बिहार के सियासी चक्रव्यूह में घिरे तेजस्वी ?

बिहार के सियासी चक्रव्यूह में घिरे तेजस्वी, ओवैसी से लेकर पीके और कांग्रेस तक ने बढ़ाई टेंशन

2025 के बिहार विधानसभा चुनावों में तेजस्वी यादव की सत्ता में वापसी की राह में कई चुनौतियां हैं. मुस्लिम और दलित वोट बैंक को साधना और पार्टी के भीतर मतभेदों को सुलझाना भी उनके लिए काफी अहम माना जा रहा है. क्या तेजस्वी चुनौतियों से पार कर पाएंगे आइए जानते हैं…

बिहार के सियासी चक्रव्यूह में घिरे तेजस्वी, ओवैसी से लेकर पीके और कांग्रेस तक ने बढ़ाई टेंशन

बिहार में तेजस्वी यादव के लिए 2025 की राह आसान नहीं है.
बिहार विधानसभा चुनाव की सियासी तपिश बढ़ने के साथ ही राजनीतिक एजेंडा सेट किए जाने लगे हैं. बिहार में एनडीए की अगुवाई कर रहे नीतीश कुमार को सत्ता से बाहर कर आरजेडी अपनी वापसी का ताना बाना बुन रही है, लेकिन तेजस्वी यादव दो तरफा सियासी चुनौतियों से घिरे हुए हैं. एक तरफ एनडीए के निशाने पर तेजस्वी हैं, तो दूसरी तरफ असदुद्दीन ओवैसी से लेकर प्रशांत किशोर से भी उन्हें दो-दो हाथ करना पड़ रहा है. इसके अलावा कांग्रेस ने भी तेजस्वी यादव की सियासी टेंशन बढ़ा रखी है. ऐसे में सवाल उठता है कि ओवैसी से लेकर पीके तक के सियासी चक्रव्यूह को तेजस्वी यादव कैसे तोड़ पाएंगे?

तेजस्वी यादव बिहार की सियासत में खुद को स्थापित करने में काफी हद तक सफल हो चुके हैं, लेकिन सत्ता के सिंहासन पर विराजमान नहीं हुए. आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने समय रहते तेजस्वी यादव को अपने नेतृत्व में नेता के तौर पर गढ़ा है. नेता के तौर पर आगे बढ़ाया है और आज भी मार्गदर्शन कर रहे हैं. 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में तेजस्वी की कोशिश हर हाल में सत्ता पर काबिज होने की है, लेकिन उनकी राह में कई सियासी बाधाएं भी है. ओवैसी से लेकर पीके के सवाल बीजेपी से ज्यादा तेजस्वी यादव के लिए चुभते हैं. ऐसे में आरजेडी के लिए चुनौती बढ़ती जा रही है.

एनडीए का तेजस्वी के खिलाफ चक्रव्यूहबिहार की सत्ता में वापसी की उम्मीद लगाए तेजस्वी यादव के लिए सबसे बड़ी चुनौती एनडीए है. नीतीश कुमार के अगुवाई वाले एनडीए में जेडीयू, बीजेपी, एलजेपी, जीतनराम मांझी की HAM और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी शामिल है. इस तरह एनडीए एक मजबूत गठबंधन और समीकरण के सहारे तेजस्वी यादव के अगुवाई वाले आरजेडी को घेर रखा है. बिहार का चुनावी मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच माना जा रहा है.

महागठबंधन में आरजेडी और कांग्रेस सहित वामपंथी दल भी शामिल हैं, लेकिन विपक्ष के निशाने पर तेजस्वी यादव रहते हैं. आरजेडी को घेरने के लिए विपक्ष लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल और पॉलिटिक्स की याद दिलाकर घेरता हुआ नजर आता है, इसे काउंटर करना तेजस्वी यादव के लिए भी आसान नहीं रहता. इस तरह से तेजस्वी अपने पिता के सियासी समीकरण एम-वाई से आरजेडी को बाहर निकालने की कोशिश कर रहे हैं, तो विपक्ष का जवाब देना आसान नहीं हो रहा.

