15 साल CM रहीं शीला दीक्षित; दिल्ली मेट्रो लॉन्च की, 70 फ्लाईओवर बनवाए !
1998 के नवंबर महीने की एक शाम। एक टीवी चैनल ने इंडिया गेट के पास दिल्ली की उस वक्त की CM सुषमा स्वराज और दिल्ली की प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष शीला दीक्षित में डिबेट कराई। सुषमा ने जोर देकर कहा- ‘मैं रात को जागूंगी, ताकि दिल्ली सुरक्षित रहे। एक थाने से दूसरे थाने जाकर देखूंगी कि पुलिस अलर्ट है या नहीं।’
शीला दीक्षित ने मुस्कुराते हुए कहा,

सुषमा जी मैं आपको बताना चाहती हूं कि पुलिस आपके अधिकार क्षेत्र में ही नहीं है। फिर आप क्यों अपना कीमती समय और नींद बर्बाद कर रही हैं?
ये सुनते ही वहां मौजूद सैकड़ों लोग तालियां बजाने लगे। तालियों की गड़गड़ाहट ने तय कर दिया था कि अब दिल्ली में शीला का शासन होगा और सुषमा स्वराज को जाना होगा।
नतीजे आए तो कांग्रेस ने 70 में से 52 सीटें जीतीं। इसके बाद 2003 और 2008 के चुनाव में भी कांग्रेस को बहुमत मिला और शीला दीक्षित लगातार 15 साल दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं।
‘मैं दिल्ली का CM’ सीरीज के चौथे एपिसोड में शीला दीक्षित के CM बनने की कहानी और उनकी जिंदगी से जुड़े किस्से…

पंजाब में जन्म, दिल्ली के मिरांडा हाउस में पढ़ाई और प्यार
पंजाब के कपूरथला में 31 मार्च 1938 को शीला का जन्म हुआ। कुछ साल बाद उनके पिता संजय कपूर परिवार समेत दिल्ली आ गए। शीला की स्कूली पढ़ाई कॉन्वेंट ऑफ जीसस एंड मैरी स्कूल से हुई। इसके बाद उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के मिरांडा हाउस कॉलेज में एडमिशन लिया। इसी दौरान उनकी मुलाकात विनोद दीक्षित से हुई।
शीला अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘सिटिजन दिल्ली: माय टाइम, माय लाइफ’ में लिखती हैं, ‘हैंडसम विनोद सेंट स्टीफंस कॉलेज में पढ़ते थे। मेरी एक सहेली का विनोद के दोस्त से अफेयर था। दोनों के बीच झगड़ा हो गया था। उस झगड़े को सुलझाने के दौरान मेरी मुलाकात विनोद से हुई। हम नजदीक आ गए और एक-दूसरे से मिलने लगे।’
शीला लिखती हैं, ‘फिरोजशाह रोड पर मेरी मौसी के घर तक विनोद बस में मेरे साथ जाते थे ताकि हम ज्यादा समय साथ बिता सकें। फाइनल एग्जाम से पहले एक दिन हम बस नंबर 10 से सफर कर रहे थे। बस चांदनी चौक क्रॉस कर चुकी थी। उन्होंने चुप्पी तोड़ी और बोले,

मैं मम्मी को बताने वाला हूं कि मुझे वो लड़की मिल गई है, जिससे मैं शादी करना चाहता हूं।
मैंने विनोद से पूछा, ‘वो कौन है? उन्होंने कहा वो मेरे बगल में बैठी है। मैं कुछ बोल नहीं पाई, लेकिन मैं खुश थी।’

शीला लिखती हैं, ‘मैंने अपने पेरेंट्स को बताया तो उन्हें सदमा लगा। एक तो हम दोनों स्टूडेंट थे और दूसरा जाति अलग थी। मैंने पापा को समझाया किया कि वो सेंट स्टीफंस का स्टूडेंट है। एक साल बाद 1959 में विनोद UPSC की मेरिट लिस्ट में 9 रैंक पर थे। उन्होंने UP कैडर चुना।’
‘मेरे घरवाले तैयार हो गए। अब विनोद के घर वालों को तैयार करना था। उनके पिता उमा शंकर दीक्षित फ्रीडम फाइटर और सीनियर कांग्रेसी थे। उनसे मेरी मुलाकात एक रेस्टोरेंट में कराई गई। उन्होंने कहा, ‘आप यहां अंग्रेजी बोलते हो। हमारे घर में हिंदी बोली जाती है। आपको हमारे घर में रहने के लिए हिंदी सीखनी होगी।’
आखिरकार शीला की शादी 11 जुलाई 1962 को तय हो गई। शादी के बाद शीला के ससुर प्रधानमंत्री नेहरू का आशीर्वाद दिलाने ले गए। नेहरू ने नवविवाहित जोड़े को आशीष दिया और शादी में न आ पाने के लिए माफी मांगी।
शीला दीक्षित अपनी ऑटोबायोग्राफी में एक रोचक किस्सा बताती हैं। एक बार उनके घर इंदिरा गांधी खाने पर आईं। शीला ने स्वीट डिश में उन्हें गर्मागर्म जलेबी के साथ आइसक्रीम परोसी। ये डिश उन्हें इतनी पसंद आई कि अगले दिन अपने उन्होंने अपने कुक को ही शीला के पास रेसिपी सीखने भेज दिया।

कन्नौज से पहला चुनाव जीता, डाकुओं के बीच बिना सुरक्षा जातीं
1984 में शीला ने अपना पहला लोकसभा चुनाव UP की कन्नौज सीट से लड़ा। ये मुश्किल सीट थी क्योंकि 1967 से 1984 तक यहां सिर्फ एक बार कांग्रेस प्रत्याशी जीता था।
शीला लिखती हैं, ‘मैं ट्रेन से दिल्ली से कन्नौज पहुंची। ये नॉमिनेशन का आखिरी दिन था। स्थानीय कांग्रेसी देखने आए थे कि वो कौन है जिसे दिल्ली से भेजा गया है। मैं कन्नौज की पहली महिला प्रत्याशी थी। मैं रोज प्रचार के लिए जाती थी। इत्र के कारोबार वाले इस शहर को मैंने पहले ही कह दिया कि मैं सिर पर पल्लू नहीं लूंगी। मैं जैसी हूं, वैसी ही रहूंगी।’
शीला के सामने लोकदल के छोटे सिंह यादव मैदान में थे। शीला लोगों से बोल रहीं थीं, ‘मैं दिल्ली से आई हूं, अंग्रेजी बोलती हूं। डांस करती हूं। मैं कन्नौज को घर नहीं मानूंगी।’ इसके बावजूद लोगों को उनका अंदाज पसंद आया। वे बिना सिक्योरिटी डाकुओं के इलाकों में प्रचार करने चली जाती थीं। शीला ने पहला ही चुनाव 61 हजार वोटों से जीता।
शीला दीक्षित को जिम्मेदारी मिली, तो दिल्ली से BJP को उखाड़ दिया मई 1998 की एक दोपहर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने शीला दीक्षित को मिलने बुलाया। उन्होंने कहा, ‘अब आपको DPCC (यानी दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी) का काम संभालना है। दिसंबर में चुनाव होना है और उसकी तैयारी अभी से कर दो।’ ये मुलाकात महज 10 मिनट चली।
शीला लिखती हैं, ‘मैंने परिवार में बताया तो मेरी बहन बोली, क्या आप नहीं जानती कि दिल्ली भाजपा का गढ़ है? मैंने कहा, तुम इंतजार करो और देखो क्या होता है।’
शीला दीक्षित ने छोटी-छोटी सभाएं और मीटिंग्स शुरू की। हर हफ्ते एक नया मुद्दा उछालतीं, जो BJP सरकार के लिए परेशानी का सबब बनता। महंगी प्याज के मुद्दे ने सबसे ज्यादा तूल पकड़ा और 1998 के विधानसभा चुनाव में BJP हार गई।

शीला दीक्षित में विरोधियों को भी अपना बना लेने का हुनर था वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार मिश्रा बताते हैं कि 1998 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिल्ली में डीजल बसें बंद हो गईं। 2001 तक नई CNG बसें लानी थीं। लेकिन दिल्ली के उपराज्यपाल ने अचानक ट्रांसपोर्ट कमिश्नर सिंधुश्री खुल्लर को हटा दिया। उनकी जगह जीएस पटनायक को नियुक्त किया गया।
CM शीला दीक्षित और उनके मंत्री अजय माकन जब LG विजय कपूर से मिलने पहुंचे, तो पता चला ये आदेश लाल कृष्ण आडवाणी की तरफ से आया है। बहरहाल, नियुक्ति नहीं रुकी तो शीला ने नए ट्रांसपोर्ट कमिश्नर पटनायक को मिलने बुलाया। शीला ने उन्हें ऐसा शीशे में उतारा कि वे CM के मुरीद हो गए। इसके बाद दिल्ली देश का पहला शहर बना, जहां सार्वजनिक परिवहन CNG से चलता था।
ऐसा ही एक किस्सा वरिष्ठ पत्रकार गुलशन राय खत्री बताते हैं, ‘स्पीकर का चुनाव होना था। कांग्रेस ने अपने नाम तय कर लिए। जब हम लोग शीला दीक्षित से मिले तो बताया नेता प्रतिपक्ष जगदीश मुखी भी अपना कैंडिडेट उतारेंगे।’
‘वो तुरंत उठकर गईं, जगदीश मुखी को फोन करके माफी मांगी। मुखी से कहा, ‘मुझे आपसे नेता प्रतिपक्ष होने के नाते सलाह-मशविरा करना चाहिए था।’ इसके बाद मुखी ने शीला से मुलाकात की और मामला सुलझ गया, बाद में स्पीकर के लिए कोई चुनाव नहीं हुआ और सहमति से स्पीकर चुना गया।’

वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ मिश्रा भी एक किस्सा बताते हैं, ‘शीला के बेटे संदीप दीक्षित पूर्वी दिल्ली से 2009 में लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे। एक दिन शीला जी ने हमें प्रचार कवर करने के लिए बुलाया। मैं सुबह-सुबह उनके पास पहुंच गया। उनकी आदत थी कि वे अपने विरोधी की एक्टिविटी की जानकारी लेती थीं। पता लगा कि आज शाम को पूर्वी दिल्ली में सेंट्रल मिनिस्टर यशवंत सिन्हा की रैली है।’
सिद्धार्थ मिश्रा बताते हैं कि उन्होंने बस ‘हूं…’ कहा। शाम में य़शवंत सिन्हा की रैली नहीं हुई। मैंने अगले दिन शीला दीक्षित से पूछा कि क्या इसमें आपका रोल है। वो कुछ पल चुप रहीं। मुस्कुराकर बोलीं, ‘विनोद (शीला के पति) और यशवंत एक ही बैच के हैं। संदीप, यशवंत के बेटे जैसा है। कोई अपने बेटे के खिलाफ प्रचार कर सकता है? वो जानती थीं कि कब एक CM बनना है, कब एक IAS की वाइफ और कब एक वरिष्ठ कांग्रेसी की बहू।’

शीला दीक्षित के CM रहते दिल्ली में लॉन्च हुई मेट्रो मदन लाल खुराना के समय 1995 में दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन बनाई गई। ई श्रीधरन को प्रोजेक्ट का प्रमुख बनाया गया। मेट्रो प्रोजेक्ट में खर्च को लेकर केंद्र और दिल्ली सरकार में मतभेद थे।
केंद्र की कांग्रेस सरकार हिचकिचा रही थी। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी की BJP सरकार ने इसे हरी झंडी दी। 2002 में मेट्रो का पहला चरण पूरा हुआ। तब शाहदरा से तीस हजारी तक 8.4 किलोमीटर मेट्रो चली थी।
शीला दीक्षित ने एक इंटरव्यू में बताया था, ‘जब मैं पहली बार CM बनी, तो प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिलने पहुंची। उनसे कहा कि शहर में ट्रैफिक बढ़ रहा है। हमारे पास दिल्ली मेट्रो तैयार है। हमें आपकी सहमति चाहिए। शीला ने बताया कि अटलजी ने केवल एक ही वाक्य कहा था, इसे तुरंत इम्प्लीमेंट करवाइए।’
वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ मिश्रा बताते हैं कि जब BJP नेता मदन लाल खुराना को पता चला कि मेट्रो का काम पूरा हो गया है तो उन्हें लगा मेट्रो का सारा क्रेडिट तो शीला ले जाएंगी। फिर वे मेट्रो कार्पोरेशन के चेयरमैन बन गए। 24 दिसंबर 2002 को मेट्रो का उद्घाटन हुआ तो मंच पर PM अटल बिहारी वाजपेयी, गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी, शहरी विकास मंत्री अनंत कुमार, संसदीय कार्यमंत्री विजय गोयल और मेट्रो चेयरमैन की हैसियत से मदन लाल खुराना मौजूद थे। CM शीला दीक्षित को साइड में जगह मिली।

