-खेल-खेल में पढ़ने वाली किट ?
-खेल-खेल में पढ़ने वाली किट, टर्नओवर 50 करोड़:मेले में 18 घंटे स्टॉल लगाता; पढ़ने के लिए रेस्टोरेंट में काम किया
‘2008-09 की बात है। मैं 19 साल का था। पढ़ाई के लिए लंदन जाने की पूरी तैयारी हो चुकी थी। एक दिन अचानक मेरे दादा की मौत हो गई। मैं सोच में पड़ गया कि अब विदेश जाऊं या नहीं…। पापा से पूछा, तो उन्होंने कहा- जो होना था, हो गया। तुम अपना प्लान कैंसिल मत करो। तुम्हारे पास पैसे हैं?
मैंने कहा- हां, मेरे पास पैसे हैं। सच कहूं, तो मेरे पास महज 28 हजार रुपए थे। इतने पैसे लेकर मैं लंदन चला गया। दरअसल घर की जो स्थिति थी, उसमें पापा से और पैसे नहीं मांग सकता था।
मुझे लंदन के बारे में कुछ भी नहीं पता था। जाने से पहले कुछ लोगों से बात की थी कि मुझे रहने के लिए जगह चाहिए, लेकिन जब पहुंचा, तो कोई आसरा नहीं मिला। सब मुकर गए। गुरुद्वारे में रहने तक की नौबत आ गई।’
मेरे सामने मध्यप्रदेश के इंदौर बेस्ड कंपनी ‘क्लासमॉनिटर’ के फाउंडर विजीत पांडे हैं। वह अपने शुरुआती दिनों की बातें बता रहे हैं। विजीत की कंपनी छोटे बच्चों के लिए खेल-खेल में पढ़ने-लिखने, सीखने की किट तैयार करती है।
दोपहर के 2 बज रहे हैं। पहली नजर में विजीत का ऑफिस किसी IT कंपनी की तरह लग रहा है। अंदर जाते ही ऑफिस की दीवार पर अलग-अलग फ्रेम में कई बच्चों की तस्वीरें लगी हुई हैं। सामने एक डिस्प्ले पर कई बॉक्स रखे हुए हैं।
विजीत कहते हैं, ‘पिछले 8 साल से हम छोटे बच्चों के माइंड को डेवलप करने पर काम कर रहे हैं। दरअसल 0 से 6 साल तक की उम्र में बच्चों के दिमाग का 18 फीसदी विकास हो जाता है। इस उम्र में पेरेंट्स अपने बच्चों के हाथ में स्क्रीन थमा देते हैं। यह खतरनाक है।’
विजीत की कंपनी के डिजाइन सेक्शन में अलग-अलग कैटेगरी के किट डिजाइन किए जा रहे हैं। काउंटिंग, नंबर, एनिमल, कार्टून… इन सबसे रिलेटेड प्रिंट तैयार हो रहे हैं। विजीत बताते हैं, ‘हम इन किट्स को इस तरह से डिजाइन करते हैं कि बच्चे अट्रैक्ट हों।
हर उम्र के बच्चों के लिए अलग-अलग किट तैयार होता है, ताकि उनकी लर्निंग प्रोसेस उनकी उम्र के मुताबिक हो। मान लीजिए कि कोई बच्चा 3 साल का है, तो उसे 1,2,3…, A, B, C, D…, जानवरों की इमेज से नाम पहचानना, इस तरह के कलेक्शन को कलेक्ट करते हैं।’
आप वो गुरुद्वारे वाली बात बता रहे थे? बिजनेस की बातचीत के बीच मैं विजीत से उन दिनों की बातें पूछता हूं।
वह कहने लगे, ‘रात का समय था। गुरुद्वारे ने रहने देने से मना कर दिया। मैं बाहर सिम कार्ड खरीदने के लिए भटक रहा, तभी कुछ इंडियंस दिखे। उन्होंने मेरी मदद की। मुझे दो-तीन दिनों के लिए रहने की जगह दी।
मेरे पास जितने पैसे थे, उसमें एक-दो महीने भी सर्वाइव करना मुश्किल था। एडमिशन लेते ही मैंने काम खोजना शुरू कर दिया। हर दुकान में अपना सीवी देने लगा। एक रेस्टोरेंट चेन में मुझे बतौर हेल्पर जॉब मिल गई।
यह उस वक्त की बात है, जब 2008-09 में ग्लोबल रिसेशन आया था। वहां के लोकल लोगों को भी जॉब नहीं मिल रही थी। मैंने कभी आज तक घर के किचन में भी काम नहीं किया था। वहां मैंने ब्रेड काटने, सैंडविच बनाने की शुरुआत की। धीरे-धीरे मुझे एरिया मैनेजर बना दिया गया।’
आप इंदौर से हैं?