ओवैसी बिगाड़ न दें सियासी समीकरणमुस्लिम सियासत के आक्रामक चेहरा माने जाने वाले असदुद्दीन ओवैसी बिहार में पूरे दमखम के साथ चुनाव में उतरने की तैयारी की है. इसकी झलक दिल्ली चुनाव में ही दिख गई थी. दिल्ली में जिस तरह से ओवैसी के टारगेट पर केजरीवाल रहे हैं, उसी तरह से बिहार में उनके निशाने पर तेजस्वी यादव रहते हैं. मुस्लिम बहुल वाले सीमांचल में ओवैसी ने 2020 के चुनाव में पांच सीटें जीतकर तेजस्वी यादव के सत्ता में वापसी करने की उम्मीदों को बड़ा झटका दिया था. मुस्लिम दबदबे वाले सीमांचल के इलाके की सीटों पर ओवैसी का सियासी आधार है और बिहार में मुस्लिम वोट आरजेडी का परंपरागत रहा है, लेकिन AIMIM के चलते तेजस्वी यादव का गेम गड़बड़ाता हुआ नजर आ रहा है.

बिहार के विधानसभा उपचुनावों में ओवैसी अपनी उपस्थिति से आरजेडी का खेल गोपालगंज सीट पर बिगाड़ चुके हैं. इस बार के चुनाव में दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर ओवैसी ने महागठबंधन के खिलाफ अपने प्रत्याशी उतारने की तैयारी की है, जिसमें ज्यादातर मुस्लिम कैंडिडेट होंगे. मुस्लिम प्रत्याशी के उतारने से सबसे ज्यादा चुनौती आरजेडी की बढ़ने वाली है. इस तरह ओवैसी के उतरने से तेजस्वी का समीकरण फिर एक बार न बिगड़ जाए.

PK के सियासी टारगेट पर तेजस्वी यादवचुनावी रणनीतिकार से सियासी पिच पर उतरे प्रशांत किशोर सबसे बड़ी चुनौती तेजस्वी यादव के लिए बनते जा रहे हैं. प्रशांत किशोर जन सुराज नाम से अपनी पार्टी बना ली है और 2025 के विधानसभा चुनाव पूरे दमखम के साथ लड़ने की तैयारी में हैं. इस तरह से पीके का सवाल जितना नीतीश कुमार को चुभता है, उससे ज्यादा तेजस्वी यादव को परेशान कर रहा है. पीके अक्सर तेजस्वी को नवीं फेल बताकर मजाक उड़ाते नजर आते हैं, तो साथ ही लालू प्रसाद यादव के बेटे होने का तंज कसते हैं. तेजस्वी की नजर उसी वोट बैंक पर है, जिस पर आरजेडी खड़ी है. प्रशांत किशोर दलित, मुस्लिम और अति पिछड़ा वर्ग के वोट बैंक पर नजर गढ़ाए हुए हैं, जिससे तेजस्वी यादव की सियासी टेंशन बढ़ रही है.

कांग्रेस कर रही आरजेडी को परेशानबिहार में कांग्रेस इस बार अलग ही तेवर में नजर रही है. पिछले दो दशकों से कांग्रेस बिहार में आरजेडी के सहारे राजनीति करती रही है, लेकिन इस बार लालू यादव की पकड़ से बाहर निकलकर अपनी खोए हुए सियासी आधार को पाना चाहती है. कांग्रेस की नजर दलित और मुस्लिम वोटों को साधने की है, जो आरजेडी का कोर वोटबैंक माना जाता है.इसके अलावा सीट शेयरिंग को लेकर भी कांग्रेस लोकसभा चुनाव के आधार पर बंटवारा चाहती है, लेकिन आरजेडी बहुत ज्यादा देने के मूड में नहीं है.

कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावारु ने बिहार में महीने भर रहने के बावजूद लालू यादव से नहीं मिले. कांग्रेस के सहप्रभारी शाहनवाज आलम भी अलग ही राह पर हैं और बिहार में मुस्लिम डिप्टी सीएम बनाने की मांग उठा रहे हैं. इसके अलावा युवा नेता कन्हैया कुमार बिहार की सियासत में सक्रिय हो गए हैं और चंपारण से पदयात्रा शुरू कर दी है. आरजेडी बिहार में कन्हैया के एक्टिव होने पर अभी तक अपना वीटो पावर लगा रखा था, लेकिन अब कांग्रेस ने लालू यादव के परवाह किए बगैर उन्हें सक्रिय कर दिया है. कांग्रेस ने जिस तरह नजरें बदली हैं, वो तेवर आरजेडी को परेशान कर रहे हैं. इतना ही नहीं कांग्रेस नेता साफ कह रहे हैं कि बिहार में कोई छोटा और बड़ा भाई नहीं है बल्कि बराबर हैं.

