तुर्किये, रूस-यूक्रेन जंग और बदलती जियोपॉलिटिक्स ?

तुर्किये, रूस-यूक्रेन जंग और बदलती जियोपॉलिटिक्स

रूस-यूक्रेन जंग तीन साल से जारी है और अब इसका असर पूरी दुनिया की राजनीति पर साफ दिख रहा है. अमेरिका, यूरोप और नाटो देश इसे अलग-अलग नजरिए से देख रहे हैं, लेकिन तुर्किये का रोल इस पूरी कहानी में सबसे दिलचस्प बनता जा रहा है. तुर्किये के राष्ट्रपति रेसेप तैय्यप एर्दोआन एक ऐसा बैलेंस बना रहे हैं, जिससे उनकी अहमियत बढ़ती जा रही है.

अमेरिका में इस वक्त राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का दबदबा बढ़ता नजर आ रहा है और उन्होंने यूक्रेन की  सैनिक मदद रोक दी है. साथ ही जंगबंदी को लेकर सऊदी अरब में हुई रूस अमेरिका मुलाक़ात में भी उक्रैन को बातचीत में शामिल नहीं किया. ऐसे में साफ़ है की यूक्रेन को सपोर्ट करने की अमेरिका की नीति बदल गई है. वहीं, ट्रंप के करीबी एलन मस्क का कहना है कि अमेरिका को नाटो से अलग हो जाना चाहिए. ये बातें यूरोप के लिए खतरे की घंटी हैं, और इसी मौके को तुर्किये अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहा है.

ट्रंप की नीतियां और यूरोप की चिंता

डोनाल्ड ट्रंप जिस तरीक़े से रूस-यूक्रेन जंग को ख़त्म करने की कोशिश में लगे हैं, उनकी इस कोशिश से नाटो देश और यूरोपीय यूनियन (EU) में बेचैनी बढ़ गई है. ट्रंप इस युद्ध को अपने तरीके से खत्म करना चाहते हैं, जिसमें रूस के हितों का भी ध्यान रखा जाएगा.

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्ज को लगता है कि  ट्रंप ने यूक्रेन की सैन्य मदद और फंडिंग रोकी है उस्से ये इशारा भी मिलता है की नाटो से भी अमेरिका खुद को दूर कर सकता है ऐसे में  यूरोप के लिए हालात मुश्किल हो सकते हैं. इसी वजह से यूरोप के नेता अब सोच रहे हैं कि उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए खुद कुछ करना पड़ेगा. यहीं पर तुर्किये एक अहम खिलाड़ी बनकर उभर रहा है.

तुर्किये की कूटनीति और एर्दोआन का दांव

तुर्किये के राष्ट्रपति एर्दोआन का कहना है कि यूरोपीय यूनियन को तुर्किये की जरूरत है. उन्होंने हाल ही में बयान दिया कि अगर यूरोप को अपनी रक्षा मजबूत करनी है, तो तुर्किये को साथ लेना ही होगा. लेकिन एर्दोआन ने साफ कर दिया है कि तुर्किये मुफ्त में मदद नहीं करेगा. उनकी सबसे बड़ी मांग है कि यूरोपीय यूनियन तुर्किये को अपना सदस्य बनाए.

तुर्किये 1999 से यूरोपीय यूनियन का सदस्य बनने की कोशिश कर रहा है, लेकिन अब तक उसे सदस्यता नहीं मिली. यूरोपीय देश तुर्किये के अंदरूनी हालात और मानवाधिकारों के मुद्दों को बहाना बनाकर उसकी एंट्री रोकते रहे हैं. लेकिन अब जब यूरोप को अपनी सुरक्षा की चिंता हो रही है, तो तुर्किये इस मौके का फायदा उठाना चाहता है.

तुर्किये की ताकत – क्यों है वह नाटो के लिए जरूरी?

तुर्किये नाटो का दूसरा सबसे ताकतवर देश है. अमेरिका के बाद नाटो में सबसे ज्यादा सैनिक तुर्किये के पास हैं. उसके पास करीब 4 लाख से ज्यादा सैनिक हैं. इसके अलावा, तुर्किये एक बड़ा रक्षा उत्पादक भी है. वह 4 अरब डॉलर से ज्यादा का रक्षा सामान एक्सपोर्ट करता है. तुर्किये के बने बैराकतार ड्रोन यूक्रेन युद्ध में बेहद कारगर साबित हुए हैं.

