भ्रामक विज्ञापन से जुड़ी शिकायतों के निपटारे के लिए तंत्र बनाएं राज्य !
भ्रामक विज्ञापन से जुड़ी शिकायतों के निपटारे के लिए तंत्र बनाएं राज्य, सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों को दिया आदेश
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि राज्य सरकारों को ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जिससे आम जनता औषधि एवं जादुई उपचार अधिनियम 1954 के तहत प्रतिबंधित आपत्तिजनक विज्ञापनों के बारे में शिकायत दर्ज करा सके। शीर्ष कोर्ट ने राज्यों को 1954 के अधिनियम के प्रविधानों के क्रियान्वयन के संबंध में पुलिस तंत्र को संवेदनशील बनाने का निर्देश दिया।

- शीर्ष कोर्ट ने राज्य सरकारों को दो माह का दिया समय
- कहा- समाज को नुकसान पहुंचाते हैं भ्रामक विज्ञापन
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को उन भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने का निर्देश दिया जो समाज को बहुत नुकसान पहुंचा सकते हैं।
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने दिया आदेश
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि राज्य सरकारों को ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जिससे आम जनता औषधि एवं जादुई उपचार अधिनियम, 1954 के तहत प्रतिबंधित आपत्तिजनक विज्ञापनों के बारे में शिकायत दर्ज करा सके।
पीठ ने कहा- ‘हम राज्य सरकारों को आज से दो महीने की अवधि के भीतर उचित शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने और नियमित अंतराल पर इसकी मौजूदगी का पर्याप्त प्रचार करने का निर्देश देते हैं।
पीठ ने कहा- ‘हम राज्य सरकारों को आज से दो महीने की अवधि के भीतर उचित शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने और नियमित अंतराल पर इसकी मौजूदगी का पर्याप्त प्रचार करने का निर्देश देते हैं।
‘भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगे
शीर्ष कोर्ट ने राज्यों को 1954 के अधिनियम के प्रविधानों के क्रियान्वयन के संबंध में पुलिस तंत्र को संवेदनशील बनाने का निर्देश दिया। भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सात मई, 2024 को निर्देश दिया था कि किसी भी विज्ञापन को जारी करने की अनुमति देने से पहले केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994 की तर्ज पर विज्ञापनदाताओं से स्व-घोषणा ली जाए।
ऐसे विज्ञापनों का मुद्दा तब उठा था जब शीर्ष अदालत 2022 में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पतंजलि और योग गुरु रामदेव पर कोविड रोधी टीकाकरण अभियान और आधुनिक चिकित्सा पद्धति को बदनाम करने का अभियान चलाने का आरोप लगाया गया था।