फिनलैंड दुनिया में सबसे बेहतरीन एजुकेशन देने वाला देश है !
चीन, फिनलैंड, सिंगापुर, इजरायल, जर्मनी… ग्लोबल एजुकेशन सिस्टम से क्या सीख सकता है भारत?
हम सब जानते हैं कि हमारे देश में कॉलेज-यूनिवर्सिटी की संख्या बढ़ी है, लेकिन क्या वाकई में पढ़ाई का स्तर भी सुधरा है? जवाब है, नहीं!
भारत का एजुकेशन सिस्टम आज एक बड़े संकट का सामना कर रहा है. नए-नए प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज, आईआईटी और यूनिवर्सिटी तो खूब खुल गए हैं, लेकिन पढ़ाई का स्तर गिरता जा रहा है. कॉलेज से पढ़ाई पूरी करके जो बच्चे निकल रहे हैं उनमें वो हुनर नहीं है जो आजकल की कंपनियों में काम करने के लिए चाहिए. नतीजा यह होता है कि बच्चे डिग्री तो ले लेते हैं, लेकिन उन्हें आगे नौकरी नहीं मिल पाती.
ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन के हिसाब से 1043 यूनिवर्सिटी और 42,343 कॉलेज हैं. लेकिन सच्चाई यह है कि इनमें से बहुत सारे कॉलेजों के पास मान्यता ही नहीं है. नेशनल असेसमेंट एंड एक्रेडिटेशन काउंसिल (NAAC) के मुताबिक लगभग 30% कॉलेज और यूनिवर्सिटी बिना मान्यता के चल रहे हैं. इंजीनियरिंग कॉलेजों में तो हालात और भी खराब हैं. सिर्फ 45% कॉलेज ही ऐसे हैं जो इंडस्ट्री के मानकों पर खरे उतरते हैं.
‘ग्लोबल स्किल्स गैप्स मेजरमेंट एंड मॉनिटरिंग रिपोर्ट ऑफ आईएलओ 2023’ की रिपोर्ट के अनुसार, 47% भारतीय कर्मचारी अपनी नौकरी के लिए अंडरक्वालिफाइड हैं. मतलब, उनके पास नौकरी तो है मगर उस काम के लिए जरूरी हुनर और योग्यता नहीं है. वहीं महिलाओं के मामले में यह आंकड़ा और भी ज्यादा है. 62% महिलाएं ऐसी हैं जिनके पास अपनी नौकरी के लिए जरूरी स्किल्स नहीं हैं.
ऐसे में भारत को दुनिया के दूसरे देशों के एजुकेशन मॉडल से बहुत कुछ सीख सकता है. हर देश का अपना अलग सिस्टम होता है, अपनी अलग खूबियां और कमियां होती हैं.
भारत में टीचर्स की कमी, रिसर्च में भी पीछे
आज कॉलेज तो खूब खुल गए, लेकिन पढ़ाने वाले टीचर्स की भारी कमी है. बहुत सारे कॉलेजों में टीचरों की जगहें सालों से खाली पड़ी हैं. देशभर के 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 30% से ज्यादा टीचरों की जगहें खाली हैं.
वहीं रिसर्च पर खर्च के मामले में भी बहुत पीछे हैं. हमारा देश अपनी GDP का सिर्फ 0.7% ही रिसर्च पर खर्च करता है, जबकि चीन 2.4% और अमेरिका 3.5% खर्च करता है. पेटेंट के मामले में भी हम पीछे हैं. 2023 में भारत में 4 लाख 67 हजार 918 पेटेंट फाइल हुए, जबकि चीन में लगभग 77 लाख और अमेरिका में 9 लाख 45 हजार 571 पेटेंट फाइल हुए.
पढ़ाई पर खर्चा घटा, डिजिटल डिवाइड बढ़ा!
उधर सरकार ने पढ़ाई पर खर्चा कम कर दिया है. 2024-25 में हायर एजुकेशन के लिए पिछले साल के मुकाबले 17% कम पैसा रखा गया है. यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (UGC) का बजट तो 61% तक घटा दिया गया है.
वहीं अजीम प्रेमजी फ़ाउंडेशन की एक स्टडी में पाया गया है कि 60% स्कूली बच्चों के पास ऑनलाइन पढ़ाई की सुविधा ही नहीं है. मतलब, इंटरनेट और कंप्यूटर तो दूर की बात है. यह एक तरह से डिजिटल डिवाइड है, जहां अमीर बच्चे ऑनलाइन पढ़ रहे हैं और गरीब बच्चे पीछे छूट रहे हैं.
आजकल के कॉलेज लाइफ में पढ़ाई के साथ-साथ टेंशन भी बहुत बढ़ गई है. TimelyMD की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 में 50% कॉलेज स्टूडेंट्स ने माना कि उनके स्ट्रेस का सबसे बड़ा कारण मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्याएं हैं. परेशानी की बात यह है कि कॉलेज में उन्हें इसके लिए कोई मदद नहीं मिलती.
दुनिया में सबसे बेहतरीन एजुकेशन सिस्टम कहां
फिनलैंड नाम का एक छोटा सा देश है, जिसने अपने एजुकेशन सिस्टम में कमाल कर दिया है. अमेरिका जैसे बड़े-बड़े देशों को पीछे छोड़ते हुए फिनलैंड अब दुनिया में सबसे बेहतरीन एजुकेशन देने वाला देश बन गया है. फिनलैंड ने कुछ आसान से बदलाव किए हैं जिनसे वहां की शिक्षा व्यवस्था में जमीन-आसमान का फर्क आ गया है. वहां न तो बच्चे घंटों किताबों में घुसे रहते हैं, न ही उन्हें एग्जाम की टेंशन होती है. यहां टीचरों को भी बहुत अच्छी ट्रेनिंग दी जाती है.
फिनलैंड में हर बच्चे को अच्छी शिक्षा पाने का बराबर मौका मिलता है, चाहे वो अमीर हो या गरीब, होशियार हो या कमजोर. वहां किसी भी बच्चे के साथ भेदभाव नहीं किया जाता. फिनलैंड में बच्चों को परीक्षा का कोई डर नहीं होता. वहां कोई बड़ी-बड़ी परीक्षाएं नहीं होतीं. बस 12वीं के बाद एक ‘नेशनल मैट्रिकुलेशन एग्जाम’ होता है और वो भी देना जरूरी नहीं है.
फिनलैंड में हर बच्चे को उसके टीचर खुद नंबर देते हैं. कोई और परीक्षा या नंबर देने का सिस्टम नहीं है. टीचर अपने हिसाब से बच्चों की पढ़ाई का आंकलन करते हैं, और उनकी प्रगति पर नजर रखते हैं. वहां के टीचर पढ़ाने में माहिर होते हैं और उन्हें पता होता है कि बच्चों को कैसे पढ़ाना है.
