मराठा साम्राज्य और औरंगजेब: इतिहास की जंग आज भी जारी है!
मराठा साम्राज्य और औरंगजेब: इतिहास की जंग आज भी जारी है!
महाराष्ट्र में औरंगजेब की कब्र को लेकर विवाद और टकराव जारी है. 17वीं सदी की कब्र को तोड़ने की मांग उठी है. औरंगजेब की नीतियां एक बार फिर चर्चा के केंद्र में हैं. इतने सालों बाद भी इतिहास जिंदा है.
मराठा साम्राज्य भारत के इतिहास में एक बहुत बड़ा नाम है. इसकी शुरुआत 17वीं सदी में हुई थी, जब छत्रपति शिवाजी महाराज ने मुगल और आदिलशाही जैसे बड़े शासनों के खिलाफ लड़ाई शुरू की. आज हम इस साम्राज्य की कहानी को समझेंगे. साथ ही, हम औरंगजेब के शासन और मराठों के साथ उसके टकराव के बारे में भी बात करेंगे. हाल ही में नागपुर में औरंगजेब की खुलदाबाद (छत्रपति संभाजी नगर) में बनी 17वीं सदी की कब्र को तोड़ने की मांग उठी है. यह मांग औरंगजेब की नीतियों और मराठों के संघर्ष को फिर से चर्चा में लाई है.
औरंगजेब: आखिरी ताकतवर मुगल बादशाह
औरंगजेब का पूरा नाम आलमगीर था. वह शाहजहां का बेटा था और मुगल साम्राज्य का छठा बादशाह बना. उसने 1658 से 1707 तक शासन किया. औरंगजेब अपने भाइयों से लड़कर गद्दी पर बैठा था. उसके समय में मुगल साम्राज्य बहुत बड़ा हो गया, लेकिन साथ ही कई परेशानियां भी बढ़ीं.
औरंगजेब की नीतियां बहुत सख्त थीं. उसने इस्लाम के नियमों को सख्ती से लागू किया. 1679 में उसने गैर-मुसलमानों पर जजिया कर फिर से शुरू किया, जिसे हिन्दुओं और अन्य धर्मों के लोगों के खिलाफ भेदभाव माना गया. उसने सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर को भी सजा दी, क्योंकि उन्होंने इस्लाम कबूल करने से मना कर दिया था. इसके अलावा, 1669 में उसने काशी विश्वनाथ मंदिर (वाराणसी) और केशवदेव मंदिर (मथुरा) जैसे बड़े हिन्दू मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया.
औरंगजेब ने प्रशासन को भी कड़ा किया. उसने सूबेदारों और जमींदारों की आजादी छीन ली और मनसबदारों को निश्चित तनख्वाह दी. उसने फतवा-ए-आलमगीरी नाम से इस्लामी कानूनों का संग्रह बनवाया, जिससे शासन में धर्म का असर बढ़ गया. उसकी आर्थिक नीतियों में जाब्त सिस्टम था, जिसमें फसल खराब होने पर भी ऊंचा कर वसूला जाता था. इससे किसानों को बहुत तकलीफ हुई. उसने मराठों और राजपूतों के खिलाफ लंबी लड़ाइयां लड़ीं, जिससे खजाना खाली हो गया और बगावतें बढ़ीं.
औरंगजेब के समय में कला और संस्कृति पर ध्यान कम हुआ. बड़े-बड़े महल बनना बंद हो गए और सारा पैसा सेना पर खर्च होने लगा. व्यापार में भी मुस्लिम व्यापारियों को तरजीह दी गई, जिससे अर्थव्यवस्था कमजोर हुई.
मराठा साम्राज्य की शुरुआत
मराठा साम्राज्य की नींव छत्रपति शिवाजी महाराज ने रखी. उनका जन्म 1630 में हुआ और मृत्यु 1680 में. शिवाजी ने दक्कन में कमजोर पड़ते आदिलशाही और मुगल शासन के खिलाफ लड़ाई शुरू की. 1674 में उनका राज्याभिषेक हुआ और मराठा साम्राज्य औपचारिक रूप से शुरू हुआ. यह साम्राज्य 1819 तक चला, जब तक कि अंग्रेजों ने इसे हरा नहीं दिया.
मराठा साम्राज्य मजबूत होने के कई कारण थे. पश्चिमी घाटों की ऊबड़-खाबड़ जमीन ने उनकी रक्षा की और छापामार युद्ध में मदद की. पहाड़ी किलों ने उनकी ताकत बढ़ाई. शिवाजी ने मराठों को एकजुट किया और भक्ति आंदोलन ने धार्मिक एकता दी. संत तुकाराम, समर्थ रामदास और एकनाथ जैसे संतों ने लोगों को जोड़ा. मराठों को बीजापुर और अहमदनगर सल्तनत में काम करने का अनुभव भी मिला, जिससे उनकी सेना और प्रशासन मजबूत हुआ.
