सहानुभूति तो सब दिखाते हैं, पर कदम कितने लोग उठाते हैं?

सहानुभूति तो सब दिखाते हैं, पर कदम कितने लोग उठाते हैं?

ये कोई छुपी बात नहीं है कि बच्चों की एकाग्रता कम रह गई है, खासकर कोविड के बाद से। चुनौती ये है कि ऐसा क्या करें, जो उन्हें बांधकर रख सके। सोशल मीडिया शॉर्ट्स-रील इस पीढ़ी के लिए सर्वाधिक प्रासंगिक है, ऐसे में बेंगलुरु के कई स्कूलों ने कई प्रयोग शुरू किए हैं, जिसमें पॉडकास्ट और रील नवीनतम हैं।

कई स्कूल छात्रों को अकादमिक व गैर-शैक्षणिक संदेश देने के लिए पॉडकास्ट व कभी-कभी रील का प्रयोग कर रहे हैं। दूसरी ओर कई लोगों ने एक पुराने प्रोजेक्ट ‘होल-इन-द-वॉल’ के बारे में भी सुना होगा। अनोखे कॉन्सेप्ट से बना ये लर्निंग स्टेशन एनआईआईटी के चीफ साइंटिस्ट एमेरिटस डॉ. सुगता मित्रा ने डिजाइन किया था।

जिन्होंने इसके बारे में नहीं सुना, उन्हें बता दूं कि यह अभिनव पद्धति के साथ एक परियोजना थी, जिसका पहला प्रयोग दिल्ली में हुआ था। डॉ. मित्रा की टीम ने एक ‘होल-इन-द-वॉल’ बनाया था- जिसने एनआईआईटी परिसर को इससे लगी कालकाजी की झुग्गी से सेपरेट किया था।

इस होल में एक कंप्यूटर लगाया गया था। दीवार के पार रहने वाले सभी लोग स्वतंत्र रूप से इस कियोस्क तक आ सकते थे। नई मशीन ने बहुत जल्दी कालकाजी झुग्गी में रहने वाले बच्चों में जिज्ञासा बढ़ा दी। इसने उनके लिए नई दुनिया खोल दी थी।

इस प्रोजेक्ट से पता चला कि बच्चों को अगर नियमित पहुंच व अवसर दिए जाएं- फिर चाहे उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति कुछ भी हो- वे सरल तकनीक व स्व-शिक्षा से लाभ उठा सकते हैं। सीखने का ये दृष्टिकोण न केवल प्रारंभिक शिक्षा को बढ़ाता है बल्कि शहरी गंदी बस्तियों और ग्रामीण अंचलों में रहने वाले बच्चों में प्रमुख जीवन कौशल देने में भी योगदान देता है।

पर मेरा सवाल है कि ऐसी जगह जहां बिजली नहीं हो, जैसे कि कोई ग्रामीण इलाका, तब क्या होगा? ऐसी जगहों पर कंप्यूटर या टीवी कैसे चलाएंगे? हैदराबाद के 11वीं कक्षा के छात्र 16 वर्षीय आदर्श विकास श्रीराम को हाल ही में इसका एक जवाब मिला। आदर्श की इस यात्रा की शुरुआत भद्राचलम से हुई, जहां उन्होंने बिजली की कमी सहित आदिवासी छात्रों की चुनौतियों को सामने से देखा।

इन मिट्टी से बने ब्रिज स्कूलों में, एक अकेले शिक्षक छात्रों को गोंड और तेलुगु भाषा में पढ़ाते हैं। यह देखकर आदर्श का दिल टूट गया कि ये छात्र बुनियादी इंटरनेट और दृश्य सामग्री सुविधाओं के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं, जिसे अधिकांश शहरी छात्र हल्के में लेते हैं।

आदर्श गणित और भौतिकी को लेकर जुनूूनी हैं और स्थिरता व सशक्तिकरण लाने के दृष्टिकोण से 2025 से सरकारी स्कूलों में ‘स्टेम’ शिक्षा लाने का लक्ष्य रखते हैं। उन्होंने सबसे पहले इस सुदूर गांव में 450 से अधिक आदिवासी बच्चों को डिजिटल शिक्षा शुरू करने का फैसला किया।

अपने माता-पिता गीतालक्ष्मी व श्रीराम (दोनों आईटी कर्मचारी) की मदद से आदर्श ने क्राउडफंडिंग अभियान शुरू किया। उनका लक्ष्य 5.5 लाख रु. जुटाना था, पर 3.5 लाख ही जुटा सके। इंडीजिनियस डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन के डॉक्टरों के साथ मिलकर उन्होंने अंततः छात्रों को आकर्षक डिजिटल सामग्री पहुंचाने में मदद की।

उन्होंने हैदराबाद से 293 किलोमीटर दूर कोठागुडेम के ब्रिज स्कूलों में न केवल आठ सौर ऊर्जा संचालित टीवी लगाए, बल्कि एनजीओ जॉय ऑफ रीडिंग के माध्यम से एक पुस्तकालय भी स्थापित किया, जिसमें रंगा रेड्डी जिले के सरकारी स्कूलों के लिए 1,000 से अधिक किताबें एकत्र की गईं।

आदर्श ने कैंप के दौरान वैदिक गणित और ‘स्टेम’ कॉन्सेप्ट को सरल तरीके से पेश किया और गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों के कई छात्रों को एनजीओ के माध्यम से पढ़ाई के अलावा डिजिटल सामग्री से अवगत कराया और उन्हें पर्यावरण को स्वच्छ रखने की स्थिरता और महत्व सिखाया। कई छात्रों ने कहा कि वे ऐसे कैंप का इंतजार करते हैं जिनमें उन्हें पेंटिंग, खेल और पहेलियां जैसी सरल गतिविधियां सिखाई जाती हैं।

फंडा यह है कि सहानुभूति का मतलब सिर्फ दूसरों की समस्याओं को महसूस करना नहीं है, बल्कि ये कुछ कदम उठाने के बारे में है, जिससे उनके मुद्दों का समाधान निकल सके। और आदर्श से बेहतर उदाहरण कौन हो सकता है?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *