न्याय की देवी की कहानी !

न्याय की देवी की कहानी …

यूनान-मिस्र से शुरुआत, भारत में 17वीं शताब्दी में आई मूर्ति यूं बनी व्यवस्था का हिस्सा

Idol of Justice: न्याय की प्रतीक माने जाने वाली देवी की प्रतिमा में बदलाव किया गया है। न्याय की प्रतीक देवी की आंखों पर बंधी पट्टी हट गई है। हाथ में तलवार की जगह भी अब संविधान ने ले ली। न्याय की देवी की अवधारणा प्राचीन ग्रीक और मिस्र के समय से चली आ रही है। इन मूर्तियों की तुलना न्याय की रोमन देवी ‘जस्टिसिया’ से की जाती है।

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न्याय की देवी की मूर्ति में बदलाव –

देश की सबसे बड़ी अदालत ने न्याय के प्रतीक को नए रूप में परिभाषित किया है। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी की नई मूर्ति का अनावरण किया गया। मूर्ति की आंखों से पट्टी हटा दी गई है और अब उनके हाथ में तलवार के स्थान पर संविधान है। यह मूर्ति इसलिए लगाई गई है ताकि यह संदेश दिया जा सके कि देश में कानून सभी को एकसमान रूप से देखता है।

आइये जानते हैं कि न्याय की देवी की मूर्ति में क्या बदलाव हुआ है? यह फैसला क्यों लिया गया है? मूर्ति के प्रतीकों का मतलब क्या है? न्याय की देवी की मूर्ति का इतिहास क्या है?

मूर्ति में क्या बदलाव हुआ है और क्यों?
भारतीय संविधान लागू होने के 75वें वर्ष में न्याय की प्रतीक देवी की आंखों पर बंधी पट्टी हट गई है। हाथ में तलवार की जगह भी अब संविधान ने ले ली। जानकारी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बदलाव में खास भूमिका है। उनके निर्देश पर देवी की प्रतिमा बदली गई है। सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की लाइब्रेरी में नई प्रतिमा लगाई गई है। पहले देवी की आंखों पर पट्टी होती थी। एक हाथ में तराजू, दूसरे में सजा की प्रतीक तलवार थी।प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ का मानना है कि भारत को अंग्रेजी विरासत से आगे निकलने की जरूरत है। कानून कभी अंधा नहीं होता। वह सभी को एकसमान रूप से देखता है। इसलिए न्याय की देवी का स्वरूप भी बदला जाना चाहिए। हाथ में संविधान संदेश देता है कि न्याय संविधान के अनुसार किया जाता है। दूसरे हाथ में तराजू इस बात का प्रतीक है कि कानून की नजर में सभी समान हैं।

बदली हुई मूर्ति की विशेषताएं क्या हैं?
न्याय की देवी की नई मूर्ति सफेद रंग की है और इसमें देवी को भारतीय परिधान में दिखाया गया है। उन्हें साड़ी पहने दिखाया गया है। मूर्ति में देवी के सिर पर एक सुंदर मुकुट, माथे पर बिंदी और कानों और गर्दन पर पारंपरिक आभूषण भी हैं। इसके अलावा, देवी ने एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में संविधान धारण किया हुआ है। 
न्याय की देवी की मूर्ति
न्याय की देवी की मूर्ति – 
किस प्रतीक का क्या महत्व?
पुरानी मूर्ति में आंखों पर पट्टी का मतलब था कि कानून सबके साथ समान व्यवहार करता है। उनके हाथ में तलवार कानून की शक्ति का प्रतीक है जो गलत काम करने वालों को दंडित करती है। हालांकि, नई मूर्ति में एक चीज जो नहीं बदली है, वह है तराजू। देवी के हाथ में तराजू इस बात का प्रतीक है कि अदालत फैसला लेने से पहले दोनों पक्षों की बात ध्यान से सुनती है। तराजू संतुलन का प्रतीक है।
 