वैसे, आजकल हर कोई बच्चों के मार्क्स बढ़ाने में लगा हुआ है. लेकिन कोई यह नहीं सोचता कि बच्चे खुश हैं या नहीं, स्कूल में उन्हें कैसा लग रहा है. फिनलैंड ने भी कभी यही गलती की थी, लेकिन फिर उन्होंने अपनी शिक्षा व्यवस्था में बड़ा बदलाव किया. उन्होंने बच्चों को खुश रखने और उन्हें एक अच्छा माहौल देने पर ध्यान दिया.
सिंगापुर ने पढ़ाई को बनाया काम की चीज!
ऐसे ही सिंगापुर में भी पढ़ाई का सिस्टम बड़ा ही निराला है. वहां कॉलेज और कंपनियां मिलकर काम करते हैं जिससे स्टूडेंट्स को भी फायदा होता है और कंपनियों को भी. सिंगापुर में ग्रेजुएशन से लेकर बड़े-बड़े रिसर्च प्रोजेक्ट तक हर जगह कॉलेज और कंपनियां साथ मिलकर काम करते हैं. इससे स्टूडेंट्स को पढ़ाई के साथ-साथ काम करने का भी मौका मिलता है. इससे उन्हें पता चलता है कि असल जिंदगी में कैसे काम करना होता है. इस सिस्टम का सबसे बड़ा फायदा यह है कि स्टूडेंट्स को पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी मिलने में कोई दिक्कत नहीं होती.
सिंगापुर ने दूसरे विश्व युद्ध के बाद से ही शिक्षा पर ध्यान देना शुरू कर दिया था. उन्होंने समझ लिया था कि अगर देश को आगे बढ़ाना है तो लोगों को पढ़ाना-लिखाना होगा. 1990 के दशक से तो उन्होंने बच्चों में क्रिएटिविटी और नई चीजें सीखने की क्षमता बढ़ाने पर जोर दिया. 2004 में सिंगापुर सरकार ने ‘टीच लेस, लर्न मोर’ नाम से एक नई पॉलिसी शुरू की. इसमें बच्चों को रट्टा मारने और बार-बार एक ही चीज करने से हटाकर, उन्हें समझने और समस्याओं को हल करने पर जोर दिया गया.
सिंगापुर में ‘हर स्कूल को अच्छा स्कूल’ बनाने की मुहिम चल रही है. वहां की सरकार चाहती है कि हर बच्चे को बढ़िया शिक्षा मिले, चाहे वो किसी भी स्कूल में पढ़ता हो. इस मुहिम का मकसद है-
- हर स्कूल के पास अच्छे टीचर, लैब्स और दूसरी सुविधाएं हों
- टीचरों को और भी बेहतर ट्रेनिंग दी जाए, ताकि वो बच्चों को अच्छे से पढ़ा सकें
- पढ़ाई में नए-नए तरीके अपनाए जाएं, ताकि बच्चों को पढ़ने में मजा आए
- स्कूल और आस-पास के लोग मिलकर बच्चों की पढ़ाई में मदद करें.
2018 में सिंगापुर ने ‘लर्न फॉर लाइफ’ नाम से एक और मुहिम शुरू की. इसमें बच्चों को स्कूल के अंदर और बाहर अपने हिसाब से सीखने का मौका दिया जाता है. इससे बच्चे जिंदगीभर कुछ न कुछ सीखते रहते हैं.
जर्मनी का डुअल सिस्टम: पढ़ाई और कमाई, दोनों एक साथ!
जर्मनी में भी पढ़ाई का तरीका बड़ा ही जुदा है. वहां पर सिर्फ किताबों में ही नहीं घुसे रहते, बल्कि असल जिंदगी में भी काम सीखते हैं. इसे कहते हैं डुअल एजुकेशन सिस्टम. इस सिस्टम में स्टूडेंट्स हफ्ते में कुछ दिन कॉलेज जाते हैं और बाकी दिन किसी कंपनी में काम करते हैं. मतलब, पढ़ाई के साथ-साथ उन्हें प्रैक्टिकल एक्सपीरियंस भी मिलता है. उन्हें इसके लिए सैलरी भी मिलती है. 1969 में एक कानून बनाया गया था, जिसके तहत यह सिस्टम चलता है.
इस सिस्टम में ट्रेनिंग 2-3 साल तक चलती है. जर्मनी में कोई भी काम ऐसे ही नहीं सीखा जा सकता. वहां पर 330 से ज्यादा ऐसे काम हैं जिनके लिए खास ट्रेनिंग लेनी पड़ती है. कंपनियां और मजदूर यूनियन मिलकर तय करते हैं कि किस काम के लिए कैसी ट्रेनिंग होनी चाहिए. वो यह भी देखते हैं कि जमाने के हिसाब से ट्रेनिंग में क्या बदलाव करने की जरूरत है.
जर्मनी में हर काम के लिए ट्रेनिंग, परीक्षा और सर्टिफिकेट एक जैसे होते हैं, चाहे आप किसी भी शहर या कंपनी में काम सीख रहे हों. इससे यह फायदा होता है कि सबको एक जैसी ट्रेनिंग मिलती है. कंपनियों को भी इन सर्टिफिकेट पर भरोसा होता है, क्योंकि इससे उन्हें पता चलता है कि व्यक्ति को काम आता है या नहीं. जर्मनी का यह सिस्टम नई चुनौतियों का सामना करने के लिए भी तैयार है. जैसे कि आजकल इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स का ज़माना है, तो ट्रेनिंग में भी इसके बारे में सिखाया जाता है.
इजरायल: यूनिवर्सिटी से निकले स्टार्टअप!
इजरायल में यूनिवर्सिटी सिर्फ पढ़ाई की जगह नहीं हैं, बल्कि नए-नए बिजनेस शुरू करने की जगह भी हैं. वहां के कॉलेज रिसर्च करके ऐसी चीजें बनाते हैं, जिनसे पैसे कमाए जा सकें. इजरायल की यूनिवर्सिटी का डिफेंस सेक्टर से गहरा नाता है. वहां पर पढ़ाई ऐसी होती है कि स्टूडेंट्स को अलग-अलग विषयों का ज्ञान तो मिलता ही है, साथ ही उन्हें बिजनेस शुरू करने के गुर भी सिखाए जाते हैं. इसके अलावा, हर यूनिवर्सिटी में एक खास ऑफिस होता है, जो रिसर्च को बिजनेस में बदलने में मदद करता है.
इजरायल में शिक्षा मंत्रालय तय करता है कि बच्चों को क्या पढ़ाया जाएगा. स्कूलों को इसमें ज्यादा छूट नहीं होती. पढ़ाई सितंबर से जुलाई तक चलती है, हफ्ते में 6 दिन. इजरायल में पढ़ाई मुफ्त है, लेकिन कुछ किताबें वगैरह खुद खरीदनी पड़ती हैं. 2 साल का नर्सरी स्कूल और 8 साल की प्राइमरी स्कूल की पढ़ाई जरूरी है.