तुर्किये छोटे हथियारों से लेकर आधुनिक मिसाइल और ड्रोन बना रहा है, जो उसकी सैन्य ताकत को और बढ़ा रहे हैं. इसके अलावा, तुर्किये का भूगोल (Geography) भी बहुत अहम है. वह यूरोप और एशिया के बीच का पुल (Bridge) है. वह ब्लैक सी के पास है जहाँ एक तरफ उक्रैन तो वही रूस भी स्थित है ,अगर यूरोप को रूस या किसी और खतरे से बचना है, तो तुर्किये की मदद उनके लिए फायदेमंद होगी.

एलन मस्क की धमकी और तुर्किये के लिए मौका

टेस्ला और स्पेसएक्स के मालिक एलन मस्क, जो ट्रंप के करीबी माने जाते हैं,और डोज के मुखियां हैं, उन्होंने हाल ही में कहा कि अमेरिका को नाटो से बाहर निकल जाना चाहिए. मस्क का कहना है कि अमेरिका यूरोप की रक्षा के लिए अरबों डॉलर खर्च करता है, जो उसे नहीं करना चाहिए.

अगर अमेरिका वाकई नाटो से पीछे हटता है, तो यूरोप की सुरक्षा कमजोर हो सकती है. ऐसे में यूरोप को नाटो में एक मजबूत देश की जरूरत होगी, और तुर्किये इस रोल में फिट बैठता है. एर्दोआन इस मौके को भुनाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.

रूस और तुर्किये – दोस्ती या मजबूरी?

तुर्किये और रूस की दोस्ती भी किसी से छिपी नहीं है. हालांकि तुर्किये नाटो का सदस्य है, लेकिन उसने रूस के साथ भी अच्छे रिश्ते बना रखे हैं. तुर्किये ने रूस से S-400 मिसाइल सिस्टम खरीदा, जो अमेरिका और नाटो को पसंद नहीं आया. तुर्किये ने यूक्रेन को ड्रोन बेचे, लेकिन रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाने से बचा. साथ ही उसने रूस-यूक्रेन जंग के दौरान मध्यस्थ (Mediator) बनने की कोशिश की. तुर्किये के इस बैलेंस का फायदा यह है कि वह अमेरिका, रूस और यूरोप के बीच अपनी अहमियत बनाए रखता है.

तुर्किये को क्या मिलेगा?

अगर एर्दोआन की रणनीति काम कर गई, तो तुर्किये को कई बड़े फायदे हो सकते हैं:
1. यूरोपीय यूनियन में एंट्री की राह खुल सकती है.
2. नाटो में उसकी पोजीशन और मजबूत होगी.
3. यूरोप को उसकी शर्तों पर मदद मिलेगी, जिससे तुर्किये को आर्थिक और सामरिक फायदा होगा.
4. रूस और अमेरिका दोनों से फायदा उठाने की रणनीति जारी रहेगी.
तुर्किये की यह चाल उसे अगले कुछ सालों में दुनिया की बड़ी ताकतों में शामिल कर सकती है.

निष्कर्ष – तुर्किये की नई भूमिका?

रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते दुनिया की राजनीति तेजी से बदल रही है. अमेरिका, यूरोप और नाटो देशों के बीच नई खींचतान चल रही है, और तुर्किये इसका पूरा फायदा उठाने की कोशिश में है. अगर ट्रंप नाटो और यूरोपीय सुरक्षा नीति में बड़े बदलाव करते हैं तो ऐसे में तुर्किये का रोल और बढ़ जाएगा. अब देखना यह है कि तुर्किये यूरोपीय यूनियन में एंट्री लेने में कामयाब होता है या नहीं. लेकिन इतना तय है कि एर्दोआन ने अपने देश को ऐसी जगह खड़ा कर दिया है, जहां उसकी अहमियत कोई भी नकार नहीं सकता.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि ….न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.] 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *