जीरो… जोरी… जीरो …. राहुल फिर जीरो पर बोल्ड ?
ये 2015, 2020 और 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को मिली सीटों की संख्या है। पिछले साल हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस 52 से बढ़ाकर 99 पर पहुंची थी। 400 पार का नारा देने वाली BJP 240 सीटों पर सिमट गई। मोमेंटम कांग्रेस के फेवर में दिख रहा था, लेकिन PM मोदी ने ये मोमेंटम वापस छीन लिया है।
पिछले 8 महीने में 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव हुए। यहां कुल सीटों की संख्या 624 है। इनमें कांग्रेस ने 328 सीटों पर चुनाव लड़ा और सिर्फ 75 सीटें जीतीं। यानी जीत का स्ट्राइक रेट महज 23%। अगर ये एग्जाम का रिपोर्ट कार्ड होता, तो उसमें लाल पेन से ‘FAIL’ लिखा जाता।
मंडे मेगा स्टोरी में जानेंगे लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को मिला मोमेंटम नरेंद्र मोदी ने वापस कैसे छीन लिया और क्या आने वाले बिहार, बंगाल चुनाव में कांग्रेस रिवाइव कर पाएगी…
2024 में कांग्रेस को मोमेंटम मिलने की सबसे बड़ी वजह- क्षेत्रीय दलों का साथ
- दक्षिण के जिन राज्यों में 37 सीटें मिली हैं, वहां कांग्रेस का क्षेत्रीय दलों से गठबंधन था। ऐसे ही UP में भी समाजवादी पार्टी से गठबंधन की वजह से ही उसका खाता खुल सका है।
- दक्षिण के जिन राज्यों में उसका जहां क्षेत्रीय दलों से गठबंधन नहीं हुआ वहां उसे कोई सफलता नहीं मिली। ओडिशा इसका उदाहरण है।
- सीनियर जर्नलिस्ट और पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई कहते हैं कि लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने समझ लिया था कि वो भाजपा को अपने दम पर नहीं हरा सकती। इसलिए INDIA ब्लॉक बनाया गया। तमाम उठापटक के बावजूद जनता के बीच एकजुटता का पॉजिटिव मैसेज दिया। इससे सारे एंटी-BJP वोट एकजुट हो गए।
- इसके अलावा कांग्रेस नैरेटिव बनाने में सफल रही। आरक्षण, संविधान, बेरोजगारी, महंगाई जैसे मुद्दों को उठाया। BJP के ‘अबकी बार, 400 पार’ के नारे को ऐसे पेश किया कि अगर BJP इतनी सीटें जीती, तो संविधान बदल देगी।
पॉलिटिकल एनालिस्ट रशीद किदवई कहते हैं,

जून 2024 में जब BJP ने संसद में बहुमत खोया और सरकार बनाने के लिए NDA के साथियों का सहारा लेना पड़ा, तो कांग्रेस ने इसे खुद के रिवाइवल मोमेंटम के तौर पर देखा।

हरियाणाः दो धड़े बंटे, ओवर-कॉन्फिडेंस में हारी कांग्रेस
- हरियाणा में कांग्रेस मोटे तौर पर 2 गुटों में बंटी थी- पहला गुट भूपेंद्र सिंह हुड्डा का और दूसरा SRK। SRK में रणदीप सुरजेवाला, कुमारी सैलजा और किरण चौधरी हैं। गुटबाजी से नाराज किरण कांग्रेस छोड़ BJP में चली गईं।
- चुनाव की शुरुआत से ही दोनों खेमों के बीच की खींचतान साफ दिख रही थी। हुड्डा गुट ने ‘हरियाणा मांगे हिसाब’ अभियान शुरू किया, तो कुमारी सैलजा ने ‘कांग्रेस संदेश यात्रा’ का ऐलान किया।
- करीब 12 साल से यहां कांग्रेस का संगठन नहीं है। जून 2023 में राहुल गांधी के करीबी सिपहसालार दीपक बाबरिया हरियाणा कांग्रेस के प्रभारी बने, लेकिन बाबरिया न तो संगठन बना पाए और न ही गुटबाजी रोक पाए। टिकट वितरण के बाद उनकी तबीयत बिगड़ गई और वो इलाज कराने चले गए।
- हरियाणा के सीनियर जर्नलिस्ट बताते हैं कि कांग्रेस जीत को लेकर इतना ओवर-कॉन्फिडेंट थी कि रिजल्ट से एक दिन पहले दीपेंद्र हुड्डा के घर पर मीटिंग हुई, जहां वो नेताओं को मंत्रालय बांट रहे थे।
वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई के मुताबिक,

