लंदन से सीखकर कैसे प्रदूषण पर काबू पा सकती है दिल्ली?
लंदन से सीखकर कैसे प्रदूषण पर काबू पा सकती है दिल्ली? किन तरीकों से मिलेगी दमघोंटू हवा से आजादी
भारत में हर साल 1.6 मिलियन लोग वायु प्रदूषण के कारण मरते हैं, लेकिन बावजूद इसके भारत में इस समस्या के समाधान के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं.
हवा में प्रदूषण की खतरनाक वृद्धि सिर्फ एक पर्यावरणीय समस्या ही नहीं, बल्कि लोगों की जान और स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा बन चुका है. हर साल लाखों लोग वायु, जल और मिट्टी के प्रदूषण से गंभीर बीमारियों का शिकार होते हैं.
अगर हम इस स्थिति को नजरअंदाज करते हैं, तो इसके परिणाम बेहद गंभीर हो सकते हैं. इसलिए, प्रदूषण के कारणों को समझना और उनके समाधान खोजना बेहद जरूरी है. ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते कि दिल्ली को प्रदूषण पर काबू करने के लिए क्या करना चाहिये और किस देश से सीख लेनी चाहिये.
लंदन से क्या सीख सकता है दिल्ली
दिसंबर 1952 में, लंदन में इतना घना कोहरा छाया कि लोग एक मीटर से ज्यादा नहीं देख पा रहे थे. यह कोहरा हर साल सर्दियों में होता था. इस कोहरे और प्रदूषण के कारण इस साल यानी 1952 में यहां लगभग 4,000 से 12,000 लोगों की मौत हुई थी, जो कि कोविड-19 के समय में हुई मौतों से भी ज्यादा है. हालांकि यह कोहरा ज्यादा समय तक नहीं रहा. हवा बदली और सरकार और जनता ने प्रदूषण के खतरों को समझा.
लंदन में तत्कालीन सरकार ने बढ़ते प्रदूषण पर काबू पाने के लिए एक नया क्लीन एयर एक्ट पारित किया. इस एक्ट के तहत सबसे पहले, जहरीले कोयले पर रोक लगाई गई. धीरे-धीरे कोयले को गैस से बदल दिया गया और प्रदूषण फैलाने वाले कारखाने बंद कर दिए गए. उत्तरी सागर का गैस मिलना आसान होने के बाद, कोयला लगभग पूरी तरह से हटा दिया गया. इसके साथ-साथ सार्वजनिक परिवहन में भी सुधार किया गया, जिससे सड़क पर वाहनों की संख्या कम हुई.
लंदन ने प्रदूषण को कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं, जैसे कि लो एमिशन जोन और अल्ट्रा-लो एमिशन जोन. हालांकि यहां की हवा अभी भी विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों को पूरा नहीं करती, लेकिन दिल्ली की तुलना में बहुत बेहतर है.
क्या है लो एमिशन जोन (LEZ)
लो एमिशन जोन (LEZ) एक ऐसा क्षेत्र है जहां वायु प्रदूषण को कम करने के लिए विशेष नियम लागू किए जाते हैं. इस जोन में सिर्फ उन वाहनों को प्रवेश की अनुमति होती है जो निर्धारित प्रदूषण मानकों को पूरा करते हैं. आमतौर पर, यह नियम भारी और डीजल वाहनों, साथ ही पुराने मॉडल के वाहनों पर लागू होते हैं, क्योंकि ये अधिक प्रदूषण फैलाते हैं.
इस जोन का मुख्य उद्देश्य वायु गुणवत्ता को सुधारना और सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा करना है. दुनिया के कई शहरों, जैसे लंदन और बर्लिन, ने लो एमिशन जोन लागू किया है, और इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं. यह न केवल प्रदूषण को कम करने में मदद करता है, बल्कि बेहतर परिवहन विकल्पों, जैसे सार्वजनिक परिवहन और पैदल चलने, को भी बढ़ावा देता है.
इस प्रकार, लो एमिशन जोन एक प्रभावी नीति है, जिसका लक्ष्य स्वच्छ हवा सुनिश्चित करना और शहरों में प्रदूषण के दुष्प्रभावों को कम करना है.
क्या है अल्ट्रा-लो एमिशन जोन
अल्ट्रा-लो एमिशन जोन (ULEZ) एक विशेष क्षेत्र है जहां अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों पर सख्त प्रतिबंध लगाए जाते हैं. इस जोन का उद्देश्य हवा की गुणवत्ता को बेहतर बनाना और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों को कम करना है. ULEZ में प्रवेश करने वाले वाहनों को बहुत सख्त प्रदूषण मानकों को पूरा करना होता है. जो वाहन इन मानकों को पूरा नहीं करते, उन्हें इस क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए शुल्क देना पड़ता है. यह शुल्क प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को कम करने के लिए एक प्रोत्साहन के रूप में कार्य करता है.
