फिर जेल से चुनाव में मुख्तार…कारण, थोड़ा फिल्मी है:​​ … समर्थक कहते हैं भाई जेल में रहें या बेल पर, उनका नाम ही काफी है…

फिल्में देखकर हमारे जेहन में तस्वीर साफ है कि जो विधायक होता है, उसकी एक अलग हनक होती है। उसके पास, गुर्गे-गाड़ी, पैसा सब होता है। उसके एक इशारे पर मुश्किल से मुश्किल काम, कानून की जद में हो या फिर गैरकानूनी सब हो जाता है, यहां तक कि विधायक अगर जेल में हो तो भी उसकी हनक और भौकाल में कोई फर्क नहीं पड़ता। कुछ फिल्में काल्पनिक होती हैं, तो कुछ असल जिंदगी से ली जाती हैं। जी हां, मुख्तार अंसारी की कहानी जानिए…फिल्मों की तस्वीरें एक बार फिर जेहन में साफ होने लगेंगी।

चलिए, हम आपको मऊ लिए चलते हैं, जहां मुख्तार अंसारी चुनावी मैदान में है और उनके लिए प्रचार शुरू गया है। समर्थक कह रहे हैं कि चुनाव में मुख्तार अंसारी का नाम ही काफी है। इनसे मुख्तार की कहानियां सुनिए तो ऐसा लगता है कि किसी फिल्म की कहानी चल रही हो।

कृष्णानंद राय को छलनी करना, सच्चिदानंद राय, राम नारायण राय, सुभाष सिंह, अजय प्रसाद सिंह उर्फ मुन्ना सिंह, राम प्रताप यादव और न जाने कितने बड़े लोगों की हत्या, मऊ समेत कई दंगों के मामले में आरोपी माफिया मुख्तार अंसारी। उसकी कहानियां तो ऐसी चर्चित कि साउथ के लेखक फिल्म स्क्रिप्ट लिख सकते हैं।

समर्थक बोले- नाम से मिलते हैं वोट

क्षेत्र में अगर 50 लोगों से बात करें तो अधिकतर लोग यहीं कहते मिलेंगे कि भाई जेल में रहें या बेल पर…उनका नाम ही यूपी में किसी भी काम की गारंटी है। यही कारण है कि लगातार तीन बार मुख्तार जेल से कैसे जीते और सपा से गठबंधन करने वाले SBSP के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने उनको अपना उम्मीदवार बनाने की घोषणा क्यों की ? इस बार भी अगर वो जीतते हैं तो शायद जेल से लगातार जीतने का ये रिकॉर्ड ही होगा। टिकट अभी मिला नहीं है, लेकिन क्षेत्र में मुख्तार के लोग जनसंपर्क करने लगे हैं। 2005 मऊ दंगा के बाद मुख्तार अंसारी लगातार जेल में है। 2007, 2012 और 2017 का विधानसभा चुनाव वो जेल में रहते हुए लड़े। अब वो चौथी बार जेल में रहते हुए चुनाव लड़ने की तैयारी में है। 2009 लोकसभा चुनाव भी उन्होंने जेल में रहते हुए लड़ा था, मगर हार गए थे।

मुख्तार के दो चेहरे…पहला, जानिए उनकी नजर से जो हैवान समझते हैं

‘तब मैं 17 साल का था। 29 नवंबर 2005 की वो दहशत वाली शाम थी। उस दिन गाजीपुर दहल उठा था। गोलियों से क्षत-विक्षत पापा कृष्णानंद राय (मोहम्मदाबाद विधायक) समेत BJP के प्रमुख कार्यकर्ताओं के शव एक साथ दरवाजे पर रखे थे। सभी गाजीपुर के भावर कोल ब्लॉक के सियारी गांव से एक क्रिकेट प्रतियोगिता का उद्घाटन कर वापस आ रहे थे। तभी बसनिया चट्टी से गुजरते समय उनके काफिले पर एके-47 से हमला कर दिया गया था। 500 राउंड से ज्यादा फायरिंग हुई थी। पापा के शरीर में 67 गोलियां लगी थी। पापा की गलती बस इतनी थी की 2002 के विधानसभा चुनाव में गाजीपुर के मोहम्मदाबाद विधानसभा क्षेत्र में मुख्तार अंसारी के मंझले भाई अफजाल अंसारी (गाजीपुर के वर्तमान BSP सांसद) को हराकर पहली बार वहां कमल खिलाया था। ठीक डेढ़ महीने पहले (14 अक्टूबर 2005) का मऊ दंगा भी हमारे जेहन में था। पापा के जाने के बाद हमारे गार्जियन जम्मू कश्मीर के LG मनोज सिन्हा की कृपा नहीं होती तो आज हम यहां नहीं होते’। ये कहते-कहते कृष्णानंद राय एवं वर्तमान विधायक अलका राय के पुत्र पीयूष भावुक हो गए।

