क्या है NJAC ….. जज कैशकांड के बीच चर्चा क्यों?

क्या है NJAC: जिसका उपराष्ट्रपति धनखड़ से लेकर TMC सांसद तक ने किया जिक्र; जज कैशकांड के बीच चर्चा क्यों?

सुप्रीम कोर्ट और देशभर की हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति वाली एनजेएसी व्यवस्था क्या है? मौजूदा समय में जजों की नियुक्ति कैसे की जाती हैं? 2014 में एनजेएसी को लेकर लाए गए प्रस्ताव का क्या हुआ? विपक्ष का अब इस मामले पर क्या कहना है? आइये जानते हैं…
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जस्टिस यशवंत वर्मा केस के बाद जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर शुरू हुई चर्चा….
दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के घर कैश मिलने के मामले में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से गठित समिति ने जांच जारी रखी है। इस बीच बीते एक हफ्ते से संसद में लगातार राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) की चर्चाएं तेज हैं। दरअसल, लोकसभा से लेकर राज्यसभा तक जस्टिस वर्मा के मामले को लेकर चर्चा हुई है। इसी चर्चा के दौरान सांसदों और सभापति तक ने एनजेएसी का जिक्र किया है। 

उदाहरण के तौर पर जस्टिस वर्मा के घर पर कथित तौर पर कैश मिलने के मामले के बाद तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने कहा कि केंद्र सरकार इस मामले का इस्तेमाल कर के सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए एनजेएसी को बढ़ावा देना चाहती है, ताकि इसे कॉलेजियम सिस्टम के विकल्प के तौर पर पेश किया जा सके।  

इसके अलावा वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा था कि कॉलेजियम सिस्टम दोषपूर्ण है। उन्होंने साफ किया था कि यह न्यायपालिका के अस्तित्व का संकट है और हमें पारदर्शिता के मुद्दे पर फिर चर्चा करने की जरूरत है।

दूसरी तरफ उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा से लेकर सदन के नेताओं के साथ बैठक में भी एनजेएसी का मुद्दा उठाया है। धनखड़ ने कहा है कि कि अगर यह लागू होता तो चीजें अलग होतीं। उन्होंने यह भी कहा कि संविधान संशोधन की न्यायिक समीक्षा का कोई प्रावधान नहीं है। धनखड़ ने मंगलवार को राज्यसभा में कहा, गरिमा को ध्यान में रखते हुए, 2015 में इस सदन ने एक कानून बनाया था। संसद ने इसे सर्वसम्मति से पारित किया था। राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 111 के तहत हस्ताक्षर करके इसे प्रमाणित किया था। अब हम सभी के लिए इसे दोहराने का उपयुक्त अवसर है। गौरतलब है कि कॉलेजियम प्रणाली बदलने के लिए एनजेएसी अधिनियम लाया गया था। 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे असांविधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया था। 
ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर सुप्रीम कोर्ट और देशभर की हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति वाली एनजेएसी व्यवस्था क्या है? मौजूदा समय में जजों की नियुक्ति कैसे की जाती हैं? 2014 में एनजेएसी को लेकर लाए गए प्रस्ताव का क्या हुआ? विपक्ष का अब इस मामले पर क्या कहना है? 
आइये जानते हैं…

गौरतलब है कि कॉलेजियम सिस्टम के जरिए जजों की नियुक्ति का जिक्र संविधान में कहीं भी नहीं मिलता। हालांकि, 1993 से चली आ रही यह व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों पर आधारित है, जिसे ‘जजेस केस’ भी कहते हैं। इन जजेस केसों के जरिए ही सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के कुछ नियमों की व्याख्या की और जन्म हुआ कॉलेजियम सिस्टम का। 

कॉलेजियम सिस्टम को बदलने की प्रक्रिया भी आसान नहीं है। इसके लिए सरकार को संविधान संशोधन विधेयक पेश करना होगा। इतना ही नहीं इसे पास कराने के लिए संसद के दोनों सदनों- लोकसभा और राज्यसभा में दो-तिहाई सांसदों के विशेष बहुमत की जरूरत होती है। इसके अलावा कॉलेजियम व्यवस्था को हटाने के लिए देशभर के आधे राज्यों की विधानसभाओं की मंजूरी भी जरूरी है। 

अब जानें- एनजेएसी क्या है?
2014 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने अगस्त में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) की स्थापना से जुड़ा विधेयक पेश किया। चौंकाने वाली बात यह है कि आमतौर पर एकमत न होने वाले सरकार और विपक्ष इस मुद्दे पर एकराय थे। संसद के दोनों सदनों में लगभग सभी पार्टियों और 50 फीसदी से ज्यादा राज्यों की विधानसभा के समर्थन के बाद एनजेएसी कानून ने कॉलेजियम सिस्टम की जगह ले ली। जिन दलों और राज्यों ने एनजेएसी लाने का समर्थन किया था, उनमें कांग्रेस-लेफ्ट शासित राज्य भी शामिल थे। 

राजनीतिक दल के नेताओं ने एनजेएसी पर क्या कहा था?

