बेटियों को न्याय कब?

बेटियों को न्याय कब?
हाई कोर्ट में भी नाबालिग से दुष्कर्म के 4928 केस पेंडिंग, इनमें से 50% आरोपी जमानत पर

विधानसभा में सरकार ने दी पेंडिंग केस की जानकारी…

दुष्कर्म पीड़ित नाबालिग बेटियों को प्रदेश में न्याय की सबसे बड़ी संस्था से भी न्याय के लिए सालों इंतजार करना पड़ रहा है। मप्र में पिछले 24 साल में पॉक्सो के 4,928 मामले हाई कोर्ट में लंबित हैं। इन मामलों में कुल 5,243 आरोपी हैं। इनमें से 2,650 जेल में बंद हैं, जबकि 2,593 (49.46%) जमानत पर आजाद हैं।

कांग्रेस विधायक बाला बच्चन के सवाल पर सीएम डॉ. मोहन यादव ने लिखित उत्तर में यह जानकारी मंगलवार को विधानसभा में दी। सवाल में यह भी पूछा गया था कि बीते एक साल में इस बारे में कोई दिशा निर्देश जारी किए गए हैं? इस पर बताया गया कि इस बारे में कोई आदेश या दिशा-निर्देश जारी नहीं किए गए हैं।

विधानसभा में पूछा गया था कि संबंधित मामलों में सुनवाई के दौरान सरकारी वकील कितनी पेशियों पर उपस्थित हुए। जवाब दिया गया कि ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है।

प्रदेश में न्याय की सबसे बड़ी संस्था में भी इंतजार

विधानसभा में दिए जवाब के अनुसार, हाई कोर्ट में नाबालिग से दुष्कर्म के कई मामले 23 साल से पेंडिंग हैं। इंदौर खंडपीठ में सबसे पुराना प्रकरण 12 जनवरी 2001 से लंबित है। यह अब तक सुनवाई के लिए 52 बार लिस्टेड हुआ। कई मामले ऐसे हैं, जिनमें 2013 से 2024 तक केवल 2 से 10 तारीखें ही लगी हैं। ग्वालियर हाई कोर्ट में ऐसे 10 केस हैं।

नाबालिग से दुष्कर्म पर 64 दोषियों को ट्रायल कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई… पर एक को भी सजा मिली नहीं

मप्र विधानसभा ने 7 साल पहले 3 दिसंबर 2017 को विधेयक पारित किया था। इसमें 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से दुष्कर्म के बाद हत्या करने पर फांसी की सजा का प्रावधान किया गया है। यह कानून पिछले 7 साल से लागू है, पर अब तक किसी भी दुष्कर्म के आरोपी को फांसी नहीं दी गई है।

हाई कोर्ट में नाबालिग बच्चियों से दुष्कर्म के बाद हत्या के ऐसे 64 मामले भी पहुंचे, जिनमें ट्रायल कोर्ट या फास्ट ट्रैक कोर्ट फांसी की सजा सुना चुकी है। इनमें से 11 में हाई कोर्ट ने भी फांसी की सजा बरकरार रखी, जबकि 53 मामले पेंडिंग हैं। जिन 11 मामलों में फांसी की सजा बरकरार रही, उनमें से किसी मामले में सजा पूरी नहीं हुई।

इधर, कोर्ट में भी अपमान

गैंगरेप पीड़िता ने गर्भपात की मंजूरी मांगी, ट्रायल कोर्ट ने मांगे ज्यादती के प्रमाण, हाई कोर्ट ने कहा- यह असंवेदनशीलता

सामूहिक ज्यादती की शिकार एक नाबालिग को ट्रायल कोर्ट में भी अपमानित होना पड़ा। पीड़िता की मां ने जब गर्भपात की अनुमति के लिए याचिका दायर की तो कोर्ट ने उनसे ज्यादती के सबूत मांगे। आवेदन के साथ मेडिकल दस्तावेज पेश नहीं करने पर याचिका ही खारिज कर दी थी। अब हाई कोर्ट ने इस घोर असंवेदनशीलता पर नाराजगी जाहिर की।

जस्टिस सुबोध अभ्यंकर ने कहा- पीड़िता से मेडिकल दस्तावेज पेश करने की उम्मीद करना क्रूरता है। पीड़िता ने 30 नवंबर को 19 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए ट्रायल कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हाई कोर्ट ने गाइडलाइन जारी की…

हाई कोर्ट ने गाइड लाइन जारी की

  • थाना प्रभारी एमएलसी के आधार पीड़िता को तुरंत संबंधित जिला न्यायालय में भेजे।
  • जिला न्यायालय के न्यायाधीश गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए किसी भी आवेदन की परवाह नहीं करें।
  • रिपोर्ट शीघ्र प्रस्तुत करने के लिए पीड़िता को संबंधित चिकित्सा अधिकारी/बोर्ड के पास भेजें।
  • मेडिकल रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद कोर्ट तत्काल पक्षकार और उसके माता-पिता को सूचित करें।
  • ऐसे मामले और रिपोर्ट को सीधे उच्च न्यायालय की निकटतम रजिस्ट्री को भी भेजें।
  • न्यायालय अनुच्छेद 226 के तहत एक रिट याचिका के रूप में ऐसे मामलों को पंजीकृत करेगी।
  • इसके बाद मामले को रोस्टर वाली संबंधित बेंच के समक्ष तुरंत सूचीबद्ध करें ताकि जल्द उचित आदेश दिए जा सकें।

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