जैसे लोकसभा चुनाव में BJP को ‘अबकी बार 400 पार’ के नारे की कीमत चुकानी पड़ी। वैसा ही हरियाणा में कांग्रेस के साथ हुआ। कांग्रेस के नारे ‘भाजपा जा रही है, कांग्रेस आ रही है’ ने ऐसा माहौल बनाया, मानो चुनाव ‘समाप्त’ हो गया हो।
जम्मू-कश्मीरः लोकल मुद्दे गायब, नेशनल नेताओं की रैली का खास फायदा नहीं
- कांग्रेस ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ चुनाव लड़ा। सीट-शेयरिंग फॉर्मूला तय हुआ, कांग्रेस को 32 सीटें मिलीं, लेकिन केवल 6 सीटें ही जीत पाई। इनमें से 4 मुस्लिम बहुल और 2 हिंदू बहुल सीटें हैं।
- राहुल गांधी ने अपनी रैलियों में स्टेटहुड का दर्जा दिलाने की तो बात कही, लेकिन पानी, सड़क, बिजली, अन्य सुविधाओं जैसे लोकल मुद्दे नहीं उठाए। वे PM मोदी, BJP और RSS पर आरोप लगाते रहे।
- जम्मू-कश्मीर में पूरी लड़ाई ‘नेशनल कॉन्फ्रेंस वर्सेज BJP’ की थी। कांग्रेस केवल एक सहयोगी पार्टी बनकर रह गई थी।
पॉलिटिकल एक्सपर्ट राकेश कौल कहते हैं,

कांग्रेस को कश्मीर रीजन में जीत मिली, लेकिन जम्मू रीजन में उसके बड़े नेता हार गए। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने रैली की, लेकिन उसका फायदा नहीं मिला। यहां लोकल मुद्दे चलते हैं। कांग्रेस लीडर्स ये बात समझ नहीं पाए।

महाराष्ट्रः नैरेटिव में पिछड़ी, अलायंस में खींचतान से नुकसान हुआ
- लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने महाराष्ट्र की 17 सीटों पर चुनाव लड़ा और 13 सीटें जीतीं। यानी यहां कांग्रेस का मोमेंटम नजर आया, लेकिन विधानसभा चुनाव में ये ध्वस्त हो गया।
- जिस वक्त BJP ने करीब 100 कैंडिडेट की लिस्ट जारी कर दी थी, तब कांग्रेस के नेतृत्व वाले महाविकास अघाड़ी में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तक नहीं तय हुआ था।
- दरअसल, कांग्रेस 110-120 सीटें मांग रही थी। वहीं उद्धव ठाकरे CM फेस बनना चाहते थे, लेकिन शरद पवार को ये नागवार था। यानी अलायंस के बीच खींचतान थी।
- शिवसेना (शिंदे) के सीनियर लीडर संजय राउत ने कहा, ‘कांग्रेस का ओवर-कॉन्फिडेंस हरियाणा में उसकी हार के लिए जिम्मेदार है। कांग्रेस केवल उन क्षेत्रों में सहयोगियों पर निर्भर रहती है, जहां वह कमजोर है, लेकिन अपने मजबूत क्षेत्रों में उन्हें नजरअंदाज कर देती है।’
सीनियर जर्नलिस्ट संदीप सोनवलकर कहते हैं,

चुनाव की शुरुआत में कांग्रेस ने ‘संविधान’ को मुद्दा बनाने की कोशिश की थी, लेकिन ये मुद्दा विधानसभा चुनाव में नहीं चला। कांग्रेस को समझना होगा कि एक मुद्दा एक ही चुनाव में चलता है।

झारखंडः कोई बड़ा नेता नहीं, सब कुछ JMM के सहारे
- झारखंड मुक्ति मोर्चा यानी JMM की कमान में INDIA ब्लॉक ने चुनाव लड़ा। यहां कांग्रेस का कोई मजबूत और बड़ा नेता नहीं है। पूरे चुनाव की कमान JMM के हाथों में रही। JMM के कार्यकारी अध्यक्ष और CM हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने पूरे प्रचार का जिम्मा उठाया। दोनों ने करीब 100-100 सभाएं कीं।
- झारखंड के सीनियर जर्नलिस्ट मानते हैं कि चुनाव जिताने में हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना की मेहनत ज्यादा रही, कांग्रेस सिर्फ एक साइड किक बनकर रह गई।
पॉलिटिकल एक्सपर्ट अनिल भारद्वाज कहते हैं,

