क्या 36 हजार मस्जिदों के नीचे मंदिर ?

क्या 36 हजार मस्जिदों के नीचे मंदिर
बदल नहीं सकते तो संभल जैसे सर्वे की इजाजत क्यों; आखिर कहां थमेगा ये सिलसिला
सुप्रीम कोर्ट के वकील हरिशंकर जैन को सपना आया कि कल्कि महाराज का जन्म संभल के हरिहर मंदिर में होना है। उन्होंने 19 नवंबर की सुबह संभल सिविल कोर्ट में याचिका दायर की। इसमें दावा किया कि संभल की जामा मस्जिद ही हरिहर मंदिर था। उसी दिन याचिका स्वीकार हो गई। अगले 6 घंटे की टाइमलाइन…

दोपहर 1 बजेः मामले की सुनवाई शुरू हुई। याचिकाकर्ता की दलीलें सुनी गईं।

शाम 4 बजेः एडवोकेट कमिश्नर रमेश चंद राघव ने जामा मस्जिद के सर्वे का आदेश दे दिया।

शाम 5.30 बजेः याचिकाकर्ता संभल के जिलाधिकारी राजेंद्र पैंसिया और कमिश्नर से मिले।

शाम 6 बजेः सर्वे टीम मस्जिद पहुंची और फिर मुस्लिम पक्ष के साथ मीटिंग शुरू हो गई।

शाम 7:30 बजेः पहले दौर का सर्वे का काम पूरा कर लिया गया।

5 दिन बाद यानी 24 नवंबर को टीम सर्वे के लिए फिर जामा मस्जिद पहुंची। वहां लोगों की भीड़ जमा हो गई। पथराव और गोलीबारी के बीच 5 लोगों की मौत हो गई। इसी के साथ मस्जिद के नीचे मंदिर होने के विवाद में एक नया एपिसोड जुड़ गया।

दो दिन बाद हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अजमेर शरीफ दरगाह के संकटमोचन महादेव मंदिर होने का दावा कर दिया। कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली। देशभर के अलग-अलग हिस्सों में ये सिलसिला बदस्तूर जारी है। 2019 में अयोध्या में राम मंदिर का फैसला आने के बाद इसमें तेजी आई है।

जब 1947 के बाद धार्मिक स्थलों के स्वरूप को बदल नहीं सकते, तो फिर कोर्ट क्यों दे रहे सर्वे के आदेश; आखिर कब थमेगा ये सिलसिला…

BJP नेता अश्विनी उपाध्याय कहते हैं कि ‘द प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991’ कानून का बेस 1947 रखा गया है। अगर इस तरह का कोई बेस बनाया जाता है, तो वो बेस 1192 ही होना चाहिए।

वहीं, संभल और ज्ञानवापी मामलों में वकील विष्णु शंकर जैन का कहना है- ‘वे मुगल हमलावरों द्वारा तोड़े गए सभी मंदिरों को वापस पाने के लिए संवैधानिक तरीके से कानूनी लड़ाई लड़ेंगे, ये उनका अधिकार है।’

3 जून 2022 को नागपुर में RSS प्रमुख मोहन भागवत ने इस मामले में विवाद बढ़ने पर कहा था- ‘इतिहास में हुई गलतियों को भुलाकर हिंदुओं को हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग नहीं ढूंढना चाहिए।’

मोहन भागवत के बयान के करीब 20 महीने बाद फरवरी 2024 में UP के CM योगी आदित्यनाथ ने मंदिर-मस्जिद विवाद पर कहा-‘पांडवों ने भी केवल 5 गांव मांगे थे, लेकिन दुर्योधन ने अहंकार में जब ये भी देने से मना किया तो पूरा राज गंवाना पड़ा था। ऐसे ही हिंदुओं ने केवल अपने तीन इष्टों के प्रमुख मन्दिरों को तोड़कर बनाई मस्जिदों की जमीन वापस मांगी थी, लेकिन अब हम हमारे सभी मंदिरों को मुक्त करेंगे।’

इतिहास में अगर कुछ गलत हुआ है, तो उसे सुधारने का सिलसिला कहां थमना चाहिए। इसके लिए हमने कुछ एक्सपर्ट्स से बात की…

इतिहासकार अशोक कुमार पांडेय कहते हैं-

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सांप्रदायिक राजनीति की वजह से इस तरह के विवाद पैदा होते हैं। सुप्रीम कोर्ट को चाहिए कि वो निचली अदालत को किसी भी पुराने मंदिर या मस्जिद में सर्वे के आदेश देने पर रोक लगाए।

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जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफेसर आदित्य मुखर्जी के मुताबिक…

  • जेनोसाइड वॉर टॉपिक के रिसर्चर प्रोफेसर ग्रेगरी एच. स्टैंटन ने कहा है कि भारत अल्पसंख्यकों के मामले में जिस रास्ते पर जा रहा है, जल्द यहां दुनिया का सबसे बड़ा जेनोसाइड हो सकता है। अगर कानून इसे नहीं रोक पाता है तो ऐसा लगता है कि सामूहिक नरसंहार के बाद ही ये सब रुकेगा।
  • दुनिया में कहीं भी 500 साल पुराने धार्मिक स्थलों की खुदाई कर बदला नहीं लिया जा रहा है। पूरी दुनिया में पलायन करके लोग एक जगह से दूसरी जगह गए हैं। अगर ऐसा हुआ होता तो अमेरिका ही खत्म हो जाता, वहां तो दुनिया भर से आकर लोग बसे हैं।
  • भारत में कानून अगर सर्वे और फिर पूजा की इजाजत देता है तो उसे इस सवाल का भी जवाब देना होगा कि सर्वे के बाद अगर मस्जिद तोड़कर मंदिर बनाने की मांग होती है तो क्या होगा? इस सवाल का जवाब काफी हद तक इसके सिलसिला को रोक सकता है।

‘अयोध्याज राम टेंपल इन कोर्ट्स’ किताब के लेखक और सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के मुताबिक सारे लीगल डिसप्यूट में तीन पहलू हैं…

1. सर्वे होकर ये पता चले कि क्या पहले तोड़फोड़ हुई थी

2. अगर पुराना मंदिर या अवशेष है तो उसके दर्शन का अधिकार

3. अगर कोई मंदिर तोड़ा गया तो उसे नए सिरे से बनाने का अधिकार

इन तीनों चीजों का कानूनी विश्लेषण होना जरूरी है। ‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991’ के मुताबिक 15 अगस्त 1947 से पहले बने धार्मिक स्थलों का स्वरूप नहीं बदला जा सकता है, लेकिन सर्वे हो सकता है। सर्वे के साथ ही हिंसा भड़क जाती है।

ऐसे में इस विवाद को रोकने का एक उपाय ये है कि तत्काल सुप्रीम कोर्ट ‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991’ को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करके अंतरिम फैसला सुनाए। सुप्रीम कोर्ट आखिरी फैसला आने तक इससे जुड़े किसी भी मामले में निचली अदालत को फैसला सुनाने पर रोक लगा दे।

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