भारत में बढ़ती महंगाई से परेशान है जनता … कमर तोड़ती महंगाई!

कमर तोड़ती महंगाई! रोटी-दाल पर खर्च कर पाना मुश्किल, क्या बढ़ती कीमतों से त्यौहारों पर लगा ग्रहण
भारत में अगस्त के महीने में खुदरा महंगाई दर 3.65 प्रतिशत थी, जो एक महीने बाद ही यानी  सितंबर में बढ़कर 5.49 प्रतिशत पर पहुंच गई.

दिवाली का त्योहार हर साल लक्ष्मी माता की आराधना और समृद्धि की कामना के साथ मनाया जाता है. घरों में मां लक्ष्मी की स्तुति करने के लिए भक्तिपूर्ण आरतियां गूंजती हैं, लेकिन इस बार मां लक्ष्मी के आगमन की तैयारियों में सबसे बड़ी बाधा महंगाई बन गई है.

दरअसल भारत में बढ़ती कीमतों ने न सिर्फ यहां के लोगों के त्योहारों की खुशियों को प्रभावित किया है, बल्कि महंगाई के कारण ही कई लोग अपनी भी स्थगित कर रहे है. सजावट से लेकर मिठाइयों तक, हर चीज पर महंगाई ने ताले लगवा दिए हैं. ऐसे में सवाल उठता है—क्या इस बार हम लक्ष्मी माता का स्वागत पूरे उत्साह के साथ कर पाएंगे, या महंगाई के साए में दिवाली फीकी रह जाएगी?

क्या कहते हैं आंकड़े

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के आंकड़ों की मानें तो भारत में अगस्त के महीने में खुदरा महंगाई दर 3.65 प्रतिशत थी, जो एक महीने बाद ही यानी  सितंबर में बढ़कर 5.49 प्रतिशत पर पहुंच गई. यानी एक ही महीने में महंगाई दर में 2 प्रतिशत का उछाल देखने को मिला है. महीने-दर-महीने के आधार पर, देखें तो सितंबर के महीने में सब्जियों की महंगाई दर 35.99 प्रतिशत पर पहुंच गई, जबकि यही दर अगस्त के महीने में 10.71 प्रतिशत थी. 

अनाज, दूध, फल और अंडों की कीमतों में भी महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है. रिपोर्ट के अनुसार दालों और अन्य उत्पादों की महंगाई दर अगस्त में 13.6 प्रतिशत से घटकर 9.81 प्रतिशत पर आ गई है.

खाने के तेल की कीमतों में इजाफा 

इस त्योहारी सीजन में खाने के तेल की कीमतों में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है. हालिया मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, पिछले एक महीने में पाम ऑयल की कीमतों में 37 फीसदी की वृद्धि हुई है, जिसने घरेलू बजट को प्रभावित किया है. इसके साथ ही, रेस्तरां, होटल और मिठाई की दुकानों की लागत भी बढ़ गई है, क्योंकि वे स्नैक्स तैयार करने के लिए तेल का इस्तेमाल करते हैं. इसी अवधि के दौरान, घरों में सामान्यत इस्तेमाल होने वाले सरसों के तेल की कीमत में भी 29 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. 

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तेल की कीमत क्यों बढ़ी?

तेल की कीमतों में बढ़ोतरी तब हुई है जब सब्जियों और अन्य खाद्य वस्तुओं की ऊंची कीमतों के कारण सितंबर में खुदरा महंगाई 5.5 प्रतिशत के नौ महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई. इसके अलावा, सरकार ने पिछले महीने कच्चे सोयाबीन, पाम और सूरजमुखी तेल पर आयात शुल्क बढ़ा दिया, जिससे कीमतों में उछाल आया. 14 सितंबर से कच्चे पाम, सोयाबीन और सूरजमुखी तेल पर आयात शुल्क को 5.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 27.5 प्रतिशत और रिफाइंड फूड ऑयल पर 13.7 प्रतिशत से बढ़ाकर 35.7 प्रतिशत कर दिया गया है. 

महंगाई कैसे कर रहा त्योहार का मजा किरकिरा  

इस सवाल के जवाब में इकोनॉमिस्ट विकास बंसल ने एबीपी लाइव से बात करते हुए कहा कि देश में महंगाई इस स्तर तक बढ़ गई है कि लोगों का ध्यान अब केवल जरूरत की चीजों पर केंद्रित हो गया है. पहले, जरूरत में केवल रोटी, कपड़ा और मकान शामिल था, लेकिन अब स्वास्थ्य और शिक्षा भी इस लिस्ट में शामिल हैं. 

उन्होंने आगे कहा कि मंहगाई बढ़ने के कारण आम आदमी की आय इन पांच बुनियादी चीज़ों पर ही खर्च हो रही है. यही कारण है कि मिडिल क्लास परिवारों के शौक पूरे नहीं हो पा रहे हैं. रेस्टोरेंट में खाने जाना, मल्टीप्लेक्स में फिल्में देखना, घूमने-फिरने और शॉपिंग करने जैसे शौक अब धरे रह गए हैं. 
हालांकि, मिडिल क्लास परिवारों को अपने बच्चों की स्कूल फीस भरने या बुजुर्गों की दवाइयों का खर्च उठाने में कोई खास दिक्कत नहीं हो रही, लेकिन उनके मनोरंजन और शौक पूरे करने की संभावनाएं सीमित होती जा रही हैं. 

क्या है महंगाई बढ़ने के कारण ?