INDIA ब्लॉक में JMM को बनाए रखने के लिए कांग्रेस को हेमंत सोरेन की बात माननी पड़ी। अगर कांग्रेस नहीं मानती तो उसे ही नुकसान उठाना पड़ता, जैसा हरियाणा में हुआ।

दिल्लीः कांग्रेस और AAP आपस में भिड़े, दोनों का खेल बिगड़ा
- पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई के मुताबिक, दिल्ली में कांग्रेस 5 से 10 सीटें चाहती थी, लेकिन 1 दिसंबर 2024 को केजरीवाल ने साफ कर दिया कि वह कांग्रेस से गठबंधन नहीं करेंगे। इससे कांग्रेस को झटका लगा और अकेले चुनाव लड़ना पड़ा। दोनों एक-दूसरे के खिलाफ आक्रामक हो गए।
- उस वक्त कांग्रेस दिल्ली में AAP के कुशासन के खिलाफ पदयात्रा निकाल रही थी। कांग्रेस नेता अजय माकन केजरीवाल को ‘देशद्रोही और फर्जी’ कह चुके थे।
- जब राहुल ने केजरीवाल के खिलाफ बयान दिए तो केजरीवाल ने पलटवार किया, ‘आज राहुल गांधी ने मुझे खूब गालियां दीं, लेकिन मैं उनके बयानों पर टिप्पणी नहीं करूंगा। उनकी लड़ाई कांग्रेस को बचाने की है, मेरी देश को।’
- कांग्रेस ने कई सीटों पर AAP के कद्दावर नेताओं के सामने अपने मजबूत नेता उतारे। नई दिल्ली सीट से केजरीवाल के मुकाबले संदीप दीक्षित, कालकाजी सीट पर आतिशी के खिलाफ अलका लांबा और वजीरपुर में AAP के राजेश गुप्ता के सामने रागिनी नायक को उतारा।
- इन सब के बावजूद कांग्रेस को नाकामी हाथ लगी। एक भी सीट नहीं जीत पाई और 67 सीटों पर जमानत जब्त हो गई।

लोकसभा चुनाव के बाद BJP ने कांग्रेस से मोमेंटम वापस कैसे छीना?
लोकसभा चुनाव के बाद 5 राज्यों हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली में चुनाव हुए। इनमें से 3 राज्यों में BJP ने बंपर जीत के साथ सरकार बनाई। बाकी 2 राज्यों में जबरदस्त टक्कर देते हुए मुख्य विपक्षी पार्टी बनी। इसके लिए BJP ने लोकसभा चुनाव से अलग रणनीति अपनाई-
1. लोकल और छोटी जातियों को साधा: BJP ने जातीय समीकरण साधने के लिए बड़ी जातियों को छोड़ छोटी-छोटी जातियों पर फोकस किया। हरियाणा में BJP ने ‘जाट वर्सेज नॉन-जाट’ फॉर्मूला अपनाया। वहीं महाराष्ट्र में मराठा के बजाय माली, धनगर, तेली, कुनबी, वंजारी जैसी छोटी जातियों को साधा।
2. महिलाओं पर फोकस: BJP ने महिलाओं को एक वोटबैंक के तौर पर समझा। इसके लिए मध्यप्रदेश का उदाहरण सबसे सटीक है। मध्यप्रदेश की तर्ज पर महाराष्ट्र में महिलाओं के लिए कैश ट्रांसफर स्कीम लॉन्च की। हरियाणा और दिल्ली में इसका वादा किया।

3. संघ का साथ मिला: लोकसभा चुनाव के दौरान BJP और संघ के रिश्ते बिगड़ने की खबरें आईं। नतीजों में BJP 240 सीटों पर सिमट गई। इसके बाद हरियाणा चुनाव में संघ जमीन पर उतरा और BJP ने 48 सीटों पर जीत हासिल कर हैट्रिक मारी। महाराष्ट्र में भी BJP के लिए वोट मांगने के लिए संघ जमीन पर उतरा। दिल्ली में भी संघ ने करीब 50 हजार छोटी बैठकें कीं।
4. मोदी के साथ लोकल लीडर्स भी उतरे: करीब एक दशक से BJP हर चुनाव PM मोदी के चेहरे पर लड़ रही थी। 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद से BJP ने अपनी स्ट्रैटजी में बदलाव करते हुए मोदी के साथ लोकल लीडर्स को भी आगे किया। हरियाणा में नायब सिंह सैनी, अनिल विज जैसे नेताओं ने चुनाव की कमान संभाली। वहीं महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस, नितिन गडकरी, चंद्रशेखर बावनकुले, विनोद तावड़े जैसे नेताओं ने चुनाव का जिम्मा संभाला। ऐसे ही दिल्ली में प्रवेश वर्मा, विजेंद्र गुप्ता, वीरेंद्र सचदेवा समेत कई नेताओं ने चुनाव को लीड किया।
अमिताभ तिवारी बताते हैं,