इस तरह के जोन का प्रभावी ढंग से लागू करना शहरों में स्वच्छ हवा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है. कई शहरों, जैसे लंदन, ने ULEZ लागू किया है, जिससे वायु प्रदूषण में कमी आई है और नागरिकों की सेहत में सुधार हुआ है. ULEZ का मुख्य उद्देश्य अधिक से अधिक लोगों को स्वच्छ और सुरक्षित परिवहन विकल्पों की ओर प्रोत्साहित करना है.
भारत में प्रदूषण के कारण हर साल मरते हैं 1.6 मिलियन लोग
अब बात करें नीति बनाने की तो वैज्ञानिक रिसर्च कहती है कि वायु प्रदूषण जानलेवा है. भारत में हर साल 1.6 मिलियन लोग वायु प्रदूषण के कारण मरते हैं, जो कोविड से भी ज्यादा है. लेकिन बावजूद इसके भारत में इस समस्या के समाधान के लिए तत्काल कदम नहीं उठाए जा रहे हैं.
भारत में सड़क की धूल भी प्रदूषण का एक बड़ा कारण है, जो लंदन में इतनी ज्यादा नहीं है. इसके अलावा दिल्ली में वाहनों से होने वाला प्रदूषण भी एक मुख्य समस्या है. अगर हम पूरी तरह से इलेक्ट्रिक वाहन भी ले आएं, तब भी प्रदूषण कम नहीं होगा. गंगा के मैदानी इलाकों में प्रदूषण आसानी से फैलता है, इसलिए हमें सामूहिक प्रयास करने की जरूरत है.
दिल्ली में अगर बढ़ रहे प्रदूषण पर काबू पाना है तो परिवहन में सुधार करना एक बड़ा कदम होगा. अगर दिल्ली BS III वाहनों पर रोक लगा सकती है, तो यह एक अच्छी शुरुआत हो सकती है, हालांकि इस शहर में बढ़ रहे प्रदूषण को रोकने के लिए और और भी बहुत कुछ करना है.
हमें फसल जलाने और पटाखों पर भी ध्यान देना चाहिए, लेकिन सबसे पहले हमें मुख्य कारणों पर कार्रवाई करनी चाहिए. जब प्रदूषण कम हो जाएगा, तो लोग फिर से ध्यान नहीं देंगे, लेकिन लंदन के अनुभव ने दिखाया है कि लगातार प्रयास जरूरी हैं. अगर 1.6 मिलियन मौतें भी लोगों को जागरूक नहीं कर पा रही हैं, तो और क्या कर सकती हैं.
ठंड में क्यों बढ़ जाते हैं प्रदूषण
दिल्ली में वायु प्रदूषण के मुद्दे पर काम करने वाले सीएक्यूएम यानी ‘द कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट’ ने बीबीसी की एक रिपोर्ट में बताया कि कि राजधानी दिल्ली में पूरे साल प्रदूषण होता है, लेकिन यह सर्दियों में ज़्यादा नज़र आता है. उन्होंने कहा कि सर्दियों में कम तापमान होने के कारण और हवा नहीं चलने और बारिश नहीं होने से प्रदूषण करने वाले कण ज़मीन की सतह के करीब जमा होने लगते हैं.
वहीं ग्रीनपीस जो पर्यावरण के लिए काम करने वाली एक संस्था है की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत की राजधानी दिल्ली दुनियाभर में सभी देशों की राजधानी में सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहर है. इसी रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के सबसे ज़्यादा प्रदूषित 15 शहरों में 12 शहर भारत के हैं. इसके अलावा विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 30 सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहर भारत में हैं जहां पीएम 2.5 की सालाना सघनता सबसे ज़्यादा है.
दिल्ली में प्रदूषण पर काबू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
दिवाली के अगले दिन दिल्ली में लोगों को सांस लेने में तकलीफ होने लगी थी. जिसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए बने क़ानूनों को लेकर केंद्र सरकार, पंजाब और हरियाणा की राज्य सरकारों पर तीखी टिप्पणी की है और कहा है ये नियम या कानून किसी काम के नहीं हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि साफ और प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहना नागरिकों का मौलिक अधिकार है और नागरिकों के अधिकार की रक्षा करना केंद्र और राज्य सरकारों का कर्तव्य है.