कुंठित अधिकारी की तानाशाही ! एक आईएएस का यह व्यवहार कहां तक उचित?

 

कुंठित अधिकारी की तानाशाही!

जब कार्य नहीं कर पा रहे तो दबाव बनाकर लोगों को बोलने से रोकने की हो रही कोशिश
एक आईएएस का यह व्यवहार कहां तक उचित?

एक व्यक्ति आईएएस बनता है कड़ी मेहनत और कड़ी परीक्षा के बाद। आईएएस बनने के लिए व्यक्ति को काफी मेहनत करनी पड़ती है और जब वह आईएएस चुन लिया जाता है उसके बाद उसे ट्रेनिंग से भी गुजरना होता है और तब जाकर कहीं किसी जिले की कलेक्टरी उसे मिलती है। लेकिन जब यही आईएएस अपने पद का दुरुपयोग आम जनता या अन्य किसी के खिलाफ करने लगे तो उसे क्या कहा जाएगा? कड़ी परीक्षा इसलिए दी जाती है ताकि एक आईएएस जिले के लिए और यहां रहने वाले लोगों के लिए कार्य करते वक्त कोई डिसीजन ले सके, ना कि उनके ऊपर तानाशाही करें।

एक कलेक्टर केवल शासन की योजनाओं के क्रियान्वयन तक सीमित ना होकर अपने बुद्धि विवेक से निर्णय ले सकता है। लेकिन इसके उलट भिण्ड कलेक्टर हैं जो कि अपनी कलेक्टरी का तानाशाहीपूर्ण उपयोग कर रहे हैं। कहने को तो वह अपने हिसाब से अपना काम सही कर रहे हैं। लेकिन वह आम जनता, पत्रकार अथवा अधिवक्ता किसी के भी द्वारा उठाई जा रही आवाज को अपनी तौहीन समझते हैं और फिर अपने आपको ऊंचा साबित करने के लिए अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए आदेश निकालकर एफआईआर दर्ज करवाकर सामने वाले को दबाने का प्रयास करते हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं जो हम आपको बता रहे हैं।

अब आप को समझाते हैं किस प्रकार से भिण्ड कलेक्टर डॉ सतीश कुमार एस. तानाशाही पूर्ण रवैया अपनाते हुये अपनी आईएएस की डिग्री को धूमिल कर रहे हैं। वह केवल शासन की योजनाओं के क्रियान्वयन को ही अपना कार्य समझते हुए उसके खिलाफ उठाई जा रही आवाज को दबाने का प्रयास कर रहे हैं।

जब डॉ सतीश कुमार एस. की भिंड में कलेक्टर के रूप में पदस्थापना हुए कुछ ही दिन हुए थे तभी किसी बात से नाराज अधिवक्तागण कलेक्टर साहब से मिलने के लिए पहुंचे। लेकिन कलेक्टर डॉ सतीश कुमार एस. ने अधिवक्ताओं से मिलना उचित नहीं समझा और अपने चेंबर के बाहर ताला जड़वा दिया, जबकि कलेक्टर साहब चेंबर के अंदर ही बैठे थे। ऐसे में नाराज अधिवक्ताओं ने कलेक्टर के खिलाफ जमकर नारेबाजी भी की और भला बुरा कहते हुए वहां से चले गए।

इसके बाद बोर्ड परीक्षा के समय में जब कोविड-19 का हवाला देते हुए माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा परीक्षार्थियों को 8:30 बजे परीक्षा हॉल में पहुंचने के निर्देश जारी किए गए थे, जबकि परीक्षा शुरू होने का समय 10 बजे से था। कुछ परीक्षार्थी परीक्षा देने के लिए दूरदराज से आए तो वहीं वाहन के चक्कर में या किसी अन्य कारण से मामूली सा लेट हो गए। उस समय कलेक्टर साहब चाहते तो उन्हें परीक्षा में प्रवेश दिया जा सकता था। लेकिन 10-15 मिनट लेट हुए परीक्षार्थियों को परीक्षा भवन में प्रवेश ना देते हुए घर का रास्ता दिखा दिया गया। पूरे साल तैयारी कर कलेक्टर साहब की तानाशाही से परीक्षा से वंचित हुए मासूम बालिका और बालक सड़क पर रोते हुए नजर आए। उन्होंने कलेक्टर के खिलाफ प्रोटेस्ट करने की कोशिश की, लेकिन कलेक्टर की तानाशाही के आगे उनकी एक ना चली और उन्हें बलपूर्वक एफआईआर दर्ज करने की धमकी देते हुए हटा दिया गया। ऐसे में उनका पूरा साल बर्बाद हो गया। रोते बिलखते छात्र छात्राएं कलेक्टर को कोसते हुए नजर आए।