10वीं के बाद 4 साल की पढ़ाई होती है. लेकिन सिर्फ पहले 2 साल पढ़ना जरूरी है, बाकी 2 साल आपकी मर्जी. 10वीं के बाद आपके पास 3 रास्ते हैं:
- अकेडमिक हाई स्कूल: अगर आपको आगे कॉलेज जाना है, तो आप यह स्कूल चुन सकते हैं
- कॉम्प्रिहेंसिव हाई स्कूल: इसमें आपको पढ़ाई के साथ-साथ काम सीखने का भी मौका मिलता है
- वोकेशनल हाई स्कूल: अगर आपको कोई खास हुनर सीखना है, जैसे कि इंजीनियरिंग या साइंस, तो आप यह स्कूल चुन सकते हैं.
वोकेशनल स्कूल में आपको असल जिंदगी में काम आने वाली चीजें सिखाई जाती हैं. इन स्कूलों में अच्छी लैब्स और दूसरी सुविधाएं होती हैं, ताकि आप अच्छे से सीख सकें. इजरायल में कॉलेज जाने के लिए भी एक खास परीक्षा पास करनी पड़ती है, जिसे बगरुत कहते हैं. यह परीक्षा 12वीं के बाद होती है और इसे पास करने के बाद ही आप कॉलेज में एडमिशन ले सकते हैं.
नीदरलैंड: पढ़ाई में उलझो मत, समस्या सुलझाओ!
नीदरलैंड में रट्टा मारने या किताबों में घुसे रहने की जरूरत नहीं होती. वहां तो असल जिदगी की समस्याओं को सुलझाकर सीखा जाता है. इसे कहते हैं प्रॉब्लम-बेस्ड लर्निंग. इस सिस्टम में स्टूडेंट्स को छोटे-छोटे ग्रुप में बांट दिया जाता है और उन्हें कोई असल जिंदगी की समस्या दी जाती है. फिर वो मिलकर उस समस्या का हल ढूंढते हैं. इससे उन्हें पढ़ाई का प्रैक्टिकल ज्ञान मिलता है और साथ ही टीम वर्क करना भी सीखते हैं.
यहां पर 8 साल प्राइमरी स्कूल की पढ़ाई होती है. उसके बाद 4, 5 या 6 साल सेकेंडरी स्कूल में पढ़ते हैं. यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस तरह का स्कूल चुनते हैं. सेकेंडरी एजुकेशन के लिए बच्चे अपनी पसंद और काबिलियत के हिसाब से अलग-अलग तरह के हाई स्कूल में जा सकते हैं:
- Vmbo: यह 4 साल का कोर्स होता है जिसमें पढ़ाई के साथ-साथ काम का हुनर भी सिखाया जाता है. इसमें भी कई तरह के विकल्प होते हैं, जैसे कि लीडरशिप की ट्रेनिंग या फिर सीधे नौकरी के लिए तैयार करने वाले कोर्स.
- Havo: यह 5 साल का कोर्स होता है, जो आपको आगे चलकर पॉलिटेक्निक कॉलेज में पढ़ने के लिए तैयार करता है.
- Vwo: यह 6 साल का कोर्स होता है, जिसके बाद आप यूनिवर्सिटी में जा सकते हैं. इसमें भी कई तरह के विकल्प होते हैं, जैसे कि क्लासिकल भाषाएं सीखना या फिर कला में आगे बढ़ना.
सेकेंडरी स्कूल के बाद छात्र चाहें तो वोकेशनल एजुकेशन ले सकते हैं या फिर हायर एजुकेशन में जा सकते हैं. यहां सरकारी और प्राइवेट दोनों तरह के स्कूल हैं. ज्यादातर प्राइवेट स्कूल किसी धर्म या विचारधारा से जुड़े होते हैं.
नीदरलैंड में वोकेशनल ट्रेनिंग कॉलेजों की भी भरमार है. अगर कोई व्यक्ति बचपन में किसी वजह से स्कूल नहीं जा पाया था, तो भी कोई बात नहीं. नीदरलैंड में वावो नाम के स्कूल हैं, जहां पर किसी भी उम्र के लोग 10वीं या 12वीं की पढ़ाई पूरी कर सकते हैं.
चीन में रिसर्च और साइंस पर जोर
चीन ने अपनी शिक्षा व्यवस्था में जबरदस्त बदलाव ला दिया है. यहां पर डबल फर्स्ट क्लास नाम की एक स्कीम चल रही है जिससे कॉलेजों में पढ़ाई का स्तर बहुत ऊपर उठ गया है. रिसर्च और साइंस की पढ़ाई पर बहुत जोर दिया जाता है. नए-नए आविष्कार हो रहे हैं और टेक्नोलॉजी में चीन दुनिया में सबसे आगे निकल रहा है. चीन के कॉलेज दुनियाभर के कॉलेजों के साथ मिलकर काम करते हैं. इससे स्टूडेंट्स को दूसरे देशों के बारे में जानने और सीखने का मौका मिलता है. साथ ही, डिजिटल टेक्नोलॉजी का बहुत इस्तेमाल होता है. वहां के कॉलेज स्मार्ट कैंपस बन गए हैं, जहां सब कुछ ऑनलाइन होता है.
चीन दुनिया का सबसे बड़ा सरकारी शिक्षा सिस्टम है. 2021 में चीन में 5 लाख से ज्यादा स्कूल थे, जहां 29 करोड़ बच्चे पढ़ते थे और 1 करोड़ 80 लाख टीचर पढ़ाते थे. चीन में शिक्षा मंत्रालय पूरे देश की पढ़ाई पर नजर रखता है. 2019 में चीन की सरकार ने ‘चाइना एजुकेशन मॉडर्नाइज़ेशन 2035’ नाम से एक प्लान बनाया, जिसमें बताया गया है कि अगले 10 सालों में चीन की शिक्षा व्यवस्था कैसी होगी.
इस प्लान में यह तय किया गया है कि चीन में हर बच्चे को अच्छी नर्सरी स्कूल की शिक्षा मिलेगी. सब बच्चों को स्कूल जाने का मौक़ा मिलेगा. वोकेशनल ट्रेनिंग को और बेहतर बनाया जाएगा, ताकि बच्चे काम के लिए तैयार हो सकें. कॉलेजों में पढ़ाई के स्तर में लगातार सुधार किया जाता रहेगा.
अगर हम इन देशों से सीखेंगे, तो अपने एजुकेशन सिस्टम को और भी बेहतर बना सकेंगे.
