खिलाफत आंदोलन से नाराज एक कांग्रेसी ने RSS शुरू किया !

खिलाफत आंदोलन से नाराज एक कांग्रेसी ने RSS शुरू किया:पहली बार 84 रुपए फंड मिला; 99 साल के संघ की कहानी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS 99 साल का हो गया। 1925 में विजयादशी के दिन पांच स्वंयसेवकों के साथ डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने इसकी शुरुआत की थी। आज संघ के लाखों स्वयंसेवक हैं। संघ के मुताबिक ब्रिटेन, अमेरिका, फिनलैंड, मॉरीशस समेत 39 देशों में उसकी शाखा लगती है। 99 साल के इस सफर में तीन बार संघ पर बैन लगा। संघ प्रमुख को जेल तक जाना पड़ा।

आज RSS के स्थापना दिवस पर पढ़िए संघ बनने और उसके विस्तार की कहानी…

27 सितंबर 1925 को हेडगेवार के इसी घर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नींव रखी गई थी। यह घर नागपुर के महल इलाके में है। तस्वीर 8 साल पुरानी है। फोटो क्रेडिट- सुरेश हावरे
27 सितंबर 1925 को हेडगेवार के इसी घर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नींव रखी गई थी। यह घर नागपुर के महल इलाके में है। तस्वीर 8 साल पुरानी है। फोटो क्रेडिट- सुरेश हावरे

साल 1919, पहले विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन ने ऑटोमन साम्राज्य के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। अंग्रेजों ने तुर्की के खलीफा यानी मुसलमानों के सबसे बड़े धार्मिक नेता को सत्ता से हटा दिया। इसका दुनियाभर के मुसलमानों ने विरोध किया। गुलाम भारत के मुसलमान भी अंग्रेजों के खिलाफ सड़कों पर उतर गए।

शौकत अली और मोहम्मद अली नाम के दो भाइयों ने लखनऊ में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इसे नाम दिया गया खिलाफत आंदोलन। मकसद था- खलीफा को तुर्की के सिंहासन पर दोबारा बैठाना। जल्द ही देशभर के मुसलमान इस आंदोलन से जुड़ गए।

ये वो दौर था जब जलियांवाला बाग हत्याकांड हो चुका था। पंजाब में मार्शल लॉ लगा हुआ था। देशभर में रौलेट एक्ट यानी बिना मुकदमा चलाए किसी को जेल में बंद करने की ब्रितानी हुकूमत की नीतियों का विरोध हो रहा था।

चार साल पहले साउथ अफ्रीका से लौटे महात्मा गांधी अंग्रेजों के खिलाफ एक बड़े आंदोलन की तैयारी में जुटे थे। खिलाफत आंदोलन को उन्होंने एक मौके के रूप में देखा कि इसके जरिए हिंदुओं और मुसलमानों को एक मंच पर लाया जा सकता है।

गांधी ने एक नारा दिया- ‘जिस तरह हिंदुओं के लिए गाय पूज्य है, उसी तरह मुसलमानों के लिए खलीफा।’

31 जुलाई 1920 का अखबार, जिसमें हिंदुओं से खिलाफत आंदोलन में भाग लेने की अपील का जिक्र है। सोर्स : Alamy
31 जुलाई 1920 का अखबार, जिसमें हिंदुओं से खिलाफत आंदोलन में भाग लेने की अपील का जिक्र है। सोर्स : Alamy

डॉक्टरी पढ़कर नए-नए कांग्रेसी बने नागपुर के केशव बलिराम हेडगेवार को गांधी का यह फैसला सही नहीं लगा। हेडगेवार की जीवनी लिखने वाले सीपी भिशीकर अपनी किताब ‘केशव : संघ निर्माता’ में लिखते हैं- ‘हेडगेवार ने गांधी से कहा कि खलीफा का समर्थन करके मुसलमानों ने ये साबित कर दिया कि देश से पहले उनका धर्म है। कांग्रेस को इस आंदोलन का समर्थन नहीं करना चाहिए।’