1. भाजपा
एनजेएसी कानून बनने के बाद तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि नए तंत्र में भी उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में जजों की नियुक्ति में न्यायपालिका का ही बोलबाला रहेगा, क्योंकि इसमें पहले ही 50 फीसदी वोट सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और दो अन्य जजों के पास हैं। वहीं, कार्यपालिका से एनजेएसी में सिर्फ कानून मंत्री ही होंगे। 

जेटली ने कहा था कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता संविधान के मूल ढांचे में निहित है और इसे बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है। एक चुनी हुई सरकार भी इसका हिस्सा है। इतना ही नहीं सरकार ने यह भी साफ किया था कि एनजेएसी में चुने जाने वाले सिविल सोसाइटी के दो सदस्यों का चुनाव भी सरकार, विपक्ष और सीजेआई की तरफ से किया जाना था, जिससे संतुलन को पूरी तरह बनाए रखना तय हुआ।

2. कांग्रेस
दूसरी तरफ कांग्रेस ने एनजेएसी विधेयक पर सरकार का साथ दिया था। हालांकि, इसके नेता कपिल सिब्बल ने विधेयक पर सवाल उठा दिए थे। उन्होंने एलान किया था कि वह मामले में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। लेकिन उन्होंने मामले को कोर्ट में चुनौती न देने का फैसला किया। 

3. अन्य
उस दौरान बसपा सुप्रीमो मायावती ने न्यायपालिका में एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण की मांग की थी। हालांकि, केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि एनजेएसी प्रतिभाशाली वकीलों का एक डाटा बैंक तैयार करेगी, जिसमें कमजोर वर्ग से आने वाले लोगों को भी जज बनाने के प्रस्ताव दिए जाएंगे। 

सुप्रीम कोर्ट ने खुद ही कानून को असंवैधानिक बताया
एनजेएसी को जबरदस्त समर्थन मिलने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में एनजेएसी के लिए लाए गए संविधान संशोधन को असंवैधानिक बता दिया। पांच जजों की संविधान पीठ ने 4-1 के बहुमत से फैसले में कहा कि फिलहाल भारत के उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति कॉलेजियम सिस्टम के जरिए ही होती रहेगी और इसमें चीफ जस्टिस की भूमिका केंद्रीय रहेगी। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एनजेएसी का गठन न्यायपालिका की स्वतंत्रता में दखल देने वाला कदम है। कोर्ट ने कहा था कि जजों की नियुक्ति में न्यायपालिका की प्राथमिकता इसकी अपरिहार्य विशेषता है। 

अब एनजेएसी वापस लाने पर क्या है राजनीतिक दलों की राय?
10 साल बाद एक बार फिर एनजेएसी की चर्चा उठी है। हालांकि, 2014 की तरह इस बार विपक्षी दल सरकार के साथ खड़े नहीं दिखे हैं। खासकर कांग्रेस ने एनजेएसी को वापस लाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश का कहना है कि एनजेएसी का पूरा मुद्दा अलग-अलग स्तरों पर जानबूझकर उठाया जा रहा है। वहीं कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य अभिषेक मनु सिंघवी का कहना है कि कांग्रेस इस मुद्दे को शायद समर्थन न दे। हालांकि, सरकार की तरफ से बिना किसी कदम के हमसे हमारे निर्णय की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए।

दूसरी तरफ तृणमूल कांग्रेस में ही महुआ मोइत्रा के अलावा सुखेंदु शेखर रे ने कहा, “जिस तरह सरकार संवैधानिक प्राधिकरणों के हिस्से को कब्जा करने की कोशिश कर रही है, खासकर न्यायपालिका को, हमारी पार्टी मौजूदा परिप्रेक्ष्य को देखते हुए इस पर फैसला कर सकती है।” दूसरी तरफ विपक्ष के अहम दलों में शामिल राजद ने कहा कि वह एनजेएसी का विरोध नहीं करेगी, लेकिन इसमें आरक्षण का प्रावधान होना ही चाहिए। राजद नेता मनोज झा ने कहा था कि कॉलेजियम प्रणाली ज्यादा से ज्यादा प्रतिनिधित्व देने में सफल नहीं हुआ। 

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