साल 2014 से लेकर 2025, मोदी सरकार आने का कैसा रहा GDP का हाल
साल 2014 से लेकर 2025, मोदी सरकार आने का कैसा रहा GDP का हाल
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने आर्थिक सर्वेक्षण पेश कर दिया है. इसमें भारत की जीडीपी 6.3% से 6.8% के बीच रहने का अनुमान है. बीते 10 सालों में भारत की जीडीपी में कई बार उतार-चढ़ाव देखने को मिला है.
भारतीय अर्थव्यवस्था ने 2014 से 2025 के बीच कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. इस दौरान भारत ने आर्थिक विकास, नीति परिवर्तनों, वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों और कोविड-19 महामारी जैसी अहम घटनाओं का सामना किया है. इस आर्टिकल में हम साल 2014 से लेकर अब तक जीडीपी के आंकड़ों का विश्लेषण करेंगे और इसके पीछे के कारणों, चुनौतियों और संभावनाओं पर चर्चा करेंगे.
सबसे पहले समझिए जीडीपी है क्या?
जीडीपी, जिसका पूरा नाम “सकल घरेलू उत्पाद” है, एक महत्वपूर्ण आर्थिक संकेतक है जो किसी देश की आर्थिक गतिविधियों का मापता है. यह किसी विशेष समय अवधि के दौरान, आमतौर पर एक वर्ष में, उस देश की सीमाओं के भीतर उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं के कुल मौद्रिक या बाजार मूल्य को दर्शाता है. जीडीपी का उपयोग अर्थव्यवस्था की सेहत का आकलन करने के लिए किया जाता है और यह नीति निर्माताओं, निवेशकों और विश्लेषकों के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है.
जीडीपी का आंकलन कैसे किया जाता है?
जीडीपी को तीन प्रमुख तरीकों से मापा जा सकता है: व्यय विधि, उत्पादन विधि और आय विधि. व्यय विधि में सभी अंतिम उपभोग, निवेश, सरकारी खर्च और निर्यात को शामिल किया जाता है. उत्पादन विधि में सभी उद्योगों द्वारा उत्पन्न कुल प्रोडक्शन के मूल्य को मापा जाता है. आय विधि में कर्मचारियों की क्षतिपूर्ति, उत्पादन पर कर और अन्य आय के प्रकारों का योग किया जाता है.
जीडीपी नापने का फॉर्मूला क्या है?
GDP=C+I+G+(X−M), जहां, C उपभोग व्यय है. निवेश है, G सरकारी व्यय है, X निर्यात है, M आयात है. यहां आपको बता दें कि जीडीपी दो तरह से मापी जाती है.
- नॉमिनल जीडीपी: यह वर्तमान बाजार मूल्यों पर आधारित होती है और इसमें महंगाई का प्रभाव शामिल होता है.
- वास्तविक जीडीपी: यह स्थिर कीमतों पर आधारित होती है और महंगाई के प्रभाव को समायोजित करती है.
अब जानिए मोदी सरकार आने के बाद से जीडीपी में कैसे रहा उतार-चढ़ाव
साल 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार के गठन के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था ने एक नई दिशा में बढ़ना शुरू किया. 2014-15 में जीडीपी वृद्धि दर 7.4% रही, जो कि सकारात्मक संकेत था. सरकार ने कई सुधारात्मक नीतियां लागू कीं, जैसे कि मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया और स्वच्छ भारत अभियान. इन पहलों ने निवेश को आकर्षित किया और औद्योगिक उत्पादन को बढ़ावा दिया.
2015-16 में जीडीपी वृद्धि दर बढ़कर 8.0% हो गई. यह वर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसमें विदेशी निवेश में वृद्धि और बुनियादी ढांचे के विकास पर जोर दिया गया. इस दौरान सरकार ने बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान केंद्रित किया, जिससे सड़कें, पुल और अन्य परियोजनाएँ तेजी से विकसित होने लगीं.