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एडटेक का बढ़ता दायरा:भारत में एजुकेशन को मिल रहा टेक्नोलॉजी का साथ, ऐसे होगी भविष्य में पढ़ाई
यहीं पर धमाकेदार एंट्री मारी ‘एडटेक’ यानी एजुकेशन टेक्नोलॉजी ने।
भारत के लिए एडटेक कोई नया शब्द नहीं है। एडटेक का मतलब है ऑनलाइन पढ़ाई यानी शिक्षा को डिजिटल माध्यमों जैसे मोबाइल, टैबलेट या लैपटॉप के जरिए दूर-दराज के इलाकों में घर बैठे स्टूडेंट तक पहुंचाना। पिछले कुछ सालों में ये सेक्टर लगातार चर्चा में है और बढ़ रहा है, लेकिन कोविड-19 की वजह से यह दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ने वाले सेक्टर में से एक बन गया। कोविड-19 के दौरान एडटेक इस्तेमाल करने वालों और इस सेक्टर में निवेश करने वालों की संख्या में पहले के मुकाबले काफी इजाफा देखने को मिला है।
यहां सवाल उठता है कि क्या एडटेक सेक्टर में बूम सिर्फ मौजूदा कोविड-19 से पैदा हुए हालात की वजह से है या इसमें आगे की संभावनाएं भी हैं? भारत में शिक्षा का भविष्य कैसा होगा और उसमें एडटेक की क्या भूमिका रहेगी? हम यहां इन्हीं सवालों का जवाब देने की कोशिश करेंगे।
उदारीकरण ने एजुकेशन को संभाला और संवारा
शुरू से शुरू करते हैं। बात 1990 के दशक की है। भारत में उदारवादी अर्थव्यवस्था लागू होने से लोगों के जीवन स्तर में सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहे थे। एजुकेशन सेक्टर भी इससे अछूता नहीं रहा। महज 10 सालों में भारत में कॉलेज और उनमें आवेदन करने वालों की संख्या दोगुनी हो गई। इस दशक में करीब 30 करोड़ नए साक्षर जुड़े, जो पिछले 20 सालों से भी ज्यादा थे। उस दौरान आईटी सेक्टर तेजी से बढ़ रहा था। दिल्ली-मुंबई स्थित बड़े संस्थानों से पढ़े स्टूडेंट्स को देश-विदेश में अच्छी नौकरियां मिल रही थीं। भारत की आर्थिक रफ्तार के साथ शिक्षा के लिए लोगों की भूख भी बढ़ रही थी। इस सबके बावजूद 21 सदी की शुरुआत तक एडटेक का कहीं जिक्र नहीं था। साल 2005 तक भारत की महज 5% आबादी तक ही इंटरनेट की पहुंच थी।
भारत ने दुनिया को दिया एडटेक का कॉन्सेप्ट
साल 2005 की बात है। बेंगलुरु के आईटी एक्सपर्ट गणेश के दिमाग में एक आइडिया आया। उस वक्त अमेरिका में लोकल ट्यूशन की फीस करीब 40 डॉलर प्रति घंटा होती थी, जिसे बहुत सारे स्टूडेंट अफोर्ड नहीं सकते थे। गणेश एक ऐसा प्लेटफॉर्म बनाना चाहते थे, जिससे ये फीस कम हो सके। यहीं से ट्यूटर विस्टा (TutorVista) का जन्म हुआ। उन्होंने 100 डॉलर सालाना की फीस पर अनलिमिटेड विषयों के ट्यूशन का ऑफर दिया। उनका आइडिया चल निकला और एक वक्त ऐसा भी आया, जब उनके प्लेटफॉर्म पर 60 लाख लोग आने लगे। इस तरह से गणेश ने एडटेक सेक्टर के बीज डाल दिए। इसी तरह 2005 में ही एक और टेक्निकल एजुकेशन बेस्ड कंपनी एडुकॉम्प (EduComp) भी शुरू की गई।
बायजू की शुरुआत से एडटेक सेक्टर को मिली दिशा
2009-10 का दौर आया। भारत में एमबीए का चलन तेजी से बढ़ रहा था। उस दौरान दक्षिण भारत के एक कस्बे में रविंद्रन बायजू नाम के एक इंजीनियर लड़के ने अपने कुछ दोस्तों को MBA एग्जाम की तैयारी में मदद करने की सोची। रविंद्रन के ट्यूशन का तरीका इतना अच्छा था कि धीरे-धीरे उसकी लोकप्रियता बढ़ने लगी। रविंद्रन बायजू कई शहरों में कोचिंग देने लगा, लेकिन हर जगह एक साथ मौजूद रहना संभव नहीं था। यहीं से रविंद्रन को एक आइडिया आया और उसने CAT के लिए ऑनलाइन वीडियो बेस्ड लर्निंग प्रोग्राम तैयार किया। इसके बाद साल 2015 में उसने अपना फ्लैगशिप प्रोडक्ट Byju’s – द लर्निंग एप लॉन्च किया। यह रविंद्रन बायजू के करियर और भारत में एडटेक इंडस्ट्री के भविष्य के लिए गेम चेंजर साबित हुआ। आज बायजू एडटेक सेक्टर में दुनिया का सबसे बड़ा यूनिकॉर्न है।
डिजिटल इंडिया मुहिम और रिलायंस जियो के सस्ते इंटरनेट की सौगात मिली तो एडटेक इंडस्ट्री को पंख लग गए। महज 5-6 साल के छोटे वक्त में ही भारतीय एडटेक सेक्टर ने तमाम ग्लोबल स्टैंडर्ड हासिल कर लिए हैं। चाहे बात फंडिंग की हो, स्टार्ट-अप्स की हो या फिर शहरों की, भारत दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले एडटेक के क्षेत्र में आगे खड़ा है।
कोविड-19 के दौरान एडटेक ने बदला गियर
कोविड-19 की वजह से जब कई सेक्टर बुरी तरह प्रभावित हुए, उस वक्त एडटेक सेक्टर ने छलांग मारी। महज 6-8 महीने के कम वक्त में भी एडटेक भारत का सबसे पसंदीदा सेक्टर बन गया। ये दावा करने के पीछे कई पुख्ता वजहें हैं…
- कोविड-19 से पहले 2022 तक एडटेक सेक्टर का अनुमानित बाजार 2.8 बिलियन डॉलर था, लेकिन कोविड-19 की वजह से मिले बूम के बाद अब 2022 का अनुमानित बाजार 3.5 बिलियन डॉलर हो गया है।
- 2019 की पहली छमाही में एडटेक सेक्टर की फंडिंग 158 मिलियन डॉलर थी, जो 2020 की पहली छमाही में पांच गुना बढ़कर 714 मिलियन डॉलर हो गई।
- मौजूदा आर्थिक हालात को देखते हुए किसी सेक्टर में पांच गुना बढ़ोतरी बहुत ज्यादा है। इसका सीधा मतलब है कि निवेशक एडटेक क्षेत्र में लंबे समय तक बड़ी पारी खेलना चाहते हैं।
कोविड-19 के दौरान एडटेक फर्क के ट्रैफिक में बढ़ोतरी
एडटेक फर्म | ट्रैफिक में बढ़ोतरी |
Udemy.com | 9% |
Coursera.org | 7% |
Doubnut.com | 3% |