हालांकि गांधी ने हेडगेवार की बात नहीं मानी और खिलाफत आंदोलन के समर्थन की घोषणा कर दी। न चाहते हुए भी हेडगेवार इस आंदोलन से जुड़े रहे और उग्र भाषण देने की वजह से अगस्त 1921 से जुलाई 1922 तक जेल में भी रहे।

अगस्त 1921, खिलाफत आंदोलन केरल पहुंचा। यहां के मालाबार इलाके में मुसलमानों और हिंदू जमींदारों के बीच झड़प हो गई, जो जल्द ही एक बड़े दंगे में तब्दील हो गई। इस दंगे में 2 हजार से ज्यादा लोगों की जान गई।

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इस दंगे का जिक्र करते हुए अपनी किताब ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ में लिखा- ‘इस विद्रोह का मकसद ब्रिटिश हुकूमत को खत्म कर इस्लाम राज की स्थापना करना था। तब जबरन धर्म परिवर्तन कराए गए, मंदिर ढहाए गए, महिलाओं के साथ बलात्कार हुए।’अंबेडकर ने खिलाफत आंदोलन पर सवाल उठाते हुए लिखा- ‘यही गांधी की हिंदू-मुस्लिम एकता कायम करने की कोशिश है। क्या फल मिला इस कोशिश का?’

कांग्रेस अध्यक्ष रहीं एनी बेसेंट, दंगों के बाद मालाबार गईं। उसके बाद उन्होंने एक अखबार में आर्टिकल लिखा- ‘अच्छा होता अगर महात्मा गांधी मालाबार जाते। वे अपनी आंखों से उस भयावहता को देख पाते, जो उनके प्रिय भाइयों मोहम्मद अली और शौकत अली ने खड़ी की है।’

साल 1921, मालाबार दंगे के कैदियों को पेशी के लिए अदालत ले जाया जा रहा है।
साल 1921, मालाबार दंगे के कैदियों को पेशी के लिए अदालत ले जाया जा रहा है।

दो साल बाद यानी 1923 में नागपुर में सांप्रदायिक दंगा हुआ। कलेक्टर ने हिंदुओं की झांकियों पर रोक लगा दी। हेडगेवार को उम्मीद थी कि कांग्रेस इसके विरोध में आवाज उठाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

खिलाफत आंदोलन और मालाबार हिंसा से नाराज हेडगेवार के मन में अब हिंदुओं के लिए अलग संगठन तैयार करने का ख्याल आने लगा। तब देश में हिंदू महासभा का गठन हो चुका था। हेडगेवार के मेंटॉर रहे डॉ. बीएस मुंजे हिंदू महासभा के सचिव थे।

कुछ समय के लिए हेडगेवार हिंदू महासभा से जुड़े भी, लेकिन उन्हें यह संगठन रास नहीं आया। हेडगेवार का मानना था कि हिंदू महासभा राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए हिंदू हितों से समझौता कर लेगी।

उन दिनों नागपुर सेंट्रल प्रोविंस की राजधानी हुआ करता था। अंग्रेजों ने भारत के दूसरे हिस्सों को नापने के लिए नागपुर को जीरो माइल पॉइंट बनाया था। आज भी जीरो माइल पर एक स्तंभ और चार घोड़ों की प्रतिमाएं हैं।

तारीख 27 सितंबर 1925, उस दिन विजयादशमी थी। हेडगेवार ने पांच लोगों के साथ अपने घर शुक्रवारी में एक बैठक बुलाई और कहा कि आज से हम संघ शुरू कर रहे हैं। बैठक में हेडगेवार के साथ विनायक दामोदर सावरकर के भाई गणेश सावरकर, डॉ. बीएस मुंजे, एलवी परांजपे और बीबी थोलकर शामिल थे। 17 अप्रैल 1926 को हेडगेवार के संगठन का नामकरण हुआ- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS.

