रामलीला मैदान की कहानी !

27 साल बाद भाजपा का CM लेगा शपथ: रामलीला मैदान की कहानी, रामलीला मैदान की जुबानी; एक खेत से शुरू हुआ सफर
यह मेरा सौभाग्य रहा कि मैंने न केवल देश के नेताओं को मंच पर आते देखा, बल्कि विदेशी गणमान्य व्यक्तियों, जैसे महारानी एलिजाबेथ द्वितीय और चीन के प्रधानमंत्री चाउ एन लाई को भी अपने आंचल में स्वागत किया। 
After 27 years BJP CM will take oath story of Ramlila Maidan in words of Ramlila Maidan
मैं हूं रामलीला मैदान। मैं वह धरती हूं, जिस पर दिल्लीवासियों ने पहले प्यास बुझाई और उसके बाद पेट भरा और संप्रदायों के बीच सौहार्द का माहौल बना। मेरा इतिहास समृद्ध और विविधताओं से भरा है, मैंने हर युग, हर आंदोलन और हर शपथग्रहण समारोह को अपने में समेटा है। मैं वही स्थल हूं, जहां से कई राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों की लहरें उठीं, जहां सरकारें बनीं और टूटीं और सबसे महत्वपूर्ण जहां देश की समस्याओं और उम्मीदों का साक्षात्कार हुआ।
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प्राचीन काल में 10 एकड़ में फैला मैं पहले तालाब था और उसके बाद एक खेत था, जो इंद्रपत गांव का हिस्सा था और मुझे तो याद भी नहीं कि कब मैं एक खेत से मैदान बना। लेकिन 1850 में मैंने रूप बदल लिया और मेरे शरीर पर पहली बार मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर ने रामलीला मंचन शुरू करवाया। बाद में, अंग्रेजों ने रामलीला के मंचन पर रोक लगाई, लेकिन मेरी पहचान तब भी बनी रही। वर्ष 1911 में पं. मदन मोहन मालवीय के प्रयासों से मैं फिर से रामलीला मंचन का गवाह बना और तब से हर साल यहां रामलीला का आयोजन होता रहा।
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यह मेरा सौभाग्य रहा कि मैंने न केवल देश के नेताओं को मंच पर आते देखा, बल्कि विदेशी गणमान्य व्यक्तियों, जैसे महारानी एलिजाबेथ द्वितीय और चीन के प्रधानमंत्री चाउ एन लाई को भी अपने आंचल में स्वागत किया। वहीं मोहम्मद अली जिन्ना को साल 1945 में मौलाना की उपाधि दी थी। इसके अलावा नेहरू, महात्मा गांधी और सरदार पटेल समेत तमाम स्वतंत्रता सेनानियों ने जनता में आजादी की अलख जगाई थी। साल 1952 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जम्मू कश्मीर के मुद्दे को लेकर सत्याग्रह किया था।
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वर्ष 1955 में मेरे रूप में एक बड़ा परिवर्तन आया। मेरा सिर बनाया गया और मेरे शरीर को एक सीमा में बांध दिया। यही वह समय था जब स्थाई मंच का निर्माण हुआ, जहां खड़े होकर अनेक नेताओं ने विरोधी दलों को ललकारा और सत्ता की दिशा तय की। भारत-चीन युद्ध के बाद वर्ष 1963 में लता मंगेशकर ने यहां देशभक्ति गीत ऐ मेरे वतन के लोगो गाया, जिससे देशवासियों का हौसला और बढ़ा। फिर 1965 में लाल बहादुर शास्त्री का प्रसिद्ध नारा जय जवान, जय किसान भी गूंजा।
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मुझे यह भी याद है कि 1975 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का विरोध किया और उसके बाद देश में आपातकाल की स्थिति बनी। फिर 1977 में कई विपक्षी नेताओं ने यहां एकत्र होकर जनता पार्टी की नींव रखी, जिसमें मोरारजी देसाई, चौ. चरण सिंह, चंद्रशेखर अटल बिहारी वाजपेयी और अन्य नेता शामिल थे। वर्ष 2011 में बाबा रामदेव के समर्थकों पर पुलिस की लाठियां बरसीं। उसी वर्ष अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ यहां अनशन किया और देश को एक नई दिशा दी।

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