वो कहते हैं कि मुख्तार भले ही उस दिन जेल में रहे हों, लेकिन कौन नहीं जानता कि राजनीतिक साजिश के तहत उसने अपने गुर्गे से पापा समेत भाजपा के प्रमुख कार्यकर्ताओं की हत्या कराई थी। माफिया मुख्तार को लेकर भले ही गाजीपुर सन्नाटे में हो लेकिन पीयूष ने पहली बार दैनिक भास्कर से खुलकर बातें की। वो कहते हैं मुख्तार का परिवार भले ही अपने को कांग्रेस के प्रेसिडेंट (1926- 27) डॉ. एम ए अंसारी को अपना दादा, पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को चाचा और नौशेरा सेक्टर में शहीद होने वाले ब्रिगेडियर उस्मान को नाना बताते हो लेकिन इनमें से कोई इनका अपना सगा नहीं है। इनके पिता सुबाहउल्लाह अंसारी मोहम्मदाबाद नगर पालिका के चेयरमैन थे। दादा का नाम कासिम अंसारी था।

समर्थक कह रहे हैं कि चुनाव में मुख्तार अंसारी का नाम ही काफी है।
समर्थक कह रहे हैं कि चुनाव में मुख्तार अंसारी का नाम ही काफी है।

वो तो महान वामपंथी सरजू पांडे की कृपा थी कि 1985 में पहली बार मुख्तार अंसारी के मंझले भाई अफजाल अंसारी विधानसभा पहुंचे। उसके बाद मुख्तार अंसारी ने राजनीतिक हत्याओं का खेल खेलना शुरू कर दिया। छह भाई- बहनों में सबसे बड़े भाई सिगबतुल्लाह अंसारी मौलवी हैं। अब वो पूर्व विधायक हैं। मंझले भाई अफजाल अंसारी और मुख्तार दोनों सिनेमा हॉल में टिकट ब्लैक करते थे। हरिहरपुर के सच्चिदानंद राय इन दोनों भाइयों को बहुत मानते थे। पर, साइकिल स्टैंड के विवाद को लेकर मुख्तार ने 1988 में सच्चिदानंद राय की ही हत्या कर दी। जिसने इन्हें आश्रय दिया उन्हीं की हत्या कर पहली बार अपराध जगत में सुर्खियों में आया।

दूसरा चेहरा उनकी नजर से, जो उन्हें रॉबिनहुड जैसा किरदार समझते हैं

मुख्तार छह भाई बहनों में पांचवें नंबर पर हैं। एक छोटी बहन है। दो बड़ी बहनों के साथ दो बड़े भाई हैं। सबसे बड़े भाई सिगबतुल्लाह अंसारी कहते हैं कि मुख्तार मुझसे 15 साल छोटे हैं। सांसद अफजाल अंसारी से भी वो 14 साल छोटे हैं। वो गाजीपुर के यूसुफपुर इलाके के अपने पैतृक आवास बड़का फाटक पर दैनिक भास्कर से विशेष बातचीत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि पीजी कॉलेज गाजीपुर में पढ़ने के दौरान मुख्तार अंसारी साधु सिंह की संगत में आ गए थे। साधु से दोस्ती निभाने के चक्कर में उनकी कुछ बदनामी हुई।

