क्या है वेंटिलेटर, कोरोना वायरस मरीजों के लिए क्यों है जरूरी? वेंटिलेटर से जुड़े हर सवाल का जवाब

कोरोना वायरस के अलावा आजकल अब सबसे अधिक वेंटिलेटर्स की चर्चा सुन रहे हैं, जिसके बारे में पहले बहुत कम सुना होगा। आखिर ये वेंटिलेटर है क्या? और कोरोना वायरस संक्रमित लोगों के लिए यह कितना और क्यों जरूरी है? आखिर क्यों कार कंपनियां भी वेंटिलेटर बनाने में जुट गई हैं। क्या हमारे देश में वेंटिलेटर्स की कमी है? ऐसे ढेरों सवाल आपके मन में होंगे। आइए सभी का जवाब देते हैं आपको…

वेंटिलेटर है क्या?
बहुत सरल भाषा में कहें तो यह एक मशीन है जो ऐसे मरीजों की जिंदगी बचाती है जिन्हें सांस लेने में तकलीफ है या खुद सांस नहीं ले पा रहे हैं। यदि बीमारी की वजह से फेफड़े अपना काम नहीं कर पाते हैं तो वेंटिलेटर सांस लेने की प्रक्रिया को संभालते हैं। इस बीच डॉक्टर इलाज के जरिए फेफड़ों को दोबारा काम करने लायक बनाते हैं।

कितने तरह के होते हैं वेंटिलेटर?
वेंटिलेटर मुख्य रूप से दो तरह के होते हैं। पहला मेकेनिकल वेंटिलेशन और दूसरा नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन। मेकेनिकल वेंटिलेटर के ट्यूब को मरीज के सांस नली से जोड़ दिया जाता है, जो फेफड़े तक ऑक्सीजन ले जाता है। वेंटिलेटर मरीज के शरीर से कार्बन डाइ ऑक्साइड को बाहर खींचता है और ऑक्सीजन को अंदर भेजता है। दूसरे प्रकार के वेंटिलेटर को सांस नली से नहीं जोड़ा जाता है, बल्कि मुंह और नाक को कवर करते हुए एक मास्क लागाया जाता है जिसके जरिए इस प्रक्रिया को अंजाम दिया जाता है।

कोरोना मरीजों के लिए क्यों जरूरी है वेंटिलेटर?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, कोविड-19 से संक्रमित 80 पर्सेंट मरीज अस्पताल गए बिना ठीक हो जाते हैं, लेकिन छह में से एक मरीज की स्थिति गंभीर हो जाती है और उसे सांस लेने में कठिनाई होने लगती है। ऐसे मरीजों में वायरस फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है। फेफड़ों में पानी भर जाता है, जिससे सांस लेना बहुत मुश्किल हो जाता है। शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम होने लगती है। इसलिए वेंटिलेटर्स की आवश्यकता होती है। इसके जरिए मरीज के शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा को समान्य बनाया जाता है।

क्यों कार कंपनियां भी बना रही हैं वेंटिलेटर्स
दुनिया की बड़ी कार कंपनी जनरल मोटर्स ने वेंटिलेटर बनाना शुरू किया है। वहीं, भारत में महिंद्रा, मारुति, रिलायंस जैसी कंपनियां वेंटिलेटर का उत्पादन कर रही हैं। अभी तक देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या एक हजार से कम है, लेकिन यदि वायरस समाज में फैलता है तो बड़े पैमाने पर वेंटिलेटर्स की आवश्यकता हो सकती है। अभी भारत दूसरे स्टेज में है यानी विदेश से लौटे लोग और उनके संपर्क में आए लोगों तक सीमित है। लेकिन भारत स्टेज 3 की तैयारी में जुटा है, स्टेज 3 का मतलब है कि वायरस समाज में फैल जाए। कोरोना से पहले वेंटिलेटर्स की अधिक मांग नहीं थी तो उत्पादन भी कम होता था। अब अचानक इनकी मांग बहुत बढ़ गई है। ऐसे में कार कंपनियां भी अपने संसाधनों का इस्तेमाल वेंटिलेटर उत्पादन में ही कर रही हैं।

कार की फैक्ट्री में वेंटिलेटर कैसे बनेगा?
ऐसा नहीं है कि जिस जहां कार असेंबल किए जाते थे वहीं वेंटिलेटर बनाए जा रहे हैं। असल में इन कंपनियों के पास उत्पादन के लिए जरूरी कई संसाधन पर्याप्त मात्रा में हैं। कार कंपनियों ने उन कंपनियों से समझौता किया है, जो पहले से वेंटिलेटर का निर्माण कर रही थीं। कार कंपनियां उत्पादन में उनका मदद कर रही हैं। रिलायंस से लेकर महिंद्रा तक वेंटिलेटर उत्पादन में मदद कर रही हैं। मारुति सुजुकी, टाटा मोटर्स ने भी वेंटिलेटर उत्पादन में मदद की पेशकश की है। सार्वजनिक कंपनी भेल ने वेंटिलेटर कंपनियों से टेक्निकल डिटेल मांगी है ताकि वेंटिलेटर के उत्पादन को तेज करने में उनकी मदद कर सके। मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज भी वेंटिलेटर उत्पादन कर रही है।

वेंटिलेटर की कितनी है कीमत?
वेंटिलेटर की संख्या में कमी की एक वजह इसकी कीमत भी है। वेंटिलेटर की कीमत काफी अधिक होती है। एक वेंटिलेटर के लिए 5 से 10 लाख रुपये खर्च करने पड़ते हैं। हालांकि, महिंद्रा एंड महिंद्रा ने हाल ही में दावा किया है कि कंपनी महज 7500 रुपये में वेंटिलेटर का निर्माण करेगी।

क्या देश में वेंटिलेटर्स की कमी है?
देश की मौजूदा जरूरतों के मुताबिक वेंटिलेटर्स की संख्या पर्याप्त है, लेकिन सरकार आगे की तैयारी में जुटी है। असल में अमेरिका जैसे साधन संपन्न देश में भी वेंटिलेटर्स के उत्पादन की आवश्यकता आ गई है। कोरोना संक्रमितों की संख्या के मामले में अमेरिका सबसे आगे निकल गया है। कोरना प्रभावित सभी देश वेंटिलेटर्स के उत्पादन में जुटे हैं। क्योंकि मरीजों की संख्या बढ़ी और वेंटिलेटर्स कम पड़े तो बड़ी संख्या में लोगों को जान गंवानी पड़ सकती है।

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