कहां-कहां मिलती हैं ये प्रतिमाएं?
न्याय की देवी की प्रतिमा अलग-अलग रूप में दुनिया भर में पाई जाती हैं। मशहूर कनाडाई वास्तुकला कंपनी हीदर एंड लिटिल के अनुसार, ये कलाकृतियां पेंटिंग, मूर्तिकला, हथियारों के कोट या धातु की मूर्तियों के रूप में दुनिया भर में दिखती हैं। उत्तरी या दक्षिणी अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका, मध्य पूर्व, दक्षिणी और पूर्वी एशिया और ऑस्ट्रेलिया में न्यायालयों, कानूनी कार्यालयों और कानूनी और शैक्षणिक संस्थानों में न्याय की देवी की मूर्ति देखने को मिलती है। हीदर एंड लिटिल के मुताबिक, इस प्रतिमा का इतिहास कई हजार साल पुराना है और वह आमतौर पर न्याय के प्रतीक होती है।
प्रतिमा का इतिहास क्या है?
न्याय की देवी की अवधारणा बहुत पुरानी है, जो प्राचीन ग्रीक और मिस्र के समय से चली आ रही है। ग्रीक देवी ‘थीमिस’ कानून, व्यवस्था और न्याय का प्रतिनिधित्व करती थीं, जबकि मिस्र में यह मात थीं, जो व्यवस्था का प्रतीक थीं और तलवार और सत्य का पंख दोनों रखती थीं। हालांकि, इन मूर्तियों की तुलना न्याय की रोमन देवी ‘जस्टिसिया’ से की जाती है।न्याय की महिला जैसी कुछ पहली मूर्तियां मिस्र की देवी मात से मिलती-जुलती हैं, जो उस प्राचीन समाज में सत्य और व्यवस्था का प्रतीक थीं। बाद में प्राचीन यूनानियों ने देवी थेमिस (ईश्वरीय कानून और रीति-रिवाज का प्रतीक) और उनकी बेटी डाइक की पूजा की। थेमिस ईश्वरीय कानून और रीति-रिवाज का प्रतीक थीं तो डाइक के नाम का अर्थ है न्याय। डाइक को हमेशा तराजू की एक जोड़ी लिए हुए दिखाया जाता था और ऐसा माना जाता था कि वह मानवीय कानून पर शासन करती थीं।

प्राचीन रोम के लोग जस्टिसिया या लस्टिसिया का सम्मान करते थे, जो आधुनिक समय में बनी न्याय की देवी की मूर्तियों से सबसे अधिक मिलती जुलती है। वह न्याय व्यवस्था की नैतिकता का प्रतिनिधित्व करती थीं।
 

पुरानी प्रतिमा में किस प्रतीक का क्या मतलब?
संतुलन तराजू :
 ये निष्पक्षता और कानून के दायित्व को दर्शाते हैं कि अदालत में प्रस्तुत साक्ष्य को तौलना चाहिए। कानूनी मामले के प्रत्येक पक्ष को देखा जाना चाहिए और न्याय करते समय तुलना की जानी चाहिए।
तलवार : यह कानून प्रवर्तन और सम्मान का प्रतीक है और इसका अर्थ है कि न्याय अपने निर्णय और फैसले पर कायम है और कार्रवाई करने में सक्षम है। तलवार खुली हुई है और यह इस बात का संकेत है कि न्याय पारदर्शी है और डर का साधन नहीं है। दोधारी तलवार यह दर्शाती है कि न्याय सबूतों के अध्ययन के बाद किसी भी पक्ष के खिलाफ फैसला सुना सकता है और यह फैसले को लागू करने के साथ-साथ निर्दोष पक्ष की रक्षा या बचाव करने के लिए बाध्य है।

आंखों पर पट्टी: यह पहली बार 16वीं शताब्दी में लेडी जस्टिस की मूर्ति पर दिखाई दिया था और तब से इसका इस्तेमाल होता रहा है। इसका मूल महत्व यह था कि न्यायिक व्यवस्था कानून के पहलुओं के दुरुपयोग या अज्ञानता को सहन कर रही थी। हालांकि, आधुनिक समय में आंखों पर पट्टी कानून की निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता का प्रतिनिधित्व करती है। यह राजनीति, धन या शोहरत जैसे बाहरी वजहों को अपने निर्णयों को प्रभावित नहीं करने देती है।

भारत में कब से इस्तेमाल हो रही थी यह मूर्ति?
रिपोर्ट्स के अनुसार, 17वीं शताब्दी में एक अंग्रेज अफसर पहली बार इस मूर्ति को भारत लाए थे। यह अफसर एक न्यायालय अधिकारी थे। 18वीं शताब्दी में ब्रिटिश राज के दौरान न्याय की देवी की मूर्ति का सार्वजनिक रूप से इस्तेमाल होने लगा।

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