जम्मू-कश्मीर में बदलाव का सवेरा …अनुच्छेद 370 हटने के बाद !
मुद्दा: जम्मू-कश्मीर में बदलाव का सवेरा, अनुच्छेद 370 हटने के बाद उन्नति की आस
अगस्त 2019 से जम्मू-कश्मीर में फारूख अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस और महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) लगातार कश्मीर घाटी के निवासियों के सामने अनुच्छेद 370 का हटाना इस प्रकार दिखा रही हैं, जैसे केंद्र सरकार ने इस राज्य को गुलाम बना लिया हो। लेकिन पूरे राज्य के निवासी अनुच्छेद 370 की सच्चाई को पहचान गए हैं, जिसका प्रमाण उन्होंने लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में सक्रिय रूप से भाग लेकर प्रदर्शित कर दिया है। इसलिए अनुच्छेद 370 की सच्चाई देश के सामने लाना आवश्यक है।
जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के पहले से ही शेख अब्दुल्ला कश्मीर की राजनीति में सक्रिय थे। उन्होंने प्रधानमंत्री पंडित नेहरू पर राज्य के लिए विशेष अधिकारों के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया, जबकि ऐसी शर्त राज्य के विलय के समय महाराजा हरि सिंह ने नहीं रखी थी। 1949 में भारत का संविधान तैयार किया जा रहा था और शेख अब्दुल्ला के दबाव में पंडित नेहरू ने बिना केंद्रीय मंत्रिमंडल की सहमति के जम्मू-कश्मीर को सुरक्षा, विदेश, वित्त और संचार नीति के अलावा अन्य सभी क्षेत्रों में पूर्ण स्वतंत्रता और अधिकार देने का प्रावधान करने के लिए संविधान में अनुच्छेद 370 शामिल करने की अनुमति प्रदान कर दी। इसके अनुसार, जम्मू-कश्मीर राज्य में भारतीय संविधान लागू नहीं होगा। भारत में अंग्रेजी समय से लागू भारतीय अपराध संहिता (आईपीसी) और सीआरपीसी के स्थान पर रणवीर सिंह पुरा ऐक्ट लागू किया गया, जो जम्मू कश्मीर राज्य में 1932 में वहां के राजा रणवीर सिंह ने लागू किया था। शेख अब्दुल्ला के ही दबाव में पंडित नेहरू ने भारत के राष्ट्रपति के आदेश पर अनुच्छेद 35ए का भी विशेष प्रावधान इस राज्य के लिए कर दिया था।
दिखावे के लिए 2019 से पहले यहां पर प्रजातांत्रिक प्रणाली थी, परंतु वास्तव में सत्ताधारी राजनीतिक शासक इन शक्तियों को राजाओं और नवाबों की तरह इस्तेमाल कर रहे थे। बाहरी निवेश न होने के कारण राज्य में चारों तरफ बेरोजगारी फैल गई। पाकिस्तान ने राज्य की इस स्थिति का फायदा उठाया और राज्य में ड्रग्स की तस्करी व आतंकवाद को बढ़ावा देना शुरू कर दिया। अनुच्छेद 370 पाकिस्तान की मदद कर रहा था। विशेष अधिकारों की वजह से केंद्र सरकार भी जम्मू-कश्मीर को अन्य राज्यों के मुकाबले बजट से ज्यादा धन देती थी, लेकिन यह सब भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता था, जिसका विवरण पूर्व राज्यपाल जगमोहन ने अपनी पुस्तक माई फ्रोजन टर्बुलेंस में किया है। उन्होंने एक कैबिनेट मीटिंग का वर्णन करते हुए लिखा है कि राज्य पुलिस में होने वाली 120 सब इंस्पेक्टर के पदों की भर्ती में मंत्री अपने चहेतों के लिए पदों की मांग कर रहे थे और पदों की संख्या के लिए लड़ाई कर रहे थे। इसी प्रकार वहां की शिक्षा, यातायात और अन्य विभागों में भ्रष्टाचार के जरिये सत्ताधारियों के लोगों को पद दिए जाते थे। इन सबसे पूरे राज्य में अव्यवस्था तथा असंतोष फैल गया और इनका ही परिणाम था कि जिस प्रकार 1948 में यहूदियों को पूरे अरब देशों से निष्कासित किया गया था, उसी प्रकार राज्य की प्रगति में योगदान देने वाले चार लाख कश्मीरी पंडितों को हिंसा के जरिये आतंकियों और कट्टरपंथियों ने कश्मीर से बाहर भगा दिया।
पृथ्वी का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर राज्य की दुर्गति पिछले काफी समय से देश की जनता देख रही थी और इन सब दुर्गति में पूरा योगदान अनुच्छेद 370 और 35ए का था। इसलिए इस राज्य में सही अर्थों में प्रजातंत्र स्थापित करने के लिए जम्मू-कश्मीर से राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 370 और 35ए को सितंबर 2019 में हटवा दिया गया। अब दोबारा कश्मीर घाटी पृथ्वी का स्वर्ग बन गई है। पर्यटक आ रहे हैं, रोजगार बढ़ रहे हैं और लोग शांति महसूस कर रहे हैं।