भारत के 5 राज्य; आधे से ज्यादा बाल विवाह यहीं, बिहार दूसरे नंबर पर
भारत के 5 राज्य; आधे से ज्यादा बाल विवाह यहीं, बिहार दूसरे नंबर पर
भारत में बाल विवाह की समस्या हर जगह एक जैसी नहीं है. कुछ राज्यों में यह समस्या बहुत गंभीर है, तो कुछ राज्यों में यह कम है. लक्षद्वीप में बाल विवाह की दर बहुत ही कम है, सिर्फ 1 फीसदी मामले ही आते हैं.
बाल विवाह का मतलब है 18 साल से कम उम्र के किसी बच्चे की किसी वयस्क या किसी और बच्चे से शादी कर देना. ये एक सामाजिक समस्या है. यह बच्चों के साथ अन्याय है और उनके हकों का हनन भी है. पूरी दुनिया इस बुराई को खत्म करना चाहती है. 2030 तक इसे पूरी तरह से खत्म करने का लक्ष्य तय किया गया है.
बाल विवाह लड़कियों की शिक्षा में बहुत बड़ी बाधा बनता है. ज्यादातर अविवाहित लड़कियां स्कूल जाती हैं, लेकिन जिन लड़कियों की शादी हो जाती है, उनमें से 10 में से 2 से भी कम लड़कियां स्कूल जाना जारी रख पाती हैं.
अक्सर लोग सोचते हैं कि सिर्फ लड़कियों की ही कम उम्र में शादी होती है, पर ऐसा नहीं है. लड़कों की भी होती है. लड़का हो या लड़की, जब तक वो बड़ा न हो जाए, शादी नहीं होनी चाहिए, ये उसका हक है.
दुनिया में सबसे ज्यादा बाल विवाह कहां
युनिसेफ की एंडिंग चाइल्ड मैरिज 2023 रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बाल विवाह एक गंभीर समस्या है. दुनियाभर में होने वाले बाल विवाह में से एक तिहाई भारत (23%) में ही होते हैं. सबसे ज्यादा 51% केस बांग्लादेश में आते हैं. इसके बाद नेपाल में 33%, अफगानिस्तान में 28%, भूटान में 26% मामले आए. दक्षिण एशिया के आठ देशों में बाल विवाह के मामले में भारत 5वें स्थान पर है.
भारत में लगभग हर चार में से एक युवती की शादी 18 साल की उम्र से पहले हो जाती है. अलग-अलग राज्यों में बाल विवाह की दर अलग-अलग है. पिछली पीढ़ियों की तुलना में आज बाल विवाह के मामले कम हो गए हैं. बीते 15 सालों में इसमें तेजी से कमी आई है. 2001 में जहां 49 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल से पहले हो जाती थी, वहीं 2021 में यह आंकड़ा घटकर 23 फीसदी रह गया है.
दक्षिण एशिया के दूसरे देशों के मुकाबले भारत ने इस मामले में काफी प्रगति की है. भारत में बाल विवाह में औसत वार्षिक कमी की दर 4.9% है. यह दक्षिण एशिया के अधिकांश देशों से ज्यादा है. मालदीव में बाल विवाह में कमी की दर सबसे ज्यादा (13.4%) है, लेकिन वहां शुरू से ही बाल विवाह की संख्या बहुत कम थी.
कुछ राज्यों में ज्यादा, कुछ में कम
भारत में बाल विवाह की समस्या हर जगह एक जैसी नहीं है. कुछ राज्यों में यह समस्या बहुत गंभीर है, तो कुछ राज्यों में यह कम है. संख्या के हिसाब से आधे से ज्यादा बाल विवाह 5 राज्यों में होते हैं: उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश. उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या सबसे ज्यादा है. प्रतिशत के हिसाब से पश्चिम बंगाल, बिहार और त्रिपुरा में 40 फीसदी से ज्यादा युवतियों की शादी 18 साल से पहले हो जाती है. इसके विपरीत लक्षद्वीप में बाल विवाह की दर बहुत ही कम है, सिर्फ 1 फीसदी.
