नई दिल्ली, … स्वतंत्रता के बाद कृषि के क्षेत्र में भारत ने काफी काम किया। उस दौरान भारत में खाद्यान्न की समस्या थी। देश को अन्य देशों से खाद्यान्न मंगवाना पड़ता था। हरित क्रांति के माध्यम से भारत ने खाद्यान्न की पूर्ति के लिए वृहद कार्य किया। इसमें पैदावार बढ़ाने वाले बीज, उर्वरक और रसायन का इस्तेमाल किया गया। इसका व्यापक असर भी देखने को मिला और अगले तीन साल में यानी 1971 तक भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हो गया। हरित क्रांति में बीजों की नई किस्मों से कृषि पैदावार बढ़ाने पर जोर दिया गया। शुरुआत की गई खरीफ फसल से। इसमें वैज्ञानिकों को उल्लेखनीय सफलता मिली। और इस प्रयोग को पूरे देश में फैलाया गया और इसने एक क्रांति का रूप ले लिया। इसके बाद रेनबो क्रांति ने भी बागवानी, डेयरी, जलीय कृषि, मुर्गी पालन आदि से कृषि को विविधता मिली जिससे बाद में कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रमुख स्तंभ बन गई। केमिकल फर्टिलाइज़र का बढ़ता उपयोग व बढ़ती निर्भरता, प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन और अस्थिर मौसम ने मिट्टी पर दबाव डाला है। तमाम स्टडी के अनुसार भारत की 30 प्रतिशत मिट्टी खराब हो चुकी है। विशेषज्ञ कहते हैं कि पचास साल पहले मिट्टी में जिंक, सल्फर, मैंगनीज, आयरन और कॉपर जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी नहीं थी। लेकिन अब यह स्पष्ट है, जो मिट्टी के क्षरण का संकेत है। अगर इन सूक्ष्म पोषक तत्वों को जोड़ा जाता है, तो खेती की लागत बढ़ जाती है। जब तक किसानों की मदद नहीं की जाती, मिट्टी को फिर से जीवंत करने का आंदोलन नहीं हो पाएगा।