खेती छोड़ रहे किसान!
खेती छोड़ रहे किसान! सरकारी की रिपोर्ट में किसानों की असली परेशानी गायब?
भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है खेती. लेकिन ज्यादातर किसानों के लिए खेती अब फायदे का सौदा नहीं रही. कम कमाई वाले किसानों का भविष्य अनिश्चित है, जहां पैदावार, आमदनी और मजदूरी सब कम है.
भारत दुनिया में खेती करने वाले बड़े देशों में से एक है. यहां लगभग 55% लोग खेती करके अपना घर चलाते हैं. भारत में दुनिया की सबसे ज्यादा भैंसे हैं, और यहां सबसे ज्यादा जमीन पर गेहूं, चावल और कपास उगाया जाता है. फल, सब्जी, चाय, मछली, कपास, गन्ना, गेहूं, चावल और चीनी उगाने में भारत दूसरे नंबर पर है. भारत के पास दुनिया की दूसरी सबसे ज्यादा खेती की जमीन है. यह देश की लगभग आधी आबादी को काम देता है.
2022-23 में भारत में अनाज का उत्पादन 330.5 मिलियन मीट्रिक टन तक पहुंच गया था. भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा अनाज, फल और सब्जी उत्पादक देश है और चीनी का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है. लेकिन ज्यादातर किसानों के लिए खेती अब फायदे का सौदा नहीं रही. कम कमाई वाले किसानों का भविष्य अनिश्चित है, जहां पैदावार, आमदनी और मजदूरी सब कम है. देश की GDP में खेती का योगदान घटकर 18 फीसदी रह गया है, जबकि आधी से ज्यादा आबादी खेती पर निर्भर है.
बजट 2025-26: कृषि को बताया भारत के विकास का पहला इंजन
भारत की अर्थव्यवस्था में खेती का योगदान लगभग 18.2% है और यह हर साल 5% की दर से बढ़ रहा है (2017 से 2023 तक). केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय को वित्तीय वर्ष 2025-2026 के लिए 1.37 लाख करोड़ रुपये का बजट दिया गया है. कृषि और किसान कल्याण विभाग को 1.27 लाख करोड़ रुपये दिए गए हैं. कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग को 10,466 करोड़ रुपये दिए गए हैं.
हालांकि, पिछले साल की तुलना में कृषि बजट में 2.75% की कमी हुई है. 2024-25 में संशोधित बजट 1.41 लाख करोड़ रुपये था, जो अब घटकर 1.37 लाख करोड़ हो गया है. यानी, सरकार ने कृषि को विकास का इंजन तो बताया, लेकिन बजट में कटौती कर दी.
वहीं, मछली पालन, पशुपालन और डेयरी जैसे कामों के लिए सरकार ने 37% ज्यादा कुल 7544 करोड़ रुपया दिया है. खाने को प्रोसेस करने वाले कारोबार के लिए 56% ज्यादा 4364 करोड़ रुपया दिया है. पीएम-किसान योजना के लिए 63,500 करोड़ रुपये दिए गए हैं, जो पिछले साल के 60,000 करोड़ से ज्यादा है.
क्या सरकार ने खेती छोड़ने वाले किसानों की समीक्षा की?
संसद में पूछे गए इस सवाल के जवाब में सरकार ने बताया कि यह पता लगाने के लिए कोई विशेष समीक्षा नहीं की गई है कि कितने किसानों ने खेती छोड़ दी है. हालांकि, जनगणना विभाग की ओर से हर दस साल में कराई जाने वाली जनगणना के अनुसार, साल 2001 में देश में 12.73 करोड़ किसान थे, जो 2011 में घटकर 11.88 करोड़ रह गए. यानी, दस साल में किसानों की संख्या में 6.67% की कमी आई है.
सरकार ने कहा, यह बदलाव कोई असामान्य बात नहीं है. दुनियाभर के विकासशील देशों में देखा गया है कि लोग खेती छोड़कर उद्योग और सर्विस सेक्टर में रोजगार की ओर बढ़ते हैं. भारत में भी यही हो रहा है.
किसान कौन सी फसल उगाएंगे, यह कई बातों पर निर्भर करता है, जैसे कि वहां की जलवायु कैसी है, बाजार में किस फसल का दाम अच्छा है और उनके पास क्या-क्या साधन उपलब्ध हैं. कृषि और किसान कल्याण विभाग (DA&FW) 2014-15 से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) के तहत कपास, जूट और गन्ना जैसी व्यावसायिक फसलों की खेती को बढ़ावा दे रहा है.
