ड्रोन के क्षेत्र में बड़ा खिलाड़ी बने भारत !
सेना की युद्ध संरचनाओं में ड्रोन का जुड़ाव आधुनिक युद्ध पर उनके परिवर्तनकारी प्रभाव को दर्शाता है। पैदल सेना और मशीनीकृत बटालियनों ने उन्नत निगरानी और आक्रामक अभियानों के लिए ड्रोन खरीदना शुरू कर दिया है। करीब 40-60 टैंक या 18-20 तोपों वाली पारंपरिक बटालियनों के विपरीत ड्रोन बटालियनों में हजारों या यहां तक कि दसियों हजार ड्रोन शामिल हो सकते हैं।
…. बीते दिनों गृहमंत्री अमित शाह ने एलान किया कि ड्रोन की घुसपैठ रोकने के लिए पाकिस्तान और बांग्लादेश सीमा पर एक ड्रोन दस्ते की तैनाती होगी। उनका कहना था कि आने वाले दिनों में ड्रोन का खतरा और गंभीर होने वाला है। यह दिख भी रहा है। उनकी उक्त घोषणा ड्रोन की बढ़ती महत्ता को रेखांकित करती है।
इसके कुछ दिनों पहले अमेरिका के जाने-माने कारोबारी एलन मस्क ने दावा किया था कि उन्नत लड़ाकू विमान एफ-35 अब पुराना पड़ चुका है और भविष्य के युद्धों में तो ड्रोन का ही बोलबाला होगा। एफ-35 की मारक क्षमता को देखते हुए मस्क का यह दावा भड़काऊ लग सकता है, लेकिन उनका यह बयान सैन्य रणनीति में एक बड़े बदलाव का संकेत करता है। हाल में रूस-यूक्रेन और इजरायल-हिजबुल्ला टकराव सहित अन्य संघर्षों में निगरानी से लेकर सटीक हमलों के लिए ड्रोन का भारी पैमाने पर उपयोग हुआ।
इसका मुख्य कारण ड्रोन से मिलने वाला सामरिक लाभ है। लड़ाकू विमानों के विपरीत पायलट रहित ड्रोन में पायलट को खोने का जोखिम नहीं होता। वे लक्ष्य के करीब जाकर आत्मघाती हमला कर सकते हैं। लड़ाकू विमान बहुत महंगे भी हैं। एफ-35 की कीमत ही करीब 2,500 करोड़ रुपये से अधिक है, क्योंकि वह मल्टीफंक्शनल क्षमताओं से सुसज्जित होता है, जबकि ड्रोन बेहद सस्ते भी हो सकते हैं।
सस्ते ड्रोन पांच लाख रुपये में भी बन जाते हैं। अक्सर व्यावसायिक ड्रोनों को ही परिवर्तित करके सैन्य जरूरतें पूरी की जा रही हैं। फर्स्ट पर्सन व्यू यानी एफपीवी ड्रोन, जिनका उपयोग यूक्रेन द्वारा रूस के खिलाफ रियल टाइम वीडियो लेने और सटीक हमले के लिए प्रभावी ढंग से किया गया, स्थानीय स्तर पर निर्मित वाणिज्यिक ड्रोन से अधिक कुछ नहीं थे।
कम लागत वाले डिस्पोजेबल ड्रोन युद्ध की गतिशीलता को नया आकार दे रहे हैं। इनके किफायती मूल्य से दुश्मन की सुरक्षा को भेदने और कुछ ड्रोन के खो जाने की चिंता किए बिना हमला करने की क्षमता मिलती है। पारंपरिक उच्च लागत वाले हथियारों में विफलता के परिणामस्वरूप अक्सर महत्वपूर्ण संसाधनों का नुकसान होता है। इसके विपरीत ड्रोन अधिक लचीले और गतिशील दृष्टिकोण की गुंजाइश देते हैं। अगर एक ड्रोन गंवा भी दिया जाए तो समर नीति पर बड़ा असर नहीं पड़ेगा।
