भारत महिलाएं क्यों ज्यादा करती हैं बिना वेतन का काम?
भारत की अर्थव्यवस्था में बिना वेतन वाले काम की जगह: क्यों महिलाएं हैं सबसे आगे?
आजकल कई देशों में घर के काम की असली कीमत का पता लगाने के लिए सर्वे हो रहे हैं. एशिया-पैसिफिक इकोनॉमिक कोऑपरेशन सर्वे के मुताबिक, दुनियाभर में घर के काम की कुल कीमत दुनिया की कुल कमाई का करीब 9% है.
कभी सोचा है कि घर में खाना बनाना, कपड़े धोना, बच्चों की देखभाल करना ये सब काम क्यों सिर्फ महिलाएं करती हैं? और ये सब काम इतने जरूरी क्यों हैं? हाल ही में एक रिसर्च में पता चला है कि ये सारे काम करने वाली महिलाएं अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा योगदान देती हैं, लेकिन फिर भी उन्हें इसका कोई श्रेय नहीं मिलता.
‘वैल्यूएशन ऑफ अनपेड हाउसहोल्ड एक्टिविटीज इन इंडिया’ नाम की एक रिसर्च रिपोर्ट में भारत में घर के काम की आर्थिक कीमत का आंकलन किया गया है. अध्ययन के आंकड़े बताते हैं कि महिलाएं रोजाना सात घंटे से अधिक समय बिना वेतन के घरेलू और देखभाल के काम में लगाती हैं. नौकरीपेशा महिलाएं भी करीब 5.8 घंटे इसी तरह के कामों में लगाती हैं. इसके विपरीत बेरोजगार पुरुष चार घंटे से कम समय, जबकि नौकरीपेशा पुरुष केवल 2.7 घंटे रोजाना इस काम में लगाते हैं.
शोधकर्ताओं ने सीएमआईई के कंज्यूमर पिरामिड हाउसहोल्ड सर्वे (CPHS) का इस्तेमाल किया. इस सर्वे में सितंबर 2019 से मार्च 2023 तक डेटा जुटाया गया. यह आंकलन ‘रिप्लेसमेंट कॉस्ट’ और ‘ग्रॉस अपॉर्चुनिटी कॉस्ट’ के आधार पर किया गया है. हालांकि, यह अध्ययन यह नहीं बताता है कि अगर अनपेड वर्क को जीडीपी में शामिल किया जाए तो जीडीपी कितनी बढ़ जाएगी.
कोरोना काल में बढ़ा घर का काम का बोझ
अध्ययन के अनुसार, भारतीय घरों में महिलाएं पुरुषों की तुलना में दोगुना समय घर के काम में लगाती हैं. 2019-20 में महिलाएं औसतन पांच घंटे रोज़ाना घर का काम करती थीं, जबकि पुरुष सिर्फ दो घंटे. कोरोना महामारी के बाद, महिलाएं द्वारा घर के काम में लगाया जाने वाला समय थोड़ा कम हुआ और 2022-23 तक लगभग स्थिर रहा. हालांकि, पुरुषों ने घर के काम में थोड़ा ज्यादा समय लगाना शुरू कर दिया. इसका कारण हो सकता है कि महामारी के बाद कई लोग घर से काम करने लगे.
साल 2019-20 में घर के काम की कीमत देश की कुल कमाई का 24.6% से 32.4% के बीच थी. लेकिन 2020-21 में, ये बढ़कर 27.2% से 42.3% हो गई. 2019-20 में पुरुषों द्वारा किए गए घर के काम की कीमत देश की कुल कमाई का 10.4% थी, जो 2020-21 में बढ़कर 13.1% हो गई. फिर 2022-23 में घर के काम की कीमत देश की कुल कमाई का 26.3% से 36.5% के बीच रही. इसमें कमी का कारण ये है कि 2022-23 में भारत की अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी के बाद फिर से पटरी पर आने लगी. लोगों ने फिर से काम करना शुरू किया, जिससे घर के काम का बोझ थोड़ा कम हुआ.
