कार्यस्थल पर प्रताड़ना के 282 केस महिला आयोग में पेंडिंग

मध्यप्रदेश राज्य महिला आयोग में पिछले चार साल से अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हुई है। इस वजह से जुलाई 2019 से जुलाई 2024 तक 25 हजार 691 से ज्यादा केस पेंडिंग हैं। हर रोज 15 से 20 मामले आयोग के पास आ रहे हैं। आयोग के अधिकारी कहते हैं कि हम अपने दायरे में रहकर ही काम कर सकते हैं। हम केवल संबंधित अधिकारी को लेटर लिख सकते हैं। इसके अलावा कुछ और नहीं कर सकते।

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तहसीलदार बोलीं- कलेक्टर-एसडीएम टॉर्चर कर रहे
6 साल का बेटा हॉस्पिटल में भर्ती, उससे मिल नहीं पा रही; अपनी बात कहते-कहते रो पड़ीं

अफसरों पर प्रताड़ना के आरोप लगाते हुए मौ तहसीलदार माला शर्मा रो पड़ीं…

भिंड के मौ तहसील में पदस्थ तहसीलदार माला शर्मा ने कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव और एसडीएम पराग जैन पर मेंटल टॉर्चर करने के आरोप लगाए हैं। उनका कहना है, ‘मेरा 6 साल का बेटा बीमार है। ग्वालियर में भर्ती है। इस हालत में भी उसके साथ नहीं रह पा रही हूं। मुझे मुख्यालय छोड़ने को मना किया गया है। मैं ग्वालियर जाना चाहूं तो कई सवाल किए जाते हैं। किसी काम की परमिशन मांगती हूं तो जवाब नहीं मिलता।’

हालांकि, तहसीलदार माला शर्मा खुद लंबे समय से विवादों में हैं। उन पर जमीन खरीद-फरोख्त, जब्त सरसों को खुर्द-बुर्द करने जैसे आरोप हैं। …… से बातचीत में उन्होंने इन आरोपों को निराधार बताया। कहा, मेरे खिलाफ कलेक्टर और एसडीएम षड्यंत्र रच रहे हैं मुझे अपमानित करते हैं। मेरी बात नहीं सुनते। मैं मिलने जाती हूं तो मुझे चार-चार घंटे इंतजार कराते हैं।’

हमने उच्च अधिकारियों से इस बारे में बात की। उन्होंने कहा, ‘तहसीलदार पर गड़बड़ी के आरोप हैं। वे मनगढ़ंत बात कर रही हैं।’

तहसीलदार ने महिला आयोग को लिखा लेटर

तहसीलदार माला शर्मा ने 18 सितंबर 2024 को राज्य महिला आयोग को इस बारे में लेटर भी लिखा है। उन्होंने लिखा, ‘भिंड कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव लगातार प्रताड़ित कर रहे हैं। मुझे 4 महीने में 10 से ज्यादा नोटिस थमाए गए हैं। जमीन खरीदने का आरोप भी लगाया जा रहा है। मैंने या मेरे पति ने कोई जमीन नहीं खरीदी है।

जिस जमीन की बात की जा रही है, वो किसी दूसरे व्यक्ति ने खरीदी है। उसका नाम मेरे पति से मिलता है लेकिन पिता के नाम अलग हैं। मैं पति का आधार कार्ड भी दे चुकी हूं।’ तहसीलदार का यह भी कहना है,

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एसडीएम पराग जैन जबरन मुझ पर दबाव बनाते हैं। वे कलेक्टर को मेरे खिलाफ गलत जानकारी देते हैं। दोनों अधिकारियों ने मिलकर मुझे हटा दिया था। कोर्ट से मुझे स्टे मिला है।

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तहसीलदार का आरोप- मेरे अधिकार छीनकर किसी और को दिए

तहसीलदार माला शर्मा ने दैनिक भास्कर से कहा, ‘अब मेरे अधिकार छीनकर प्रताड़ित किया जा रहा है। मौ तहसील में दो सर्कल हैं। एक मौ, दूसरा देहगांव। मौ में मैं पदस्थ थी और देहगांव में रामलोचन तिवारी। बाढ़ प्रभावित एरिया का सर्वे कराने एसडीएम और कलेक्टर ने नायब तहसीलदार उदय सिंह जाटव को मौ सर्कल में भेजा।

मुझसे राजस्व भू-अभिलेख के अधिकार छीन लिए। यह अधिकार जाटव को देते हुए प्रभारी बनाया है। इस वजह से मेरी राजस्व की आईडी बंद करा दी गई।’

कलेक्टर बोले- तहसीलदार माला पर लोगों से पैसे लेने का आरोप

कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव का कहना है…

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मैं शासन का काम कर रहा हूं। तहसीलदार माला शर्मा ने गड़बड़ी की है। लोगों से पैसा लेने का आरोप है, ऐसे मामलों में स्पष्टीकरण मांगा जाता है। माला शर्मा से राजस्व भू अभिलेख की आईडी का अधिकार छीनकर देहगांव सर्कल के तहसीलदार उदय जाटव को दिया है। दोनों तहसीलदार के कामों का क्लासीफिकेशन किया गया है। उन्होंने महिला आयोग से शिकायत की है, लेकिन मुझे आयोग से कोई पत्र नहीं मिला है।

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तहसीलदार माला शर्मा पर ये दो बड़े आरोप

कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव ने बताया- ​​तहसीलदार माला शर्मा पर आरोप है कि उन्होंने एक कॉलोनाइजर को फायदा पहुंचाने के लिए निजी भूमि से रास्ता दिलवाने जमीन मालिक अशोक जैन पर दबाव बनाया। जब जैन ने रास्ता देने से मना किया तो जमीन सरकारी घोषित कर दी। यह आरोप अशोक जैन ने कलेक्ट्रेट में शिकायत करते हुए लगाए थे। प्राथमिक जांच में शिकायत सही पाई गई।

इसी तरह का मामला सरकारी पट्टे की एक जमीन को लेकर है। आरोप है कि तहसीलदार शर्मा ने सरकारी पट्टे की जमीन एक बुजुर्ग महिला के नाम कर दी। इस जमीन के सड़क किनारे वाले हिस्से का सौदा कर अपने पति को दिलवा दिया।

कलेक्टर के मुताबिक, मामले में तहसीलदार ने पति के आधार कार्ड की फोटोकॉपी दी है, जो संदिग्ध है। ओरिजिनल आधार कार्ड मांगा गया है, उन्होंने यह अभी तक नहीं दिया है।

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