1925 में विजयादशमी के दिन नागपुर में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने RSS की स्थापना की थी।
1925 में विजयादशमी के दिन नागपुर में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने RSS की स्थापना की थी।

शुरुआत में संघ के सदस्यों को सभासद कहा जाता था। हफ्ते में दो दिन रविवार और गुरुवार को सभी सदस्य एक खास जगह इकट्ठा होते थे। रविवार को वे कसरत करते थे और गुरुवार को राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा करते थे। इस कार्यक्रम को शाखा नाम दिया गया। शाखा संघ की पहली और सबसे अहम ईकाई है।

संघ की बैठकों में आने वाले युवा, हेडगेवार से पूछते थे कि अपने संघ का नाम क्या है? तब हेडगेवार को लगा कि संगठन का नामकरण करना चाहिए। उन्होंने सभी सदस्यों की एक बैठक बुलाई।

बैठक में इसके लिए तीन नाम सुझाए गए- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जरीपटका मंडल और भारतोद्धारक मंडल। 25 में से 20 लोगों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को चुना। 17 अप्रैल 1926 को संघ का नाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी, RSS कर दिया गया। संघ के सदस्यों की पहचान स्वयंसेवक के रूप में होने लगी।

इसी साल RSS ने राम नवमी के दिन एक बड़ा कार्यक्रम किया। संघ के स्वयंसेवक खाकी शर्ट, खाकी पैंट, खाकी कैप और बूट में नजर आए। ये संघ की शुरुआती यूनिफॉर्म थी।

जैसे-जैसे संघ में आने वाले स्वयंसेवकों की संख्या बढ़ने लगी, हेडगेवार को लगने लगा कि हफ्ते में दो दिन की बजाय नियमित शाखा की शुरुआत होनी चाहिए। अब इसके लिए जगह की तलाश की जाने लगी। अंत में नागपुर के ‘मोहिते का बाड़ा’ मैदान को चुना गया। 18 मई 1926 से संघ की नियमित शाखा की शुरुआत हुई।

हेडगेवार कुछ वक्त के लिए विदर्भ प्रांत के कांग्रेस सचिव रहे। वे कांग्रेस के अधिवेशनों और कार्यक्रमों की व्यवस्था संभालते थे। ये तस्वीर 1930 की है। सोर्स : वागड़े आर्ट गैलरी वर्धा।
हेडगेवार कुछ वक्त के लिए विदर्भ प्रांत के कांग्रेस सचिव रहे। वे कांग्रेस के अधिवेशनों और कार्यक्रमों की व्यवस्था संभालते थे। ये तस्वीर 1930 की है। सोर्स : वागड़े आर्ट गैलरी वर्धा।

संघ किसी आंदोलन में शामिल नहीं होगा, स्वयंसेवक चाहें तो भाग ले सकते हैं- हेडगेवार 1930 में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के नमक कानून के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की। तब संघ के स्वयंसेवकों ने हेडगेवार से पूछा कि आंदोलन में शामिल होना चाहिए या नहीं। कुछ स्वयंसेवकों ने संघ की ड्रेस में भगवा ध्वज लेकर आंदोलन में शामिल होने की इच्छा जताई।

हेडगेवार ने कहा- ‘आंदोलन जिस बैनर तले हो रहा है, वह ठीक है। अगर संघ की ड्रेस में या भगवा ध्वज लेकर कोई शामिल होगा, तो विवाद होगा। अंग्रेज हमारे संगठन पर रोक लगा सकते हैं, इसलिए जिसे शामिल होना है, वह व्यक्तिगत रूप से आंदोलन में शामिल होगा। बतौर संगठन, RSS इस आंदोलन में भाग नहीं लेगा।’

हेडगेवार इस आंदोलन में शामिल हुए और जेल भी गए। करीब 9 महीने वे जेल में रहे। तब एलवी परांजपे को सरसंघचालक की जिम्मेदारी दी गई थी।