वो पहली बार कब जेल गए इस बारे में पूछे जाने पर वो कहते हैं कि उन्हें ये ठीक से याद नहीं है। पर, मुख्तार की आधी जिंदगी तो जेल में ही कटी है। 1985 में अफजाल के पहला चुनाव जीतने के दो साल बाद ही एक घटना हुई। हरिहरपुर के सच्चिदानंद राय की हत्या हो गई। उसमें मुख्तार को पहली बार आरोपी बनाया गया। वह सिर्फ राजनीतिक कारणों से था। दूर-दूर तक उनकी कोई भूमिका नहीं थी। जांच हुई। वो बाइज्जत बरी हो गए। उसके बाद राजनीतिक लोग एक पर एक केस लगाने लगे। अधिकतर मुकदमे राजनीतिक साजिश के तहत दर्ज हुए। हमारे दादा के पिता जी डॉक्टर एम ए अंसारी थे। उनके नाना के साले ब्रिगेडियर उस्मान थे। हमारे पूर्वज देश की आजादी और देश की सीमा की सुरक्षा में जान न्योछावर करने वाले थे।

पीयूष के आरोप पर कहते हैं कि कृष्णानंद राय को भी कौन नहीं जानता। शराब कारोबारी पोंटी चड्ढा से उनके संबंध को भी सब जानते हैं। मुजफ्फरपुर गोलू अपहरण कांड में बिहार पुलिस कृष्णानंद राय के यहां छापेमारी करती है। कृष्णानंद राय के MLA बनने के बाद 2004 में शेरपुर गांव में राम नारायण राय की हत्या होती है। उनके सगे भाई ने विधायक कृष्णानंद राय को आरोपी बनाया। इसी दौरान रामाकांत भारती की भी हत्या होती है। शिव दुलारी राय कृष्णानंद राय को आरोपी बनाती हैं। 2005 में जब कृष्णानंद राय की हत्या होती है तो आरोपी मुख्तार क्यों?

बड़े भाई सिगबतुल्लाह अंसारी कहते हैं कि एक बार की बात है हम मुख्तार के साथ डिग्री कॉलेज के छात्र संघ चुनाव में शामिल होने के बाद घर लौट रहे थे। गाजीपुर के लंका चौराहा पर मुख्तार की गाड़ी देख पुलिस गोलियां बरसाने लगी। हम सभी भागने लगे। दूर जाकर गाड़ी से उतर कर हम सभी किसी तरह बच निकले। गाड़ी में हथियार रखे थे। सो, पहली दफा मुझ पर भी आर्म्स एक्ट का मुकदमा दायर कर दिया गया। मुझ पर यह अंतिम मुकदमा है। कृष्णानंद राय हत्याकांड में मुख्तार के साथ-साथ सांसद अफजाल अंसारी को भी 4 साल तक जेल में रहना पड़ा था। जबकि, हत्याकांड के दिन अफजाल संसद के सत्र में भाग ले रहे थे। बड़े भाई कहते हैं मुख्तार 16 साल से जेल में बंद है। 2006 के दिसंबर में पैरोल पर पिता को मिट्टी देने पहुंचे थे उसके बाद से वो कभी यहां नहीं आए। मां के इंतकाल के बाद भी उन्हें मिट्टी देने के लिए भी नहीं आने दिया गया।

ऐसे रखा अपराध में कदम

गाजीपुर और मऊ में अब मुख्तार अंसारी को लेकर कुछ लोग ऑफ द रिकॉर्ड बोलने लगे हैं। एक वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि मुख्तार अंसारी का जन्म गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद में सुबाहउल्लाह अंसारी और बेगम राबिया के घर 3 जून 1963 को हुआ था। बचपन में तीनों भाई क्रिकेट खेलने के शौकीन थे। मुख्तार इंटरस्टेट खेला करते थे। कॉलेज के जमाने में ही साधु सिंह के गैंग में शामिल हो गए। क्रिकेट के साथ-साथ वो गुलेल चलाने में भी माहिर थे। बचपन में गांव के लोग उन्हें अच्छे चिरई मार भी कहते थे। बचपन के दिनों में हाट बाजार से खरीदारी कर लौट रहे साइकिल सवार लोगों को गुलेल मारकर गिरा देने में उन्हें मजा आता था। साइकिल सवार के गिर जाने के बाद उनके झोले में रखे खाने-पीने की चीजें लेकर चंपत हो जाते थे।

