लोक अदालतों में नए सुधार होंगे या फिर वही पुरानी व्यवस्था?
लोक अदालतों में नए सुधार होंगे या फिर वही पुरानी व्यवस्था? क्या है सरकार का प्लान
क्या लोक अदालतों ने रेगुलर अदालतों का बोझ कम करने में मदद की है? क्या सरकार लोक अदालतों का दायरा बढ़ाने की सोच रही है ताकि वो ज्यादा तरह के मामलों को निपटा सकें?
लोक अदालत एक ऐसा मंच है जहां विवादों और मामलों को आपसी सहमति से सुलझाया जाता है. ये अदालतें नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी (NALSA) और दूसरी कानूनी सेवा संस्थाओं द्वारा आयोजित की जाती हैं. लोक अदालतें उन मामलों को भी सुलझाती हैं जो अभी तक अदालत में नहीं गए हैं.
लोक अदालतों को ‘कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987’ के तहत कानूनी दर्जा दिया गया है. इस अधिनियम के तहत लोक अदालत द्वारा दिया गया फैसला एक सिविल कोर्ट का आदेश माना जाता है. यह फैसला सभी पक्षों के लिए अंतिम और बाध्यकारी होता है. लोक अदालत के फैसले के खिलाफ अपील का कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन अगर कोई पक्ष फैसले से संतुष्ट नहीं है, तो उसके पास मुकदमा दायर करने का अधिकार है.
न्याय व्यवस्था में तेजी लाने और अदालतों में बढ़ते मामलों के बोझ को कम करने के लिए लोक अदालतों की व्यवस्था की गई थी. इन अदालतों का उद्देश्य छोटे-मोटे मामलों को बिना लंबी कानूनी प्रक्रिया के निपटाना है. लेकिन क्या लोक अदालतें सच में अपने उद्देश्य में सफल हो रही हैं? सरकार की रिपोर्ट इस पर क्या कहती है? इस स्पेशल स्टोरी में आइए विस्तार से जानते हैं.
पहले जानिए मामलों का निपटारा कैसे होता है?
हाल ही में संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में सरकार ने बताया, लोक अदालतों का आयोजन पूरे देश में किया जाता है. इन्हें आयोजित करने के लिए ‘कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987’ और ‘राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (लोक अदालत) विनियम 2009’ में दिए गए नियमों का पालन किया जाता है. ये नियम बताते हैं कि लोक अदालतें किन मामलों की सुनवाई कर सकती हैं.
लोक अदालत में उन झगड़ों और मामलों को शांति से सुलझाया जाता है जो या तो अदालत में चल रहे हैं या अभी तक अदालत तक पहुंचे ही नहीं हैं. मतलब, लोक अदालतें मुकदमेबाजी शुरू होने से पहले भी मामलों को सुलझाने का एक मौका देती हैं. लोक अदालत का सुनाया गया फैसला सिविल कोर्ट का फैसला माना जाता है.
नेशनल लोक अदालत: कब कितने मामले निपटाए गए
साल | मुकदमेबाजी से पहले मामले निपटाए गए | लंबित मामले निपटाए गए |
2022 | 3,10,15,215 | 1,09,10,795 |
2023 | 7,10,32,980 | 1,43,09,237 |
2024 | 8,70,19,059 | 1,75,07,060 |
लोक अदालत के कितने प्रकार
भारत में लोक अदालतें मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती हैं. नेशनल लोक अदालतें पूरे देश में एक ही दिन आयोजित की जाती हैं. इनका उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा मामलों का निपटारा करना होता है. ये सर्वोच्च न्यायालय से लेकर तालुका स्तर तक की सभी अदालतों में आयोजित की जाती हैं.
लोक अदालत का दूसरा प्रकार स्थायी लोक अदालत है. ये विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 की धारा 22-बी के तहत आयोजित की जाती है. ये अदालतें पब्लिक यूटिलिटी सर्विसेज से संबंधित मामलों का निपटारा करती हैं. इन अदालतों का गठन उन विवादों को सुलझाने के लिए किया गया है जो पब्लिक हित के होते हैं.
वहीं, स्टेट लोक अदालतें राज्य/जिला या तालुका स्तर पर आयोजित की जाती हैं. इनका आयोजन राज्य/जिला/तालुका कानूनी सेवा प्राधिकरण द्वारा किया जाता है. ये अपने संबंधित क्षेत्र में मामलों का निपटारा करती हैं.
स्टेट लोक अदालत: कब कितने मामले निपटाए गए
साल | मुकदमेबाजी से पहले मामले निपटाए गए | लंबित मामले निपटाए गए |
2022-23 | 94,939 | 7,56,370 |
2023-24 | 2,19,230 | 9,87,873 |
2024-25 | 7,68,560 | 4,39,667 |
क्या लोक अदालतों से कोर्ट का बोझ कम हुआ?