हालांकि, 2019-20 में जीडीपी वृद्धि दर केवल 4.0% रही, जो घरेलू मांग में कमी और निवेश की धीमी गति का नतीजा था. यह गिरावट कई वजहों का नतीजा थी. जिसमें वैश्विक आर्थिक मंदी और ट्रेड वार शामिल था. इसके बाद, मार्च 2020 में कोविड-19 महामारी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बहुत ज्यादा चोट पहुंचाई.
कोविड-19 महामारी ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया और भारतीय अर्थव्यवस्था भी इससे अछूती नहीं रही.साल 2020-21 में जीडीपी वृद्धि दर -7.3% रही, जो कि एक गंभीर आर्थिक संकट का संकेत था. लॉकडाउन की वजह से उद्योगों और सेवाओं पर बहुत असर पड़ा. इससे बेरोजगारी बढ़ी और उपभोक्ता खर्च में कमी आई.
महामारी के दौरान सरकार ने कई राहत योजनाएं लागू कीं, जैसे कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना और आत्मनिर्भर भारत अभियान. इन पहलों ने गरीबों और छोटे व्यवसायों को मदद मिली. इसके अलावा, स्वास्थ्य क्षेत्र में भी सुधार पर जोर दिया गया ताकि भविष्य में ऐसी किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयारी की जा सके.
महामारी के बाद भारतीय सरकार ने कई सुधारात्मक कदम उठाए. साल 2021-22 में जीडीपी वृद्धि दर 9.1% रही. यह सुधार मुख्यतः वैक्सीनेशन अभियान और आर्थिक गतिविधियों के फिर से शुरू होने की वजह से हुआ.
सरकार ने बुनियादी ढांचे पर ध्यान केंद्रित किया और विभिन्न क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित किया. 2022-23 में जीडीपी वृद्धि दर लगभग 7.0% रहने का अनुमान था.
आर्थिक सर्वेक्षणों के अनुसार, 2023-24 के लिए जीडीपी वृद्धि का अनुमान लगभग 6.5% से 7.3% था.
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई), विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) जैसे संस्थानों द्वारा किए गए अनुमानों के अनुसार, भारत की जीडीपी वृद्धि दर वित्त वर्ष 2024-25 में लगभग 6.3% से 6.6% रहने की उम्मीद है. वहीं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन की ओर से पेश किए आर्थिक सर्वे में 2024-25 में जीडीपी का अनुमान 6.3% से 6.8% के बीच रहने का अनुमान है.
हालांकि भविष्य की संभावनाएं सकारात्मक हैं, लेकिन महंगाई, बेरोजगारी और वैश्विक आर्थिक स्थिति जैसी चुनौतियाँ भी सामने हैं. महंगाई दर यदि ज्यादा रहती है, तो यह उपभोक्ता खर्च को प्रभावित कर सकती है.
हाल के वर्षों में भारत में खुदरा महंगाई दर 7% के आस-पास बनी रही है, जो भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की अधिकतम सीमा से अधिक है. कोविड-19 के बाद रोजगार एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है, विशेष रूप से युवा आबादी के लिए, जहां शहरी युवाओं में बेरोजगारी दर 16.8% तक पहुँच गई है.
वैश्विक मंदी या अन्य देशों की आर्थिक समस्याएं भी भारत पर प्रभाव डाल सकती हैं. जैसे कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण ऊर्जा की कीमतों में बढ़ोत्तरी ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर दबाव डाला है.
बड़े बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि विकास को तेज किया जा सके. भारत का कृषि क्षेत्र भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह देश की अधिकांश जनसंख्या को रोजगार देता है.
कृषि उत्पादन में वृद्धि करने के लिए नई तकनीकों का उपयोग करना जरूरी है ताकि किसानों की आय बढ़ सके और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो सके.