PM मोदी आज भी अपने दम पर BJP के हर प्रत्याशी को वोट दिला देते हैं। BJP संगठन की सोच से ज्यादा वोट उसे मिलते हैं। ये मोदी के करिश्माई नेतृत्व का ही नतीजा है।

क्या कांग्रेस ने एक बड़ा मौका गंवा दिया, आगे की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा?
लोकसभा चुनाव में INDIA ब्लॉक की अगुआई कांग्रेस कर रही थी। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि INDIA ब्लॉक की क्षेत्रीय पार्टियां अब सवाल उठाने लगी हैं कि कांग्रेस इस गठबंधन की अगुआई क्यों कर रही है, जबकि वह ग्राउंड पर वोट हासिल नहीं कर पा रही।
हाल में हुए चुनावों में यह देखा गया कि BJP का सामना क्षेत्रीय पार्टियां कर रही हैं, जबकि कांग्रेस उनके सामने प्रमुख पार्टी थी। इससे क्षेत्रीय पार्टियों का कांग्रेस के प्रति गुस्सा बढ़ रहा है। लोकसभा चुनाव के बाद इंडिया ब्लॉक के खेमे में जो ऊर्जा आई थी, वह इस दिल्ली चुनाव के परिणामों के बाद कम हो जाएगी। विपक्ष के बिखरने का खतरा अब और बढ़ गया है।
पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई बताते हैं, ‘अभी कांग्रेस शॉर्ट टर्म पॉलिटिक्स कर रही है। उसके पास लॉन्ग टर्म पॉलिटिक्स का कोई प्लान नहीं है। राहुल गांधी स्टेट लीडरशिप से दूर हो चुके हैं। प्रियंका वाड्रा भी कुछ खास नहीं कर रही हैं। साल के आखिर में होने वाले बिहार चुनाव में कांग्रेस, RJD के रहमोकरम पर रहने वाली है। कांग्रेस में जल्दी बदलाव नहीं हुए तो दिल्ली जैसे नतीजे आएंगे।’
सीनियर जर्नलिस्ट विजय त्रिवेदी की राय अलग है। वे कहते हैं,

दिल्ली के नतीजों से कांग्रेस का भविष्य तय नहीं किया जा सकता। कांग्रेस का नेटवर्क देश के हर गांव तक है। अगर कांग्रेस का संगठन मजबूत हो गया, तो स्थिति बदल सकती है।

अब सबसे आखिरी सवाल, राहुल गांधी कांग्रेस के लिए एसेट हैं या लायबिलिटी?
इलेक्शन एनालिस्ट अमिताभ तिवारी मानते हैं कि अगर कांग्रेस लोकसभा चुनाव का सही तरीके से एनालिसिस करती तो उसे अपनी जमीनी हकीकत पता चल जाती। वे कहते हैं,

लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने अपने बूते कुछ हासिल नहीं किया। कांग्रेस को रीजनल पार्टियों की बदौलत ही 99 सीटें मिलीं।
अमिताभ तिवारी कहते हैं कि दिल्ली में कांग्रेस की जो गत हुई है उसके बाद INDIA ब्लॉक का टूटना तय है। किसी भी परिवार में सबसे ज्यादा इज्जत उसी की होती है, जो कमाता है और परिवार को पालता है। ऐसा ही कुछ हाल INDIA ब्लॉक का है। कांग्रेस और इंडिया ब्लॉक के लिए राहुल गांधी एसेट नहीं बल्कि लायबिलिटी हैं।
पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई कहते हैं,

लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने समझ लिया था कि वो भाजपा को अपनी दम पर नहीं हरा सकती। इसलिए INDIA ब्लॉक बनाया, लेकिन राहुल के काम करने के तरीकों से INDIA ब्लॉक की रीजनल पार्टियां खुद को असहज महसूस कर रही हैं।