बिना वेतन वाले काम को अब दुनियाभर में मिल रही है पहचान
दुनियाभर में अब बिना वेतन वाले काम के आर्थिक योगदान को पहचानने और महत्व देने का प्रयास बढ़ रहा है. देशों को अब इस बात की समझ हो रही है कि यह काम कितना अहम है. 2016 में संयुक्त राष्ट्र ने इस दिशा में एक बड़ा कदम उठाया जब उसने अपने सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (SDGs) में इस मुद्दे को शामिल किया.
खासकर SDG 5 (लिंग समानता और महिलाओं को सशक्त बनाना) के तहत यह लक्ष्य तय किया गया है कि महिलाओं के बिना वेतन वाले काम को मान्यता दी जाए और उसे मूल्यवान माना जाए. इस पहल का उद्देश्य महिलाओं और पुरुषों के बीच काम का बंटवारा बराबरी से किया जाए, ताकि महिलाओं पर सिर्फ घरेलू जिम्मेदारियों का बोझ न पड़े.
घर का काम भी GDP में जोड़ने की मांग
जब देश की कमाई का हिसाब-किताब किया जाता है, तो कुछ खास कामों को ही गिना जाता है. जैसे खेती करना, दूध दुहना, कारीगरी करना, ये सब काम देश की कमाई का हिस्सा माने जाते हैं. लेकिन घर के काम का हिसाब-किताब नहीं होता. हालांकि, दुनियाभर में अब इस बात पर चर्चा हो रही है कि घर का काम भी देश की कमाई का हिस्सा होना चाहिए.
1993 से ‘नेशनल अकाउंट्स सिस्टम’ में घरेलू उत्पादन को जीडीपी में शामिल करने की शुरुआत की. हालांकि, अभी तक इस पर पूरी तरह से अमल नहीं हो पाया है. अब कुछ लोग मांग कर रहे हैं कि घर के काम को भी जीडीपी में शामिल किया जाए. लेकिन इस बारे में कुछ चुनौतियां भी हैं. जैसे कि घर के काम का कीमत कैसे तय की जाए? क्या हर घर के काम की कीमत एक जैसी होनी चाहिए? इन सवालों के जवाब ढूंढने में अभी समय लगेगा.
घर का काम दुनिया भर में कितना बड़ा है?
आजकल कई देशों में घर के काम की असली कीमत का पता लगाने के लिए सर्वे हो रहे हैं. एशिया-पैसिफिक इकोनॉमिक कोऑपरेशन (APEC) सर्वे के मुताबिक, दुनियाभर में घर के काम की कुल कीमत दुनिया की कुल कमाई का करीब 9% है.
अगर देशों की बात करें, तो ऑस्ट्रेलिया में घर का काम देश की कुल कमाई का 41.3% तक है, जबकि थाईलैंड में ये सिर्फ 5.5% है. भारत में भी कई अध्ययनों से पता चला है कि घर का काम देश की कमाई का 10 से 60% तक का हिस्सा हो सकता है. दक्षिण अफ्रीका में घर के काम की कीमत देश की कुल कमाई का 14.6% से 38.1% के बीच है. बोलिविया में महिलाएं आदमियों से 10 घंटे ज्यादा घर के काम में लगाती हैं. कनाडा में घर के काम की कीमत देश की कुल कमाई का 25.2% से 37.2% के बीच है.
बांग्लादेश में पुरुषों द्वारा किया जाने वाला घर का काम देश की कुल कमाई का 9% है, जबकि महिलाओं द्वारा किया जाने वाला काम 39.5% है. शहरों में महिलाओं का काम देश की कुल कमाई का 9.9% है और गांवों में 21.5% है. वहीं श्रीलंका में घर का काम, बच्चों की देखभाल और समाज सेवा का काम मिलाकर देश की कुल कमाई का 10.3% से 42% तक है. इनमें से ज्यादातर काम महिलाएं करती हैं, जो देश की कुल कमाई का 8.6% से 35% तक योगदान देती हैं.
भारतीय महिलाओं का अनदेखा योगदान
भारत में कई अध्ययनों से ये साबित हुआ है कि भारतीय औरतें कितनी मेहनत करती हैं और उनकी मेहनत का देश की अर्थव्यवस्था पर कितना बड़ा प्रभाव है. सबसे पहले भारतीय महिलाओं के काम की अहमियत को समझने के लिए सरकार ने 1998–99 में एक ‘टाइम यूज सर्वे’ (TUS) किया था. यह सर्वेक्षण भारत सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने किया था, जिससे यह पता चला कि महिलाएं कितने समय तक बिना किसी भुगतान के घर के कामकाज में लगी रहती हैं और पुरुषों की तुलना में उनका योगदान कितना ज्यादा है.
सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि महिलाएं हर हफ्ते औसतन 36 घंटे बिना वेतन के काम करती हैं, जैसे कि घर की सफाई, खाना बनाना, बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल करना. इसके मुकाबले पुरुषों का बिना वेतन के काम में औसतन योगदान सिर्फ 16 घंटे है.
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) की 2023 की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि 6 साल से ऊपर की उम्र के लोग रोजाना औसतन 432 मिनट, यानी करीब 7.2 घंटे, बिना वेतन के घरेलू कामों में बिताते हैं. इस अध्ययन में महिलाओं द्वारा किए जाने वाले काम की कीमत लगभग 22.7 लाख करोड़ रुपये आंकी गई है, जो भारत की जीडीपी का करीब 7.5% है.
ऐसे ही राजेश्वरी (2021) के अध्ययन के मुताबिक, घर के 88% काम महिलाएं करती हैं. इसकी कीमत देश की कुल कमाई का 30% है. चंद्रशेखर और घोष अध्ययन (2020) के मुताबिक, महिलाएं पुरुषों से ढाई गुना ज्यादा समय घर के काम में लगाती हैं.
हरियाणा और गुजरात में किए गए चौधरी एट अल (2009) के अध्ययन के मुताबिक, इन दोनों राज्यों में महिलाओं द्वारा किया जाने वाला घर का काम देश की कुल कमाई का 61% है. असम में दास और नायक (2022) के अध्ययन के मुताबिक, राज्य में महिलाएं हफ्ते में औसतन 42 घंटे घर का काम करती हैं, जबकि पुरुष सिर्फ 18 घंटे.

महिलाएं क्यों ज्यादा करती हैं बिना वेतन का काम?
दरअसल, समाज में यह सोच बन चुकी है कि घर का काम और देखभाल का जिम्मा महिलाओं का है. इसलिए इस काम को वेतन नहीं मिलता और न ही इसकी कोई खास पहचान होती है. इसी वजह से महिलाएं अधिकतर इन कामों में लगी रहती हैं, जबकि पुरुषों के लिए यह काम गैर-जरूरी समझा जाता है. आंकड़े भी बताते हैं कि भारत में 53% महिलाएं नौकरीपेशा नहीं करती हैं, क्योंकि उन्हें घर और बच्चों की देखभाल करनी होती है. जबकि सिर्फ 1.1% पुरुषों को इस वजह से काम छोड़ना पड़ता है.
कई परिवारों में यह देखा जाता है कि महिलाएं बिना वेतन का काम करती हैं क्योंकि यह एक आर्थिक रूप से फायदेमंद तरीका होता है. खासकर निम्न आय वाले परिवारों में, जहां पैसे की कमी होती है और बाहर से मदद लेने का खर्च उठाना संभव नहीं होता. ऐसे में परिवार की महिलाओं पर घर के सारे काम और देखभाल का भार आ जाता है.
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में और कम पढ़ी-लिखी महिलाओं के लिए नौकरी पाने के अवसर सीमित होते हैं. कई बार, इन महिलाओं के पास अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए बाहर काम करने का मौका नहीं होता, इसलिए घर का काम ही उनके लिए कमाई का एक तरीका बन जाता है.