सरकार द्वारा उठाए गए कदम जैसे कि “आत्मनिर्भर भारत” अभियान, डिजिटल इंडिया, और कृषि क्षेत्र में सुधारों से उम्मीद है कि ये सभी आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करेंगे.
आत्मनिर्भर भारत अभियान का उद्देश्य देश को आत्मनिर्भर बनाना है ताकि आयात पर निर्भरता कम हो सके. डिजिटल इंडिया कार्यक्रम ने सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र को मजबूत करने का कार्य किया है, जिससे रोजगार सृजन हुआ है और नए स्टार्टअप्स को बढ़ावा मिला है. इसके अलावा, शिक्षा क्षेत्र में सुधारों से युवा पीढ़ी को कौशल विकास के अवसर मिल रहे हैं.
हालांकि सब कुछ अच्छा ही नहीं है; यह भी कहना ठीक नहीं होगा. कुछ बातें ऐसी हैं जो इस विकास यात्रा में बाधा डाल सकती हैं. सबसे पहले तो यह कि सरकारी नीतियों को वक्त पर लागू कर लेना बड़ी चुनौती है. कई बार देखा गया है कि सरकारी योजनाओं का लाभ उन लोगों तक नहीं पहुँचता जो वास्तव में जरूरतमंद होते हैं. भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या बनी हुई है जो विकास प्रक्रिया को बाधित करती है. यदि सरकारी योजनाओं में पारदर्शिता नहीं होगी तो इसका सीधा असर उन लोगों पर पड़ेगा जिन्हें इनका लाभ मिलना चाहिए.
भारत की युवा जनसंख्या एक बड़ा संसाधन है जो देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में मदद कर सकती है यदि उन्हें सही दिशा दी जाए. कौशल विकास कार्यक्रमों के माध्यम से युवाओं को तकनीकी शिक्षा देना जरूरी है ताकि वे रोजगार बाजार में प्रतिस्पर्धी बन सकें. इसके अलावा, भारत को अपने निर्यात को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ताकि वैश्विक बाजार में उसकी स्थिति मजबूत हो सके. निर्यात वृद्धि से विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि होगी जो आर्थिक स्थिरता के लिए जरूरी है.
भारत का सेवा क्षेत्र भी तेजी से विकसित हो रहा है जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी, वित्तीय सेवाएँ और पर्यटन शामिल हैं. इन क्षेत्रों में विकास से रोजगार सृजन होगा और विदेशी निवेश आकर्षित होगा. हालाँकि, महंगाई एक प्रमुख चिंता बनी हुई है जो उपभोक्ता खर्च को प्रभावित कर सकती है. बेरोजगारी एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है जिसे हल करना आवश्यक है.
वैश्विक आर्थिक स्थिति भी भारत पर प्रभाव डाल सकती है यदि अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाएँ मंदी का सामना करती हैं तो इसका असर भारतीय निर्यात पर पड़ेगा. कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि और अन्य वैश्विक घटनाक्रमों ने भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाला है.
यदि भारत अपने संसाधनों का सही उपयोग करता है और नीतियों को प्रभावी तरीके से लागू करता है तो वह न केवल अपनी घरेलू आवश्यकताओं को पूरा कर सकेगा बल्कि वैश्विक मंच पर भी एक प्रमुख खिलाड़ी बन सकता है.
हालांकि, इसके लिए आवश्यक होगा कि सरकार भ्रष्टाचार और प्रशासनिक बाधाओं को दूर करे और निवेशकों के लिए अनुकूल वातावरण बनाए. इस तरह भारतीय अर्थव्यवस्था ने पिछले वर्षों में कई उतार चढ़ाव देखे हैं लेकिन आने वाले समय में यदि सही नीतियां लागू होती हैं तो यह अपनी विकास यात्रा जारी रख सकती है.
भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिरता और विकास के लिए आवश्यक होगा कि सभी हितधारक मिलकर काम करें और एक समग्र दृष्टिकोण अपनाएं ताकि सभी वर्गों का समुचित विकास हो सके.