इकोनॉमिस्ट विकास बंसल ने कहा कि, वर्तमान में वैश्विक मंदी का दौर चल रहा है, जिसका असर भारत पर भी पड़ रहा है. उन्होंने आगे कहा कि एक तरफ, प्राइवेट सेक्टर में कर्मचारियों की सैलरी नहीं बढ़ी है, और अगर बढ़ी भी है, तो बहुत कम. दूसरी तरफ, व्यापारियों की कमाई भी घट गई है. इसका मुख्य कारण यह भी है कि पहले रूस-यूक्रेन का युद्ध चल रहा था, और अब इजराइल-हिजबुल्लाह के बीच संघर्ष हो रहा है. जब दुनिया के बड़े हिस्से में युद्ध होता है, तो इससे सभी देशों को समस्याएं होती हैं.

विकास आगे कहते हैं कि इन युद्धों के कारण जर्मनी और अमेरिका की अर्थव्यवस्था भी कमजोर हो गई है. क्योंकि भारत अमेरिका को आईटी सेवाएं प्रदान करता है, ऐसे में जब अमेरिका की अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है, तो इसका सीधा असर भारत पर भी पड़ता है.

अब इस असर को उदाहरण के तौर पर ऐसे समझिये कि, मोहल्ले की एक सड़क पर दंगे हो रहे हैं और दूसरी सड़क पर आपकी दुकान है. ऐसी स्थिति में, ग्राहक आपकी दुकान पर नहीं आएंगे, और आप बाहर से सामान भी नहीं आ पाएगा. यानी भले ही आपकी दुकान का उन दंगों से किसी तरह का कोई लेना-देना न हो, लेकिन इससे आपका कारोबार प्रभावित होगा. अगर कोई ग्राहक आएगा, तो वह सिर्फ जरूरी सामान खरीदने आएगा, जबकि लग्जरी चीजें खरीदने का तो सवाल ही नहीं. यही कारण है कि महंगाई बढ़ रही है. 

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भारत में कैसे मापी जाती है महंगाई 

भारत सरकार महंगाई को मापने के लिए मुख्य रूप से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) और थोक मूल्य सूचकांक (WPI) का उपयोग करती है. CPI उपभोक्ताओं द्वारा खरीदी जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों को दर्शाता है, जिसमें खाद्य वस्तुएं, आवास, कपड़े, स्वास्थ्य सेवाएं, परिवहन और शिक्षा शामिल हैं. इसे हर महीने अपडेट किया जाता है और इसी के आधार पर महंगाई की दर का आंकलन किया जाता है.

दूसरी तरफ, WPI यानी थोक मूल्य सूचकांक उत्पादन स्तर पर वस्तुओं की कीमतों को मापता है, जिसमें कच्चे माल और थोक स्तर पर बिकने वाली वस्तुओं की कीमतें शामिल होती हैं. यह कृषि, उद्योग, और खनन से जुड़े उत्पादों के लिए उपयोग होता है. महंगाई मापने की प्रक्रिया में विभिन्न बाजारों से कीमतों का डेटा इकट्ठा किया जाता है, फिर विभिन्न वस्तुओं को उनके महत्व के अनुसार वजन दिया जाता है. अंत में, इन आंकड़ों के आधार पर CPI और WPI के सूचकांक तैयार किए जाते हैं.

भारत सरकार की सांख्यिकी मंत्रालय नियमित रूप से इन सूचकांकों की रिपोर्ट जारी करता है, जो नीतिगत निर्णय लेने और आर्थिक स्थिरता बनाए रखने में मदद करती है. 

महंगाई का इकोनॉमी पर क्या प्रभाव पड़ता है?

भारत में महंगाई का अर्थव्यवस्था पर कई महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है. सबसे पहले, जब महंगाई बढ़ती है, तो उपभोक्ताओं की खरीदारी शक्ति घट जाती है. इससे रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए खर्च बढ़ जाता है, जिससे लोगों को अपनी बचत या अन्य खर्चों में कटौती करनी पड़ती है. यह उपभोक्ता खर्च में कमी लाता है, जो आर्थिक वृद्धि को प्रभावित कर सकता है.

इसके अलावा, बढ़ती महंगाई का असर व्यवसायों पर भी पड़ता है. कंपनियों को उत्पादन के लिए कच्चे माल की उच्च कीमतें चुकानी पड़ती हैं, जिससे उनकी लागत बढ़ जाती है. इस स्थिति में, कंपनियां या तो अपने उत्पादों की कीमतें बढ़ाती हैं या मुनाफे में कटौती करती हैं, जिससे बाजार में प्रतिस्पर्धा प्रभावित होती है.

महंगाई के बढ़ने पर भारतीय रिजर्व बैंक ब्याज दरें बढ़ा सकता है, जिससे उधारी महंगी हो जाती है. उच्च ब्याज दरें निवेश को प्रभावित करती हैं, क्योंकि व्यवसाय और उपभोक्ता दोनों उधारी के लिए अधिक राशि चुकाते हैं. इससे आर्थिक गतिविधियों में कमी आ सकती है.

महंगाई का एक और प्रभाव सरकार के बजट पर पड़ता है. जब महंगाई बढ़ती है, तो सरकार को सब्सिडी और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के लिए अधिक खर्च करना पड़ता है, जिससे सरकारी खजाने पर दबाव बढ़ता है. यह स्थिति अंततः आर्थिक विकास को धीमा कर सकती है.

इस तरह, महंगाई का प्रभाव केवल व्यक्तिगत उपभोक्ताओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यापक रूप से आर्थिक स्थिरता, व्यवसायिक गतिविधियों, और सरकारी नीतियों को प्रभावित करता है।

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