एक अन्य मामले में इन्हीं परीक्षाओं के दौरान एक पत्रकार द्वारा परीक्षा में पत्रकारों को कवरेज ना करने देने के बाद परीक्षाओं में चल रही नकल की लेकर टिप्पणी की गई। जो कलेक्टर साहब को नागवार गुजरी और वह इतना खफा हो गए कि अपने अधीनस्थों के द्वारा उस पत्रकार पर मामला दर्ज करा दिया, वह भी बैक डेट में आदेश निकाल कर।

इसके बाद एक मामला आया जब गौरी सरोवर में रिटेनिंग वॉल बनाए जाने को लेकर वृक्षों की अंधाधुंध कटाई की जा रही थी। चूंकि वृक्ष समाजसेवियों द्वारा लगाए गए थे, ऐसे में उन्हें पीड़ा होना लाजमी था। कई समाजसेवियों ने इसका विरोध किया और कलेक्टर साहब से वृक्षों की कटाई रुकवाकर दूसरा कोई उपाय अपनाते हुए रिटेनिंग वॉल बनाने की गुहार लगाई। लेकिन कागजों में काम करने वाले कलेक्टर साहब किसी की सुनने को तैयार ही नहीं थे। जिसके बाद इन वृक्षों की कटाई रुकवाने की गुहार लेकर कुछ समाजसेवी और छात्र-छात्राएं कलेक्टर के पास ज्ञापन लेकर पहुंचे ताकि गौरी सरोवर की सुंदरता बढ़ा रहे वृक्षों को कटने से बचाया जा सके। लेकिन कलेक्टर ने उन छात्र-छात्राओं से ना मिलते हुए तहसीलदार महोदया को भेज दिया। जिससे छात्र-छात्राओं ने कलेक्टर से मिलने की जिद करते हुए तहसीलदार को ज्ञापन देने से मना कर दिया। उनका कहना था कि मामले में कलेक्टर साहब ही हस्तक्षेप कर पेड़ों की कटाई को रुकवा सकते हैं, ऐसे में उनसे ही मिलेंगे। लेकिन कलेक्टर साहब ने इन छात्र-छात्राओं से मिलना तो दूर उन्होंने एक आदेश निकाल कर परिसर में धरना प्रदर्शन जुलूस आदि को प्रतिबंधित बताते हुए तहसीलदार महोदया के द्वारा ज्ञापन देने गए समाजसेवियों के साथ ही पढ़ाई कर रहे छात्र-छात्राओं के ऊपर मामला दर्ज करवा दिया। यही नहीं ज्ञापन में कुछ कोचिंग संचालक भी शामिल हुए थे तो नाराज कलेक्टर साहब ने कोचिंग पर भी ताला जड़वा दिया। इस मामले में भी कलेक्टर की जमकर आलोचना और किरकिरी हुई।

ताजा मामले में जो हाल ही में घटित हुआ है उसमें एक स्थानीय पत्रकार ने जब हाथ ठेले पर अपने पिता को अस्पताल ले जाते हुए एक पुत्र-पुत्री को देखा तो उसकी खबर बनाई। जिसके बाद सभी मीडिया संस्थानों ने इस खबर को प्रमुखता से चलाया। लेकिन कलेक्टर साहब खबर से इतना बौखला गए कि उन्होंने ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर के ऊपर दबाव डालकर तीन पत्रकारों पर मामला दर्ज करवा दिया। कलेक्टर की तानाशाही इसी से समझी जा सकती है कि अगर कुछ खबर गलत चली थी तो उसका खंडन भी किया जा सकता था या फिर आईटी एक्ट की धाराओं में मामला दर्ज कराया जा सकता था। लेकिन कलेक्टर साहब के दबाव के चलते मामला भी आईटी एक्ट की धाराओं में दर्ज ना करते हुए पत्रकारों पर 420 जैसी गंभीर धारा भी लगा दी गई। अब किसी की समझ में यह नहीं आ रहा कि पत्रकारों ने किसके साथ 420 की? इसमें एसपी साहब की भूमिका भी संदिग्ध नजर आ रही रही है। अथवा थाना प्रभारी द्वारा दबाव में कार्य करते हुए एफआईआर दर्ज की गई जिसमें जबरन सभी पत्रकारों पर धारा 420 लगा दी गई।

ऐसे में समझा जा सकता है कि कलेक्टर साहब कितने हठधर्मी हैं, उनके खिलाफ जरा सा कुछ लिख दो तो वह बौखला उठते हैं। इन्हीं कलेक्टर साहब के दो अन्य वीडियो भी सामने आ चुके हैं। जिसमें एक वीडियो में तो स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों कर्मचारियों की क्लास लेते हुए उन्होंने स्वास्थ्य अधिकारियों कर्मचारियों को अपशब्द तक बोल दिए। वहीं एक अन्य मामले में जब नगर पालिका द्वारा सदर बाजार से अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की जा रही थी तो कलेक्टर साहब का विवाद एक व्यापारी से गया। जिसके बाद कलेक्टर साहब इतना गुस्सा हुए जिन्होंने व्यापारी से बोल दिया कि मुझे गोली मार दो। अब भला ऐसा भी कोई आईएएस करता है?