तेजस्वी यादव कैसे तोड़ पाएंगे चक्रव्यूहबिहार की सियासत में तेजस्वी यादव उसी तरह से चक्रव्यूह में घिर गए हैं, जिस तरह महाभारत में अभिमन्यु घिरे थे. तेजस्वी यादव को एक तरफ तो बीजेपी-जेडीयू से लेकर एलजेपी तक से मुकाबला करना पड़ रहा है, तो दूसरी तरफ असदुद्दीन ओवैसी लेकर प्रशांत किशोर तक से सवालों का जवाब देना पड़ रहा है. चुनावी तपिश के बीच विपक्षी चक्रव्यूह में घिरे तेजस्वी यादव कैसे उससे बाहर निकल पाएंगे, अगर इसमें कामयाब रहते हैं तो फिर सत्ता उनके नाम होगी. हालांकि, 2025 की राह आसान नहीं है, क्योंकि बिहार की सियासत काफी बदल गई है. इस तरह तेजस्वी यादव को विपक्ष के साथ-साथ अपने सहयोगी दलों से भी दो-दो हाथ करना पड़ रहा है?

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महागठबंधन का एजेंडा तय नहीं, नीतीश के मिशन 225 को कैसे चुनौती देंगे तेजस्वी? – ASSEMBLY ELECTIONS 2025

एनडीए ने 225 सीट जीतने का लक्ष्य रखा है. महागठबंधन अभी तक कोई कार्यक्रम तय नहीं कर पाया. सवाल, महागठबंधन कैसे एनडीए को चुनौती देगा.

Assembly Elections 2025

विधानसभा चुनाव की तैयारी. 

पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारी को लेकर इन दिनों यात्राओं का दौर चल रहा है. यह तो तय हो गया है कि विधानसभा चुनाव नीतीश वर्सेस तेजस्वी ही होगी. एनडीए ने इस लड़ाई में 225 सीट जीतने का लक्ष्य तय कर दिया है. जबकि महागठबंधन के 6 दल अभी तक कोई कार्यक्रम तय नहीं कर पाए हैं. ऐसे में तेजस्वी के भरोसे महागठबंधन, एनडीए को कैसे चुनौती दे पाएगा यह बड़ा सवाल है. राजनीतिक विश्लेषक भी कह रहे हैं एनडीए की एकजुटता ही महागठबंधन के लिए सबसे बड़ी चुनौती है.

राजद के लिए अस्तित्व की लड़ाईः बिहार में 2025 विधानसभा चुनाव के लिए बैटलफील्ड तैयार किया जा रहा है. जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन का कहना है जब नीतीश कुमार जैसा कमांडर हो तो जीत के बारे में कोई शक रही नहीं जाता है. नीतीश कुमार के चेहरा पर जनता ने आंख मूंद कर भरोसा जताया है. 225 टारगेट को लेकर राजीव रंजन का कहना है कि 2010 में हम लोगों ने बड़ी जीत हासिल की थी और अभी लोकसभा चुनाव में पोने 200 सीटों पर हम लोगों ने बढ़त हासिल की थी.

महागठबंधन का लक्ष्य तय नहींः 2025 में महागठबंधन के तरफ से कोई लक्ष्य तय नहीं किया गया है. इस पर आरजेडी प्रवक्ता अरुण यादव का कहना है कि तेजस्वी यादव के नेतृत्व में सरकार बनाना ही लक्ष्य है. अरुण यादव, एनडीए के लक्ष्य की हवा निकालने की कोशिश करते हुए कहते हैं कि एनडीए ने लोकसभा चुनाव में भी 400 पार का लक्ष्य रखा था, लेकिन क्या हुआ. झारखंड में भी 60 प्लस का दावा कर रहे थे लेकिन क्या हुआ.