जंगल सत्याग्रह से सजा काटकर लौटने के बाद मोहिते का बाड़ा के मालिक साहूकार गुलाब ने संघ की शाखा लगाने से मना कर दिया। इसके बाद भोसले संस्थान के हाथीखाना में संघ की शाखा लगने लगी। बाद में यह जगह भी छोड़नी पड़ी और महाराज भोसले के तुलसीबाग में संघ की शाखा लगने लगी।

इसी बीच 1941 में साहूकार गुलाबराव कर्ज में फंस गए। 30 जून 1941 को माधवराव सदाशिव गोलवलकर के नाम से पूरा मोहिते का बाड़ा खरीद लिया गया।

तस्वीर 1938 की है। बीएस मुंजे (बाएं से दूसरे), हेडगेवार (बाएं से चौथे) और सावरकर (सबसे दाएं)। तीनों पुणे में हिंदू युवक परिषद की बैठक में शामिल हुए थे।
तस्वीर 1938 की है। बीएस मुंजे (बाएं से दूसरे), हेडगेवार (बाएं से चौथे) और सावरकर (सबसे दाएं)। तीनों पुणे में हिंदू युवक परिषद की बैठक में शामिल हुए थे।

संघ विस्तार की स्ट्रैटजी : बाहर पढ़ने जाओ और छात्रों को संघ से जोड़ो डॉ. हेडगेवार मैट्रिक परीक्षा पास करने वाले युवाओं को नागपुर से बाहर पढ़ने की सलाह देते थे। वे युवाओं से कहते थे कि अपने-अपने कॉलेजों में शाखा लगाइए, साथियों को संघ से जोड़िए।

छुट्टियों में जब वे युवा नागपुर आते थे, तो हेडगेवार उनसे शाखा के बारे में फीडबैक लेते थे। महाराष्ट्र से बाहर संघ की पहली शाखा 1930 में वाराणसी में लगी। दूसरे संघ प्रमुख रहे गोलवलकर वाराणसी की इसी शाखा से संघ से जुड़े।

डॉ. हेडगेवार की एक और रणनीति थी- शाखा में नियमित नहीं आने वाले लड़कों से मिलने के लिए वे उनके घर जाते थे। हेडगेवार की बातचीत से प्रभावित होकर कई परिवार खुद ही अपने बच्चों को शाखा में भेजने लगे। इससे दिन पर दिन संघ में आने वाले स्वयंसेवकों की संख्या बढ़ने लगी।

RSS शुरू करने वाले हेडगेवार की कहानी…

1 अप्रैल 1889 को नागपुर के एक वैदिक ब्राह्मण परिवार में केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म हुआ। हेडगेवार 6 भाई-बहनों में पांचवें नंबर पर थे। वे 14 साल के थे, तब प्लेग से उनके माता-पिता की मौत एक ही दिन हो गई। जिसके बाद बड़े भाई महादेव ने उनकी परवरिश की।

महादेव को अखाड़ों का शौक था। वे हेडगेवार को अपने साथ नागपुर के शिवराम गुरु अखाड़े में लेकर जाते थे। हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे बीएस मुंजे भी उस अखाड़े में जाते थे।

1904-05 की बात है। एक दिन मुंजे की नजर हेडगेवार पर पड़ी। दोनों के बीच बातचीत हुई और फिर वे नियमित रूप से मिलने लगे। दिनों भारत पर ब्रिटिश हुकूमत का राज था और देश में बंगाल विभाजन की गूंज थी। सीनियर जर्नलिस्ट विजय त्रिवेदी अपनी किताब ‘संघम् शरण् गच्छामि’ में लिखते हैं- ‘मुंजे अपने घर बुलाकर हेडगेवार को बम बनाने की ट्रेनिंग देते थे।’

1910 में मुंजे की सलाह पर वे डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए कलकत्ता चले गए। कहा जाता है कि डॉक्टरी की पढ़ाई तो बहाना था, असल में हेडगेवार को कलकत्ता में क्रांतिकारी गतिविधियां सीखनी थीं। इसीलिए मुंजे ने उन्हें कलकत्ता भेजा।