अब कलेक्टर डॉ सतीश कुमार एस. की इस कुंठा को इस तरह भी समझा जा सकता है कि कुछ समय पूर्व एक कलेक्टर आए जिनकी तारीफ करते हुए भिण्ड की म जनता थकती नहीं है। शायद डॉ सतीश कुमार एस. भी कुछ ऐसा ही करने की सोच कर आए थे। लेकिन हर किसी में वह बात नहीं होती। ऐसे में अपनी वाह वाही ना होते देख वह कुंठा से भर गए और वह ऊल जलूल काम करने लगे। सुनने में आया है की यह पूर्व कलेक्टर भिण्ड के किसी व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़े हुए थे। ऐसे में कुंठा से ग्रसित वर्तमान कलेक्टर ने उनसे दोस्ती की दुहाई देते हुए ग्रुप को छोड़ने के लिए मजबूर किया। मजबूरन उन्होंने ग्रुप को अलविदा कह दिया।

बड़े बुजुर्गों का भी कहना है कि अगर कोई आपकी गलती अथवा कमी को बता रहा है तो उसे शिरोधार्य करते हुए उसको सुधारने का प्रयास करना चाहिए, ना कि सामने वाले को ही गलत ठहराने का प्रयास किया जाना चाहिए। लेकिन भिंड कलेक्टर डॉ सतीश कुमार एस. गलती अथवा कमी दिखाने वालों और फरियाद लेकर आने वालों को ही मुजरिम बनाते हुए उन पर एफ आई आर दर्ज करवा रहे हैं, ना कि अपनी गलतियों को सुधारने अथवा उनसे सीख लेने की कोशिश कर रहे हैं।

ऐसे में यहां पर एक शेर भी चरितार्थ होता है-

जहां बेदर्द हाकिम हो, वहां फरियाद क्या करना।

.अब डॉक्टर सतीश कुमार एस. साहब तो अपने पद का दुरुपयोग करते हुए एफआईआर को हथियार बनाकर लोगों को डराना चाहते हैं। लेकिन यह एफआईआर किसी के मन-मस्तिष्क पर कितना विपरीत प्रभाव डाल सकती है या उसके भविष्य को किस प्रकार खराब कर सकती है इसका अंदाजा शायद उन्हें नहीं है। जिन लोगों पर पूर्व में एफआईआर हुई हैं और जो कोर्ट कचहरी के चक्कर लगा रहे हैं वही यह समझ सकते हैं। अगर खुद डॉ सतीश कुमार एस. पर किसी के द्वारा मामूली सी बात को लेकर एफआईआर दर्ज करा दी गई होती तो क्या वह आईएएस बन पाते? उनके ऊपर एक बदनुमा धब्बा लग चुका होता। अगर उनके पढ़ते हुए बच्चे पर जिनके लिए उन्होंने सपने संजोए हुए हैं कि वह आगे जाकर बहुत बड़ा आदमी बनेगा, लेकिन किसी सामाजिक कार्य करते हुए उसके ऊपर एफआईआर दर्ज कर दी जाए तो उनके ऊपर क्या गुजरेगी? यह वह तभी समझ सकते हैं जब एक बाप की हैसियत से सोचें। किसी निर्दोष पर केवल वैमनस्यता और मानसिक कुंठा के चलते एफआईआर कराना कहां तक उचित ठहराई जा सकती है। किसी आईएएस द्वारा इस प्रकार की एफआईआर करवाना वह भी जनता की आवाज उठाने वाले पत्रकारों और पेड़ कटने से बचाने के लिए गुहार लगाने के लिए पहुंचने वाले छात्र-छात्राओं और समाजसेवियों पर एफआईआर करवाने से आखिर कलेक्टर साहब के कलेजे को कितनी ठंडक पहुंची होगी? अब यह तो वह खुद के अंदर झांक कर ही और खुद को उस जगह पर रखकर ही सोच सकते हैं कि जिनके ऊपर एफआईआर करवाई है उनके ऊपर क्या गुजरती है। अब इस प्रकार के आईएएस को किसी भी प्रकार के अधिकार देना किस प्रकार से सही होगा? यह सरकार के लिए भी घातक हो सकता।

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