13-17 साल के बच्चों के दिमाग पर मोबाइल का बुरा प्रभाव, स्टडी में दावा

13-17 साल के बच्चों के दिमाग पर मोबाइल का बुरा प्रभाव, स्टडी में दावा

जिन बच्चों ने छोटी उम्र से ही स्मार्टफोन का इस्तेमाल शुरू कर दिया है, उनमें मानसिक समस्याएं ज्यादा गंभीर हो रही है.

इस अध्ययन में भारत और अमेरिका के 13-17 साल के बच्चों के बारे में बताया गया है. इसमें यह सामने आया है कि जब बच्चे बहुत कम उम्र में स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने लगते हैं, तो उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. खासकर, स्मार्टफोन के ज्यादा इस्तेमाल से बच्चों में आक्रामकता, गुस्सा और चिड़चिड़ापन बढ़ रहा है. ये बदलाव उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए चिंता का कारण बन रहे हैं.

ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं कि बच्चों तक कम उम्र में डिजिटल पहुंच का उनके दिमाग पर क्या असर पड़ रहा है और इस समस्या का समाधान कैसे होगा. 

सबसे पहले जानते हैं कि अध्ययन में और क्या-क्या बताया गया है

इस अध्ययन में यह बताया गया है कि जिन बच्चों ने छोटी उम्र से ही स्मार्टफोन का इस्तेमाल शुरू कर दिया है, उनमें मानसिक समस्याएं ज्यादा गंभीर हो रही है. इसके चलते, बच्चों में गुस्सा, चिड़चिड़ापन और आक्रामकता बढ़ने लगी है. इसके अलावा, कुछ नए लक्षण भी सामने आए हैं जैसे कि अवसाद (दुखी रहना) और चिंता. साथ ही बच्चों को बार-बार कुछ नकारात्मक या परेशान करने वाले विचार आने लगते हैं. कुछ बच्चों को तो वास्तविकता से भी अलग महसूस होने लगा है, जो ये दिखाता है कि मोबाइल फोन के ज्यादा इस्तेमाल से बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य में एक गंभीर समस्या पैदा हो रही है. 

इसी स्टडी में इस बात का भी जिक्र है कि जब बच्चे बहुत छोटी उम्र में स्मार्टफोन का इस्तेमाल करना शुरू करते हैं, तो वे इंटरनेट पर ऐसी चीज़ों को देख सकते हैं जो उनके लिए सही नहीं होतीं. इसके अलावा, स्मार्टफोन के ज्यादा इस्तेमाल से उनकी नींद भी बिगड़ने लगती है और वे लोगों से कम मिलते-जुलते हैं. इसका असर उनकी सोशल स्किल्स यानी समाज में घुल-मिल कर रहने की क्षमता पर पड़ता है, जो कि बच्चों के लिए बहुत जरूरी होती है, खासकर जब वे किसी समस्या या विवाद का सामना करते हैं.

लड़कों से ज्यादा लड़कियों पर हो रहा है असर

अध्य्यन से यह सामने आया है कि ज्यादा मोबाइल फोन इस्तेमाल करने का असर खासकर लड़कियों पर ज्यादा हो रहा है. लड़कियों में आक्रामकता और गुस्सा ज्यादा देखने को मिल रहा है. दिलचस्प बात यह है कि शोध में शामिल 65% लड़कियों ने मानसिक संकट महसूस करने की बात कही है, जो कि लड़कों के मुकाबले काफी ज्यादा है.

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अमेरिका की तुलना में भारत में मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट मंद है

अमेरिका और भारत में मानसिक स्वास्थ्य के हालात अलग-अलग हैं. अमेरिका में, मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट पुरुषों और महिलाओं दोनों में देखी जा रही है, यानी दोनों में ही मानसिक समस्याएं बढ़ रहे हैं. लेकिन भारत में यह स्थिति थोड़ी अलग है. यहां, मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट केवल महिलाओं में देखी गई है, जबकि पुरुषों में कुछ मामलों में सुधार हुआ है. इसका मतलब यह है कि भारत में लड़कियां मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का सामना ज्यादा कर रही हैं, जबकि लड़कों में कुछ मामलों में सुधार हो रहा है.

बच्चों तक जल्दी डिजिटल पहुंच का क्या असर होगा ?

बच्चों तक जल्दी डिजिटल पहुंच का असर दोनों तरीके से हो सकता है. एक तरफ, इंटरनेट और सोशल मीडिया ने शिक्षा को सभी के लिए आसानी से उपलब्ध करा दिया है, जिससे लाखों बच्चों को सीखने के नए मौके मिले हैं. वहीं लेकिन दूसरी तरफ, यह बच्चों को कुछ खतरनाक और खराब चीजों के संपर्क में भी ला सकता है, जैसे कि नकारात्मक और हानिकारक व्यवहार. इसलिए, डिजिटल पहुंच का असर अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी, यह इस बात पर निर्भर करता है कि बच्चों को इसे किस तरह से इस्तेमाल करने की सीख दी जाती है.

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बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा और डिजिटल पहुंच के लिये भारत की क्या पहल हैं?

भारत में बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा और डिजिटल पहुंच को लेकर कई पहल की गई हैं, ताकि बच्चों को इंटरनेट और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सुरक्षित रखा जा सके. 

1.POSCO अधिनियम (2012): यह एक खास कानून है जो बच्चों को ऑनलाइन यौन अपराधों से बचाता है. इसके तहत, अगर कोई व्यक्ति बच्चों के खिलाफ ऑनलाइन यौन अपराध करता है, तो उसे सजा दी जाती है. यह कानून बच्चों के लिए सुरक्षित और आसान प्रक्रियाएं सुनिश्चित करता है, ताकि वे आसानी से अपनी शिकायत दर्ज करा सकें.

2. चाइल्डलाइन 1098: यह एक 24 घंटे चलने वाली आपातकालीन टोल-फ्री हेल्पलाइन है, जो बच्चों को सहायता और संरक्षण प्रदान करती है. अगर कोई बच्चा संकट में है या उसे खतरा महसूस हो रहा है, तो वह इस नंबर पर कॉल कर सकता है. यह सेवा महिला और बाल विकास मंत्रालय की एक पहल है.

3. डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम: बच्चों को सुरक्षित तरीके से इंटरनेट का इस्तेमाल करने के लिए शिक्षा मंत्रालय और सीबीएसई ने स्कूलों के पाठ्यक्रम में साइबर सुरक्षा को शामिल किया है. इसके जरिए बच्चों को यह सिखाया जाता है कि इंटरनेट पर क्या सुरक्षित है और क्या नहीं, ताकि वे ऑनलाइन खतरों से बच सकें.

4. सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2000: इस अधिनियम के तहत, अगर कोई व्यक्ति बच्चों से संबंधित यौन सामग्री (CSAM) ऑनलाइन पोस्ट करता है या देखता है, तो उस पर कड़ी सजा दी जाती है. यह कानून बच्चों की सुरक्षा को सुनिश्चित करता है और इंटरनेट पर ऐसी सामग्री को रोकने का प्रयास करता है.

5. महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध साइबर अपराध रोकथाम (CCPWC): यह एक विशेष पहल है जो साइबर अपराधों से महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा करती है. इसमें साइबर फोरेंसिक क्षमता को बेहतर बनाने के साथ-साथ जागरूकता फैलाने और कानून प्रवर्तन को मजबूत करने का काम किया जाता है.

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ये जरूरी कदम उठा सकती है सरकार

बाल ऑनलाइन सुरक्षा टूलकिट: यह टूलकिट बच्चों को ऑनलाइन खतरों से बचाने के लिए एक व्यापक और व्यवहारिक तरीका प्रदान करेगा. यह संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार सम्मेलन (UNCRC) के दिशा-निर्देशों के मुताबिक साइबर धमकी और मानसिक स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर ध्यान देगा.

कड़े नियम: कुछ देशों ने 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाया है. भारत में भी 2025 तक नए नियम लागू करने का प्रस्ताव है, जिनसे बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग को नियंत्रित किया जाएगा और माता-पिता की अनुमति जरूरी होगी.

जागरूकता बढ़ाना: बच्चों को ऑनलाइन खतरों से बचाने के लिए डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों को बढ़ावा देना चाहिए. इससे वे हानिकारक सामग्री और साइबर धमकी को पहचान पाएंगे.

मानसिक स्वास्थ्य सहायता: बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए टेली-मनोवैज्ञानिक कार्यक्रमों, हेल्पलाइनों और ऐप्स में निवेश करना जरूरी है, ताकि बच्चों को ऑनलाइन शोषण से प्रभावित होने पर मदद मिल सके.

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