1980 के दशक में देश तेजी से बदल रहा था। नई-नई फैक्ट्रियां लगाई जा रही थी। नए-नए कॉलेज बन रहे थे। बड़े-बड़े सरकारी ठेके बंट रहे थे। यूपी सरकार पूर्वांचल के विकास को लेकर कई प्रोजेक्ट्स मंजूर किए। इसी प्रोजेक्ट्स के ठेका लेने को लेकर पूर्वांचल की धरती ‘लाल’ होने लगी। मुख्तार अंसारी इसी की उपज थे। मुख्तार मखुनी सिंह के गैंग से मिल गए। साल 1980 में इस गैंग की साहिब सिंह के गैंग से गाजीपुर के सैदपुर में एक प्लॉट को लेकर बवाल हुआ। साहिब सिंह के गैंग में वाराणसी का बृजेश सिंह शामिल था। बृजेश सिंह का मुख्तार अंसारी से 36 का आंकड़ा था। साल 1990 में ब्रजेश सिंह ने अपना गैंग बना लिया। गाजीपुर के सभी ठेके उसने अपने कंट्रोल में ले लिए। कोयला, रेलवे कंस्ट्रक्शन, माइनिंग, शराब और पब्लिक वर्क जैसे 100 करोड़ के कॉन्ट्रैक्ट के काम को लेकर अंसारी और ब्रजेश सिंह गैंग के बीच कई बार खूनी खेल हुआ।

1987 में सच्चिदानंद राय की हत्या के बाद मुख्तार अंसारी पूर्वांचल का बड़ा नाम बन चुका था। 1988 में तिवारीपुर के राम नारायण राय की हत्या में भी मुख्तार नामजद अभियुक्त बनाया गया। हिरासत में बंद कुख्यात सुभाष सिंह की हत्या में उसका नाम आया। उसके बाद अपराध जगत में वाराणसी, गाजीपुर, जौनपुर और मऊ में उसका डंका बजने लगा। उसके नाम से ही लोग कांपते थे। कहा तो यहां तक जाता है कि, मुख्तार के लिए गाजीपुर जेल में सुख सुविधा की तमाम व्यवस्था की गई थी। मछली मारने के लिए तालाब बनाया गया। तत्कालीन डीएम जेल में उसके साथ बैडमिंटन खेलते थे। जेल के बाहर मुख्तार के लोगों के लिए कमरे बनाए गए थे। 2019 में पंजाब जेल से मुख्तार को यूपी के बांदा जेल लाया गया। गैंगस्टर एक्ट के तहत मऊ, आजमगढ़, जौनपुर, गाजीपुर सहित अलग-अलग शहरों में उसकी करोड़ों की संपत्ति जब्त की गई। गजल होटल सहित कई अन्य मकान पर बुलडोजर चलाया गया।

अभी 16 मामलों में हो रही सुनवाई

विधान सभा चुनाव 2017 में मुख्तार अंसारी की ओर से दिए गए शपथ पत्र की मानें तो मुख्तार पर देश की अलग-अलग अदालतों में हत्या, हत्या के प्रयास, दंगा भड़काने, आपराधिक साजिश रचने, धमकी देने, संपत्ति हड़पने, धोखाधड़ी करने, सरकारी कामकाज में बाधा पहुंचाने सहित 16 मामले दर्ज हैं। वाराणसी के कांग्रेस नेता अजय राय के भाई अवधेश राय हत्याकांड मामले में भी मुख्तार पर सुनवाई चल रही है। उस समय पर मकोका और गैंगस्टर एक्ट के तहत 30 से अधिक केस दायर थे। अधिकतर मामलों में सबूत नहीं मिलने और गवाह के पलट जाने के कारण उसे बरी कर दिया गया। फिलहाल, मुख्तार बांदा जेल में है। कृष्णानंद राय हत्याकांड में सीबीआई कोर्ट से बरी किए जाने के बाद पत्नी अलका राय ने दिल्ली HC में अपील दायर की। जिसकी सुनवाई अभी शुरू नहीं हुई है।

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