अपने किफायती मूल्य और उपयोग में लचीलेपन से संभव है कि ड्रोन अन्य सामरिक विकल्पों को पीछे छोड़ दें। एक ओर जहां छोटे और सस्ते ड्रोन अपनी उपयोगिता के कारण लड़ाकू विमानों की जगह ले रहे हैं, तो उन्नत ड्रोन उनके प्रभुत्व को चुनौती दे रहे हैं। मीडियम एल्टीट्यूड लांग एंड्योरेंस (एमएएलई) और हाई एल्टीट्यूड लांग एंड्योरेंस (एचएएलई) ड्रोन जैसे उच्चस्तरीय सिस्टम लंबे समय तक हवा में रह कर अपने उद्देश्य को सफलतापूर्वक अंजाम देते हैं। ड्रोन करीब 10,000 मीटर तक की ऊंचाई पर सक्रिय रहकर घूमकर प्रहार करने में सक्षम होते हैं। वे हमला करने से पहले लक्ष्य के दिखने का इंतजार कर सकते हैं। एमक्यू-9 रीपर जैसे ड्रोन तो बेहतरीन पेलोड के साथ आधी दुनिया की यात्रा कर सकते हैं।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई में प्रगति के साथ ड्रोन भविष्य में इतने उन्नत हो जाएंगे कि वे पारंपरिक रूप से पायलटयुक्त लड़ाकू विमानों के युद्धाभ्यास और चपलता को चुनौती देंगे। ड्रोन से वायु रक्षा रणनीति में नई क्रांति का सूत्रपात तय है। ड्रोन का छोटा आकार और कम ऊंचाई पर संचालन जैसी विशेषताएं पारंपरिक वायु-रक्षा प्रणालियों को पीछे छोड़ देती हैं। पांच लाख के एक ड्रोन को गिराने के लिए अगर 10,000 करोड़ की मिसाइल तैनात करनी पड़े तो उस ड्रोन आपरेटर के लिए यह किसी रणनीतिक जीत से कम नहीं।
ड्रोन के एयर डिफेंस के विरुद्ध नई तकनीकी युक्तियां अपनाई जा रही हैं, जिनमें आरएफ जैमिंग, जीपीएस स्पूफिंग, उच्च शक्ति वाले लेजर, एंटी-ड्रोन ड्रोन और नेट गन शामिल हैं। फिर भी, घने विद्युत चुंबकीय समर क्षेत्र में मित्र और शत्रु की पहचान करना जटिल काम है। इस लिहाज से ड्रोन क्षमताओं में विविधता मसलन किफायत, कम ऊंचाई वाली इकाइयों से लेकर उन्नत, उच्च गति वाले माडल और नए एंटी-ड्रोन समाधानों की आवश्यकता के पहलू सामने आते हैं।
सेना की युद्ध संरचनाओं में ड्रोन का जुड़ाव आधुनिक युद्ध पर उनके परिवर्तनकारी प्रभाव को दर्शाता है। पैदल सेना और मशीनीकृत बटालियनों ने उन्नत निगरानी और आक्रामक अभियानों के लिए ड्रोन खरीदना शुरू कर दिया है। करीब 40-60 टैंक या 18-20 तोपों वाली पारंपरिक बटालियनों के विपरीत ड्रोन बटालियनों में हजारों या यहां तक कि दसियों हजार ड्रोन शामिल हो सकते हैं।
ये ड्रोन, लागत और मात्रा में तोपखाने के गोले के समान हैं, जो बंदूक और गोला-बारूद दोनों का कार्य करेंगे। ऐसे में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं कि एक शक्तिशाली हथियार के रूप में ड्रोन का उभार रक्षा प्रौद्योगिकियों की वैश्विक व्यवस्था में व्यापक बदलाव को रेखांकित करता है। लागत-प्रभावशीलता और वाणिज्यिक एवं रक्षा प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करने की क्षमताओं के साथ ड्रोन आधुनिक युद्ध नीति की आधारशिला बन रहे हैं।
सामरिक बदलावों से लेकर सैन्य संरचनाओं में संपूर्ण संरचनात्मक परिवर्तनों तक ड्रोन एक परिवर्तनकारी युग के प्रतीक हैं, जहां तकनीकी महाशक्तियों के पारंपरिक प्रभुत्व को चुनौती दी जा रही है। भारत ने अगस्त 2021 में ड्रोन क्षेत्र को खोलकर परिवर्तनकारी सुधारों की जो शुरुआत की, उससे वह आधुनिक सामरिक परिदृश्य को नया रूप देने वाली ड्रोन क्रांति का लाभ उठाने के लिए रणनीतिक रूप से तैयार हो गया है। भारत की कोशिश यह होनी चाहिए कि वह इस क्षेत्र का बड़ा खिलाड़ी बने।
(लेखक पूर्व रक्षा सचिव एवं आईआईटी कानपुर में विशिष्ट विजिटिंग प्रोफेसर हैं)