लोक अदालतें समय-समय पर बहुत सारे मामलों को सुलझाकर अदालतों का काम कम करती हैं. सरकार ने संसद में जानकारी दी कि नेशनल लोक अदालत ने साल 2022 में 3 करोड़ 10 लाख 15 हजार 215 ऐसे मामले सुलझाए जो अभी तक अदालत में पहुंचे ही नहीं थे. इसके अलावा 1 करोड़ 9 लाख 10 हजार 795 ऐसे मामले सुलझाए गए जो पहले से ही अदालतों में चल रहे थे. कुल मिलाकर, इस साल 4 करोड़ 19 लाख 26 हजार मामलों का निपटारा हुआ.
2023 में इन अदालतों में 7 करोड़ 10 लाख 32 हजार 980 मामले मुकदमा दर्ज होने से पहले ही सुलझा दिए गए. 1 करोड़ 43 लाख 9 हजार 237 अदालतों में लंबित मामले निपटाए गए. ऐसे ही 2024 में दिसंबर तक 8 करोड़ 70 लाख 19 हजार 59 मामले मुकदमा दर्ज होने से पहले सुलझा लिए गए. जबकि 1 करोड़ 75 लाख 7 हजार 60 अदालतों में लंबित मामले निपटाए गए.
वहीं, राज्य लोक अदालतों में मुकदमा दर्ज होने से पहले ही तेजी से केस निपटा दिए गए. 2022-23 में ऐसे मुकदमे से पहले सुलझाए गए मामलों की संख्या 94,939 थी. 2023-24 में पहले से ज्यादा 219,230 केस निपटाए गए. फिर 2024-25 में ये संख्या बढ़कर 439,667 तक पहुंच गई. ऐसे ही 2022-23 अदालतों में लंबित मामलों में से 756,370 का निपटारा हुआ. अगले साल 2023-24 में लंबित मामलों में से 768,560 का निपटारा हुआ. फिर 2024-25 में 12,07,103 लंबित मामले निपटा दिए गए.
यानी, लोक अदालतों से कोर्ट का बोझ कम हुआ है. बहुत सारे ऐसे मामले निपटाए जाते हैं, जो या तो अभी अदालत में पहुंचे ही नहीं थे या फिर पहले से ही अदालतों में अटके पड़े थे. लोक अदालतों में जज की जगह दोनों पक्षों के बीच बातचीत से मामले सुलझाए जाते हैं. इससे लड़ाई-झगड़े कम होते हैं और दोनों पक्ष खुशी-खुशी मामले निपटा लेते हैं.
साल | निपटाए गए केस |
2022-23 | 1,71,138 |
2023-24 | 2,32,763 |
2024-25 | 1,61,277 |
लोक अदालतों का कामकाज कितना सफल?
नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी लोक अदालतों के काम पर लगातार नजर रखती है. राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (SLSA) को NALSA द्वारा लोक अदालतों को और प्रभावी बनाने के लिए दिशानिर्देश दिए जाते हैं. इन दिशानिर्देशों का उद्देश्य लंबित मामलों की संख्या को कम करना है.
अभी सरकार लोक अदालतों के काम का अलग से कोई हिसाब नहीं लगा रही है कि वो मामलों को कम करने में कितनी सफल हैं. लेकिन, कानूनी सेवा संस्थाएं कैसा काम कर रही हैं, ये देखने के लिए NALSA उनसे हर महीने रिपोर्ट मंगवाता है. इस रिपोर्ट में बताया जाता है कि उस महीने में क्या-क्या काम हुआ. फिर, NALSA इन रिपोर्टों को मिलाकर सरकार को भेजता है.
महीने की रिपोर्ट के अलावा NALSA हर राज्य से साल भर का हिसाब भी लेता है और अपनी खुद की सालाना रिपोर्ट बनाता है. ये रिपोर्ट संसद में भी पेश की जाती है. इसके अलावा, NALSA कानूनी सेवा संस्थाओं के काम पर नजर रखने के लिए पूरे देश में और अलग-अलग इलाकों में बैठकें भी करता है.
सरकार लोक अदालतों का दायरा बढ़ाने की सोच रही है?
सरकार ने लोकसभा में बताया, ‘राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (लोक अदालत) विनियम 2009’ का नियम 10 बताता है कि किन मामलों को लोक अदालतों में भेजा जा सकता है. अभी सरकार इन नियमों में कोई बदलाव करने की योजना नहीं बना रही है. मतलब, लोक अदालतों में मामलों को भेजने के नियम फिलहाल जैसे हैं, वैसे ही रहेंगे.
क्या सरकार ने और बेहतर बनाने के लिए कोई बदलाव करने का सोचा है?
सरकार ने इस सवाल के जवाब में कहा कि लोक अदालतों को और बेहतर बनाने और उन्हें ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के लिए कोरोना महामारी के दौरान ई-लोक अदालतों का विचार आया. इससे उन लोगों को भी न्याय मिला जो पहले लोक अदालतों में खुद आकर शामिल नहीं हो पाते थे.
पहली ई-लोक अदालत 27 जून 2020 को आयोजित की गई थी. तब से लेकर अब तक 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में ई-लोक अदालतों का आयोजन किया जा चुका है. इन ई-लोक अदालतों में 10.30 करोड़ मामलों को सुनवाई के लिए लिया गया. इनमें से 1.15 करोड़ मामलों का निपटारा किया जा चुका है.