एनडीए की एकजुटता बड़ी ताकतः राजनीतिक विश्लेषक अरुण पांडे का कहना है कि NDA ने इस बार 225 का लक्ष्य रखा है. 2020 में भी बहुमत मिला था. इस बार अधिक पार्टनर एनडीए में हैं. एकजुटता भी दिख रही है. इस बार जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा भी एनडीए के साथ हैं. चिराग पासवान का भी रुख बदला है. 2020 में बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट कर रहे थे, इस बार नीतीश फर्स्ट करते दिखेंगे. एनडीए की एकजुटता का ही परिणाम रहा कि उपचुनाव में जबरदस्त जीत मिली है.

“चुनाव में बड़ा लक्ष्य लेकर ही पार्टियां जाती हैं. लोकसभा में एनडीए ने 400 पार का लक्ष्य रखा था. बीजेपी को भले ही 240 सीट मिली लेकिन सरकार तो बन गई. महागठबंधन ने भले ही लक्ष्य तय नहीं किया है, लेकिन यह तो तय है चुनाव नीतीश वर्सेस तेजस्वी की होनी है.”– अरुण पांडे, राजनीतिक विश्लेषक

एनडीए के मिशन 225 का क्या है आधारः लोकसभा चुनाव में एनडीए ने 40 में से 30 सीटों पर जीत हासिल की थी. पार्टी के नेताओं का दावा है कि करीब 177 विधानसभा सीटों में एनडीए ने लीड लिया है. अभी विधानसभा उपचुनाव में चार सीटों पर भी जीत मिली है. कुल मिलाकर देखें तो 180 सीटों से अधिक पर बढ़त ले ली है. 2010 में एनडीए को सबसे अधिक 206 सीट मिली थी तो इस बार एनडीए में जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और चिराग पासवान भी एकजुटता के साथ हैं. इन वजहों से इस बार 2010 से अधिक सीट मिलने की उम्मीद लगा रहे हैं.

PK बढ़ा सकते हैं महागठबंधन की मुश्किलः एनडीए और महागठबंधन के अलावे प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज भी विधानसभा चुनाव में 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी. विधानसभा उपचुनाव में भी प्रशांत किशोर ने चारों सीट पर उम्मीदवार उतारे थे. किसी पर भी जीत नहीं हासिल हुई. प्रशांत किशोर पिछले 2 साल से पूरे बिहार भ्रमण कर रहे हैं. 2025 विधानसभा चुनाव की तैयारी है. प्रशांत किशोर ने ऐसे तो कोई लक्ष्य तय नहीं किया है लेकिन जिस प्रकार से अति पिछड़ा को 75 सीट, मुस्लिम को 40 सीट, एससी-एसटी को 40 सीट पर उम्मीदवार देने की बात कही है इसका मतलब साफ है प्रशांत किशोर भी बड़े लक्ष्य के साथ चुनाव मैदान में उतरेंगे.

आरसीपी और ओवैसी पर रहेगी नजरः कभी नीतीश कुमार के खासम खास रहे आरसीपी सिंह भी नई पार्टी बनाई है. नई पार्टी बनाने के दौरान ही 140 सीटों पर उम्मीदवार तैयार होने की बात कही थी. वहीं असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम की तरफ से भी विधानसभा चुनाव में अपनी ताकत लगाई जाएगी. हालांकि, एआईएमआईएम का फोकस सीमांचल और मुस्लिम बहुल सीटों पर ही अधिक होगा. ऐसे में 40 से 50 सीटों पर एआईएमआईएम समीकरण प्रभावित कर सकते हैं.

tejashwi yadav

मुंगेर में अपनी यात्रा के दौरान तेजस्वी यादव.(फाइल फोटो) (ETV Bharat)

डबल इंजन सरकार का प्रभाव उपचुनाव में दिखाः बिहार के लिए कई पैकेज केंद्र सरकार की तरफ से दी जा रही है. कई बड़े प्रोजेक्ट को लेकर भी फैसला हो रहा है. जहां अवरोध थे उसे भी दूर किया जा रहा है. एम्स, पूर्णिया एयरपोर्ट, एक्सप्रेसवे के निर्माण का भी रास्ता साफ हो रहा है. चुनाव से पहले एनडीए के तरफ से कई बड़ी घोषणा भी हो सकती है. उपचुनाव में मिली जीत से भी एनडीए खेमा उत्साहित है. इसलिए महागठबंधन के लिए लड़ाई आसान नहीं होगी.

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