Byjus.com | 3% |
- बार्क इंडिया नील्सन की रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान एडटेक फर्म पर औसत समय बिताने में 30% की बढ़ोतरी देखने को मिली।
- कोविड-19 के दौरान एडटेक ऐप्स डाउनलोड करने के मामले में 88% का इजाफा रिकॉर्ड किया गया।
- कोविड-19 के दौरान एडटेक फर्म के सब्सक्राइबर बेस में भी उछाल आया। एक शोध के मुताबिक, के-12 सेगमेंट का सब्सक्राइबर बेस 45 मिलियन से बढ़कर 90 मिलियन हो गया। इसके अलावा 83 प्रतिशत उछाल पेड यूजर बेस में आया है।
एडटेक फर्म कोर्सेरा के भारत में मैनेजिंग डायरेक्टर राघव गुप्ता का कहना है कि लॉकडाउन के 6 महीने में हमने ग्लोबल स्तर पर 650% की ग्रोथ और भारत में 1400% से ज्यादा की ग्रोथ रिकॉर्ड की है। जनवरी में कोर्सेरा के भारत में 50 लाख यूजर थे, जो अगस्त तक 80 लाख हो गए।
एडटेक फर्म ग्लोबल शाला की संस्थापक और सीईओ अनुशिका जैन का कहना है कि कोविड ने इस मॉडल को खूब बढ़ावा दिया है। अब हर व्यक्ति जानता है कि आभासी पढ़ाई कैसे होती है। हालांकि, अभी भी बहुत सारे संस्थान एक रात में ऑनलाइन नहीं हो सकते, हम इस गैप को भरने के लिए तैयार हैं।
सरकार कैसे कर रही एडटेक इंडस्ट्री को मदद
साल 2009 में भारत सरकार ने बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून पारित किया। इस कानून का मकसद था कि 6-14 साल के 100% बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा मिले। 10 सालों में यह कानून काफी प्रभावी रहा है और अब देश में प्राइमरी शिक्षा सभी के लिए उपलब्ध है। अब सरकार के सामने अगली बड़ी चुनौती प्राइमरी के बाद पढ़ाई छोड़ने वालों को लेकर है। इस दिशा में किए जा रहे सरकार के प्रयासों से एडटेक सेक्टर को भी मदद मिल रही है।
सरकार ने 2020-21 के बजट में डिपार्टमेंट ऑफ स्कूल एजुकेशन और लिटरेसी को 8.56 बिलियन डॉलर आवंटित किए हैं और इस साल ग्रास इनरोलमेंट रेशियो (GER) का टारगेट 30% रखा है।
सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में 100% FDI का रास्ता भी साफ कर दिया। जुलाई 2020 में गूगल ने CBSE के साथ मिलकर 22 हजार शिक्षकों को ट्रेनिंग देने का ऐलान किया था। इंटीग्रेटेड लर्निंग एक्सपीरियंस की वजह से आने वाले दिनों में वर्चुअल क्लासरूम का ज्यादा इंगेजिंग हो सकेंगे।
शिक्षा के सुधार में एक बड़ा बदलाव 2018 में हुआ जब टर्शियरी एजुकेशन सिस्टम ने UGC के नियमों के तहत ऑनलाइन डिग्री सर्टिफिकेट की शुरुआत की। ओपन ऑनलाइन कोर्स के लिए सरकार ने SWAYAM नाम का प्लेटफॉर्म लॉन्च किया।
मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्स (MOOC) के जरिए 82 अंडरग्रेजुएट, और 42 पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स जुलाई 2020 में जोड़े गए हैं। अब 400 से ज्यादा ऑनलाइन कोर्स मुफ्त में ऑफर किए जा रहे हैं, इनमें आईआईटी जैसे संस्थान भी शामिल हैं। मई 2020 में कॉलेज एंट्रेस टेस्ट की तैयारी के लिए नेशनल टेस्ट अभ्यास नाम का ऐप डाउनलोड किया गया। इसके अलावा दीक्षा और IIT PAL जैसे कदम भी उठाए गए। ये सभी इनीशिएटिव प्रधानमंत्री ई-विद्या अभियान के तहत उठाए गए हैं।
इसके अलावा नई शिक्षा नीति 2020 के कई नियम भी एडटेक सेक्टर को बढ़ावा देने वाले साबित हो सकते हैं।
अपग्रैड के को-फाउंडर रॉनी स्क्रूवाला का कहना है कि कंपनी सरकार की नई नीति को ध्यान में रखते हुए व्यापार तीन गुना बढ़ाएगी। यह बड़ा अवसर है। यह विश्वविद्यालयों, छात्रों और नियोक्ताओं की मानसिकता को भी बदलेगा और ऑनलाइन शिक्षा को वैलेडिटी भी देगा। यह एक इंडस्ट्री के लिए बड़ी सफलता है।
भारत और दक्षिण एशिया में गूगल की एजुकेशन हेड बानी धवन का कहना है कि NEP ने पहले ही भारत के लिए ऐसा आधार बना दिया है, जिससे जापान, इंडोनेशिया और सिंगापुर का मॉडल अपनाया जा सके। धवन का कहना है कि कोविड महामारी के दौरान भारत सरकार ने भी कई स्तर पर बैठक और बातचीत की है, जिससे इंटरनेट कनेक्टिविटी और शिक्षकों की स्किल को सुधारने पर काम किया जा सके। कंप्यूटेशनल थिंकिंग और कोडिंग का बढ़ता चलन नए लर्निंग प्लेटफॉर्म की मांग पैदा कर रहे हैं।
एडटेक सेक्टर के सामने चुनौतियां
- भारत में शिक्षा संविधान की समवर्ती सूची का विषय है यानी शिक्षा के बारे में केंद्र और राज्य दोनों को कानून बनाने का अधिकार है। इसके अलावा CBSE, ICSE और राज्यों के अलग-अलग बोर्ड के नियम-कानून भी हैं। कानून एक जैसे न होने की वजह से एडटेक सेक्टर को इससे जूझना पड़ता है। कई बार ये नियम-कानून रुकावट भी बन सकते हैं।
- एडटेक से जुड़ी बातों को लेकर स्पष्ट गाइडलाइन्स का अभाव है। मसलन- डेटा प्राइवेसी, ऑनलाइन सर्टिफिकेट की मान्यता, एफडीआई वगैरह। इन अनिश्चितताओं की वजह से निवेशक भी पूरे मन से निवेश करने में घबराते हैं।
- छोटे शहर, कस्बे और ग्रामीण इलाके, जहां भारत की अधिकांश आबादी रहती है। वहां इंटरनेट कनेक्टिविटी की बड़ी समस्या है। अभी उस तरह का इंफ्रास्ट्रक्चर भी नहीं है। ये सबसे बड़ी चुनौती साबित हो सकती है, क्योंकि आप ई-लर्निंग ऑफलाइन नहीं कर सकते।
कोविड-19 के पार एडटेक का संसार