खेती छोड़ने की असली वजहें क्या हैं?
2001 से 2011 के बीच करीब 85 लाख किसानों ने खेती छोड़ दी. ऐसे में सवाल उठता है कि किसानों की असली परेशानियां सरकारी रिपोर्टों में जगह क्यों नहीं पातीं?
सरकार रिपोर्ट में कहती है कि शहरीकरण और अन्य सेक्टरों में रोजगार के मौके बढ़ने से किसान खेती छोड़ रहे हैं. लेकिन हकीकत इससे कहीं ज्यादा गहरी है. खेती से होने वाली कमाई इतनी कम है कि किसान गुजारा नहीं कर पाते. हजारों किसान हर साल कर्ज में डूबकर आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं. किसान दिन-रात मेहनत करते हैं, लेकिन बाजार में बिचौलियों के कारण उन्हें अपनी फसल का सही दाम नहीं मिल पाता. बीज, खाद, डीजल, ट्रैक्टर—सब महंगा हो रहा है, इससे लागत बढ़ती जा रही है. बारिश में अनियमितता, सूखा, बाढ़ और बढ़ते तापमान से खेती करना मुश्किल हो गया है.
सरकारें अक्सर किसानों की समस्याओं को कम दिखाने की कोशिश कर सकती हैं, ताकि यह न लगे कि वे स्थिति को संभालने में विफल रही है. रिपोर्ट तैयार करने वाले अक्सर किसानों से दूर होते हैं और उनकी समस्याओं को सीधे तौर पर नहीं समझते हैं. इससे रिपोर्टों में किसानों की वास्तविक चिंताओं का अभाव हो सकता है.
खेती से दूसरे कामों में लोगों को नहीं ला पाई सरकार
मगर, सरकार की आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 की रिपोर्ट दूसरी बात कहती है. इस रिपोर्ट से ये पता चलता है कि सरकार लोगों को खेती-बाड़ी से दूसरे कामों में नहीं लगा पाई. रिपोर्ट में ये भी बताया कि सर्विस और कंस्ट्रक्शन वाले काम तो कम हो गए, लेकिन खेती में काम करने वाले बढ़ गए.
सरकार ने 2023-24 की रिपोर्ट में कहा था कि भारत को हर साल करीब 78.5 लाख ऐसी नौकरियां बनानी होंगी जो खेती से अलग हों, ताकि जो लोग काम करने लायक हैं, उन्हें ढंग का काम मिल सके. इसका मतलब है कि भारत को हर साल करीब 35 लाख लोगों को खेती से हटाना होगा और खेती से अलग वाले कामों में 78.5 लाख नौकरियां बनानी होंगी, तभी लोग खेती-बाड़ी छोड़कर दूसरे कामों में जाएंगे.
2017-18 में 44.1 फीसदी लोग खेती में काम करते थे, जो 2023-24 में बढ़कर 46.1 फीसदी हो गया. मतलब पिछले छह सालों में खेती पर लोगों का भरोसा 2 फीसदी बढ़ गया है. 2023 में 45.8 फीसदी लोगों का काम खेती-बाड़ी ही था. ये आंकड़ा बताता है कि खेती-बाड़ी को छोड़कर बाकी काम-धंधे लोगों को नौकरी देने में ज्यादा सफल नहीं रहे. 2024-25 की नौकरी वाली रिपोर्ट ये भी कहती है कि कारखाने और सर्विस वाले कामों में नौकरियां कम हुई हैं.
अमेरिका में भी किसानों की संख्या घटी?
यूएस एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में 1935 में खेतों की संख्या सबसे ज्यादा (लगभग 68 लाख) थी. उसके बाद 1970 के दशक तक ये संख्या तेजी से कम हुई. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि खेती में पैदावार बढ़ी और लोगों को खेती के बाहर भी काम मिलने लगा. 1982 के बाद भी अमेरिका में खेतों की संख्या धीरे-धीरे कम होती रही.
2024 में अमेरिका में 18.8 लाख खेत थे, जबकि 2017 में 20.4 लाख थे, यानी 8 फीसदी खेत कम हो गए. इसी तरह, खेतों की जमीन भी कम हुई है. 2024 में 87.6 करोड़ एकड़ जमीन खेतों के लिए इस्तेमाल हुई, जो 2017 में 90 करोड़ एकड़ थी. 2024 में एक खेत का औसत आकार 466 एकड़ था, जबकि 1970 के दशक की शुरुआत में 440 एकड़ था.