इससे यह स्पष्ट होता है कि देश के अलग-अलग हिस्सों में बाल विवाह की समस्या अलग-अलग स्तर पर है. कुछ राज्यों में यह प्रथा आज भी गंभीर रूप से फैली हुई है, जबकि कुछ राज्यों में यह लगभग खत्म हो चुकी है.
किन लड़कियों को है सबसे ज्यादा खतरा?
गरीब परिवारों में अक्सर बेटियों की शादी कम उम्र में कर दी जाती है. रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 40% बाल विवाह के मामले गरीब परिवारों में देखने को मिले. इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे दहेज का बोझ कम करना या लड़की की सुरक्षा की चिंता. जिन लड़कियों को स्कूल जाने का मौका नहीं मिलता, उनके बाल विवाह होने की संभावना ज्यादा होती है. ऐसे 48% मामले देखने को मिले.
भारत में बाल विवाह को लेकर सबसे ज्यादा अंतर शिक्षा के स्तर में दिखाई देता है. जिन लड़कियों ने ज्यादा पढ़ाई की होती है, उनके बाल विवाह होने की संभावना बहुत कम होती है. जिन लड़कियों ने सिर्फ प्राथमिक शिक्षा हासिल की है, उनमें बाल विवाह की दर कुछ कम होती है. शिक्षा लड़कियों को अपने अधिकारों के बारे में जागरूक बनाती है. शिक्षित लड़कियां अपने लिए बेहतर निर्णय ले सकती हैं और बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ आवाज उठा सकती हैं. वहीं शहरों के मुकाबले गांव में बाल विवाह ज्यादा होते हैं. इसका एक कारण यह है कि गांव में लोगों में जागरूकता की कमी होती है. साथ ही, गांवों में सामाजिक दबाव भी ज्यादा होता है.
कम उम्र में शादी, कम उम्र में मां
भारत में जिन लड़कियों की शादी बचपन में हो जाती है, उनमें से ज्यादातर लड़कियां किशोरावस्था पूरी होने से पहले ही मां बन जाती हैं. यह एक चिंताजनक स्थिति है, क्योंकि इससे लड़कियों की हेल्थ और भविष्य पर बुरा असर पड़ता है. जिन लड़कियों की शादी 15 साल से पहले हो जाती है, उनमें से 84 फीसदी लड़कियां 18 साल की उम्र से पहले ही माँ बन जाती हैं. जिन लड़कियों की शादी 15 से 18 साल के बीच होती है, उनमें से 77 फीसदी लड़कियां 18 साल की उम्र से पहले ही मां बन जाती हैं.
किशोरावस्था में मां बनने से लड़कियों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. जैसे: किशोरावस्था में शरीर मां बनने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं होता है. इससे लड़कियों और उनके बच्चों दोनों को स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं. मां बनने के बाद लड़कियों को अक्सर अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ती है. कम उम्र में मां बनने से लड़कियां गरीबी के चक्र में फंस सकती हैं.
बाल विवाह के आंकड़े: कैसे हुई गणना?
भारत में बाल विवाह की स्थिति को समझने के लिए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है. यह सर्वेक्षण साल 1992-93, 1997-98, 2005-06, 2015-16 और 2019-21 में किया गया था. इन सर्वेक्षणों में अलग-अलग उम्र की लड़कियों और महिलाओं से पूछा गया कि उनकी शादी किस उम्र में हुई, पढ़ाई कहां तक की है, उनका पारिवारिक स्तर कैसा है. इसके बाद बाल विवाह के आंकड़ों को इकट्ठा करके उनका विश्लेषण किया गया.
बाल विवाह को खत्म करने के लिए, यूनिसेफ ने 2016 में UNFPA के साथ मिलकर एक ग्लोबल प्रोग्राम शुरू किया. इस प्रोग्राम का मकसद उन लड़कियों को सशक्त बनाना है जिन्हें बाल विवाह का खतरा है या जिनकी शादी हो चुकी है. 2016 से अब तक इस प्रोग्राम के ज़रिए 2.1 करोड़ से ज्यादा किशोरियों को जिंदगी जीने के लिए जरूरी कौशल, यौन शिक्षा और स्कूल जाने में मदद मिली है. इसके अलावा 35.3 करोड़ से ज्यादा लोगों को बाल विवाह के खिलाफ जागरूक किया गया है