अब आते हैं इस सवाल पर कि क्या कोविड-19 के बाद भी एडटेक सेक्टर इसी गति से आगे बढ़ेगा? इसके दो जवाब हो सकते हैं। पहला- अगर कोविड-19 की वैक्सीन आने में देरी होती है या वैक्सीन उतनी प्रभावी नहीं होती तो बच्चों को समुचित रूप से स्कूल भेजना मुश्किल होगा। इस स्थिति में एडटेक ही एक सहारा होगा, क्योंकि यह सुलभ, जरूरत के अनुरूप और सस्ता माध्यम है।
दूसरा- क्या हम उस स्तर की टेक्नोलॉजी तक पहुंच गए हैं कि स्कूल और कॉलेज की जगह एडटेक फर्म ले सकें? शायद नहीं। अभी भी भारत के अधिकांश घरों में समुचित इंटरनेट कनेक्टिविटी और डिजिटल गैजेट्स मौजूद नहीं हैं। इसके अलावा बच्चों के टोटल विकास के लिए भी स्कूल और क्लासरूम जरूरी हैं।
आखिर में यही कहा जा सकता है कि एडटेक इंडस्ट्री भारत में निश्चित रूप से कोविड-19 के बाद भी विकास करेंगी, लेकिन ये स्कूल-कॉलेज का विकल्प बन पाएंगी या नहीं, ये तो वक्त ही बताएगा।
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फिनलैंड एजुकेशन सिस्टम क्यों है विश्व में सबसे बेस्ट, जानें रोचक तथ्य
Study.eu की एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार फिनलैंड में हर वर्ष 23 हज़ार से ज्यादा छात्र हर साल पढ़ने जाते हैं। फिनलैंड एजुकेशन सिस्टम अपने छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने और एडवांस्ड शिक्षा से उनके आगे के भविष्य के लिए तैयार करता है। फिनलैंड में दुनिया का सबसे बेहतरीन और एडवांस्ड एजुकेशन सिस्टम है। यहां पढ़ने के लेवल को शुरुआत से ही थ्योरी के साथ-साथ प्रैक्टिकल के साथ मिश्रित किया जाता है। इस ब्लॉग के माध्यम से, आइए जानें कि फिनलैंड एजुकेशन सिस्टम को क्या विशिष्ट बनाता है और साथ ही इसे कैसे डिज़ाइन किया गया है।
देश | फिनलैंड |
प्राथमिक भाषाएं | फिनिश, स्वीडिश और अंग्रेजी |
राष्ट्रीय शिक्षा बजट (2024) | €8 बिलियन |
जनसंख्या (2024) | 5,549,776 (सोर्स – Worldometers – 21 जून 2024 तक) |
साक्षरता दर | 99.5% |
प्राथमिक नामांकन | 99.7% |
माध्यमिक नामांकन | 66.2% |
अटेन्मेंट | -सेकेंडरी डिप्लोमा: 54% ac., 45% voc -पोस्ट सेकेंडरी डिप्लोमा: 44% (25–64 वर्षियों के लिए) |
फिनलैंड में शीर्ष रैंकिंग विश्वविद्यालय | हेलसिंक यूनिवर्सिटी |
फिनलैंड एजुकेशन सिस्टम रैंकिंग
फ़िनलैंड पढ़ाई करने के लिए सबसे अच्छे देशों में से एक है। आइए देखते हैं फ़िनलैंड को मिली कुछ रैंकिंग्स के बारे में-
- फिनलैंड दुनिया का 8वां सबसे ज्यादा शिक्षित देश है।
- हाई स्कूल कंप्लीशन रेट में फ़िनलैंड की रैंकिंग सर्वोच्च है।
- वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम्स ग्लोबल कंप्टीटिवएनेस स्टडी ने फिनलैंड को दुनिया में सबसे अच्छी तरह से विकसित शिक्षा के रूप में स्थान दिया है।
फिनलैंड एजुकेशन सिस्टम सर्वश्रेष्ठ क्यों हैं?
फिनलैंड दुनिया का सबसे बढ़िया एजुकेशन सिस्टम क्यों है, इसके शीर्ष 10 कारण यहां दिए गए हैं-
- फ़िनिश नागरिकों के साथ-साथ यूरोपीय संघ/EEA देशों से आने वालों के लिए मुफ्त शिक्षा (पूर्व-प्राथमिक से उच्च तक) मिलती है क्योंकि शिक्षा को सभी के लिए समान अधिकार माना जाता है।
- यहां कोई स्टैंडर्डाइज्ड ट्रेनिंग सिस्टम नहीं है क्योंकि छात्रों को उनके शिक्षक द्वारा बनाई गई ग्रेडिंग सिस्टम के साथ व्यक्तिगत रूप से क्लासिफाइड किया जाता है। साथ ही, विभिन्न श्रेणियों के स्कूलों के समूहों के सैंपल लेकर शिक्षा मंत्रालय द्वारा समग्र प्रगति की मैपिंग की जाती है।
- फिनिश बच्चे अपनी शैक्षणिक यात्रा बड़ी उम्र में शुरू करते हैं, यानी जब वे सात साल के हो जाते हैं तो वे अपनी स्कूली शिक्षा शुरू करते हैं और उससे पहले सीखने को फ्री-फ्लोइंग किया जाता है।
- केवल मास्टर डिग्री होल्डर (विशेष शिक्षण विद्यालयों से) शिक्षण पदों का विकल्प चुन सकते हैं और फिर भी प्रत्येक शिक्षक को उनकी प्रगति पर नजर रखने के लिए एक व्यक्तिगत प्रिंसिपल दिया जाता है।
- फिनलैंड छात्रों में टीम वर्क, सहयोग और टीम भावना के कौशल को विकसित करके स्कूलों में कम्पटीशन पर सहयोग को बढ़ावा देने पर ध्यान देता है।
- फिनलैंड एजुकेशन सिस्टम में केवल 9 वर्ष की अनिवार्य शिक्षा है और उसके बाद छात्रों को प्रोत्साहित किया जाता है कि उनके लिए अकादमिक और करियर के अनुसार सबसे अच्छा क्या है।
फिनलैंड एजुकेशन सिस्टम से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
फिनलैंड एजुकेशन सिस्टम से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य नीचे दिए गए हैं-
- फ़िनलैंड में प्रारंभिक शिक्षा शुरू करने की न्यूनतम आयु 7 वर्ष है, इसलिए फ़िनिश बच्चों को अपने बचपन का आनंद लेने और स्कूलों में अत्यधिक समय बिताने के बजाय अपने परिवार के साथ सीखने की शुरुआत करने का मौका मिलता है।
- फिनिश शिक्षक कक्षा परीक्षाओं और स्टैंडर्डाइज्ड ट्रेनिंग पर निर्भर होने के बजाय छात्रों के लिए अपनी खुद की ग्रेडिंग सिस्टम तैयार करते हैं।
- 16 वर्ष की आयु में फ़िनिश छात्र अनिवार्य परीक्षा देते हैं।
- फ़िनिश शिक्षक हर दिन केवल 4 घंटे कक्षा में पढाते हैं जबकि वे प्रोफेशनल विकास के लिए हर सप्ताह 2 घंटे समर्पित करते हैं।
- फ़िनलैंड में स्कूल सिस्टम पूरी तरह से 100% स्टेट- फंडेड है।
- टॉप 10 पर्सेंटाइल से ग्रेजुएट केवल फ़िनलैंड में शिक्षक बनने के लिए आवेदन कर सकते हैं।