‘हां, रहने वाला तो इंदौर का ही हूं, लेकिन पला-बढ़ा उत्तर प्रदेश के कानपुर में हूं। पापा की टेक्सटाइल इंडस्ट्री में जॉब थी। घर में बिजनेस का कोई चलन नहीं था। मैं अपने घर में बिजनेस करने वाला इकलौता हूं।
लंदन से अकाउंट एंड फाइनेंस में स्टडी करने के बाद मैं वहीं पर जॉब करने लगा। जिस कंपनी के साथ मैंने करिअर की शुरुआत की थी, उस वक्त उनके 13 स्टोर थे। जब जॉब छोड़ी, तो उनके 97 स्टोर थे। यहीं पर मैंने मार्केटिंग से लेकर कस्टमर डील करने तक की बारिकियां सीखीं।
2016 की बात है। जिस तरह के एन्वायर्नमेंट में मैं था, वह मेरे लिए और भारतीय होने के नाते ठीक नहीं था। मैं सिर्फ अपने बारे में सोच रहा था। कह सकते हैं कि मैं सेल्फिश होता जा रहा था। मैं मन ही मन सोचने लगा कि अब इंडिया वापस लौट जाऊं। यदि अभी नहीं लौटा, तो फिर कभी नहीं लौट पाऊंगा। मेरी उम्र 27 साल के करीब थी।
आने से पहले ही प्लान कर लिया था कि जाकर बिजनेस ही करना है। मुझे एग्रीकल्चर, हेल्थ और एजुकेशन सेक्टर में ही धंधा करना था। अपने एक दोस्त के साथ बातचीत करने के बाद मैंने एजुकेशन सेक्टर को चुना।’
एजुकेशन सेक्टर?
‘दरअसल 2016-17 तक स्कूल बच्चों के घरवालों से बातचीत करने के लिए वॉट्सएप का सहारा लेने लगे थे। मैंने एक प्लेटफॉर्म बनाया, जहां स्कूल और पेरेंट आपस में कनेक्ट हो सकते थे। स्कूल, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई से लेकर स्टडी मटेरियल तक, सब कुछ शेयर कर सकते थे।
एक साल के भीतर ही इंदौर और अहमदाबाद के 80 हजार से ज्यादा पेरेंट्स हमारे साथ जुड़ गए। उसके बाद हमने क्लासमॉनिटर नाम से बच्चों के लिए किट तैयार की। जब विदेश से लौटा था, तो तकरीबन 10 लाख की सेविंग्स थी।
इसी पैसे को बिजनेस में इन्वेस्ट किया। मुझे याद है- जब किड्स किट तैयार हुईं, तो इंदौर के एक एग्जीबिशन में स्टॉल लगाया। सुबह के 6 बजे से लेकर रात के 11 बजे तक हमने 50 से ज्यादा किट बेच दिए। करीब सवा लाख रुपए का बिजनेस किया था।
तब लगा कि पेरेंट्स के बीच ऐसे प्रोडक्ट्स की डिमांड है। इंदौर में ही हम 400 पेरेंट्स से कनेक्ट हो गए थे। आज हम 3 लाख के करीब पेरेंट्स तक पहुंच चुके हैं।’
विजीत बताते हैं, ‘ B 2 C यानी बिजनेस टु कंज्यूमर में मार्केटिंग में सबसे ज्यादा पैसे लगते हैं। मेरे पास फंड की दिक्कत थी। मैंने लोकेशन वाइज कुछ ऐसी मदर को अप्रोच किया, जिन्होंने मुझसे अपने इस्तेमाल के लिए प्रोडक्ट खरीदा।
बाद में मैंने उन्हें उस लोकेशन का डिस्ट्रिब्यूटर बना दिया। इससे हमारा बिजनेस ग्रो करने लगा। आज हम अपने वेबसाइट और इ-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स के जरिए प्रोडक्ट बेच रहे हैं। एक प्रोडक्ट से हमने शुरुआत की थी। आज 25 से ज्यादा कैटेगरी के प्रोडक्ट्स हैं। 100 के करीब लोग काम कर रहे हैं। इस साल हम 50 करोड़ के करीब टर्नओवर कर लेंगे।
एक ऐसा भी दौर आया, जब बिजनेस में कई सेटबैक लगे। मुझे याद है- कोरोना के दौरान कई ऐसी डील थीं, जो कैंसल हो गईं। फंड रुक गया। उस वक्त फैमिली ने सबसे ज्यादा मदद की। पिछले 5-6 महीने से हम प्रॉफिटेबल कंपनी हैं। अगले एक दो सालों में 500 लोगों की टीम बनाने की प्लानिंग है।’