उन दिनों कलकत्ता क्रांतिकारियों का गढ़ हुआ करता था। यहां वे अनुशीलन समिति से जुड़ गए। इस समिति में अरविंद घोष और विपिनचंद्र पाल जैसे क्रांतिकारी शामिल थे।

वंदेमातरम आंदोलन के चलते हेडगेवार को स्कूल से बर्खास्त किया गया था। नाराज हेडगेवार ने एक पुलिस थाने पर बम फेंक दिया था। हालांकि, वो बम थाने में न गिरकर एक तालाब में जा गिरा था।
वंदेमातरम आंदोलन के चलते हेडगेवार को स्कूल से बर्खास्त किया गया था। नाराज हेडगेवार ने एक पुलिस थाने पर बम फेंक दिया था। हालांकि, वो बम थाने में न गिरकर एक तालाब में जा गिरा था।

1915 में डॉक्टरी पढ़कर कलकत्ता से लौटे हेडगेवार ने नौकरी करने की बजाय नागपुर में एक व्यायामशाला खोली। यहां वे युवाओं को व्यायाम के साथ-साथ उनके बीच ज्वलंत मुद्दों पर डिबेट कॉम्पिटिशन कराते थे। RSS हेडक्वार्टर के नजदीक आज भी वो व्यायामशाला है।

1910 से 1919 के बीच हेडगेवार ने कई छोटे संगठन बनाए, पर उसका कुछ खास परिणाम नहीं निकला। तब हेडगेवार ने तय किया कि नया संगठन बनाने के बजाय कांग्रेस से जुड़कर काम करना बेहतर होगा।

1919 में वे कांग्रेस के एक्टिव मेंबर बन गए। उस साल कांग्रेस के अमृतसर अधिवेशन में उन्होंने भाग भी लिया। अगले साल यानी 1920 में हिंदूवादी नेता एलवी परांजपे ने भारत स्वयंसेवक मंडल शुरू किया। इस संगठन का काम था कांग्रेस के अधिवेशनों के लिए ज्यादा से ज्यादा युवाओं को जुटाना। हेडगेवार भी इस संगठन से जुड़ गए।

दिसंबर 1920, सी. विजय राघवाचार्य की अध्यक्षता में नागपुर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। इसमें करीब 3 हजार कार्यकर्ता, 15 हजार डेलिगेट्स और हजारों लोग शामिल हुए। परांजपे और हेडगेवार को अधिवेशन में डेलिगेट्स के रहने और खाने की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी मिली थी।

उस अधिवेशन में हेडगेवार ने ‘विषय नियामक समिति’ का प्रस्ताव दिया, जिसे ठुकरा दिया गया। इस प्रस्ताव में हेडगेवार ने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग रखी थी। कहा जाता है कि उस दिन से ही हेडगेवार, कांग्रेस की लीडरशिप से नाराज रहने लगे थे।

1921 में उन्होंने महाराष्ट्र के कटोल और भरतवाड़ा में भाषण दिया। इसको लेकर अंग्रेजों ने उन पर देशद्रोह का मुकदमा लगाया। उन्हें जेल भेज दिया गया। जुलाई 1922 में जेल से निकलने के बाद हेडगेवार के स्वागत के लिए एक सभा आयोजित की गई, जिसमें मोतीलाल नेहरू भी शामिल थे।

इसी साल हेडगेवार को प्रदेश कांग्रेस का जॉइंट सेक्रेटरी बनाया गया। उन दिनों कांग्रेस वॉलंटियर्स के लिए हिंदुस्तानी सेवा दल चलता था। हेडगेवार को इसमें अहम जिम्मेदारी मिली, हालांकि वे अपने रोल से बहुत खुश नहीं थे। वे कुछ अलग करना चाहते थे। खिलाफत आंदोलन, मालाबार हिंसा और नागपुर दंगे के बाद आखिरकार 1925 में उन्होंने संघ की नींव रखी।

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