- फ़िनलैंड में प्रत्येक शिक्षक मास्टर डिग्री होल्डर है जिसे देश की सरकार द्वारा पूरी तरह से सब्सिडी दी जाती है।
- औसतन, फ़िनलैंड में एक शिक्षक का शुरुआती वेतन लगभग €48,000-50,000 है।
- फिनलैंड में शिक्षकों को डॉक्टरों और वकीलों के बराबर माना जाता है।
- 2024 में, फिनलैंड में साक्षरता दर 99.5% है। फिनिश छात्र सप्ताह में केवल 20 घंटे ही स्कूल में बिताते हैं।
- फ़िनलैंड का प्रत्येक छात्र 2-3 भाषाएँ बोल सकता है ।
- छात्रों को स्कूलों में बैंकिंग और इंडस्ट्रियल कार्यों से लेकर संगीत और कविता तक नई चीजें सीखने को मिलती हैं ।
- स्कूलों में प्रत्येक छात्र को 45 मिनट सीखने के लिए 15 मिनट खेलने या अवकाश गतिविधियों के लिए खर्च करने को मिलता है।
फिनलैंड एजुकेशन पॉलिसी
फिनलैंड एजुकेशन पॉलिसी की महत्वपूर्ण विशेषताएं इस प्रकार हैं:
- फ़िनलैंड एजुकेशन पॉलिसी का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक नागरिक को समान शैक्षिक अवसर प्राप्त हों।
- शिक्षा नीति का सबसे महत्वपूर्ण फोकस क्वालिटी, एफिशिएंसी और इंटरनेशनलाइजेशन पर है।
- फिनलैंड एजुकेशन पॉलिसी ‘आजीवन सीखने’ और ‘मुफ्त शिक्षा’ के सिद्धांतों पर स्थापित है।
- फ़िनिश शिक्षकों को उनकी ज़रूरत की ऑटोनॉमी प्रदान की जाती है, लेकिन उन्हें पूरी तरह से प्रशिक्षित किया जाता है और केवल उच्च योग्यता के साथ शॉर्टलिस्ट किया जाता है जो आमतौर पर मास्टर डिग्री होती है।
- शिक्षक भी छात्रों के लिए सर्वोत्तम कोर्स के साथ-साथ सीखने की योजना बनाने में भी गहन रूप से शामिल हैं।
- फ़िनलैंड एजुकेशन सिस्टम शिक्षकों के साथ-साथ समुदाय के बीच विश्वास के माहौल को बढ़ावा देता है।
- छात्रों को विशेष रूप से इंटरडिसिप्लिनरी प्रोजेक्ट्स और स्पेशलाइजेशन के माध्यम से कोलेबोरेटिव प्रोजेक्ट्स पर काम करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
फिनलैंड एजुकेशन सिस्टम
फिनलैंड एजुकेशन सिस्टम में नौ साल की अनिवार्य बेसिक एजुकेशन, एलीमेंट्री एजुकेशन और देखभाल, प्री – प्राइमरी एजुकेशन, हायर सेकेंडरी एजुकेशन, हायर एजुकेशन और अंत में कंटीन्यूविंग एजुकेशन शामिल है। इन सभी का विवरण नीचे दिया गया है-
- अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन एंड केयर (अनिवार्य शिक्षा की शुरुआत से पहले छात्रों को प्रदान की जाती है)
- प्री-प्राइमरी एजुकेशन (6 वर्ष के बच्चों के लिए 1 वर्ष की अवधि)
- बेसिक एजुकेशन (7-16 आयु वर्ग के बच्चों के लिए अनिवार्य 9 वर्षीय शिक्षा)
- उच्च माध्यमिक शिक्षा (वोकोएशनल एजुकेशन एंड ट्रेनिंग/जनरल हायर सेकेंडरी एजुकेशन)
- उच्च शिक्षा (एप्लाइड साइंसेज के विश्वविद्यालयों/विश्वविद्यालयों द्वारा दी जाने वाली शिक्षा)
- एडल्ट एजुकेशन
अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन एंड केयर (ECEC)
इसका उद्देश्य एक बच्चे के विकास, सीखने और उनके भविष्य के लिए अवसर प्रदान करना है। स्थानीय अधिकारियों और नगर पालिकाओं को बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा और देखभाल के तंत्र रेगुलेटेड करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। फ़िनलैंड शिक्षा प्रणाली के इस स्तर पर, केवल नगरपालिका डेकेयर कवर का शुल्क लिया जाता है जो मुख्य रूप से पारिवारिक आय के साथ-साथ बच्चों की संख्या पर निर्भर करता है। शिक्षा के लिए फिनिश राष्ट्रीय एजेंसी की स्वीकृति लेते हुए, नेशनल करिकुलम गाइडलाइंस (NCG) को ECEC स्तर के लिए डिज़ाइन किया गया है और यह बच्चों और उनके परिवारों के लिए नगर पालिकाओं द्वारा ऑपरेटेड अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन एक्टिविटीज का भी गठन करता है।
प्री प्राइमरी एजुकेशन
इस चरण का उद्देश्य बच्चों के सीखने और विकास के अवसरों को बढ़ाना है। देश में बच्चों के लिए, 2015 से प्री प्राइमरी एजुकेशन अनिवार्य कर दी गई है।
बेसिक एजुकेशन
फ़िनलैंड एजुकेशन शिक्षा में, कॉम्प्रिहेंसिव स्कूलिंग और बेसिक एजुकेशन 7 से 16 वर्ष की आयु के सभी बच्चों के लिए यह अनिवार्य शिक्षा शुरू होती है। यह समाज के नैतिक रूप से जिम्मेदार सदस्य बनने के साथ-साथ उन्हें प्रदान करने की दिशा में छात्र के विकास का समर्थन करने का प्रयास करता है। इसके अलावा, बेसिक एजुकेशन प्रदान करने वाले सभी स्कूल एक नेशनल ओरिजिन एजुकेशन का पालन करते हैं जो विभिन्न विषयों के उद्देश्यों और बेसिक फंडामेंटल्स का गठन करता है और लोकल अथॉरिटी जैसे कि नगरपालिका और अन्य शिक्षा प्रदान करने वाले कॉम्प्रिहेंसिव स्कूलों को बनाए रखते हैं और अक्सर अपने स्वयं के कोर्स का निर्माण करते हैं।
उच्च माध्यमिक शिक्षा
फ़िनलैंड एजुकेशन सिस्टम के शुरूआती शिक्षा चरण के पूरा होने पर, छात्रों को सामान्य और वोकेशनल शिक्षा प्राप्त करने के बीच विकल्प दिया जाता है। सामान्य शिक्षा को पूरा होने में आमतौर पर तीन साल लगते हैं। सामान्य उच्च माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के बाद, छात्रों को ग्रेजुएशन की डिग्री के लिए विभिन्न शैक्षिक विश्वविद्यालयों या एप्लाइड साइंसेज की यूनिवर्सिटीज के लिए योग्य होने के लिए फिनिश मैट्रिक परीक्षा देनी होती है।