सिद्धार्थ मिश्रा बताते हैं कि शीला ने इस पर कोई हंगामा नहीं किया, लेकिन मीडिया और लोगों ने जरूर इस पर कमेंट किया था कि CM को सही जगह नहीं दी गई । उनका फोकस दिल्ली के विकास पर था। उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ रहा था कि मंच पर कहां जगह दी। वे तो बस मेट्रो लाना चाहती थीं।
दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल विजय कपूर कहते हैं कि दिल्ली में केंद्र और राज्य के बीच तालमेल हमेशा पेचीदा रहा, लेकिन शीला दीक्षित ये संतुलन बखूबी बना लेती थीं। इंफ्रास्ट्रक्चर पर उनका बहुत फोकस था।
शीला दीक्षित कैबिनेट में PWD मंत्री रहे एके वालिया कहते हैं कि उनके कार्यकाल में 65 से ज्यादा फ्लाईओवर बनाए गए। मेट्रो का तेजी से विस्तार हुआ। इससे दिल्ली में ट्रैफिक की गंभीर समस्या का निपटारा हुआ।
चौथा चुनाव जीत जातीं तो कांग्रेस में PM पद की दावेदार होतीं वरिष्ठ पत्रकार गुलशन राय खत्री बताते हैं कि कुछ लोगों को लगता था कि वो शीला को अपने हिसाब से चला लेंगे। जब उन्होंने अपने हिसाब से काम करना शुरू किया तो कई कांग्रेस नेताओं को नाराजगी हुई। कुछ नेताओं ने अड़चनें डालने की कोशिश की। शुरुआत के 2-3 साल शीला दीक्षित को दिक्कतें भी हुईं।
जब वे 2003 का चुनाव जीतीं, तो उनको CM घोषित करने में भी 2-3 दिन का समय लिया गया। जो दूसरी लॉबी थी, वो चाहती थी कि या तो शीला दीक्षित हमारे हिसाब से चलें या फिर किसी और को CM बनाया जाए।
शीला ने पहले 5 साल में जो काम करके दिखाया, उसकी वजह से आखिरकार उन्हें ही फिर से CM बनाया गया। 2003 के बाद शीला दीक्षित ने अपने ही हिसाब से काम किया और वो दिल्ली की सड़कों पर नजर भी आया।

वरिष्ठ पत्रकार और शीला दीक्षित के समय दिल्ली सरकार की सलाहकार रहीं अपर्णा द्विवेदी बताती हैं कि शीला का कद दिनोंदिन बढ़ता जा रहा था। कांग्रेस में कभी किसी का कद बेहद नहीं बढ़ने दिया जाता। ऐसा ही कुछ शीला के साथ भी हुआ।
2013 के विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी में भी ये डर लगने लगा कि अगर शीला दीक्षित चौथी बार जीत गईं तो वे प्रधानमंत्री पद की कैंडिडेट हो जाएगी। कोई बोलता नहीं था, लेकिन पार्टी में अंदर ही अंदर ये असुरक्षा पनपने लगी थी।
उस समय शीला दीक्षित को BJP से ज्यादा अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल का विरोध झेलना पड़ा। दिल्ली कांग्रेस में अंदरूनी कलह को रोकने की कभी सीधे कोशिश नहीं की गई। अलबत्ता जो रोका जा सकता था, उसे भी होने दिया गया। इस वजह से सोनिया गांधी और शीला दीक्षित के रिश्तों में हल्की खटास आ गई थी। 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सिर्फ 8 सीटें जीत सकी।

2014 में शीला दीक्षित को केरल का राज्यपाल बनाया गया। 10 जनवरी 2019 को दिल्ली में विधानसभा चुनाव के कारण प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। 20 जुलाई 2019 को हार्ट अटैक से 81 साल की उम्र में दिल्ली में शीला का निधन हो गया।