संभाजी महाराज: औरंगजेब के खिलाफ जंग
संभाजी महाराज शिवाजी के बड़े बेटे थे. उनका जन्म 1657 में हुआ और 1681 में वह मराठा गद्दी पर बैठे. संभाजी ने अपने पिता की तरह मुगलों के खिलाफ लड़ाई जारी रखी. 1681 में उन्होंने बुरहानपुर पर हमला किया, जो मुगलों का बड़ा गढ़ था. वह छापामार युद्ध में माहिर थे.
लेकिन 1689 में संभाजी को उनके साले गणोजी शिर्के ने धोखा दिया. उन्हें और उनके साथी कवि कलश को संगमेश्वर में पकड़ लिया गया. औरंगजेब ने उन्हें बहुत यातनाएं दीं और 11 मार्च 1689 को पुणे के पास तुलापुर में उनकी हत्या कर दी. संभाजी ने औरंगजेब के सामने झुकने से मना कर दिया था. उनकी शहादत ने मराठों में और जोश भरा.
शिवाजी महाराज: मुगलों से टकराव और प्रशासन
शिवाजी ने मुगलों के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ीं. 1657 में उन्होंने अहमदनगर और जूनर के पास मुगल इलाकों पर हमले किए. 1659 में उन्होंने शाइस्ता खान और बीजापुर की सेना को पुणे में हराया. 1664 में उन्होंने सूरत के व्यापारिक बंदरगाह पर कब्जा किया.
1665 में पुरंदर की संधि हुई, जिसमें शिवाजी को मुगलों को कई किले देने पड़े. उन्हें औरंगजेब के दरबार में आगरा जाना पड़ा, जहां उनके साथ संभाजी भी थे. 1666 में औरंगजेब ने उन्हें कैद कर लिया, लेकिन शिवाजी और संभाजी चालाकी से भाग निकले. इसके बाद शिवाजी ने फिर से मुगलों के खिलाफ जंग छेड़ी और खोए हुए इलाके वापस ले लिए.
शिवाजी के बाद संभाजी, राजाराम, शिवाजी द्वितीय, ताराबाई और शाहू ने मराठा साम्राज्य को आगे बढ़ाया. ताराबाई ने रानी के तौर पर बहुत बहादुरी से मुगलों का मुकाबला किया. शाहू के समय में पेशवा सिस्टम शुरू हुआ, जिसमें बालाजी विश्वनाथ पहले पेशवा बने.
शिवाजी का प्रशासन
शिवाजी का प्रशासन बहुत व्यवस्थित था. उन्होंने दक्कन शैली से प्रेरणा ली, खासकर मलिक अंबर के सुधारों से. राजा सबसे ऊपर था और उसके नीचे अष्टप्रधान नाम का आठ मंत्रियों का समूह था. इसमें पेशवा (प्रधानमंत्री), अमात्य (वित्त मंत्री), सचिव, मंत्रि (गृह मंत्री), सेनापति (सेनाध्यक्ष), सुमंत (विदेश मंत्री), न्यायाधीश (मुख्य न्यायाधीश) और पंडितराव (धार्मिक मामलों के मंत्री) शामिल थे.
साम्राज्य को प्रांतों, जिलों और परगनों में बांटा गया था. देशमुख और देशपांडे जैसे अधिकारी कर वसूलते थे. शिवाजी ने जागीरदारी खत्म की और रैयतवारी सिस्टम शुरू किया. उनकी आय का बड़ा हिस्सा चौथ (गैर-मराठा इलाकों से 1/4 कर) और सरदेशमुखी (बाहर के इलाकों से 10% कर) से आता था.
शिवाजी की सेना बहुत मजबूत थी. इसमें 30,000-40,000 घुड़सवार थे. सैनिकों को नकद तनख्वाह मिलती थी, जबकि सरदारों को जमीन दी जाती थी. उनकी सेना में पैदल सैनिक, घुड़सवार और नौसेना थी. शिवाजी ने भारत की पहली नौसेना बनाई, जो समुद्री व्यापार और तटों की रक्षा करती थी.
निष्कर्ष
शिवाजी और मराठों की बहादुरी ने मुगल सेना को रोक दिया और भारत में एक नया इतिहास लिखा. उनकी सेना, प्रशासन और बड़े साम्राज्यों के खिलाफ लड़ाई ने भारत को नई ताकत दी. आज औरंगजेब की कब्र तोड़ने की मांग उस पुराने टकराव को फिर से सामने ला रही है, खासकर संभाजी की शहादत को लेकर. यह मुद्दा दिखाता है कि इतिहास आज भी हमारे बीच जिंदा है और इसे अलग-अलग नजरिए से देखा जाता है.