दूसरा मार्ग जिसे फ़िनलैंड के छात्र चुन सकते हैं, वह है वोकेशनल हायर सेकेंडरी एजुकेशन और ट्रेनिंग जिसमें छात्रों को उनके चुने हुए क्षेत्र में आवश्यक मूल स्किल्स प्रदान की जाती है, उन्हें एक अप्रेंटिसशिप अग्रीमेंट या एक ट्रेनिंग एग्रीमेंट के माध्यम से वर्कप्लेसेस पर असाइन किया जाता है।
उच्च शिक्षा
फ़िनलैंड एजुकेशन सिस्टम उच्च ग्रेजुएशन के तहत, शैक्षणिक संस्थानों को रेगुलर विश्वविद्यालयों और अप्लाइड साइंसेज विश्वविद्यालयों में बांटा जाता है। रेगुलर विश्वविद्यालयों में ग्रेजुएशन की डिग्री पूरी करने की समय अवधि 3 वर्ष है और मास्टर कार्यक्रम 2 वर्ष का है। जबकि, फिनलैंड में एप्लाइड साइंसेज के विश्वविद्यालयों में अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों को यूएएस ग्रेजुएट और यूएएस मास्टर डिग्री से सम्मानित किया जाता है। फ़िनलैंड एजुकेशन सिस्टम में, अप्लाइड साइंसेज विश्वविद्यालयों द्वारा दी जाने वाली डिग्री को पूरा होने में आमतौर पर 3.5 से 4.5 वर्ष लगते हैं। वे छात्र जो इन विश्वविद्यालयों में यूएएस मास्टर कार्यक्रम करना चाहते हैं, उन्हें अपने क्षेत्र में 3 साल के रेलेवेंट कार्य अनुभव के साथ डिग्री या कोई अन्य उपयुक्त डिग्री पूरी करनी चाहिए।
एडल्ट एजुकेशन
फ़िनलैंड एजुकेशन सिस्टम में एडल्ट एजुकेशन और ट्रेनिंग को शिक्षा प्रदान करने के लिए जोड़ा जाता है। एडल्ट एजुकेशन शिक्षण संस्थानों द्वारा मुख्य रूप से कामकाजी पेशेवरों, निजी कंपनियों और वर्कप्लेसेस के लिए प्रदान की जाती है।
फ़िनलैंड में हायर एजुकेशन करने के लिए फीस
अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए फ़िनलैंड में हायर एजुकेशन के लिए कोर्स लेवल के अनुसार फीस दी गई है, जो इस प्रकार है:
कोर्स लेवल | औसत सालाना फीस (€) |
डिप्लोमा | 8,000-14,000 |
अंडरग्रेजुएट | 5,000-18,000 |
पोस्टग्रेजुएट | 5,000-18,000 |
डॉक्टरेट/पीएचडी | 5,000-18,000 |
फ़िनलैंड में लोकप्रिय यूनिवर्सिटीज की रैंकिंग
वर्ष 2022 के लिए संबंधित क्यूएस रैंकिंग के साथ फिनलैंड में विश्वविद्यालयों की सूची यहां दी गई है-
फ़िनलैंड में विश्वविद्यालय | क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2025 |
हेलसिंक यूनिवर्सिटी | 117 |
आल्टो यूनिवर्सिटी | 113 |
यूनीवर्सिटी ऑफ तुर्कू | =375 |
यूनीवर्सिटी ऑफ जैवस्काइल | =489 |
यूनिवर्सिटी ऑफ औलूस | =344 |
टाम्परे यूनिवर्सिटी | =462 |
लप्पीनांराता यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी | =336 |
यूनीवर्सिटी ऑफ ईस्टर्न फ़िनलैंड | =535 |
बो अकादमी यूनिवर्सिटी | 621-630 |
फिनलैंड में मुफ्त शिक्षा
फिनलैंड न केवल गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का दावा करता है बल्कि कई छात्रों के लिए मुफ्त शिक्षा भी प्रदान करता है। फ़िनलैंड में सार्वजनिक विश्वविद्यालयों को अप्लाइड साइंस के लिए रेगुलर विश्वविद्यालयों और अन्य विश्वविद्यालयों में बांटा गया है। इन विश्वविद्यालयों में यूरोपीय संघ/EEA देशों और स्विट्ज़रलैंड से आने वाले छात्रों के लिए कोई शिक्षण शुल्क नहीं है। हालांकि गैर-EU/EEA देश के छात्रों को ट्यूशन फीस का भुगतान करना पड़ता है, फ़िनिश या स्वीडिश में पढ़ाए जाने वाले कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए भी निःशुल्क हैं।
फ़िनलैंड में अध्ययन की लागत
फ़िनलैंड के सार्वजनिक संस्थानों ने 2017 तक ट्यूशन फीस नहीं ली थी। हालाँकि, 1990 के दशक से सरकार के स्तर पर यूरोपीय संघ/EEA के बाहर के छात्रों पर ट्यूशन फीस लगाने का प्रयास किया गया है। ऐसा होने पर स्टूडेंट ग्रुप्स ने विरोध किया। यूरोपीय आर्थिक क्षेत्र (EEA) के बाहर के छात्रों को 2024 के विंटर सेमेस्टर के बाद से फिनलैंड में पढ़ाई करने के लिए कम से कम €1,700 का भुगतान करना पड़ा है, जबकि EEA के छात्र मुफ्त में अध्ययन करना जारी रखते हैं। गैर-यूरोपीय छात्रों की ट्यूशन फीस आमतौर पर यूनिवर्सिटी और प्रोग्राम के आधार पर लगभग €8,000-19,000 प्रति वर्ष होती है।
FAQs
2021 में देशों द्वारा शिक्षा रैंकिंग में फिनलैंड 1.631K के कुल स्कोर के साथ तीसरे स्थान पर है। फ़िनलैंड में दुनिया में हाई स्कूल पूरा होने की दर सबसे अधिक है। ग्लोबल कंप्टीटिवेनस ऑफ़ वर्ल्ड इकोनॉमिक फॉर्म रिपोर्ट के अनुसार, फिनलैंड दुनिया में सबसे अच्छी तरह से विकसित शिक्षा प्रणाली है।
फ़िनलैंड को दुनिया के सबसे खुशहाल और सबसे समृद्ध देशों में से एक का नाम दिया गया है, और द इकोनॉमिस्ट ने इसे उच्च शिक्षा के लिए दुनिया का सबसे अच्छा देश बताया है।
फ़िनलैंड में, छात्र प्रतिदिन लगभग 5 घंटे स्कूल में बिताते हैं।
फ़िनलैंड में रेगुलर विश्वविद्यालय और अप्लाइड साइंस के विश्वविद्यालय दो प्रकार के सार्वजनिक संस्थान हैं। वे सभी EU/EEA और स्विट्ज़रलैंड के छात्रों के लिए ट्यूशन फ्री हैं। गैर-यूरोपीय संघ/ईईए छात्रों को ट्यूशन फीस का भुगतान करना होगा।
उम्मीद है कि आपको इस ब्लॉग से फिनलैंड एजुकेशन सिस्टम के बारे में पूरी जानकारी मिली होगी। यदि आप भी फिनलैंड में पढ़ाई करना चाहते हैं, तो आज ही हमारे ………….. एक्सपर्ट के साथ 30 मिनट का फ्री सेशन 1800…… 000 पर कॉल करके बुक करें।